बुधवार, 16 अक्टूबर 2024

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था राष्ट्रभाषा हिंदी प्रचार समिति की ओर से 14 अक्टूबर 2024 को मासिक काव्य गोष्ठी का आयोजन

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था राष्ट्रभाषा हिंदी प्रचार समिति की मासिक काव्य गोष्ठी 14 अक्टूबर 2024 सोमवार को आयोजित की गई । गोष्ठी की अध्यक्षता रामदत्त द्विवेदी ने की मुख्य अतिथि के रूप में डॉ महेश दिवाकर एवं विशिष्ट अतिथि डॉ राकेश चक्र रहे। सरस्वती वंदना रघुराज सिंह निश्चल ने प्रस्तुत की एवं मंच संचालन अशोक विद्रोही द्वारा किया गया। 

       डॉ महेश दिवाकर द्वारा कवियों को जागृत करते हुए कहा देश की परिस्थितियों बहुत विषम होती जा रही हैं। साहित्यकारों का कर्तव्य है ऐसे समय में क्रांतिकारी गीत लिखें । लोगों की आत्मा को जागने वाली रचनाएं लिखें और अपने देश को बचाने के लिए वर्तमान असंतोष को अपने गीतों में व्यक्त करें।  

     योगेंद्र पाल सिंह  विश्नोई ने कहा -

आंसू की स्याही से लिखो मोती जैसे बोल ,

अपने गीतों की पुस्तक को धीरे-धीरे खोल। 

किसे जरूरत है जो बोले पाप पुण्य की बात।

 यहाँ प्रश्नों के उत्तर हो जाते गोलम गोल । 

अशोक विद्रोही ने देश प्रेम के भाव इस प्रकार व्यक्त किये–

रोके से भी रुक न सके हम वो दरिया तूफानी हैं। 

मां जीजा के वीर शिवा राणा की अमर कहानी हैं

निकल पड़े यदि रण में तो मुश्किल है कि पीछे हट जायें, 

इंच इंच कट जायेंगे हम सच्चे हिन्दुस्तानी हैं। 

वीरेंद्र सिंह बृजवासी ने पढा़- 

सर्वदा अलस्य त्यागो नहीं श्रम से दूर भागो । 

कठिनता की चाशनी में सफलता का मंत्र पागो।  

राम सिंह निशंक ने कहा - 

नगर गांव में प्रदूषण नित नित बढ़ता जाए ,

वायु शुद्ध कैसे रहे इसका करो उपाय। 

अशोक विश्नोई ने कहा- 

मर चुका आंखों का पानी लिख,

उजड़े हुए घरों की कहानी लिख। 

क्या सोचता है प्यारे उठा कलम,

रोते हुए बच्चों की जवानी लिख । 

 ओंकार सिंह ओंकार ने इस प्रकार अपनी अभिव्यक्ति दी- 

पुतला रावण का सभी फूंक रहे हर साल । 

उसकी मगर बुराइयां लोग रहे हैं पाल  । 

राजीव प्रखर ने कहा....

सूना-सूना जब लगा, बिन बिटिया घर-द्वार ।

चीं-चीं चिड़िया को लिया, बाबुल ने पुचकार।। 

रघुराज सिंह निश्चल ने पढ़ा.... 

यह देश अगर सबका होता तो भारत क्या ऐसा होता। 

भारत अखंड भारत रहता यह हाल न भारत का होता ।। 
























   :::::प्रस्तुति::::::

अशोक विद्रोही 

उपाध्यक्ष

राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति 

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

बुधवार, 9 अक्टूबर 2024

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिन्दी साहित्य संगम की ओर से छह अक्टूबर 2024 को साहित्यकार योगेन्द्र वर्मा के दोहा-संग्रह 'उगें हरे संवाद' पर चर्चा-गोष्ठी का आयोजन

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिन्दी साहित्य संगम की ओर से रविवार छह अक्टूबर 2024 को  साहित्यकार योगेन्द्र वर्मा के दोहा-संग्रह 'उगें हरे संवाद' पर  चर्चा-गोष्ठी का आयोजन किया गया। यह आयोजन मिलन विहार स्थित आकांक्षा इंटर कॉलेज में हुआ।

    मीनाक्षी ठाकुर द्वारा प्रस्तुत माॅं सरस्वती की वंदना से आरंभ हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए डॉ. अजय अनुपम ने कहा- "व्योमजी का दोहा-संग्रह 'उगें हरे संवाद' हमें नए स्वस्थ वैचारिक समाज का सशक्त घटक बनाने का पौष्टिक च्यवनप्राश है। उज्ज्वल भविष्य के प्रेरक दोहे समाज को सही दिशा दिखाने में पूर्णतया सक्षम हैं।" 

मुख्य अतिथि राजीव सक्सेना का कहना था - "दोहा जैसे अत्यंत महत्वपूर्ण छंद को आम व्यक्ति की समस्याओं से जोड़ने में 'उगें हरे संवाद' एक दस्तावेज़ सिद्ध होगी। आने वाले समय में वह इस छंद को और भी अधिक ऊंचाई तक ले जायेंगे।" 

  विशिष्ट अतिथि के रूप में अशोक विश्नोई ने कहा  "व्योम  जी के दोहे वर्तमान सामाजिक परिस्थितियों का सजीव चित्रण करते हैं।" विशिष्ट अतिथि ओंकार सिंह ओंकार ने भी दोहा संग्रह को एक महत्वपूर्ण उपलब्धि बताया।

 कार्यक्रम का संचालन करते हुए राजीव प्रखर  का कहना था - "समस्या मूलक इन सभी दोहों की यह विशेषता है कि ये समस्या के मात्र तात्कालिक स्वरुप को ही इंगित नहीं करते अपितु कालांतर में वह समस्या क्या एवं कितना विस्तार ले सकती है, इस ओर भी संकेत कर जाते हैं। यही कारण है कि उच्च-स्तरीय बिंबों में गुॅंथा यह दोहा-संग्रह वर्तमान के साथ-साथ भविष्य की हलचल को भी पाठकों के सम्मुख रख देता है।" 

  ज़िया ज़मीर ने कहा- "व्योमजी के यहां नवगीतों की अपेक्षा दोहों में मुखरता और कटाक्ष अधिक दिखाई देता है और विषयों की विविधता भी। यहां उनका लहजा तीखा भी है और धारदार भी। कहीं-कहीं भाषा शैली क्लिष्ट होने के बावजूद ये दोहे अपना अर्थ स्पष्ट कर जाते हैं।"  

मीनाक्षी ठाकुर ने कहा - "व्योम जी इन दोहों में समाज को आईना भी दिखाते हैं और सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ पारिवारिक रिश्तों में मिठास और सामाजिक-संबंधो में उल्लास बनाये रखने की पैरवी भी करते हैं, यही उनके दोहों की आत्मा है।" 

    मनोज मनु ने कहा - "इंटरनेट के इस त्वरित युग में, जहाँ सभी को शीघ्र ही बात के सार तक पहुंचने की तत्परता रहती है, ऐसे समय में व्योम जी का नवगीत के एक सशक्त हस्ताक्षर के रूप में स्थापित होते हुए भी 'गागर में सागर' भरती विधा "दोहा" द्वारा अपनी सारगर्भित बात को नई पीढ़ी तक कम शब्दों में पहुंचाने का माध्यम बनाना उनके दूरदर्शी नज़रिए से भी साक्षात्कार करवाता है।"    

     अंकित गुप्ता अंक ने कहा - "व्योम जी अपनी रचनाओं में सदैव ही दुरूह और भारी-भरकम शब्दों के प्रयोग से बचते रहे हैं और उनकी यह विशेषता पुस्तक में सर्वत्र परिलक्षित होती है‌"।        

    हेमा तिवारी भट्ट द्वारा लिखित समीक्षा का पाठ करते हुए मीनाक्षी ठाकुर ने कहा - "प्रस्तुत दोहा संग्रह में लगभग सभी समकालीन विषयों यथा भ्रष्टाचार, राजनैतिक पतन, गरीबी, मातृभाषा हिन्दी की स्थिति, मंचीय लफ्फाजी, कविता की स्थिति, पारिवारिक विघटन, आभासी सोशल मीडिया युग, चाटुकारिता और स्वार्थपरता जैसे विविध विषयों पर कवि द्वारा अपने उद्गार अपनी विशिष्ट दृष्टि के पैरहन पहनाकर प्रस्तुत किये गये हैं।" 

     विवेक निर्मल ने उक्त कृति पर आधारित सुंदर दोहों के माध्यम से अपनी अभिव्यक्ति की‌। उपरोक्त वक्ताओं के अतिरिक्त जितेन्द्र जौली, राहुल शर्मा, पदम बेचैन, फक्कड़ मुरादाबादी, नकुल त्यागी, डॉ. पूनम गुप्ता, योगेन्द्र पाल विश्नोई, रामदत्त द्विवेदी आदि ने भी संग्रह की उपयोगिता तथा श्री व्योम के दोहा-सृजन पर प्रकाश डाला।       

      कार्यक्रम  में दोहा-पाठ करते हुए चर्चित कृति के रचनाकार योगेन्द्र वर्मा 'व्योम' ने कहा - 

मिल-जुलकर हम-तुम चलो, ऐसा करें उपाय। 

अपनेपन की लघुकथा, उपन्यास बन जाय।। 

धन-पद-बल की हो अगर, भीतर कुछ तासीर। 

जीकर देखो एक दिन, वृद्धाश्रम की पीर।। 

कथनी तो कुछ और पर, करनी है कुछ और। 

इस युग का सिरमौर है, दुहरेपन का दौर।। 

बदल रामलीला गई, बदल गये अहसास।

 राम आजकल दे रहे, दशरथ को वनवास।। 

जितेन्द्र जौली ने आभार अभिव्यक्त किया।