एक हुए होते,
तो
एक रहे होते ।
बंटवारों के मन
छोटे होते हैं,
जा!
तेरे घर का द्वार
अलग है,
मेरे घर का
द्वार अलग ,
तू भी
अपना पढ़ लेना
मैं भी
मैं भी
अपना पढ़ लूंगा
तेरे घर
अखबार अलग है
मेरे घर
अखबार अलग ।।
✍️ डॉ मक्खन मुरादाबादी
मुरादाबाद 244001
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जिसने सीखा है हर-इक शख्स की इज़्ज़त करना
उसको आता है हर-इक दिल पे हकूमत करना
नेक बंदों को सिखाते हैं जो नफ़रत करना
ऐसे लोगों से सदा आप बग़ावत करना
बेगुनाहों पे मज़ालिम-1 जो किया करते हैं
वे सभी छोड़ दें अब ऐसी शरारत करना
दिल भी जलते हैं फ़ना ज़िन्दगी हो जाती हैं
है बुरी बात किसी से भी अदावत करना
लोग संसार के सुख-चैन से रह सकते हैं
सबकी चाहत हो अगर ख़त्म कदूरत-2 करना
उनका दस्तूर है क्या ये हमें मालूम नहीं
हमको आता है फ़क़त सबसे मुहब्बत करना
बिगड़े हालात हमारे भी सुधर सकते हैं
हमको आ जाए अगर वक़्त की इज़्ज़त करना
लोग खुशहाल सभी होंगे वतन में अपने
सब अगर सीख लें जी-जान से मेहनत करना
दुख की रातें हैं बड़ी , चंद खुशी की घड़ियाँ
ज़िन्दगी के तू हर-इक पल से मुहब्बत करना
जल की एक बूंद है संजीवनी जीवन के लिए
एक-इक बूंद की सब लोग किफ़ायत करना
क़ीमती होता है हर आँख का आँसू यारो
एक आँसू की भी 'ओंकार'हिफ़ाज़त करना
1-मज़ालिम-- अत्याचार (बहुवचन)
2-कदूरत-- गदलापन ,मैलापन , रंजिश
✍️ ओंकार सिंह 'ओंकार'
मुरादाबाद 244001
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मानस की चौपाइयां, देती उत्तम ज्ञान ।
इनको पढ़ियेगा सदा,क्यों रहते अनजान ।
*मुक्तक*
नियति हर श्वास को तूफान बना देती है ,
विवशता फूल को पाषाण बना देती है ,
जन्म से कोई भी शैतान नहीं होता है -
भूख इंसान को शैतान बना देती है ।
✍️ अशोक विश्नोई
मुरादाबाद 244001
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धूप के कपड़ो पर सिलवट है, मैला मैला दिनकर है।
उपवन सारा मुरझाया है, जंगल जंगल पतझर है।।
जाने कैसा जादू टोना,डाल दिया है ऋतुओं ने।
हरियाली का जो वाहक था, छाँव-रहित वह तरुवर है।।
लेखन के स्वर मौन हुये हैं, ध्वनि हीन हैं अक्षर तक।
एक कोलाहल मन के बाहर, एक कोलाहल भीतर है।।
दिन का वध करने वालों ने रात की हत्या कर दी है।
चाँद खरीदे धनवानों ने ,आज अमावस घर घर है।।
ऊब के एकाकीपन से जब , झाँका है उसके मन में।
ऐसा लगा आँखों में उसकी निर्मल प्रेम का सागर है।।
त्याग की वर्षा तिरोहित है, और मेघ घिरे हैं निज हित के।
कुंठित है संवेदन शक्ति, भूमि भाव की बंजर है।।
लेखन धर्म है भक्ति-भाव से , पूर्ण समर्पण है कविता।
शब्द मेरे रह जायें 'मीना' यह काया तो नश्वर है।।
✍️ डा. मीना नक़वी
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हमने तो तुमसे किया,हद से ज़्यादा प्यार।
तुम भी ज़िद छोड़ो सनम,कर भी लो इक़रार।।
कोरोना ने कर दिया,हमको घर में बंद।
ऐसे में कैसे भला ,हो तेरा दीदार।।
आँखों-आँखों में कटी, अपनी सारी रात।
तुम भी तो करवट बदल,जागे हो दिलदार।।
आया सावन झूमकर,मन में उठी तरंग।
बिन साजन सूना लगे,हमको यह संसार।।
आँगन, चन्दा, चाँदनी,तारों की बारात।
पहना भी दो साजना,अब बाँहों के हार।।
✍️ मीनाक्षी ठाकुर
मिलन विहार
मुरादाबाद 244001
मोबाइल फोन 8218467932
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कोरोना की देश में ,तीव्र हो रही चाल
मजदूरी भी छिन गई ,जीना हुआ मुहाल
जीना हुआ मुहाल ,जेब भी हो गई ख़ाली
घर छूटा पर हाय! गई न ये कंगाली
कह विद्रोही ईश्वर !अब तो दया करो ना
मजदूरी मिल सके, जो वापस लो कोरोना
*बंधुआ बाल मजदूरी*
जिनके पापा छोड़ गए हैं
बच्चों को छोटा छोटा
बीमारी ने लाद दिया
उन पर कर्जा मोटा मोटा
कैसे लड़ें भूख से वह
और कैसे उस देनदारी से
जूझ रहे लाचार जो बच्चे
रोटी और बीमारी से
भाई बहन और मां के आंसू
देख सहम वो जाते हैं
रोजी और रोटी के लिए
उनके सपने खो जाते हैं
सेठों की जब नजर पड़े तो
बंधुआ वो बन जाते हैं
मनमानी पाकर लेवर
सेठों के मुख खिल जाते हैं
उनको करें मुक्त सरकारें
उन पर यह उपकार करें
लेकिन उनके सपनों को भी
किसी तरह साकार करें
✍️ अशोक विद्रोही
412 प्रकाश नगर, मुरादाबाद
मोबाइल फोन नंबर 82 188 25 541
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क्यों_ताकती_है_मुँह
औरों_का.....
सुन_अरी!
ये_जो_मुस्कान_है
उन_होंठों_पर....
तेरी_ही_दी_हुई_है।
ये_यश_मान_उत्थान
और_सुकून_की_रोटियाँ
तूने_ही_अपने_हाथों_से
बना_कर_परोसी_हैं
हर_थाली_में....
किसमें_है_सामर्थ्य
तेरे_सिवाय....
सभ्यताओं_के_प्रसव_की?
तो_फिर_उठ
क्यों_बैठी_है
समय_के_द्वार_पर
भिक्षुणी_की_तरह?
तू_स्वामिनी_है,
समान_वितरण_कर,
अधिकारों_का,_कर्तव्यों_का।
मत_विलाप_कर,
अपने_आँसू_पोंछ_दे_
क्योंकि......
तेरे_हिस्से_में_जो_दुख_हैं,
तूने_खुद_समेटे_हैं।
जो_जीवनदायिनी_है_उसे
कोई_क्या_दे_सकता_है?
तो_मत_ताक_
मुँह_औरों_का,
बस_अपने_हिस्से_की_
खुशियाँ_मनाना_सीख_ले
✍️ हेमा तिवारी भट्ट
मुरादाबाद 244001
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जीवन एक संग्राम है
जिसमें चलना अविराम है
अबोध तू बालक नही
वृद्ध सा कन्धा तेरा झुका नही
जीवन एक संग्राम है
जिसमे चलना अविराम है।।1।।
माना आयी है तुझपे जवानी
कर ना देना होके मदहोश
खून को पानी
माना है कि चार दिन की जिंदगानी
और उसमें भी बस दो दिन की जवानी
अपने ही हाथो स्वाहा न कर तू अपनी कहानी
देश और समाज पर न्योछावर हो छोड़ जा तू
इतिहास के पन्नो पर अपनी स्वर्णिम निशानी
क्योंकि तुझे मालूम है
जीवन एक संग्राम है
जिसमे चलना अविराम है।
✍️आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ
मुरादाबाद 244001
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कभी सुकून में ख़्वाब देखा करते थे,
आज ख़्वाब में सुकून ढूंढा करते हैं।
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वतन के पहरेदारों को तो मर मिटने की आदत हैं,
वजीरों के सिरों पर कर्ज फ़ौजी की शहादत हैं।
.
कि अब इससे बड़ा हमें कोई गिला नहीं,
तेरे शहर में आया और तुझसे मिला नहीं।
.
कल मर जाऊं तो गिला मुझे क्या होगा,
तुझे खोने के बाद मिला मुझे क्या होगा।
.
ये काटकर बाग कालोनी बनाई हैं देखो,
जहां होते थे आम ,अब आम लोग रहते हैं।
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अरें हां हां मैं जानता हूं तू खिड़की से झांकती हैं मुझको,
तू बदनाम ना हो जाएं इसीलिए मैं पलट कर नहीं देखता।
.
छुप छुप के रोते हैं ये सब हँसाने वाले,
चराग रोशनी देकर भी अंधेरे में रहता हैं।
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तेरी आंखों में लगा काजल हूं शायद,
मैं बहुत डरता हूं तेरे इन आसुओं से।
.
यूँ तेरी दहलीज़ पे मरना मुझे गवारा नही है सनम,
मैं अपनी माँ का इकलौता हूँ घर को लौट जाऊंगा।
.
अपने आंसुओ से तर एक कहानी बेचता हैं,
वो बच्चा पेट भरने के लिए पानी बेचता हैं
✍️आशीष कुमार शर्मा
मुरादाबाद 244001
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है परेशां आज जन-जन आस पाने के लिए,
हो गया मज़बूर जीवक घास खाने के लिए।
उम्र भर मज़दूर वह था बन चला इस राह में,
न उसे थी फ़िक्र कोई था अडिग उत्साह में।
था कुटुंब छोटा-सा उसका तीन जीवक थे वहाँ,
पा मजूरी एक दिन की पुष्प गुंजित थे जहाँ।
पथ हुआ अवरुद्ध सहसा घर चलाने के लिए,
हो गया मज़बूर जीवक घास खाने के लिए।
दोष क्या है ये बताओ हम सभी नादान का,
मेरे मालिक ले रहे प्रतिकार किस अपमान का।
सृष्टि है तेरी बनाई ध्यान है रखना तुझे,
है करे 'अभिषेक' विनती न कोई दीपक बुझे।
अब बचा ले प्राण सबके गुनगुनाने के लिए।
हो गया मज़बूर जीवक घास खाने के लिए।।
✍️अभिषेक रुहेला
ग्रा०पो०- फत्तेहपुर विश्नोई,
मुरादाबाद (उ०प्र०)-244504
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महबूबा जब तलक रहती है, महताब होती है।
बनके पत्नी बने आफत, फिर आफताब होती है
प्रेमिका की बेहूदगी भी, एक अदा सी लगती है।
पत्नी जरूरी बात करे,तब भी "उन्हें" अखरती है।।
प्रेमिका के महंगे शौक में भी, अपनी खुशी झलकती है।
पत्नी की जरूरी चीजें भी, फिजूलखर्ची लगती है।।
फ़ोन पर रात भर, प्रेमिका लोरी गाती है।
पत्नी की दो मिनट की बात, सर को खाती है।।
प्रेमिका जब तलक रहती है, "वो" अच्छी लगती है।
बुरी हो जाती है ,जब वही पत्नी बन जाती है।।
✍️नृपेंद्र शर्मा "सागर"
ठाकुरद्वारा मुरादाबाद
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गली गली अब घूम रहे,
कोरोना लिए यमराज हैं
किसका मौका कल है ..
जाने किसका आज है ।।1।।
कुछ कतार लंबी देख ..
मना रहे क्यों जश्न हैं,
खोद रहे हैं कब्र अपनी
या करने सभी भस्म हैं ।।2।।
देखो प्रशान्त! है सब्र कहाँ
गैरत किसके पास है,
किसका नम्बर कब है..
जाने किसके बाद है ।।3।।
✍️ प्रशांत मिश्र
राम गंगा विहार, मुरादाबाद
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वीरान ज़िन्दगी में ठिकाना नहीं रहा।
महके चमन का कोई दीवाना नहीं रहा।।
महरूम तूने जब से किया है बहार से।
उस दिन से मेरा कोई फ़साना नहीं रहा।।
बदला निज़ाम आज सियासत का दोस्तो।
मेरे मुख़ालिफ़ों का जमाना नहीं रहा।।
पहरा लगा के बैठे हैं जिस दिन से मेरे यार।
मिलने का तुझसे कोई बहाना नहीं रहा।।
जज़्बात मेरे लूटे हैं जब से हुज़ूर ने।
दामन में मेरे कोई खज़ाना नहीं रहा।।
✍️ अरविंद शर्मा "आनन्द"
मुरादाबाद 244001
मो.न०-8979216691
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"मेहनत की थकन से होता टूटकर चूर हूँ मैं,
है यही तक़दीर मेरी क्योंकि मज़दूर हूँ मैं,
कड़ी धूप में काया झुलसाता हुज़ूर हूँ मैं,
ठंडी छाया में चंद पल सुस्ताता ज़रूर हूँ मैं,
बहते हुए अपने पसीने पर करता ग़ुरूर हूँ मैं,
है यही तक़दीर मेरी क्योंकि मज़दूर हूँ मैं,
सूखी रोटी, ठंडी सब्ज़ी खाता हुज़ूर हूँ मैं,
रेत, बजरी, मिट्टी पर सोता ज़रूर हूँ मैं,
चंद सिक्के लेकर घर जाता हुज़ूर हूँ मैं,
है यही तक़दीर मेरी क्योंकि मज़दूर हूँ मैं,
बच्चों की रोटी का रखता फ़ितूर हूँ मैं,
एक मई को भी भाषण सुनता हुज़ूर हूँ मैं,
अपनी क़िस्मत का बोझ ढोता ज़रूर हूँ मैं,
है यही तक़दीर मेरी क्योंकि मज़दूर हूँ मैं,
✍️राशिद मुरादाबादी
कांठ रोड हिमगिरि कालोनी मुरादाबाद
फ़ोन :- 8958430830
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सुख का सूरज कल निकलेगा
मेहनत का हर फल निकलेगा
तू तो राही चलता चल रे
हर मुश्किल का हल निकलेगा
मन से धरती पर मेहनत कर
जल धारा अविरल निकलेगा
अंधियारों से तू ना डरना
दुश्मन भी निश्छल निकलेगा
मेहनतकश तू मेहनत करना
सुख का हर इक पल निकलेगा
कुहरे मे ओझल है राहें
फिर भी तो मन्जल निकलेगा
आशाओं की किरणें फूटी
मनभावन बादल निकलेगा
रख ले धीरज मनवा मे तू
ये चुप्पी हलचल निकलेगा
पथरीले हों पथ ये कितने
सुखमय ही आँचल निकलेगा
दुख की काट ले सारी रातें
दिन देखो मखमल निकलेगा
✍️इंदु रानी
मुरादाबाद 244001
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सुबह-सुबह श्रीमती जी आई ,
आकर के मुस्कुराई ।
उठिए! चाय लाई हूं,
दिन निकल आया है
हमने कहा,
चाय में थोड़ा दूध तो डालो आपका रंग , चाय में उतर आया है।
✍️ नकुल त्यागी
आवास विकास , दिल्ली रोड
मुरादाबाद 244001
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अकेले ले लिया मेरे भी हक़ का फैसला तूने
तुझे जो आखि़रश करना था वो कर ही लिया तूने
न मेरी ज़िन्दगी अच्छी न मेरी मौत ही आसां
ये किस अपराध की मुंसिफ़ मुझे दी है सज़ा तूने
मुझे होने लगा था कुछ ज़ियादा ही ग़ुमाँ खुद पर
बहुत अच्छा किया दिखला दिया जो आईना तूने
मेरे रब ने मुझे दोनों जहां की नेमतें बख़शीं
मेरे बेटे मुझे पहली दफ़अ जब मां कहा तूने
कतर कर पंख ये सैयाद कहता है कि अब.. उड़ जा
परिंदे किस सितमगर पर भरोसा कर लिया तूने
ये किस का ज़िक्र ऐ मासूम आया तेरे होठों पर
ये किस के नाम की उल्फत का पारा पढ़ लिया तूने
✍️मोनिका "मासूम"
मुरादाबाद 244001
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बेकारी के दौर में, पढ़ा-लिखा पछताय।
अब तो अनपढ़ आदमी, इन्टरनेट चलाय॥
जो अच्छा इंसान है, आता सबके काम।
वो ही मेरा कृष्ण है, वो ही मेरा राम॥
हिंसा करनी छोड़ दे, कर तू सबसे प्यार।
बातों से है जो मरे, लात उसे मत मार॥
तुम अपने माँ-बाप का, करो सदा सम्मान।
इनमें ही बसते सदा, दुनिया के भगवान॥
✍️ जितेन्द्र कुमार जौली
मुरादाबाद 244001
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मिलकर बोलो प्यार से, हम हैं हिन्दुस्तान।।
इन मुश्किल हालात में, क्या मज़हब क्या ज़ात।
सबका मकसद एक हो, कोरोना को मात।।
भूख-प्यास में घुल गये, जिस काया के रोग।
उसके मिटने पर लगे, पूरे छप्पन भोग।।
मैं भी योद्धा देश का, भरता हूँ हुंकार।
हाथों में यह लेखनी, है मेरा हथियार।।
जिस जंगल की रोज़ ही, उजड़ रही तक़दीर।
उसकी क़ाग़ज़ पर मिली, हरी-भरी तस्वीर।।
देख शरारत से भरी, बच्चों की मुस्कान।
बूढ़े दद्दू भी हुए, थोड़े से शैतान।।
नवयुग में है झेलती, अवशिष्टों के रोग।
गंगा माँ को चाहिये, भागीरथ से लोग।।
✍️- राजीव 'प्रखर'
मुरादाबाद 244001
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काम करते करते, विश्राम करते करते
बस चल रहे हैं मुश्किल नाकाम करते करते
पहले थके हुये थे हम काम करते करते
बेचैन हैं मगर अब आराम करते करते
बीता कभी ये जीवन खुशियाँ गले लगाकर
कटता कभी ग़मों से संग्राम करते करते
करते रहे हैं हम तो अपने ही दिल को घायल
काँटों की हर चुभन को गुलफाम करते करते
ये भूलना कभी मत झुकने में ही अदब है
अभिमान कर न लेना तुम नाम करते करते
बद करने में किसी का होता बुरा है खुद का
बदनाम हो न जाना बदनाम करते करते
अब थक गये बहुत हैं खुशियाँ खरीदने को
हम आँसुओं को अपने नीलाम करते करते
लगने लगा है मन अब तो ‘अर्चना’ भजन में
चाहत है प्राण निकले बस राम करते करते
✍️ डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद 244001
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लुप्त हुई संवेदना, विजयी कारोबार।।
जीवन भर सम्मुख रहा, केवल एक सवाल।
दोनों वक्तों की जुटे, कैसे रोटी दाल।।
------------------ गजल -------------------
हर वक्त नए रंग, दिखाती है जिंदगी।
पग पग पे हँसाती है, रुलाती है जिंदगी।।
बचपन का दौर बीत, गया हँसी खेल में।
उस वक्त क्या पता था, नचाती है जिंदगी।।
हर सुबह निकलता हूं, खुशी की तलाश में।
हर रात नए स्वप्न, दिखाती है जिंदगी।।
जब राह में पहाड़ से, अवरोध हों खड़े।
हिम्मत का नया जज्बा, जगाती है जिंदगी।।
बस कर्म करते रहना, फल की फिकर न कर।
संदेश कृष्ण का ये, बताती है जिंदगी।।
✍️ श्री कृष्ण शुक्ल
मुरादाबाद 244001
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आंख रोएगी कुछ ऐसा दर्द भेजा जाएगा
अब के लगता है कि मौसम ज़र्द भेजा जाएगा
हम इधर से फूल भेजेंगे नए मौसम के फूल
और उधर से कोई दहशत-गर्द भेजा जाएगा
दर्द-मन्दी का किया जाएगा दावा देर तक
और अयादत को कोई बे-दर्द भेजा जाएगा
मुझको है मालूम मेरी गर्म-जोशी के एवज़
तेरी जानिब से रवय्या सर्द भेजा जाएगा
इसने तो आकर इज़ाफा कर दिया है दर्द में
हम समझते थे कोई हम-दर्द भेजा जाएगा
✍️ज़िया ज़मीर
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मन के भीतर हैं
यात्राएँ तो सब अनंत हैं
बस पड़ाव ही हैं
राह सुगम हो, पथरीली हो
बस तनाव ही हैं
किन्तु नई आशाओं वाले
ताज़े अवसर हैं
कभी यहाँ हैं, कभी वहाँ हैं
और कभी ठहरे
तन-मन दोनों रहे मुसाफ़िर
लाख रहे पहरे
शंकाओं-आशंकाओं में भी
उजले स्वर हैं
थकन मिले या मिले ताज़गी
कहते कभी नहीं
चिन्ताएँ हों या ख़ुशियाँ हों
बहते कभी नहीं
किसी दुधमुँहे बच्चे की ज्यों
किलकारी-भर हैं
✍️योगेंद्र वर्मा 'व्योम'
मुरादाबाद 244001
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सुन रहे यह साल आदमखोर है
हर तरफ बस चीख, दहशत, शोर है
मत कहो यह वायरस जहरीला बहुत
इंसान ही आजकल कमजोर है
✍️डॉ मनोज रस्तोगी
8,जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश ,भारत
मोबाइल नंबर 945 6687 822
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मजदूरों की व्यथा- कथा तो कहने वाले बहुत मिलेंगे
पर उनके संघर्ष में आना यह तो बिल्कुल अलग बात है
कितना उनका बहे पसीना
कितना खून जलाते हैं
हाड़ तोड़ मेहनत करके भी
सोचो कितना पाते हैं
मजदूरों के जुल्मों- सितम पर चर्चा रोज बहुत होती है
उनको उनका हक दिलवाना यह तो बिल्कुल अलग बात है
मानव है पर पशुवत रहते
यही सत्य उनका किस्सा है
रोज-रोज का जीना मरना
उनके जीवन का हिस्सा है
उनके इस दारुण जीवन पर आंसू रोज बहाने वालों
उनको दुख में गले लगाना यह तो बिल्कुल अलग बात है
है संघर्ष निरंतर जारी
यह है उनका कर्म महान
वे ही उनके साथ चलेंगे
जो समझे उनको इंसान
निश्चित उनको जीत मिलेगी पाएंगे सारे अधिकार
लेकिन यह दिन कब है आना यह तो बिल्कुल अलग बात है
✍️ शिशुपाल "मधुकर"
मुरादाबाद 244001
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कण कण बसे भक्ति अति, शक्ति असीम अपार
पड़े नजर जिसकी बुरी, हुआ नजर से पार।1।
आया तो था डालने,कुटिल शिकारी जाल
हम खड़े मजबूत बड़े, पलट गई सब चाल।2।
कोरोना बैठा यहाँ, दुष्ट लगाकर घात
विजय करेंगे वरण हम, उसे करारी मात। 3।
सुरसा सा मुँह लेकर,आया था यह काल
हनुमान खड़े सामने, सबकी बनकर ढाल।4।
बिखरे बिखरे जब सभी, हम खड़े हैं साथ
दूरी को अपनाकर भी, थामे सबके हाथ। 5।
रोम रोम से उठ रही, केवल एक आवाज़
चिंता मेरी छोड़ के,सुरक्षित करें समाज।6।
छाया है सकल विश्व पर, कोरोना का ताप
निगल रहा है जगत को,जाने किसका पाप।7।
✍️डॉ मीना कौल
मुरादाबाद 244001
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फँसना लोभ व मोह में, मत करना मंजूर।
वरना जग कल्याण से, हो जाओगे दूर॥
पूत कमाऊ के लियें, पक्षपात की बात।
पहुँचाती है हृदय को, इक गहरा आघात॥
धरा यहीं रह जायगा, राजपाठ और देश।
सदा साथ ही जायगा, एक प्रेम संदेश॥
परमार्थ के लिए करें, समय हृदय उपयोग।
करने ना देगा हमें, लोभ मोह का योग॥
सदा भलाई हम करें, और गलत दें छोड़।
जिससे जीवन को मिले, एक नया-सा मोड़॥
✍️ - रामदत्त द्विवेदी
मुरादाबाद (उ.प्र.)
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दुर्लभ हुई अपनो से मुलाकात आज कल !
तुम ही कहो ऐंसे मे हम किससे कहे व्यथा ;
अपने ही घर मे कैद हैं दिन-रात
आज कल !
लेकिन
लॉक डाउन अरु सामाजिक दूरियां हैं हल !
जारी रखो कोरोना मुक्ति का
यही है हल !
कुछ ही दिनो की बात है धीरज
से काम लो ;
मिल जाएगी कोरोना से मुक्ति जल्द आजकल !
✍️ विकास मुरादाबादी
मुरादाबाद 244001
:::::::::::: :::: :::: प्रस्तुति:::::::::::::::::::::::::
डॉ मनोज रस्तोगी
8, जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नम्बर 9456687822
सभी रचनाकारों को बधाई ।
जवाब देंहटाएंसुंदर एवं सार्थक आयोजन के लिए सभी को हार्दिक बधाई
जवाब देंहटाएंसभी सम्मानित रचनाकारों को बधाई
जवाब देंहटाएं