शुक्रवार, 6 सितंबर 2024

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिन्दी साहित्य संगम की ओर से एक सितंबर 2024 को काव्य-गोष्ठी का आयोजन

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिन्दी साहित्य संगम की ओर से रविवार एक सितंबर 2024 को मासिक काव्य-गोष्ठी का आयोजन मिलन विहार स्थित आकांक्षा विद्यापीठ इंटर कॉलेज में किया गया। 

कीर्तिशेष दुष्यंत कुमार जी की जयंती पर राजीव प्रखर द्वारा प्रस्तुत माॅं सरस्वती की वंदना से आरंभ हुए इस कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए रामदत्त द्विवेदी ने कहा...

मत कहो आकाश में कोहरा घना है। 

यह किसी विरहिणी का आंचल तना है।

 मुख्य अतिथि अशोक विश्नोई का कहना था - 

दर्द को हर साज धोखा दे रहा। 

रूप को हर नाज धोखा दे रहा। 

 विशिष्ट अतिथि के रूप में रघुराज सिंह निश्चल ने कहा ....

ये भारत के जन सेवक हैं 

बहुमत से सरकार चलाते।  

कई-कई पेंशन लेते हैं 

फिर भी देश लूट कर खाते।

विशिष्ट अतिथि ओंकार सिंह ओंकार का कहना था ...

नफ़रतों की आग से बस्ती बचाने के लिए, 

प्यार की बरसात से ज्वाला शमन करते चलें। 

 नकुल त्यागी ने अपनी भावाभिव्यक्ति की - 

रहो प्रफुल्लित और आनन्दित पाया जीवन जग में, 

औरों को भी खुशियाँ देकर, बस जाओ जन मन में। 

विवेक निर्मल ने अपने भावों को इस प्रकार शब्द दिए - 

साहित्य जगत में जिनके कारण आया नया बसन्त। हर कवि के अन्दर बसते हैं, आज वही दुष्यन्त। 

पदम बेचैन ने कहा - 

भगवत भक्ति से ऋषि मुनि, पाते हैं मुक्त अवस्था को,

 जो जन्म मृत्यु से परे दशा, होते उस प्राप्त अवस्था को। 

योगेंद्र वर्मा व्योम की अभिव्यक्ति थी - 

कथनी तो कुछ और पर, करनी है कुछ और।

 इस युग का सिरमौर है, दुहरेपन का दौर।। 

नामुमकिन कुछ भी नहीं, मन में लो यदि ठान। 

हल हों सारी मुश्किलें, लक्ष्य सभी आसान।। 

संचालन कर रहे राजीव प्रखर ने अपनी प्रस्तुति से सभी को देशभक्ति के रंग में इस प्रकार डुबोया - 

आदेश करे जब रणचण्डी, नैनों से नीर सुखा देना। 

आशीष विजयश्री का देकर, माटी का क़र्ज़ चुका देना। 

मुन्नी-मुन्नू सो जाने को, जब छिपें तुम्हारे आंचल में। 

मीठी लोरी के बदले फिर, बलिदानी गीत सुना देना

  जितेन्द्र जौली ने कहा - 

कितना आगे बढ़ गया, अपना देश महान। 

राशन लेने के लिए, लाइन लगा किसान।। 

 प्रशांत मिश्र ने कहा - 

जिन्दगी एक शाम बन जाती है, 

जो सवेरा होने के इंतज़ार में ढलती जाती है।

 कमल शर्मा का कहना था - 

उन्हें उनकी हदों में ही कमल पाबंद करना है। 

जिन्हे खुलने से दिक्कत है उन्हें ही बंद करना है। 

राघव गुप्ता के भाव थे - 

मां के हाथों से हम पले बड़े, 

बाप के हाथों से हम संवारे गए, 

यही सीखा यही सिखाया 

कि प्रेम ही सब कुछ है। 

इससे पूर्व योगेन्द्र वर्मा व्योम एवं ओंकार सिंह ओंकार ने अपने महत्वपूर्ण आलेखों के माध्यम से दुष्यंत जी के रचनाकर्म पर प्रकाश डाला। दुष्यंत जी के विषय में अपने विचार रखते हुए वरिष्ठ नवगीतकार योगेंद्र वर्मा व्योम ने कहा कि दुष्यंत कुमार ने ग़ज़ल को उसके परम्परागत स्वर ‘महबूब से बात’ और ‘इश्क-मोहब्बत’ की चाहरदीवारी से बाहर निकालकर ना केवल आमजन के दुख-दर्द से जोड़ा बल्कि राजनीतिक स्थितियों पर शासन-सत्ता के विरुद्ध आवाज़ उठाने के लिए हथियार की तरह इस्तेमाल भी किया।

रामदत्त द्विवेदी ने आभार-अभिव्यक्त किया।






















::::प्रस्तुति:::::

 राजीव 'प्रखर'

कार्यकारी महासचिव

हिन्दी साहित्य संगम

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

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