गुरुवार, 7 मई 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार प्रवीण राही की लघु कथा ----मां की पीड़ा


अपने 16 साल के  हंसमुख चिंटू की उदासीन,हताश पूर्ण बातोंं को सुनकर मांं मुखी के पैरोंं तले जमीन खिसक गई।.... मांं मैंं हार गया, तुमने मुझे बर्तन,झाड़ू पोछा कर पापा के जाने के बाद पाला,पढ़ाया,याद है मेरे बारहवीं मेंं 94 प्रतिशत नम्बर आने पर तुमने अपनी औकात से ज्यादा मिठाइयां बांटी थी।मै एक जॉब भी नहीं ढूंढ पा रहा,निरर्थक है ये पढ़ाई,अच्छा होता मुझे भी तू झाड़ू पोछा सिखा देती या कूड़ा उठाना,कुछ तो कमा ही लेता।बिना जुगाड़,या सिफारिश के जॉब बहुत मुश्किल है, मैंं  हार गया मांं मांं, कहकर बिना खाए चिंटू सो गया।मै पत्थर सी उसकी बातोंं को सुनती रही।जिद्दी है अपने बाप की तरह,महत्वाकांक्षी भी ........
सहसा मुखी दौड़ी,उसके जेब को टटोला।दिमाग में कुछ ग़लत ख्याल चल रहे थे, हाथ में एक कागज कुछ लिखा हुआ मिला.... हे भगवान (कुछ अनर्थ ना हो) बुदबुदाई।रात के 10.30 बजे हैंं क्या करूंं ,किससे पढ़वाऊंं,क्या लिखा है इस पर......
मुखी घर से बाहर निकल सड़क पर भागी,एक बुजुर्ग को देख - भाई जरा पढ़ो इस कागज पर क्या लिखा है ....
रुको बहन पढ़ता हूं - मत घबराओ,इस पर   कंपनी के पते लिखे हैंं।
बुजुर्ग ने कहा - मै तुम्हारी पीड़ा समझ सकता हूं, मुझ अभागे के बेटे ने ऐसे ही कागज पर कुछ लिख अगले दिन अपनी आखिरी सांस ली।
बहन हर बच्चा कमजोर नहीं होता।ये सुन बस मुखी के आंखो के अंदर का छुपा समंदर बस उफान मारने लगा।

प्रवीण राही

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