::::::::प्रस्तुति::::::::
डॉ मनोज रस्तोगी
संस्थापक
साहित्यिक मुरादाबाद शोधालय
8, जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 094566 87822
::::::::प्रस्तुति::::::::
डॉ मनोज रस्तोगी
संस्थापक
साहित्यिक मुरादाबाद शोधालय
8, जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 094566 87822
लगा ऐसा।
कमल पुष्पों से मेरा पथ है सजाता,
लगा ऐसा।
दुनिया में जिनकी मदद का है भरोसा टूट जाता,
कोई उनका भी ठिकाना है बनाता,
लगा ऐसा।
इन बहारों को निरखकर मुझको ऐसा लग रहा है,
प्यार से दुल्हन को कोई है सजाता,
लगा ऐसा।
भीड़ में होता परेशा जब कभी कोई मुसाफिर,
मार्ग आकर उसको कोई है सुझाता,
लगा ऐसा।
नाव है फंसती किसी की तेज नदिया धार में जब,
बनके मल्हा पार उसको है लगाता,
लगा ऐसा।
सत्य का सत्संग कुछ ही देर का हो तो भी अच्छा,
हृदय में ये प्रेम जज्बा है बढ़ाता,
लगा ऐसा।
✍️राम दत्त द्विवेदी
अध्यक्ष
हिंदी साहित्य संगम
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
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पांच दुनी दस
शीत लहर है
धूप नहालें
यादों के लिए
गीत गूँजलें
थके नहीं बस
पांच दुनी दस
चाप पाँव की
हल्की भारी
अंतर चुभती
वह किलकारी
ह्रदय नहीं रस
पांच दुनी दस
चिट्ठी बाँची
नीड़ खोजते
आस्था थामे
मील नापते
दबी कहीं नस
पांच दुनी दस
✍️अशोक विश्नोई
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
.............................
बारिश में सड़कें हुईं, हैं गड्ढों से युक्त।
जाम लग रहे हर जगह, वाहन सरकें सुस्त।।
बादल जब वर्षा करे, लहराता है धान।
हरे खेत को देखकर, पुलकित होय किसान।।
वर्षा भरती इस तरह, हर मन में आनंद।
बौछारों की ध्वनि लगे, जैसे गूँजे छंद।।
वर्षा से हरिया गए, सब पेड़ों के पात ।
रसमय हर जीवन हुआ, अदभुत है बरसात।।
बौछारों में है घुली, मधुर प्यार की गंध।
आपस में जुड़ने लगे , प्रीत भरे संबंध।।
जल पाकर मद से भरे , भूल गए अनुबंध।
उफ़न नदी - नाले चले , तोड़ दिए तटबंध।।
✍️ओंकार सिंह ' ओंकार '
1-बी-241 बुद्धि विहार , मझोला,
मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश ) 244103
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लाज गयी इज्जत गयी,
गया हिंद का मान |
पूज्य अयोध्या धाम को,
नहीं मिला सम्मान ||
राष्ट्रवाद की हार है,
जाति पंथ की जीत |
भाती हमें गुलामियत,
इसी से गहरी प्रीति ||
✍️के पी सिंह ’सरल'
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
....................................
कपटी ने फिर से चली चाल,
फैलाया झूठा कुटिल जाल।
फिर से शत्रु सफल हो गया,
रामसंग फिर से छल हो गया।।
फंसे चाल में सब नर नारी,
एकबार अयोध्या फिर हारी।
सबका हृदय विकल रो गया,
रामसंग फिर से छल हो गया।।
था राजतिलक वन गमन हुआ,
यों कोप भवन का शमन हुआ
फिर विधाता कहाँ सो गया।
रामसंग फिर से छल हो गया।।
लल्ला से जन्म स्थल छीना,
मंदिर से तम्बू रख दीना।
पांच सदियों का फल खो गया।
रामसंग फिर से छल हो गया।।
न्यायालय ने कर दिया न्याय
मंदिर ने रचे नये अध्याय।
बैर का बीज फिर बो गया।
रामसंग फिर से छल हो गया।।
जन्मों के फल से उथित भाल
मंदिर छवि पा वैभव विशाल ।
पुन्य सारे समय धो गया।
रामसंग फिर से छल हो गया।
हिन्दू जनजन हित जगा रहा,
सुर सम हृदय से लगा रहा।
फिर सबल दुष्ट दल हो गया,
रामसंग फिर से छल हो गया।।
जप तप कर हर दम रहा मौन,
तिलतिल जीवन कर दिया हौम।
एक तपस्वी विफल हो गया।
रामसंग फिर से छल हो गया।।
भगवा सेवक दल उमड़ रहे,
दन दन जालिम थे भून रहे।
लाल सरयू का जल हो गया।
रामसंग फिर से छल हो गया।।
✍️अशोक विद्रोही
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
................................
बारिश में खूब नहाना भूल गये बच्चे
कागज की नाव बनाना भूल गये बच्चे
मोबाइल पर रहते हर वक्त ऑन लाइन
आँगन में शोर मचाना भूल गये बच्चे
✍️डॉ मनोज रस्तोगी
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
...............................
भौचक धरती को हुआ, बिल्कुल नहीं यक़ीन ।
अधिवेशन बरसात का, बूँदें मंचासीन ।।
पिछले सारे भूलकर, कष्ट और अवसाद ।
पत्ता-पत्ता कर रहा, बूँदों का अनुवाद ।।
किए दस्तख़त जब सुबह, बूँदों ने चुपचाप ।
मन के काग़ज़ के मिटे, सभी ताप-संताप ।।
अबकी बारिश से मिली, शहरों को सौगात ।
चोक नालियां कर रहीं, सड़कों पर उत्पात ।।
बरसो, पर करना नहीं, लेशमात्र भी क्रोध ।
रात झोंपड़ी ने किया, बादल से अनुरोध ।।
✍️योगेन्द्र वर्मा 'व्योम'
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
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पूरा जब वनवास हुआ तब, राम अयोध्या वापस आये
नगरवासियों ने खुश होकर, घर -घर घी के दीप जलाये
रहता था जो सूना सूना, वहाँ मची अब कितनी हलचल
जनता की आँखें तो नम हैं मगर खुशी का उनमें है जल
बहुत दिनों के बाद हर्ष के, चारों तरफ घने घन छाये
नगरवासियों ने खुश होकर,घर- घर घी के दीप जलाये
रुका- रुका सा था जनजीवन, घिरी उदासी सी रहती थी
धूप नहीं खिलती थी हँसकर, चुप -चुप सुस्त हवा बहती थी
आज प्रभू के आ जाने से, गगन- धरा ,कण – कण मुस्काये
नगरवासियों ने खुश होकर, घर – घर घी के दीप जलाये
बहुत दिनों के बाद नगर में उत्सव का ये दिन आया है
बना राम का सुन्दर मंदिर ,जन -जन के मन को भाया है
सबने आँगन में रंगोली, द्वारे बंदनवार सजाये
नगरवासियों ने खुश होकर, घर- घर घी के दीप जलाये
गूंजेंगे अब विश्व पटल पर, राम नाम के प्यारे नारे
सिंहासन पर बैठेंगे प्रभु , जागेंगे फिर भाग्य हमारे
उनका दर्शन करने की अब, सब हैं दिल में आस लगाये
नगरवासियों ने खुश होकर, घर – घर घी के दीप जलाये
✍️डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
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चन्दा बिन्दी भाल की, तारे नौलख हार।
रजनी करके आ गई, फिर झिलमिल शृंगार।।
पंछी लौटे नीड़ को, मौन हुए सब तीर।
रजनी नभ में गढ़ रही, फिर झिलमिल तस्वीर।।
अब तेरे ही नाम पर, हे जग-पालनहार।
बगलों में हैं चैन से, छुरियों के अंबार।।
✍️ राजीव 'प्रखर'
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
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सावन -भादों ने देखी फिर,
बूँदो की मनमानी।
हाथ -पांँव फूले सड़कों के,
छपक- छपक जब चलतीं ।
बढ़े बाढ़ के पानी में सब,
आशाएँ भी गलतीं।
सहम गए छप्पर के तिनके,
दरकी नींव पुरानी।
कंगाली में गीला आटा,
सीला चूल्हा -चौका।
चतुर सियासत इसमें भी तो,
ढूँढ रही है मौका।
कुछ तो गलती पानी की, कुछ.. !
प्रायोजित शैतानी।
मटमैली आँखों से घूरे,
पीली नदिया धारा।
लोकतंत्र में देख रही है ,
लूटतंत्र का गारा,
डूबे वैभव के कंगूरे,
डूब रही रजधानी।
✍️मीनाक्षी ठाकुर,
मिलन विहार
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
.............................
रिमझिम बरखा आई,
झूम रे मन मतवाले ,
काले काले मेघा ,
घिर घिर के आते हैं ,
अंजुरि में भर भर के,
बूंद - बूंद लाते हैं ,
बूंद- बूंद भर देती
खाली मन् के प्याले ,,
रिमझिम बरखा आई ...
कस्तूरी गंध बूंद,
जिसका मृग मन प्यासा,
बूंद- बूंद छूने को,
व्याकुल ये तन प्यासा ,
बूंद बूंद तृप्ति को,
प्यासे यह जग वाले,,
रिमझिम बरखा आई ..
तड़की है मेघ बीच
एक रेख बिजली की,
अंगड़ाई लेती ज्यों
मदमाती पगली सी ,
विह्वल रति मति तेरे
बस में है तड़पाले,,
रिमझिम बरखा...
धान मान खो देता
पुनः लह लहाने को,
पौध कुल -मुलाती है
धरती पर छाने को,
हरिया हौंसे मन में
खेत देख हरियाले,,
रिमझिम बरखा ...
प्यास बुझी धरती की
हरियाला पन बिखरा,
पत्तों का... बूटों का
एक नया रंग निखरा,
झम झम इस बारिश ने
पोखर सब भर डाले,,
रिम झिम बरखा आई
झूम रे मन.. मतवाले,,
✍️मनोज वर्मा मनु
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
................................
महाकाल मन में गुनूँ,अति पावन यह नाम।
शिव हित ही शिव को जपूँ,परे रखूँ सब काम।।1।
दूर तलक ईँटे दिखीं,ओढ़ सलेटी खाल।
सावन के अंधे हुए,फिर भी कस्बे लाल।।2।
"पावस डिश है कौन सी,बतलाओ ना मॉम।"
"या पबजी सा गेम ये,"पूछे शहरी टॉम।।3।
आफ़त ये बरखा हुई,जित देखें तित नीर।
झोपड़ियों की आँख से,उस पर बरसी पीर।।4।
कहाँ कागजी कश्तियाँ,कहाँ राग मल्हार।
मोबाइल के आसरे,सावन का त्योहार।।5।
कृत्रिम बुद्धि के काल में,आली कैसी तीज।
अब संस्कृति की सम्पदा,नहीं काम की चीज।।6।
आया पावस झूमकर,सड़क बनी है ताल।
मछली के माफिक पथिक,फँसा ताल के जाल।।7।
✍️हेमा तिवारी भट्ट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
..............................
राम हर पल में है,
राम हर कण में है!
राम भरत में है,
राम विभीषण में है!
शांत मन में है राम,
राम रण में है !
राम दशरथ में है,
राम रावण में है!
कल्पना नहीं है राम,
राम हर चेतन में है,
हर जड़ में है!
कोई सपना नहीं राम,
राम आचरण में है!
राम तेरे में है,राम मेरे में है,
जो चेतन यहां,
राम सबके जीवन में है!
✍️नकुल त्यागी
बुद्धि विहार, मुरादाबाद
.................................
है विशेष यह देश कि जिसमें जन्म है हमने पाया,
विश्व पटल पर इसका गौरव, दुनिया को दिखलाया।
हार कहांँ मानी थी राम ने,जब वियोग था पाया,
रावण को परास्त किया,तब राम राज्य था आया।
है विशेष यह धरा अयोध्या,जन्म जहाँ था पाया,
युगों-युगों अवतरित प्रभु का गुण सबने था गाया।
विजयी धर्म-कर्म पराजित यह करके दिखलाया,
विश्व पटल पर इसका गौरव दुनिया को दिखलाया।
हार कहाँ मानी सुभाष को ,फिरंगी राज जब आया,
नेताजी की सेना ने झंडा, निज हस्त उठाया।
शस्त्र बिना कैसे भारत तब,स्वतंत्रता ले पाया,
यही सोचकर रक्त के बदले ,स्वतंत्रता था गाया।
दुनिया में स्वधर्म ध्वजा फहरा,सौरभ दिखलाया,
विश्व पटल पर इसका गौरव, दुनिया को दिखलाया।
अब विशेष विकसित भारत,सबका विकास हो आया,
आध्यात्मिक व तकनीकि को,तुला सम तोल दिखाया।
जीवन सभ्य बने मानव का, शस्त्र व शास्त्र सुहाया,
संकल्पों से सिद्धि होगी- मंत्र यही मन भाया।
*वसुधैव कुटुंबकम्* भाव जगा,इसका वैभव दिखलाया,
विश्व पटल पर इसका गौरव दुनिया को दिखलाया।
✍️शशि त्यागी
अमरोहा
................................
पृथ्वी राज से सिंह जने जो, उस धरती का मान हो।
क्षत्रिय कुल की गौरव-गाथा, पृथ्वी राज़ चौहान हो।
समरभूमि में जाकर तुमने ,गौरी को ललकारा था ।
कितनी बार शूरवीर से , पापी गौरी हारा था।
राजपुताना के साहस तुम , भारत का अभिमान हो।
क्षत्रिय कुल की ---------------
सिंह सरीखा लड़ा वीर वह, हर दुश्मन पर भारी था।
हर हर महादेव का बेटा, अरि दल पर वह आरी था।
मात भवानी के गौरव तुम, भारत का गुणगान हो।
क्षत्रिय कुल की -------------
एक बाण से भेद दिया था , अब दोजख को प्यारा था।
बंधन में पड़कर भी तुमने गौरी को खुद मारा था।
याद रखेगा जन-जन तुमको, वीरों का प्रतिमान हो।
क्षत्रिय कुल की ----------------
✍️पूजा राणा
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
...................................
यह जग है एक मुसाफिर खाना,
आज ठहरे हो कल चले जाओगे,
बेशक आज कमरे के रजिस्टर पर नाम है तुम्हारा
कल फिर कभी लौटोगे तो किसी और का पाओगे
नाम लिख देने से जीवन भर का हक़दार कहाँ होता है
इस जग में मेरा कहने वाला असल किरदार नहीं होता है
✍️प्रशान्त मिश्र
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
...............................
जिंदगी अपनी में गम को
घर ना करने दीजिए
जिससे मिले मन को खुशी
कोई काम ऐसा कीजिए
ख्वाहिशें और ख्वाब बस
जीने के दो अंदाज है
राह में इनके कोई
मुश्किल ना आने दीजिए
नफरतों को जीतने का
एक तरीका प्यार है
प्यार की डूबी सुबह में
शाम को रंग दीजिए
गफलतों में जीते रहना
बुजदिलों की है अदा
जिंदादिलों की राह के
सजदा दिलों से कीजिए
✍️कमल कुमार शर्मा
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
सावन -भादों ने देखी फिर,
बूँदो की मनमानी।
हाथ -पांँव फूले सड़कों के,
छपक- छपक जब चलतीं ।
बढ़े बाढ़ के पानी में सब,
आशाएँ भी गलतीं।
सहम गए छप्पर के तिनके,
दरकी नींव पुरानी।
कंगाली में गीला आटा,
सीला चूल्हा -चौका।
चतुर सियासत इसमें भी तो,
ढूँढ रही है मौका।
कुछ तो गलती पानी की, कुछ.. !
प्रायोजित शैतानी।
मटमैली आँखों से घूरे,
पीली नदिया धारा।
लोकतंत्र में देख रही है ,
लूटतंत्र का गारा,
डूबे वैभव के कंगूरे,
डूब रही रजधानी।
दो
जले जेठ ने जाने अबके
क्या करने की ठानी।
रौब झाड़कर सोख लिए हैं,
सारे ताल तलैया।
तेज धूप भी काट रही है,
मानो बनी ततैया ।
बना लिया गरमी को इसने,
अपने मन की रानी।
जले जेठ ने जाने अबके
क्या करने की ठानी ।।
वरदहस्त सूरज का इस पर,
लंपट लू से यारी।
ठनी हुई बरखा से इसकी,
पड़ता उस पर भारी।
स्वेद छिड़कता ऐसे भर-भर,
जैसै छिड़के पानी।
जले जेठ ने जाने अबके
क्या करने की ठानी ।।
भून दिए सब चिड़िया- तीतर,
हिरण कर दिये काले।
इसके डर से लोग लोगनी
निकलें घूँघट डाले।
हाय आदमी ! पेड़ काटकर
कर बैठा नादानी।
जले जेठ ने जाने अबके
क्या करने की ठानी ।।
तीन
सोच रहा है आम आदमी
वह भी होता खास आदमी।
भाग रहा रोटी के पीछे,
खुद को आगे ठेल रहा है।
सुबह- शाम की चिंताओं से
अक्कड़-बक्कड़ खेल रहा है।
घिसी- पिटी सी वही कहानी,
मजबूरी का दास आदमी।
ताक रही हैं आसमान को,
सूनी आँखें, ज़र्द पनीलीं।
चौमासे में बैठ गयीं घर,
उम्मीदें सब , होकर गीलीं।
भूरे, मटमैले बोरे में,
ढोता फिर भी, आस आदमी।
किस्मत के सौतेलेपन से,
बुझा- बुझा सा रहता चूल्हा।
महंँगाई से टूट गया है,
छोटे से वेतन का कूल्हा।
पूछ रहा है, क्या हो जाता,
खा लेता यदि घास आदमी?
चार
पीत- वसन, सुरभित आभूषण
ठाठ बड़े ऋतुराज के !
नर्म हुआ दिनमान गुलाबी,
मधुमास संग मुस्काया।
पूस ठिठुरता चला गया है,
माघ बावरा मदमाया।
पीली सरसों नाच रही है
मस्त मगन बिन साज के।
छेड़ी कोयल ने मृदु सरगम,
बौर आम की इतरायी।
बैरागी वृक्षों के तन पर,
अनुरागी रंगत छायी।
वासंती वसुधा का वैभव
क्या कहने हैं आज के !
लीप लिए केसर हल्दी से
खेतों ने अपने आंगन,
फूलों के खिलते यौवन पर,
अलियों के रीझे हैं मन।
कलियों ने सकुचा कर खोले,
घूंघट- पट अब लाज के।
✍️मीनाक्षी ठाकुर
मिलन विहार
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
समाजसेवी कीर्तिशेष सुमन लाल जी की स्मृति में मुरादाबाद की साहित्यकार सरिता लाल के मधुबनी स्थित आवास पर मंगलवार 11 जून 2024 को काव्य-गोष्ठी का आयोजन किया गया।
राघव सागर द्वारा प्रस्तुत माॅं सरस्वती की वंदना से आरंभ हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए मंसूर उस्मानी ने कहा ...
तंग आकर ग़लत बयानी से,
हम अलग हो गए कहानी से।
आदमी आदमी का दुश्मन है,
अब सियासत की मेहरबानी से।
मुख्य अतिथि श्रीकृष्ण शुक्ल का कहना था -
प्रिय मेरा विश्वास तुम्हीं हो,
इस जीवन की आस तुम्हीं हो।
बिना तुम्हारे कट न सकें जो,
मेरे दिन और रात तुम्हीं हो।
विशिष्ट अतिथि के रूप में डॉ. माधुरी सिंह ने संबंधों की सच्चाई को सामने रखते हुए कहा -
पुरुषों के जीवन में स्त्रियाँ
बहुत महत्व रखती हैं,
किंतु उनकी ग़ुलाम के रूप में।
न जाने उनके ख़्वाब क्या हैं?
वही जानें,
वे तो पूरे होने से रहे।
अरे, मित्रता कर लो न!
हिम्मत तो करो।
मेरे ख़्वाब में भी
एक सुनहरा भविष्य है।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए डॉ. प्रेमवती उपाध्याय ने अपनी पंक्तियों से परिस्थितियों का चित्र खींचा -
आत्म मुग्धता ने किया, राजा को कमजोर।
अपनी गलती खोजिए, क्यों करते अब शोर।।
क्यों करते अब शोर, मिला बल जिनसे तुमको।
सेहतमंद शरीर, बैठाया, घर में उनको।
कहे अकिंचन प्रेम, जड़ों में रखें तरलता।
आत्म समीक्षा करें, बढ़े न आत्म मुग्धता।।
सरिता लाल की पंक्तियों में मन की वेदना इस प्रकार मुखर हुई -
हर हॅंसती कली से पूछो तो जरा,
ओस की बूंदों को
अपने आंचल में भरा है उसने,
जो कुछ मिला उसे
सहजता से स्वीकार किया है उसने।
कवयित्री डॉ अर्चना गुप्ता की यह मार्मिक प्रस्तुति सभी के हृदय को स्पर्श कर गयीं -
हज़ार ग़म हैं तुम्हें कौन सा बताएं हम।
हज़ार ज़ख्म हैं वो किस तरह दिखाएं हम।
न जाने कितनी ही बातें सुनानी हैं तुमको,
ज़रा सा पास कभी बैठो तो सुनाएं हम।
डॉ. मनोज रस्तोगी का कहना था -
आवाज में भरी मिठास, चेहरे पर मासूमियत
भेड़ियों ने पहनी गाय की खाल रे भैया
योगेन्द्र वर्मा व्योम ने अपने दोहों में वर्तमान समाज का चित्र कुछ इस प्रकार खींचा -
बिना कहे ही पढ़ लिया, भीतर का सब सार।
मन की भाषा धन्य है, धन्य शब्द-संसार।।
बेशक सपनों के शहर, हर भटकन की ठाँव।
पर क्यों सुविधाहीन हैं, उम्मीदों के गाँव।।
रचना पाठ करते हुए राजीव प्रखर ने कहा
टूटे जब-जब प्रीत में, संवादों के तार।
तब-तब पायल कर गई, चुप्पी का प्रतिकार।।
नीम ! तुम्हारी छाॅंव में, आकर बरसों बाद।
फिर से ताज़ा हो उठी, बाबूजी की याद।।
ज़िया ज़मीर ने अपने अशआर से सभी के हृदय का स्पर्श करते हुए कहा -
दर्द की ग़म की नुमाइश नहीं करनी आती।
कैसी आंखें हैं कि बारिश नहीं करनी आती।
हम कि कोशिश से भुला सकते हैं तुम को
लेकिन, बात यह है हमें कोशिश नहीं करनी आती।
डॉ. रीता सिंह की अभिव्यक्ति थी -
दुनिया में हम खुशियाँ ढूँढें।
सखे ! प्रेम की मणियाँ ढूंढें।
छोड़ उदासी को अब पीछे;
हँसियों की फुलझड़ियाँ ढूँढें।
डॉ. सुगंधा अग्रवाल ने अपने भावों को इस प्रकार शब्द दिए -
किससे कहूँ , कौन सुनेगा, दिल पर मेरे जो गुज़रीं है।
चारों ओर है सन्नाटा औऱ ग़म की आँधी पसरी है।
माँ-पिता का साया सर से उठ गया,
जिन्दा हैं पर लगता है दिल का धड़कना रुक गया।
दुष्यंत बाबा ने अपने भावों को शब्द दिए -
जो दर्शन बदरी के पाते,
मुक्ति नर उदरी से पाते।
मयंक शर्मा ने गीतों की सुरलहरी छेड़ी -
मन ले चल अपने गाँव हमें शहर हुआ बेगाना,
दुख का क्या है दुख से अपना पहले का याराना।
राघव सागर ने कहा -
मुझे तो मुखौटों से अब डर लगने लगा है।
सुख की वजाय दुःख अच्छा लगने लगा है।
सरिता लाल ने आभार-अभिव्यक्त किया।