गुरुवार, 7 मई 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार स्वदेश सिंह की लघुकथा ------ सीख


सुनो बेटा ......आपकी मम्मी आप को घर पर बुला  रही हैं ...जल्दी से मेरे मिनी मेट्रो में बैठ जाओ .... ट्यूशन से पढ़कर आती हुई साक्षी को रोककर ऑटो वाले ने कहा.... साक्षी ने ऑटो वाले की आवाज को अनसुना करते हुए तेज कदमों के साथ वह अपने घर की तरफ बढ़ती रही ....... साक्षी कक्षा चार में पढ़ने वाली छात्रा थी जो कि घर के ही पास ट्यूशन पढ़ने के लिए शाम को 4:00 बजे जाती थी और 6:00 बजे घर लौटती थी ...परन्तु आज रास्ता में आतें समय उसे कुछ अंधेरा हो गया. .. जिसके कारण वह तेज -तेज कदमों से घर की तरफ जा रही थी ..... अचानक ऑटो वाले की आवाज  को सुनकर साक्षी को अपनी मम्मी के कहें शब्द याद आनें लगे....उसकी मम्मी प्रतिदिन स्कूल जानें से पहले एक सबक सिखाती थी जिसमें लड़कियाँ स्वयं अपनी रक्षा  कर सकें  और किसी भी  घटना का शिकार होने से  बच सकें। उन्होने सुबह ही अखबार में आई किसी घटना को पढ़ते हुए कहा कि बेटा कभी भी किसी अनजान पर विश्वास मत करना और यदि कोई आपसे कहे कि आपके मम्मी -पापा आपको बुला रहे हैं तो कभी भी उनके साथ बैठकर कहीं मत जाना .....क्योंकि यदि हमें तुम्हें बुलाना होगा तो हम खुद तुम्हें लेने आ जाएंगे ।  किसी अन्य को लेने के लिए नहीं भेजेंगे...   अपनी मम्मी के कहें शब्द साक्षी के दिमाग मे घूमने लगे  और वह तेज -तेज  कदमों से घर की तरफ बढ़ती रही.... और हांफते हुए  घर पहुंची ।साक्षी को हांफते हुए  देख कर  उसकी मम्मी ने घबरा गयी और सिर पर हाथ फेरते हुए पूछा   बेटा ....क्या ...हुआ ... साक्षी ने   हांफते हुए  सारी बात अपनी मम्मी को बताई .....उसकी मम्मी सारी बात  सुनकर स्तब्ध रह गयी और ईश्वर को मन ही मन धन्यवाद दिया कि आज उसकी दी हुई  सीख के कारण उसकी बच्ची सुरक्षित उसके पास है।और साक्षी को अपने गले से लगा लिया।

 ✍️  स्वदेश सिंह
सिविल लाइन्स
मुरादाबाद 244001
Mobile-9456222230

मुरादाबाद के साहित्यकार नृपेंद्र शर्मा सागर की कहानी --- संस्कार


भलेराम भालू के बच्चे शेर सिंह जी से लड़ रहे थे- "क्या शेरू काका आप भी हमेशा उलझे रहते हो, कभी हमारे साथ खेलते भी नही और यूँ उदास बैठे रहते हो।  पिताजी ने आपको हमारी सुरक्षा के लिए रखा है किंतु आपको तो अपना ही ध्यान नहीं रहता।"

तभी भोलू भालू कहीं से आ गए और बच्चों से कहने लगे, "क्या है ये सब?? ऐंसे बात करते हैं अपनो से बड़ो से, यही संस्कार दिए हैं हमने तुम लोगों को?

"लेकिन पापा ये तो हमारे नौकर ही हैं ना?" दोनों बच्चे एक साथ कहने लगे।

"देखो बच्चों, किसी के काम से उसकी हैसियत का कभी अंदाज मत लगाओ। क्या पता कोई मजबूरी उसे छोटा काम करने पर मजबूर कर रही हो।" भलेराम ने उन्हें समझाते हुए कहा।

"लेकिन शेरू काका की क्या मजबूरी है पापा?" बच्चों ने पूछा।

"आओ मेरे साथ, आज मैं तुम्हे इनकी कहानी सुनाता हूँ", भोलू ने कहा।

गुफा के अंदर जाकर भोलू ने शेर सिंह की कहानी बताना शुरू किया-

"देखो बच्चों, श्री शेर सिंह जी सभी पशुओं में श्रेष्ठ हैं, जिन्हें वनराज कहा जाता है।
हमारे शेरसिंह जी 'उत्तम वन' के राजा हुए करते थे। उनके दो बच्चे थे एक बेटा और एक बेटी।
शेर सिंह जी ने अपने बेटे को शिकार और अन्य चपलता सीखने के लिए अपने मंत्री 'बघेर सिंह' बाघ के पास भेज दिया। सब कुछ ठीक चल रहा था।
एक दिन एक सियार शेर सिंह की सेवा में आया और अपनी चापलूसी से उनका विश्वस्त बन गया।
वह उनके बच्चों के साथ खेलता शेर सिंह ने कभी उनमे भेदभाव नहीं किया ।
एक दिन उनका बेटा उनके सामने बाघ की बेटी के साथ आ कर खड़ा हो गया और बोला- "पिताजी हम दोनों ने शादी कर ली। अब से हम साथ ही रहेंगे" शेर सिंह जी ने उसे बार-बार समझाया कि "बेटा हमारा ओर बाघों के कोई मेल नही है, आगे बच्चे भी शंकर वर्ण के होंगे। बहुत परेशानी होगी आगे  और बाकी समाज भी हमें ताने मरेगा। तुम्हे तो पता है हमारा समाज और संस्कार कितने सनातन हैं।"

किन्तु उनके बेटे ने उनकी एक न सुनी, ज्यादा समझाने पर वह राज्य छोड़कर कहीं और चला गया। बेचारे शेर सिंह कुछ न कर सके बस उन्होंने ये सोच कर सन्तोष कर लिया कि अपनी जाति ना सही किन्तु बाघ हैं तो उनके समाज के ही कभी तो बेटा लौट ही आएगा।

अभी शेर सिंह बेटे के गम से उबरे भी ना थे कि एक दिन उनकी बेटी स्यार के साथ आ कर कहने लगी,  "पिता जी हमें इनसे विवाह करना है।"
शेर सिंह जी के तो पैरों तले से जैसे जमीन ही निकल गई। उनकी पत्नी ने बेटी को डाँट लगा दी, "शादी विवाह मज़ाक है क्या जो किसी से भी कर लो; अरे जाती न सही समाज का तो ख्याल करो। आखिर हमें रहना तो इसी समाज में है।
और हमारे पूर्वज कह गए हैं कि शंकर वर्ण की संतान जब-जब पैदा हुई हैं, विनाश ही होता है।
अरे स्यार का खून क्या कभी  शेर के गुण रख सकता है?
और फिर इनका रहना-खाना, रीति-रिवाज भी तो बहुत भिन्न होंगे? तुम कैसे ढल पयोगी शेर होकर स्यार समाज में।"
किन्तु इनकी बेटी ने इनकी एक न सुनी और चली गई घर छोड़ कर सियार के साथ।
इसी गम में इनकी पत्नी बीमार रहने लगी और एक दिन उसने भी इनका साथ छोड़ दिया। इधर पूरा शेर, बाघ, और चीता समाज एक जुट होकर इनके विपक्ष में ख़ड़ा हो गया।
 वे इनको रोज ताने मारने लगे, "जो शेर अपनी बेटी के सियार के संग भागने पर भी कुछ नहीं कर पाया, वह राज्य की सुरक्षा क्या कर पायेगा? इन्हें अब राजा रहने का कोई अधिकार नहीं।
अरे इन्हें शर्म भी नही आती इन्हें लोगों के सामने आने पर। इतनी कालिख पुत गई मुंह पर, फिर भी शान से मुंह दिखाते फिरते हैं" गुलदार ने कहा।
ऐसे ही बाकी भी उन्हें ताने मारते रहे और उन्हें निष्कासित कर दिया।
एक दिन दुखी होकर बेचारे शेर सिंह जी रात के अंधेरे में अपना  राज्य छोड़ आये।

"लेकिन पप्पा, शेर की बेटी सियार के संग कैसे रह सकती है? उनका तो कोई मेल ही नहीं है। जिस शेर की सिर्फ दहाड़ से सारा जंगल हिलता हो, उसकी बेटी सबसे डरपोक सियारो के साथ....!", बच्चे कुछ परेशान से हो गए।

"प्यार के नाम का अंधापन ये सब सोचने की क्षमता कहाँ छोड़ता है मेरे बच्चों? उस समय तो हर शुभचिंतक उसे शत्रुतुल्य नज़र आता है",  भोलू ने कहा।

"किन्तु पिता जी, शेर सिह जी की बेटी कैसे रह पाई सियार समाज मे?उसे तो बहुत सी समस्याएं आई होंगी?" बच्चो को कोतुहल हुआ।


"यही हुआ मेरे बच्चों, कुछ दिन तो ठीक चला, किन्तु जो शेरनी ताजा शिकार खाने में भी नाक सिकोड़ती थी। जल्द ही सियार ने इसके सामने सूखी हड्डियां रख दीं। तो वह नाराज होकर बोली, "यह क्या है, हमारे यहां तो हमने तुम्हे भी कभी हड्डी नही चूसने दी और तुम हमारे सामने ये......!"
तो सियार बोला, "यहां तो यही मिलेगा, चुपचाप से खा ले वरना मरम्मत कर दूंगा।"

"क्या!!?" शेरनी अवाक रह गई किन्तु उसने हड्डियों को हाथ नही लगाया। लगाती भी कैसे उसे तो ताज़ा शिकार खाने की आदत थी, तो उसने कहा, "तुमसे नहीं होता तो मैं खुद शिकार कर लूँगी अपने लिए।"

किन्तु उसकी इस बात पर पूरा सियार परिवार उसके खिलाफ हो गया, सियार की मां बोली, "ऐ लड़की हमारे यहां पर्दा प्रथा है, घर की बहुएं यूँ खुले में शिकार करती नहीं घूमती चुप चाप जो मिल रहा है खाले नहीं तो...!!"

"नहीं तो क्या??" शेरनी का ज़मीर जाग उठा। अपनी औकात देखी तुम लोगों ने कभी?
अरे मैं शेरनी हूँ और तुम लोग तो मेरेे यहां नौकर बनने के भी लायक नहीं हो", शेरनी तमक कर बोली।

उसकी बात सुनकर सारे सियार हँसने लगे और बोले, "शेरनी...! नहीं अब तू सियारनी है, चुपचाप से हमारे समाज के कायदे में रह वरना अच्छा नहीं होगा।"

"क्या कर लोगे तुम लोग ??अरे तुम सबको तो मैं अकेली ही काफी हूँ",  कहकर शेरनी गुर्रा उठी।
किन्तु आठ दस सियार उस पर पिल पड़े वे उसे बेइज्जत कर रहे थे और जिस सियार से प्रेम करके वह अपना घर अपना समाज छोड़ आई थी वह उनका साथ दे रहा था।
शेरनी की आत्मा कराह उठी, अब उसे अपनी भूल का एहसास हो रहा था। किंतु अब बहुत देर हो चुकी थी, अब सब खत्म हो चुका था।

अपनी इज्जत बचाने की जद्दोजहद में शेरनी चार-पांच सियारों को खत्म कर चुकी थी जिनमें एक उसका कथित प्रेमी भी था।

किन्तु इस लड़ाई में वह भी बहुत घायल हो चुकी थी और जब तक शेर सिंह जी वहां पहुंचे वह अंतिम साँसे ले रही थी।
इन्हें देखकर उसने पछतावे का अंतिम आंसू गिराया और दुनिया छोड़ गई।

उस सदमें में शेर सिंह जी अपनी जान देने ही वाले थे कि मैंने पहुंच कर इन्हें संभाल लिया। और अपनी पुरानी दोस्ती का वास्ता देकर यहां ले आया।
ये हमारे  नौकर नहीं हैं, बच्चों ये तो राजा हैं। भोलू ने गर्व से कहा, तब तक शेर सिंह भी आ गए जो उनकी सारी बातें सुन रहे थे।
दोनो बच्चे शेर सिंह से क्षमा मांगने लगे कि काका जी हमसे भूल हो गई हम आपको समझ नहीं पाए, और शेर सिंह ने उन्हें गले लगाते हुए कहा, "भाई भोलू बस यही एक चीज़ मैं अपने बच्चों को नही दे पाया जो तुम देते हो संस्कार।
और जो हर मां बाप को अपने बच्चों को देने चाहिएँ।"
(ये कहानी बस एक कल्पना है इसे मनोरंजन के रूप में ही लें)

 ✍️ नृपेंद्र शर्मा "सागर"
ठाकुरद्वारा, मुरादाबाद
 मोबाइल फोन नम्बर 9045548008

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ प्रीति हुंकार की लघु कथा ----कोढ़


सब्जी वाला आवाज़ देता हुआ सामने से निकला तो आस पास के घरों की औरतें निकल कर सब्जी खरीदने लगी ।उसी समय हमारे पड़ोसी की बेटी निधि जो टी एम यू में नर्स है  उधर से गुजरी ।उसको दूर से आते देख गुप्ता जी की घर वाली घर की ओर तेजी से भागी ,अरे!भैया रहनेदो, फिर लेंगे ....,कहते हुए घर का दरवाजा बंद करने लगी ।मास्टरनी जी भी धोती का पल्लू मुँह पर रखकर साइड को ऐसे खिसकी मानो सामने से कोई ट्रक गुजरने वाला है।फिर मुझे देखकर  निधि  हँसी और नमस्ते कहकर आगे बढ़ती चली गई , लेकिन वे महिलायें दरवाजे की झिरी में बाहर को जाने क्या झाँक रही थीं ?    मुझे समझ नही आया ।मैं भी घर मे व्यस्त हो गई ।
अगले दिन फिर सब्जी वाले ने आवाज दी तो बातें बनाने के लिये फिर सब्जी खरीदने का बहाना करके   गुप्तानी इधर उधर की लगाती की मैं लोकी लेने बाहर निकली तो सामने वाली मास्टरनी उलाहना से देकर कहने लगी , वो नर्स की तुमसे पक्की दोस्ती हो गई है ।बड़ी  हँसके बात करती है तुमसे ....पर .....एक बात कहे हुम् भी पड़ोसी है तुम्हारे .....,।सोचसमझ के रहिओ भैया ।कोरोना के मरीज सुना है टी एम यू में भी भर्ती है ।सुना है ,निधि   की भी उस बार्ड में ड्यूटी लगती है। अब इनका तो काम है और ऊपर से सरकार ने बीमा भी  अच्छा खासा कर दिया है ........।हमें तुम्हें तो .......मुँह को टेढ़ा  कर वो फिर बिना सब्जी खरीदे , । मेरे उत्तर की परबाह न करती  हुई  घर मे घुस गई । मैं ठगी सी रह उसकी
व्यंग बान सी बातों को सुनकर ।........ये भी एक कोढ़ है हमारे समाज का जिसका इलाज कोरोना से भी दुर्लभ है।

 ✍️ डॉ प्रीति हुँकार
  मुरादाबाद

मुरादाबाद के साहित्यकार अनुराग रोहिला की लघुकथा----- नसीहत


कितनी बीड़ी पीते हो रामलाल तुम
कहते हुए डॉक्टर साहब ने रामलाल के सीने पे अपना स्टेथोस्कोप रख दिया
अरे डॉक्टर साहब हमार खाना ही  हजम नही होत ,जब तलक दुइ चार सुट्टा न लगाई लेह
फिर भी अपनी सेहत का तो तुमको खुद ही ध्यान रखना चाहिए ,वरना दवा भी असर नहींं करेगी एक दिन डॉक्टर साहब ने नसीहत दी
आज से कसम खाते हैंं सरकार अब नहींं पीहे बीड़ी वादा रहा हमार रामलाल ने  डॉक्टर साहब से वादा कर लिया और दवा लेकर अपने खेत पर चला गया
अरे रमन डॉक्टर साहब ने अपने कंपाउंडर को आवाज लगाई
जी सर रमन ने जबाब दिया
अरे भाई कैसे कैसे मरीज आते है पूरा दिन ,बस समझाते रहो इनको अपनी सेहत की जरा भी चिंता नहींं इन अनपढ़ गंवार लोगोंं को
अच्छा सुनो बहुत टेंशन है आज, जाओ पड़ोस की दुकान से हमारा  फेवरिट ब्रांड सिगरेट का  पैकेट पकड़ लो जरा, थोड़ा रिलेक्स हो जायेंं, भाई फिर अगला मरीज भेज देना ,
अभी लाया सर कहकर रमन सिगरेट लेने चला गया
और कुछ देर बाद डॉक्टर साहब खुद को रिलैक्स करते हुए धुएं के छल्ले उड़ाते हुए शून्य में निहार रहे थे ,अगला मरीज अपनी बारी की प्रतीक्षा कर रहा था !

✍️अनुराग रोहिला
 कटघर वीरसाह हज़ारी
मुरादाबाद उत्तर प्रदेश
मोबाइल फोन नम्बर-9837312131

मुरादाबाद के साहित्यकार प्रवीण राही की लघु कथा ----मां की पीड़ा


अपने 16 साल के  हंसमुख चिंटू की उदासीन,हताश पूर्ण बातोंं को सुनकर मांं मुखी के पैरोंं तले जमीन खिसक गई।.... मांं मैंं हार गया, तुमने मुझे बर्तन,झाड़ू पोछा कर पापा के जाने के बाद पाला,पढ़ाया,याद है मेरे बारहवीं मेंं 94 प्रतिशत नम्बर आने पर तुमने अपनी औकात से ज्यादा मिठाइयां बांटी थी।मै एक जॉब भी नहीं ढूंढ पा रहा,निरर्थक है ये पढ़ाई,अच्छा होता मुझे भी तू झाड़ू पोछा सिखा देती या कूड़ा उठाना,कुछ तो कमा ही लेता।बिना जुगाड़,या सिफारिश के जॉब बहुत मुश्किल है, मैंं  हार गया मांं मांं, कहकर बिना खाए चिंटू सो गया।मै पत्थर सी उसकी बातोंं को सुनती रही।जिद्दी है अपने बाप की तरह,महत्वाकांक्षी भी ........
सहसा मुखी दौड़ी,उसके जेब को टटोला।दिमाग में कुछ ग़लत ख्याल चल रहे थे, हाथ में एक कागज कुछ लिखा हुआ मिला.... हे भगवान (कुछ अनर्थ ना हो) बुदबुदाई।रात के 10.30 बजे हैंं क्या करूंं ,किससे पढ़वाऊंं,क्या लिखा है इस पर......
मुखी घर से बाहर निकल सड़क पर भागी,एक बुजुर्ग को देख - भाई जरा पढ़ो इस कागज पर क्या लिखा है ....
रुको बहन पढ़ता हूं - मत घबराओ,इस पर   कंपनी के पते लिखे हैंं।
बुजुर्ग ने कहा - मै तुम्हारी पीड़ा समझ सकता हूं, मुझ अभागे के बेटे ने ऐसे ही कागज पर कुछ लिख अगले दिन अपनी आखिरी सांस ली।
बहन हर बच्चा कमजोर नहीं होता।ये सुन बस मुखी के आंखो के अंदर का छुपा समंदर बस उफान मारने लगा।

प्रवीण राही

बुधवार, 6 मई 2020

वाट्सएप पर संचालित समूह साहित्यिक मुरादाबाद में प्रत्येक मंगलवार को बाल साहित्य गोष्ठी का आयोजन किया जाता है । मंगलवार 5 मई 2020 को आयोजित बाल साहित्य गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों मंगलेश लता यादव, डॉ प्रीति हुंकार, प्रीति चौधरी, डॉ दीपक अग्रवाल, राजीव प्रखर, अशोक विद्रोही, जितेंद्र कमल आनंद, डॉ मीना कौल, स्वदेश सिंह ,अनुराग रोहिला, राशि सिंह , डॉ रीता सिंह, धारणा मेहरोत्रा, मनोरमा शर्मा व मरगूब हुसैन की कविताएं और डॉ अनिल शर्मा अनिल की कहानी -----



पापा सच में राजा थे और तू रानी
देखा नही उन्हें, सुनूँगा तेरी बानी।

सुन बेटे अब तूने सुनने की जो ठानी
आहें भर कर बोली ,ना ये बात पुरानी।
तात तेरे सच में राजा थे ,और मै रानी
साहस, वीर योद्धा थे, ना था कौई सानी।
देश की सेवा करने की थी मन में ठानी
छक्के छुड़वा देते,दुश्मन मांगे था फिर पानी।
हाँ माँ पापा वाली मुझको सुना कहानी
तब तो सचमुच राजा होगें, और तुम रानी।।

ऊंचा मस्तक चौड़ा सीना, मूछें तीर कमानी
शेरों जैसी चाल चले,थी भरपूर जवानी।
देशप्रेम का जज्बा, जज्बात बडे़ तूफानी
फूली नही समाती , भाव देख स्वाभिमानी।
हाँ माँ फिर तो वो राजा, और तुम थी रानी
मुझको सुननी पापा की बस यही कहानी।।

रण में वो राजा थे, मै थी घर की रानी
हंसते गातेआगे बढती, प्रेम  कहानी।
जन्म हुआ तेरा जब ,थी वो शाम सुहानी
आऊँगा जल्दी,बस ये अंतिम थी उनकी बानी।
जेहादी दुश्मन ने धोखे से कर दी बर्बाद कहानी
देशकी खातिर पापा ने देदी अपनी कुर्बानी।।

बस बेटा आगे ना सुनना अब क्या रही कहानी
ना माँ ऐसा मत कह,अब  फिर से दोहरानी।
मैं प्रण लेता हूँ, दुश्मन की याद दिलानी नानी
व्यर्थ न जाने दूंगा मैं, अपने पापा की कुर्बानी।
माँ कहती रह मुझसे तू पापा की ये कहानी
कर दूंगा न्योछावर देशपर अपनी जवानी।

✍मंगलेश लता यादव
  जिला पंचायत कम्पाउंड,कोर्ट रोड
 मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर -9045031789
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प्यारा बचपन न्यारा बचपन
सबकी आँख का तारा बचपन
बहुत कठिन है इसे भूलना
कौन जिसे न प्यारा बचपन ।

इसके सुख है राजा वाले
ये दिन तो है बड़े निराले
रूप रंग भी कोई न पूँछे
चाहे गोरे  या हो  काले।

यही खजाना पास हमारे
चाहे उम्र हुई है पचपन ।
बहुत कठिन है इसे भूलना
कौन जिसे न प्यारा बचपन ।

खेल कूद के दिन ये भाई
पल में  भूले रोज पिटाई
लड़ते भिड़ते और भूलते
लाढ प्यार से रखती माई।

बहुत दिनों में समय  मिला
तो साफ किया यादो का दरपन
बहुत कठिन है इसे भूलना
कौन जिसे न प्यारा बचपन ।

✍️ डॉ प्रीति हुंकार
 मिलन विहार
 मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
 मोबाइल फोन नंबर 8126614625
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प्यारे बच्चों डरना नहीं
पालन लोकडाउन का करते रहना
धैर्य अपना खोना नहीं
बादल संकट के छँट जाएँगे
दामन उम्मीद का छोड़ना नहीं
सरकार को तुम्हारा पूरा है ध्यान
समय तुम्हारा व्यर्थ होगा नहीं
क्लासेज आनलाइन चल रही नियमित
कोरोना भविष्य तुम्हारा ख़राब कर सकता नहीं
मन लगाकर पढ़ते रहना बस
मेहनत से मुँह मोड़ना नहीं
हम सबकी हो तुम आँखो के तारे
बालबाँका कोरोना तुम्हारा कर सकता नहीं
आरोग्य सेतु जब होगा मोबाइल में
संकट वो तुम पर आने देगा नहीं
सतर्क कर देगा पहले ही तुमको
अकेला मुसीबत में छोड़ेगा नहीं
मन में भ्रम जब कोई न होगा
फिर राह में कोई बाधा बन सकता नहीं
बच्चों हरवक्त ये रखना ध्यान
साहस के सामने कोरोना टिक सकता नहीं
                           
                           ✍️ प्रीति चौधरी
                         गजरौला,अमरोहा
                       फ़ोन -9634395599
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शहीद कर्नल आशुतोष की
अंतिम विदाई को टीवी पर देख।
बालक अंश मचल गया
बोला-मोदी दादा
आतंकियों को कब मारोगे।
वरना मुझे ही गन दे दो
मैं उन्हें मारने जाऊंगा।
भारत माँ का सच्चा
सपूत कहलाऊंगा।

✍️ डाॅ दीपक अग्रवाल
अमरोहा, उत्तर प्रदेश।
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दुनियां के हर सुख से बढ़कर,
मुझको प्यारे तुम पापा।
मेरे असली चंदा-सूरज,
और सितारे तुम पापा।
लिपट तिरंगे में लौटे हो,
बहुत गर्व से कहता हूँ।
मिटे वतन पर सीना ताने,
कभी न हारे तुम पापा।।

✍️ राजीव 'प्रखर'
डिप्टी गंज
मुरादाबाद 244001
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      मेरी पतंग तिरंगे वाली
आओ बाबा पतंग उड़ाएं
       ऊपर चल कर छत पर
पतंग हमारी उड़ती जाए
           बैठ हवा के रथ पर
रंग बिरंगी कितनी सारी
       देखो कितनी प्यारी प्यारी
बंधी  डोर में नाच रही हैं
       मन की खुशियां बांच रही हैं
लाल हरी पीली और काली
       लहराती नभ में  मतवाली
किंतु मेरी बड़ी निराली
       ये है ध्वजा तिरंगे वाली
बड़े गर्व से नील गगन में
         ऊंची उड़ती जाती है
प्यारी लगे सभी बच्चों को
        ‌‌   सबका मन  हर्षाती है
नहीं काटना चाहे कोई
           सब इस का गुणगान करें
जैसे भारत के झन्डे का
           हर कोई सम्मान करें ।
पकड़ डोर को कस कर
       इसकी ,ऊंचा इसे उड़ाऊंगा
भारत मां का नाम करूं
        जिस रोज बड़ा हो जाऊंगा


      ✍️ अशोक विद्रोही
      412 प्रकाश नगर
      मुरादाबाद 244001
 मोबाइल फोन नंबर 8218825 541
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               वत्स, अब उठो !
वत्स, अब जगो, करो कल्याण देश का !
भारती माँ शारदा तुम्हें पुकारतीं!!

यह कठिन दौर है भले मँहगायी का
देश- भक्त को है वक़्त जग हँसायी का
पाँव ये रुके नहीं, चलेंगे गाँव को !
माता हंसवाहिनी, तुम्हें निहारतीं !!

आ गया यह फिर समय हरि- शौर्य गान का
है सवाल पूर्वजों के स्वाभिमान का ।
ठोकरों का दो जवाब, आन-बान से ।
माँ आलोक-दायिनी तुम्हें प्रकाशितीं ।।

झुक सका नहीं है शीष हिम-पहाड़ का।
फिर भगा सकेंगे रिपु स्वदेश पार का।
न भुलाओ राम को, न कृष्ण को ही,सुत!
भारती वरदायिनी तुम्हें सँवारतीं।।

कंस हो ,दसकंध , धृतराष्ट्र भी कोई
हो भले विद्रोही जयचंद भी कोई ।
अंत हो दु:शासनों का,वीर जय वरो!
मातु वीणावादिनी कभी न हारतीं ।।

वत्स, अब जागो ,करो कल्याण देश का ।
भारती माँ शारदा तुम्हें पुकारतीं ।।

✍️ जितेन्द्र कमल आनंद
साँई विहार कालोनी
रामपुर
उ प्र ,भारत
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बच्चों तुम से इतना कहना
थोड़े दिन घर पर ही रहना
एक बीमारी है ऐसी आई
जिसकी नहीं कोई दवाई
इसका है उपचार यही
घर में रहना है सही
तुम मत हिम्मत खोना
बार बार हाथों को धोना
नियम सभी अपनाओ
कोरोना को दूर हटाओ
पापा की बात मान लो
मम्मी का हाथ थाम लो
स्कूल खेल घर ले आओ
ड्राइंग डाँस कर के दिखाओ
कुछ दिन घर रह जाना
कोरोना को है हारना
तुम भी इसके सिपाही
घर से लड़ों लड़ाई
जंग यह जीत जाएँगे
नाम तुम्हारे कर जाएँगे

   ✍️ डॉ मीना कौल
मुरादाबाद 244001
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कितनी खबरो का भंडार
मैं हूँ अखबार ....

घर बैठे सब हाल सुनाऊँ
देश- दुनिया की सैर कराऊँ

ज्ञान- विज्ञान सबका बढाऊँ
खेलों में भी रूचि  जगाऊँ

कौन जीता, कौन हारा
सबके दर्शन खूब करवाऊँ

कोने- कोने से खबर समेटे
सुबह सवेरे सबके घर पर जाऊँ

फिर भी किस्मत का अभागा,
शाम होते ही मैं रद्दी बन जाऊँ

कितनी खबरों का भंडार
मै हूँ अखबार ...

 ✍️ स्वदेश सिंह
 सिविल लाइन्स
 मुरादाबाद 244001
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मुन्ना बोला पापा से मुझे घूमने जाना है
मेरा जन्मदिन आता है मुझे केक खिलोने लाना है
पापा बोले लॉक डाउन है सब कुछ बन्द पड़ा बेटा
अबकी जन्मदिन घर पे मनाओ
हमे कोरोना को भगाना है
पर पापा ये कोरोना कैसे जाएगा बतला दो
कब हम निकल सकेंगे घर से इतना हमको समझा दो
पापा बोले सब बच्चो को इतना पाठ पड़ा दो तुम
हैंड शेक से कर लो तौबा नमस्कार अपना लो तुम
बाहर से आकर हाथ मुह धो फिर घर मे दाखिल होना
किसी का दुख हो या के दर्द हो सबमे तुम शामिल होना
डॉक्टर पुलिस या सफाई कर्मी सबको देना तुम सम्मान
भाग जाएगा तभी कोरोना
बढ़ जाएगी देश की शान

✍️अनुराग रोहिला
कटघर , मुरादाबाद
मोब0 9837312131
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मुन्नी चिड़िया लाई दाना
चुन्नू चिड़ा खाये दाना
बिट्टू चूजा मजे उड़ाए .

मुन्नी चिड़िया खाना पकाये
चुन्नू ,बिट्टू मौज उड़ाए
खाना खाये सोये गाये .

​एक दिन हो गई मुन्नी ​बीमार
​दोनोंहो  ​गए ​खूब ​उदास
​बर्तन ​धोएं ​खाना ​पकाएं .

​​झाड़ू ​लगाएं ​चादर ​बिछाएं
​​फिर ​मुन्नी का  सिर सहलाएं
​  कहें  जल्दी  से  स्वस्थ  हो  जाएँ  .


​राशि सिंह
मुरादाबाद
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कोरोना ने पैर पसारे
घर में रहना मुन्ना प्यारे
दादी दादा संग खेलना
खेल नये पुराने सारे ।
कोरोना ने पैर पसारे....

योग ध्यान से जीवन जीना
डाल हल्दी दूध है पीना
तुलसी अदरक और मुनक्का
काढ़ा इनका लेना मीना ।
स्याह मिर्च और दाल चीनी
डरेंगे इनसे रोग न्यारे ।
कोरोना ने पैर पसारे ....

सब जीवों की सुध है लेना
चिड़िया को है दाना देना
देना गैया को भी चारा
जब तक उसका पेट भरे ना ।
कौआ कूकर माँगें रोटी
घूम रहे भूखे बेचारे ।
कोरोना ने पैर पसारे....

पढ़ना पुस्तक सभी पुरानी
पूर्वजों की सत्य कहानी
चलना आदर्शों पर उनके
जीवन जिनका अमिट निशानी ।
सूरज सम जो राह दिखाते
तम से कभी नहीं वे हारे ।
कोरोना ने पैर पसारे......

✍️ डॉ. रीता सिंह
एन के बी एम जी कॉलेज
 चंदौसी
---------------------------------------------------    ---मुरादाबाद की साहित्यकार धारणा मेहरोत्रा की कविता
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    :::::::::::::::: :::::प्रस्तुति:::::::::::::::::::::

डॉ मनोज रस्तोगी
8, जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9456687822

मुरादाबाद की साहित्यकार रश्मि प्रभाकर का गीत ---- मैं तेरे मन के गगन में प्रिय विचरना चाहती हूं .....


🎤✍️ रश्मि प्रभाकर
10/184 फेज़ 2, बुद्धि विहार, आवास विकास, मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
फोन नं. 9897548736


मंगलवार, 5 मई 2020

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिन्दी साहित्य संगम की मासिक काव्य-गोष्ठी का आयोजन लॉकडाउन के कारण रविवार तीन मई 2020 को वाट्सएप समूह पर किया गया । कार्यक्रम की अध्यक्षता व्यंग्यकार डॉ मक्खन मुरादाबादी ने की। मुख्य अतिथि ओंकार सिंह 'ओंकार' तथा विशिष्ट अतिथियों के रूप में अशोक विश्नोई एवं डॉ मीना नक़वी रहे। माँ शारदे की वंदना एवं कार्यक्रम का संचालन संस्था के कार्यकारी महासचिव राजीव 'प्रखर' ने किया जबकि आभार संस्था के महासचिव श्री जितेन्द्र 'जौली' ने व्यक्त किया । प्रस्तुत हैं गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों डॉ मक्खन मुरादाबादी, ओंकार सिंह ओंकार ,अशोक विश्नोई ,डॉ मीना नकवी ,मीनाक्षी ठाकुर, अशोक विद्रोही ,हेमा तिवारी भट्ट, आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ, आशीष कुमार शर्मा, अभिषेक रुहेला ,नृपेंद्र शर्मा, प्रशांत मिश्र, अरविंद शर्मा आनन्द ,राशिद मुरादाबादी ,इंदु रानी, नकुल त्यागी,मोनिका शर्मा मासूम ,जितेंद्र कुमार जौली, राजीव प्रखर, डॉ अर्चना गुप्ता ,श्री कृष्ण शुक्ला, जिया जमीर ,योगेंद्र वर्मा व्योम , डॉ मनोज रस्तोगी, शिशुपाल सिंह मधुकर ,डॉ मीना कौल ,रामदत्त द्विवेदी और विकास मुरादाबादी की रचनाएं ------


एक हुए होते,
तो
एक रहे होते ।
बंटवारों के मन
छोटे होते हैं,
जा!
तेरे घर का द्वार
अलग है,
मेरे घर का
द्वार अलग ,
तू भी
अपना पढ़ लेना
मैं भी
मैं भी
अपना पढ़ लूंगा
तेरे घर
अखबार अलग है
मेरे घर
अखबार अलग ।।

  ✍️  डॉ मक्खन मुरादाबादी
मुरादाबाद 244001
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जिसने सीखा है हर-इक शख्स की इज़्ज़त करना
उसको आता है हर-इक दिल पे हकूमत करना

नेक बंदों को सिखाते हैं जो नफ़रत करना
ऐसे लोगों से सदा आप बग़ावत करना

बेगुनाहों पे मज़ालिम-1 जो किया करते हैं
वे सभी छोड़ दें अब ऐसी शरारत करना

दिल भी जलते हैं फ़ना ज़िन्दगी हो जाती हैं
है बुरी बात किसी से भी अदावत करना

लोग संसार के सुख-चैन से रह सकते हैं
सबकी चाहत हो अगर ख़त्म कदूरत-2 करना

उनका दस्तूर है क्या ये हमें मालूम नहीं
हमको आता है फ़क़त सबसे मुहब्बत करना

बिगड़े हालात हमारे भी सुधर सकते हैं
हमको आ जाए अगर वक़्त की इज़्ज़त करना

लोग खुशहाल सभी होंगे वतन में अपने
सब अगर सीख लें जी-जान से मेहनत करना

दुख की रातें हैं बड़ी , चंद खुशी की घड़ियाँ
ज़िन्दगी के तू हर-इक पल से मुहब्बत करना

जल की एक बूंद है संजीवनी जीवन के लिए
एक-इक बूंद की सब लोग किफ़ायत करना

क़ीमती होता है हर आँख का आँसू यारो
एक आँसू की भी 'ओंकार'हिफ़ाज़त करना

1-मज़ालिम-- अत्याचार (बहुवचन)
2-कदूरत-- गदलापन ,मैलापन , रंजिश
 
 ✍️ ओंकार सिंह 'ओंकार'
मुरादाबाद 244001
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मानस की चौपाइयां, देती उत्तम ज्ञान ।
इनको पढ़ियेगा सदा,क्यों रहते अनजान ।
       *मुक्तक*

नियति हर श्वास को तूफान बना देती है ,
विवशता फूल को पाषाण बना देती है ,
जन्म से कोई भी शैतान नहीं होता है -
भूख इंसान को शैतान बना देती है ।
 ✍️  अशोक विश्नोई
मुरादाबाद 244001
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धूप के कपड़ो पर सिलवट है, मैला मैला  दिनकर है।
उपवन सारा मुरझाया है,  जंगल जंगल पतझर है।।

जाने कैसा जादू टोना,डाल दिया है ऋतुओं ने।
हरियाली का जो वाहक था, छाँव-रहित वह तरुवर है।।

लेखन के स्वर मौन हुये हैं, ध्वनि हीन  हैं अक्षर तक।
एक कोलाहल मन के बाहर, एक कोलाहल भीतर है।।

दिन का वध करने वालों ने रात की हत्या कर दी है।
चाँद खरीदे धनवानों ने ,आज अमावस घर घर है।।

ऊब के एकाकीपन से जब , झाँका है उसके मन में।
ऐसा लगा आँखों में उसकी निर्मल प्रेम का सागर है।।

त्याग की वर्षा तिरोहित है, और मेघ घिरे हैं निज हित के।
कुंठित है संवेदन शक्ति, भूमि भाव की बंजर है।।

लेखन धर्म है भक्ति-भाव से , पूर्ण समर्पण है कविता।
शब्द मेरे रह जायें 'मीना' यह काया तो नश्वर है।।
 ✍️  डा. मीना नक़वी
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हमने तो तुमसे  किया,हद से ज़्यादा  प्यार।
तुम भी ज़िद छोड़ो सनम,कर भी लो इक़रार।।

कोरोना ने कर दिया,हमको घर में बंद।
ऐसे में कैसे भला ,हो तेरा  दीदार।।

आँखों-आँखों में कटी, अपनी सारी रात।
तुम  भी तो करवट  बदल,जागे हो  दिलदार।।

आया  सावन झूमकर,मन में उठी तरंग।
बिन साजन सूना लगे,हमको यह संसार।।

आँगन, चन्दा, चाँदनी,तारों  की बारात।
पहना भी दो साजना,अब बाँहों के हार।।

 ✍️  मीनाक्षी ठाकुर
 मिलन विहार
मुरादाबाद 244001
मोबाइल फोन 8218467932
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कोरोना की देश में ,तीव्र हो रही चाल
मजदूरी भी छिन गई ,जीना हुआ मुहाल
जीना हुआ मुहाल ,जेब भी हो गई ख़ाली
घर छूटा पर हाय! गई न ये कंगाली
कह विद्रोही ईश्वर !अब तो दया करो ना
मजदूरी मिल सके, जो वापस लो कोरोना
       
*बंधुआ बाल मजदूरी*

जिनके पापा छोड़ गए हैं
                  बच्चों को छोटा छोटा
बीमारी ने लाद दिया
                उन पर कर्जा मोटा मोटा
कैसे लड़ें भूख से वह
               और कैसे उस देनदारी से
जूझ रहे लाचार जो बच्चे
                 रोटी   और  बीमारी   से
भाई बहन और मां के आंसू
                 देख सहम वो जाते हैं
रोजी और रोटी के लिए
                उनके सपने खो जाते हैं
सेठों की जब नजर पड़े तो
               बंधुआ वो बन   जाते  हैं
मनमानी पाकर लेवर
              सेठों के मुख खिल जाते हैं
उनको करें मुक्त सरकारें
                उन पर यह उपकार करें
लेकिन उनके सपनों को भी
                  किसी तरह साकार करें

     ✍️   अशोक विद्रोही
    412 प्रकाश नगर, मुरादाबाद
मोबाइल फोन नंबर 82 188 25 541
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क्यों_ताकती_है_मुँह
औरों_का.....
सुन_अरी!
ये_जो_मुस्कान_है
उन_होंठों_पर....
तेरी_ही_दी_हुई_है।
ये_यश_मान_उत्थान
और_सुकून_की_रोटियाँ
तूने_ही_अपने_हाथों_से
बना_कर_परोसी_हैं
हर_थाली_में....
किसमें_है_सामर्थ्य
तेरे_सिवाय....
सभ्यताओं_के_प्रसव_की?
तो_फिर_उठ
क्यों_बैठी_है
समय_के_द्वार_पर
भिक्षुणी_की_तरह?
तू_स्वामिनी_है,
समान_वितरण_कर,
अधिकारों_का,_कर्तव्यों_का।
मत_विलाप_कर,
अपने_आँसू_पोंछ_दे_
क्योंकि......
तेरे_हिस्से_में_जो_दुख_हैं,
तूने_खुद_समेटे_हैं।
जो_जीवनदायिनी_है_उसे
कोई_क्या_दे_सकता_है?
तो_मत_ताक_
मुँह_औरों_का,
बस_अपने_हिस्से_की_
खुशियाँ_मनाना_सीख_ले

✍️ हेमा तिवारी भट्ट
मुरादाबाद 244001
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जीवन एक संग्राम है
जिसमें चलना अविराम है
अबोध तू बालक नही
वृद्ध सा कन्धा तेरा झुका नही
जीवन एक संग्राम है
जिसमे चलना अविराम है।।1।।
माना आयी है तुझपे जवानी
कर ना देना होके मदहोश
खून को पानी
माना है कि चार दिन की जिंदगानी
और उसमें भी बस दो दिन की जवानी
अपने ही हाथो स्वाहा न कर तू अपनी कहानी
देश और समाज पर न्योछावर हो छोड़ जा तू
इतिहास के पन्नो पर अपनी स्वर्णिम निशानी
क्योंकि तुझे मालूम है
जीवन एक संग्राम है
जिसमे चलना अविराम है।

 ✍️आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ
मुरादाबाद 244001
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कभी सुकून में ख़्वाब देखा करते थे,
आज ख़्वाब में सुकून ढूंढा करते हैं।
.
वतन के पहरेदारों को तो मर मिटने की आदत हैं,
वजीरों के सिरों पर कर्ज फ़ौजी की शहादत हैं।
.
कि अब इससे बड़ा हमें कोई गिला नहीं,
तेरे शहर में आया और तुझसे मिला नहीं।
.
कल मर जाऊं तो गिला मुझे क्या होगा,
तुझे खोने के बाद मिला मुझे क्या होगा।
.
ये काटकर बाग कालोनी बनाई हैं देखो,
जहां होते थे आम ,अब आम लोग रहते हैं।
.
अरें हां हां मैं जानता हूं तू खिड़की से झांकती हैं मुझको,
तू बदनाम ना हो जाएं इसीलिए मैं पलट कर नहीं देखता।
.
छुप छुप के रोते हैं ये सब हँसाने वाले,
चराग रोशनी देकर भी अंधेरे में रहता हैं।
.
तेरी आंखों में लगा काजल हूं शायद,
मैं बहुत डरता हूं तेरे इन आसुओं से।
.
यूँ तेरी दहलीज़ पे मरना मुझे गवारा नही है सनम,
मैं अपनी माँ का इकलौता हूँ घर को लौट जाऊंगा।
.
अपने आंसुओ से तर एक कहानी बेचता हैं,
वो बच्चा पेट भरने के लिए पानी बेचता हैं

✍️आशीष कुमार शर्मा
मुरादाबाद 244001
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है  परेशां  आज जन-जन  आस  पाने के  लिए,
हो  गया  मज़बूर जीवक  घास  खाने  के  लिए।

उम्र भर मज़दूर  वह था  बन चला  इस  राह  में,
न उसे थी  फ़िक्र  कोई  था  अडिग  उत्साह  में।
था कुटुंब छोटा-सा उसका तीन  जीवक थे वहाँ,
पा मजूरी एक दिन  की  पुष्प  गुंजित  थे  जहाँ।
पथ हुआ अवरुद्ध सहसा  घर  चलाने  के  लिए,
हो  गया  मज़बूर  जीवक  घास  खाने  के  लिए।

दोष  क्या  है  ये बताओ  हम  सभी नादान  का,
मेरे मालिक ले रहे  प्रतिकार किस  अपमान का।
सृष्टि   है   तेरी   बनाई   ध्यान   है   रखना  तुझे,
है करे 'अभिषेक'  विनती  न कोई  दीपक  बुझे।
अब बचा ले  प्राण  सबके   गुनगुनाने  के  लिए।
हो  गया  मज़बूर जीवक  घास  खाने  के  लिए।।

✍️अभिषेक रुहेला
ग्रा०पो०- फत्तेहपुर विश्नोई,
मुरादाबाद (उ०प्र०)-244504
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महबूबा जब तलक रहती है, महताब होती है।
बनके पत्नी बने आफत, फिर आफताब होती है
।।
प्रेमिका की बेहूदगी भी, एक अदा सी लगती है।
पत्नी जरूरी बात करे,तब भी "उन्हें" अखरती है।।
प्रेमिका के महंगे शौक में भी, अपनी खुशी झलकती  है।
पत्नी की जरूरी चीजें भी, फिजूलखर्ची लगती है।।
फ़ोन पर रात भर, प्रेमिका लोरी गाती है।
पत्नी की दो मिनट की बात, सर को खाती है।।
प्रेमिका जब तलक रहती है, "वो" अच्छी लगती है।
बुरी हो जाती है ,जब  वही पत्नी बन जाती है।।

✍️नृपेंद्र शर्मा "सागर"
ठाकुरद्वारा मुरादाबाद
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गली गली अब घूम रहे,
कोरोना लिए यमराज हैं
किसका मौका कल है ..
जाने किसका आज है ।।1।।

कुछ कतार लंबी देख ..
मना रहे क्यों जश्न हैं,
खोद रहे हैं कब्र अपनी
या करने सभी भस्म हैं ।।2।।

देखो प्रशान्त! है सब्र कहाँ
गैरत किसके पास है,
किसका नम्बर कब है..
जाने किसके बाद है ।।3।।

✍️ प्रशांत मिश्र
राम गंगा विहार, मुरादाबाद
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वीरान ज़िन्दगी में ठिकाना नहीं रहा।
महके चमन का कोई दीवाना नहीं रहा।।

महरूम तूने जब से किया है बहार से।
उस दिन से मेरा कोई फ़साना नहीं रहा।।

बदला निज़ाम आज सियासत का दोस्तो।
मेरे मुख़ालिफ़ों का जमाना नहीं रहा।।

पहरा लगा के बैठे हैं जिस दिन से मेरे यार।
मिलने का तुझसे कोई बहाना नहीं रहा।।

जज़्बात मेरे लूटे हैं जब से हुज़ूर ने।
दामन में मेरे कोई खज़ाना नहीं रहा।।

✍️ अरविंद शर्मा "आनन्द"
 मुरादाबाद 244001
मो.न०-8979216691
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"मेहनत की थकन से होता टूटकर चूर हूँ मैं,
है यही तक़दीर मेरी क्योंकि मज़दूर हूँ मैं,

कड़ी धूप में काया झुलसाता हुज़ूर हूँ मैं,
ठंडी छाया में चंद पल सुस्ताता ज़रूर हूँ मैं,

बहते हुए अपने पसीने पर करता ग़ुरूर हूँ मैं,
है यही तक़दीर मेरी क्योंकि मज़दूर हूँ मैं,

सूखी रोटी, ठंडी सब्ज़ी खाता हुज़ूर हूँ मैं,
रेत, बजरी, मिट्टी पर सोता ज़रूर हूँ मैं,

चंद सिक्के लेकर घर जाता हुज़ूर हूँ मैं,
है यही तक़दीर मेरी क्योंकि मज़दूर हूँ मैं,

बच्चों की रोटी का रखता फ़ितूर हूँ मैं,
एक मई को भी भाषण सुनता हुज़ूर हूँ मैं,

अपनी क़िस्मत का बोझ ढोता ज़रूर हूँ मैं,
है यही तक़दीर मेरी क्योंकि मज़दूर हूँ मैं,

✍️राशिद मुरादाबादी
कांठ रोड हिमगिरि कालोनी मुरादाबाद
फ़ोन :- 8958430830
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सुख का सूरज कल निकलेगा
मेहनत का हर फल निकलेगा

तू तो राही चलता चल रे
हर मुश्किल का हल निकलेगा

 मन से धरती पर मेहनत कर
जल धारा अविरल निकलेगा

अंधियारों से तू ना डरना
दुश्मन भी निश्छल निकलेगा

मेहनतकश तू मेहनत करना
सुख का हर इक पल निकलेगा

कुहरे मे ओझल है राहें
फिर भी तो मन्जल निकलेगा

आशाओं की किरणें फूटी
मनभावन बादल निकलेगा

रख ले धीरज मनवा मे तू
 ये चुप्पी हलचल निकलेगा

पथरीले हों पथ ये कितने
सुखमय ही आँचल निकलेगा

दुख की काट ले सारी रातें
दिन देखो मखमल निकलेगा

✍️इंदु रानी
मुरादाबाद 244001
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सुबह-सुबह श्रीमती जी आई ,
आकर के मुस्कुराई ।     
उठिए! चाय लाई हूं,             
 दिन निकल आया है       
  हमने कहा,                     
  चाय में थोड़ा दूध तो डालो आपका रंग ,                  चाय में उतर आया है।                             

 ✍️  नकुल त्यागी                 
 आवास विकास ,  दिल्ली रोड
मुरादाबाद 244001
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अकेले ले लिया मेरे भी हक़ का फैसला तूने
तुझे  जो आखि़रश करना था वो कर ही लिया तूने

 न मेरी ज़िन्दगी अच्छी न मेरी मौत ही आसां
ये किस अपराध की मुंसिफ़ मुझे दी है सज़ा तूने

मुझे होने लगा था कुछ ज़ियादा ही ग़ुमाँ खुद पर
बहुत अच्छा किया दिखला दिया जो आईना तूने

मेरे रब ने मुझे दोनों जहां की नेमतें बख़शीं
मेरे बेटे मुझे पहली दफ़अ जब मां कहा तूने

कतर कर पंख ये सैयाद कहता है कि अब.. उड़ जा
परिंदे किस सितमगर पर भरोसा कर लिया तूने

ये किस का ज़िक्र ऐ मासूम आया तेरे होठों पर
ये किस के नाम की उल्फत का पारा पढ़ लिया तूने

✍️मोनिका "मासूम"
मुरादाबाद 244001
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 बेकारी के दौर में, पढ़ा-लिखा पछताय।
अब तो अनपढ़ आदमी, इन्टरनेट चलाय॥

जो अच्छा इंसान है, आता सबके काम।
वो ही मेरा कृष्ण है, वो ही मेरा राम॥

हिंसा करनी छोड़ दे, कर तू सबसे प्यार।
बातों से है जो मरे, लात उसे मत मार॥

तुम अपने माँ-बाप का, करो सदा सम्मान।
इनमें ही बसते सदा, दुनिया के भगवान॥

  ✍️ जितेन्द्र कुमार जौली
मुरादाबाद 244001
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चाहे गूंजे आरती, चाहे लगे अजान।
मिलकर बोलो प्यार से, हम हैं हिन्दुस्तान।।

इन मुश्किल हालात में, क्या मज़हब क्या ज़ात।
सबका मकसद एक हो, कोरोना को मात।।

भूख-प्यास में घुल गये, जिस काया के रोग।
उसके मिटने पर लगे, पूरे छप्पन भोग।।

मैं भी योद्धा देश का, भरता हूँ हुंकार।
हाथों में यह लेखनी, है मेरा हथियार।।

जिस जंगल की रोज़ ही, उजड़ रही तक़दीर।
उसकी क़ाग़ज़ पर मिली, हरी-भरी तस्वीर।।

देख शरारत से भरी, बच्चों की मुस्कान।
बूढ़े दद्दू भी हुए, थोड़े से शैतान।।

नवयुग में है झेलती, अवशिष्टों के रोग।
गंगा माँ को चाहिये, भागीरथ से लोग।।

✍️- राजीव 'प्रखर'
मुरादाबाद 244001
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 काम करते करते, विश्राम करते करते
बस चल रहे हैं मुश्किल नाकाम करते करते

पहले थके हुये थे हम काम करते करते
बेचैन हैं मगर अब आराम करते करते

बीता कभी ये जीवन खुशियाँ गले लगाकर
कटता कभी ग़मों से संग्राम करते करते

करते रहे हैं हम तो अपने ही दिल को घायल
काँटों की हर चुभन को गुलफाम करते करते

ये भूलना कभी मत झुकने में ही अदब है
अभिमान कर न लेना तुम नाम करते करते

बद करने में किसी का होता बुरा है खुद का
बदनाम हो न जाना बदनाम करते करते

अब थक गये बहुत हैं खुशियाँ खरीदने को
हम आँसुओं को अपने नीलाम करते करते

लगने लगा है मन अब तो ‘अर्चना’ भजन में
चाहत है प्राण निकले बस राम करते करते


✍️ डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद 244001
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जीवन पर भी देखिए, हावी है बाजार।
लुप्त हुई संवेदना, विजयी कारोबार।।

जीवन भर सम्मुख रहा, केवल एक सवाल।
दोनों वक्तों की जुटे, कैसे रोटी दाल।।
------------------ गजल -------------------
हर वक्त नए रंग, दिखाती है जिंदगी।
पग पग पे हँसाती है, रुलाती है जिंदगी।।

बचपन का दौर बीत, गया हँसी खेल में।
उस वक्त क्या पता था, नचाती है जिंदगी।।

हर सुबह निकलता हूं, खुशी की तलाश में।
हर रात नए स्वप्न, दिखाती है जिंदगी।।

जब राह में पहाड़ से, अवरोध हों खड़े।
हिम्मत का नया जज्बा, जगाती है जिंदगी।।

बस कर्म करते रहना, फल की फिकर न कर।
संदेश कृष्ण का ये, बताती है जिंदगी।।

✍️ श्री कृष्ण शुक्ल
मुरादाबाद 244001
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आंख  रोएगी  कुछ   ऐसा  दर्द  भेजा  जाएगा
अब के लगता है कि मौसम ज़र्द भेजा जाएगा

हम  इधर  से  फूल भेजेंगे नए  मौसम के फूल
और  उधर से  कोई  दहशत-गर्द भेजा जाएगा

दर्द-मन्दी  का  किया  जाएगा  दावा  देर  तक
और  अयादत  को  कोई  बे-दर्द भेजा जाएगा

मुझको  है  मालूम  मेरी  गर्म-जोशी के  एवज़
तेरी   जानिब  से  रवय्या   सर्द  भेजा  जाएगा

इसने  तो आकर इज़ाफा  कर दिया है  दर्द में
हम  समझते  थे  कोई  हम-दर्द  भेजा जाएगा

✍️ज़िया ज़मीर
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कुछ यात्राएँ बाहर हैं, कुछ
मन के भीतर हैं

यात्राएँ तो सब अनंत हैं
बस पड़ाव ही हैं
राह सुगम हो, पथरीली हो
बस तनाव ही हैं
किन्तु नई आशाओं वाले
ताज़े अवसर हैं

कभी यहाँ हैं, कभी वहाँ हैं
और कभी ठहरे
तन-मन दोनों रहे मुसाफ़िर
लाख रहे पहरे
शंकाओं-आशंकाओं में भी
उजले स्वर हैं

थकन मिले या मिले ताज़गी
कहते कभी नहीं
चिन्ताएँ हों या ख़ुशियाँ हों
बहते कभी नहीं
किसी दुधमुँहे बच्चे की ज्यों
किलकारी-भर हैं

✍️योगेंद्र वर्मा  'व्योम'
मुरादाबाद 244001
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सुन  रहे  यह साल  आदमखोर है
हर तरफ बस चीख, दहशत, शोर है
मत कहो यह वायरस जहरीला बहुत
 इंसान ही आजकल कमजोर है

✍️डॉ मनोज रस्तोगी
8,जीलाल स्ट्रीट
 मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश ,भारत
मोबाइल नंबर 945 6687 822
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मजदूरों की व्यथा- कथा तो कहने वाले बहुत मिलेंगे
पर उनके संघर्ष में आना यह तो बिल्कुल अलग बात है

कितना उनका बहे पसीना
          कितना खून जलाते हैं
 हाड़ तोड़ मेहनत करके भी
          सोचो कितना पाते हैं
 मजदूरों के जुल्मों- सितम पर चर्चा रोज बहुत होती है
 उनको उनका हक दिलवाना यह तो बिल्कुल अलग बात है   

         मानव है पर पशुवत रहते 
                    यही सत्य उनका किस्सा है
       रोज-रोज का जीना मरना
                    उनके जीवन का हिस्सा है 
     उनके इस दारुण जीवन पर आंसू रोज बहाने वालों
     उनको दुख में गले लगाना यह तो बिल्कुल अलग बात है
   
             है संघर्ष निरंतर जारी
                     यह है उनका कर्म महान
            वे ही उनके साथ चलेंगे 
                      जो समझे उनको इंसान
   निश्चित उनको जीत मिलेगी पाएंगे सारे अधिकार
   लेकिन यह दिन कब है आना यह तो बिल्कुल अलग बात है
 
  ✍️   शिशुपाल "मधुकर"
मुरादाबाद 244001
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कण कण बसे भक्ति अति, शक्ति असीम अपार
पड़े नजर जिसकी बुरी, हुआ नजर से पार।1।
आया तो था डालने,कुटिल शिकारी जाल
हम खड़े मजबूत बड़े, पलट गई सब चाल।2।
कोरोना बैठा यहाँ, दुष्ट लगाकर घात
विजय करेंगे वरण हम, उसे करारी मात।  3।
सुरसा सा मुँह लेकर,आया था यह काल
हनुमान खड़े सामने, सबकी बनकर ढाल।4।
बिखरे बिखरे जब सभी, हम खड़े हैं साथ
दूरी को अपनाकर भी, थामे सबके हाथ। 5।
रोम रोम से उठ रही, केवल एक आवाज़
चिंता मेरी छोड़ के,सुरक्षित करें समाज।6।
छाया है सकल विश्व पर, कोरोना का ताप
निगल रहा है जगत को,जाने किसका पाप।7।
                               
✍️डॉ मीना कौल
मुरादाबाद 244001
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फँसना लोभ व मोह में, मत करना मंजूर।
वरना जग कल्याण से, हो जाओगे दूर॥

पूत कमाऊ के लियें, पक्षपात की बात।
पहुँचाती है हृदय को, इक गहरा आघात॥

धरा यहीं रह जायगा, राजपाठ और देश।
सदा साथ ही जायगा, एक प्रेम संदेश॥

परमार्थ के लिए करें, समय हृदय उपयोग।
करने ना देगा हमें, लोभ मोह का योग॥

सदा भलाई हम करें, और गलत दें छोड़।
जिससे जीवन को मिले, एक नया-सा मोड़॥

✍️ - रामदत्त द्विवेदी
 मुरादाबाद (उ.प्र.)
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कोरोना ने ऐंसे कर दिये हालात आज कल !
दुर्लभ हुई अपनो से मुलाकात आज कल !
तुम ही कहो ऐंसे मे हम किससे कहे व्यथा ;
अपने ही घर मे कैद हैं दिन-रात
आज कल !
लेकिन
लॉक डाउन अरु सामाजिक दूरियां हैं हल !
जारी रखो कोरोना मुक्ति का
यही है हल !
कुछ ही दिनो की बात है धीरज
से काम लो ;
मिल जाएगी कोरोना से मुक्ति जल्द आजकल !

  ✍️ विकास मुरादाबादी
मुरादाबाद 244001

 :::::::::::: :::: ::::   प्रस्तुति:::::::::::::::::::::::::
         
                  डॉ मनोज रस्तोगी
                   8, जीलाल स्ट्रीट
                    मुरादाबाद 244001
                    उत्तर प्रदेश, भारत
                    मोबाइल फोन नम्बर 9456687822

मुरादाबाद मंडल के जनपद संभल निवासी साहित्यकार अतुल कुमार शर्मा की कविता -----अर्थव्यवस्था का पहिया मदिरा पर टिका है6


सुना था बचपन में अपने गुरुजनों से,
माता-पिता,रिश्तेदारों और वृद्धजनों से।
कि यह संसार नश्वर है,सब कुछ सपना है,
राम नाम जपते रहो,यही बस अपना है।
ऐसा मानकर,मैं भी राम नाम जपने लगा,
इसे सुन मेरे पड़ोसी में,ईर्ष्या भाव पनपने लगा।
उन्होंने बड़े प्यार से,अपना बनाकर मुझे समझाया,
धर्म को धता बताकर,नया पाठ पढ़ाया।
परिभाषाएं बदल गई हैं,अब राम नाम भूल जाओ,
छीना झपटी में विश्वास रखो,जिंदगी के मजे उड़ाओ।
अब द्वापर,त्रेता और सतयुग बीत चुका है,
बुराइयों का ताज बांधकर,कलियुग जीत चुका है।
घर से बाहर निकलो और सच्चाई को जानो,
रामनामी दुपट्टा फेंको और समय को पहचानो।
देवालय में बंद भगवान,खुद जान बचाने लगे हैं,
भक्तों की भीड़ से अब,छुटकारा पाने लगे हैं।
प्यासे नशाप्रेमी सूखे गले से,बुरी तरह मचल रहे हैं,
संस्कारों के सारे पैमाने,पैरों तले कुचल रहे हैं।
उधर ठेकों पर लंबी लाइन लगने लगी है,
आर्थिक विकास की आस,सबको जगने लगी है।
इसके सेवन के कई दृष्टि से फायदे ही फायदे हैं,
कच्ची और पक्की पीने के,अलग-अलग कायदे हैं।
हालांकि इसका कोई लिखित संविधान नहीं होता,
इसकी शुरुआत का भी,कोई विधि-विधान नहीं होता।
ऐसे देशभक्तों का,राष्ट्रोत्थान में बड़ा बलिदान है,
जिन्हें हम शराबी समझते हैं,उनका भारी योगदान है।
घर की अर्थव्यवस्था और इज्जत
चाहे तार-तार हो जाए,
शराबी हर कीमत पर चाहता है
देश का उद्धार हो जाए।
वो जिंदादिल शख्स,जो कभी हिम्मत नहीं हारता।
गरीबी काटता है खुशी से,दीवारों में सिर नहीं मारता।
क्योंकि उसका सरकारी योजनाओं से
अच्छा तालमेल है
सस्ते में मिलता गेहूं,और चावल भी रेलमपेल है।
इसलिए इन दोनों की समझदारी से देश चल रहा है,
अर्थव्यवस्था पटरी पर आकर,सेंसेक्स उछल रहा है।
बैसे गरीबी का नाश,दारू ही कर सकती है,
सरकारी खजाना भी रातों रात भर सकती है।
मंदिरों से मुँह मोड़ जो,मयखाने की चौखट चूम रहे हैं,
देश के उद्धार को,कोरी मस्ती में झूम रहे हैं।
उनमें कलियुग के दर्शन साक्षात हो रहे हैं,
गरीबी खोने के लिए वो,खुद को ही खो रहे हैं।
देखो!समस्याओं का उन्मूलन
अब,नए अंदाज में दिखा है,
मानना पड़ेगा!
अर्थव्यवस्था का पहिया मदिरा पर टिका है।

 ✍️अतुल कुमार शर्मा
निकट प्रेमशंकर वाटिका
बरेली सराय
सम्भल
मोबाइल नंबर 8273011742,  9759285761

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ पूनम बंसल का गीत ----- आओ साथी हम सब मिलकर कोरोना पर वार करें


   ✍️डॉ पूनम बंसल
10,गोकुल विहार
कांठ रोड, मुरादाबाद
मोबाइल फोन नंबर 9412143525