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बुधवार, 7 अक्टूबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार प्रवीण राही की लघुकथा -----गुरु


पुरानी दिल्ली में लाल किले रोड की एक तरफ जूते का बड़ा शोरूम खुला और दूसरी तरफ रोड पर एक बुजुर्ग चलते फिरते  सी  किताबो की दुकान सजा रहे थे। बेडशीट को बिछाकर उस पर गीता, कुरान ,बाइबल ....आरती ,पूजा मंत्रों की छोटी-छोटी पुस्तके ,प्रेमचंद्र की कहानियां, चेतन भगत ,रॉबिन शर्मा ,शेक्सपियर .....आदि  की किताबें उन्होंने सजाई।  पर अचरज की बात तो यह है की आज जब हर दिन की तरह एक दूसरे से शर्माए लिपटी किताबों ने जूतों को उन पर हंसते हुए नहीं देखा ......बल्कि वो श्रद्धा पूर्वक सर झुका कर नमन कर रहे थे।तो फिर किताबों  ने एक दूसरे से पूछा कि आज इन घमंडी जूतों में  इतना बदलाव कैसे आ गया, आज ये अचानक हमारे सामने ऐसे झुक रहे हैं जैसे  हमें अपना गुरु समझते हो। तभी उनमें से एक किताब "हाउ टू सेल रिटन बाय प्रवीण राही" ने बाकी किताबों को कहा "कल इस जूते के शो रूम का मालिक हमारे बाबूजी के पास आया था। और बाबू जी से कहा कि हमारी दुकान की बिक्री नहीं चल रही है। इस तरीके से जूतों को फेंकना पड़ जाएगा या कौड़ी के भाव बेचना पड़ जाएगा। आप कोई रास्ता बताएं। कोई किताब बताएं ,जिस को पढ़कर मैं अपने तरीके में बदलाव ला सकूं और अपनी बिक्री बढ़ा सकूं"। फिर किताबों ने कहा अच्छा इसी वजह से  आज सुबह से ही इनके  दुकान में  ग्राहकों की भीड़ लगी हुई हैं। आज जूते खुद पर शर्मिंदा होकर अपनी इज्जत बचाने के लिए किताबों का आभार व्यक्त कर रहे थे।

✍️प्रवीण राही

संपर्क सूत्र 8860213526

बुधवार, 30 सितंबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार प्रवीण राही की लघुकथा ---तेजाब

"मुझे रसायन शास्त्र हमेशा से पसंद रहा,लेकिन जब से उस लड़की का चेहरा देखा है,उस हादसे ने मुझे अंदर तक हिला दिया। बस,तब से रसायन शास्त्र से घृणा हो गई है.... उफ! वो अधजले काग़ज़ सी हो गई थी.....।"

✍️प्रवीण राही, मुरादाबाद


बुधवार, 23 सितंबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार प्रवीण राही की लघुकथा ----- वास्तविक सोच

  मेरे बेटे रोहन ने एक स्वनिर्मित चित्र मेरे सामने लाकर रख दिया ...। इस चित्र में उसने अपनी मां को आठ हाथों के साथ दिखाया है ... पहले हाथ में किताब, दूसरे हाथ में बर्तन, तीसरे हाथ में छोटे बच्चे (शायद रोहन खुद को दिखाना चाहते हो), चौथे हाथ में छोटी बहन, पांच हाथ में। पापा, छठे हाथ में घर, सातवें हाथ में कार्यालय, और आठवें हाथ में घड़ी ... उसे देखकर ही सुबह का वाकया मेरी आँखों के सम्मुख छा गया। 

जब बेटे रोहन ने आज दुर्गा नवमी पर पूजा के दौरान मां दुर्गा की प्रतिमा को देखकर मुझसे पूछा "पापा हम सभी के दो- दो हाथ, पर माता दुर्गा के आठ हाथ, ये तो झूठ है ... ऐसा नहीं हो सकता है ना!" पापा "। मैं उसकी बात सुनकर स्तब्ध रह गया था और बोला कि ... 

"बेटा तुम देखो, मां दुर्गा ने अपने सभी हाथों में अलग-अलग चीजें धारण कर रखी हैं। इन सभी चीजों में, मां दुर्गा पार्वती हैं"। 

"क्या हुआ पापा?" बेटे ने आवाज दी तो मेरी तन्द्रा भंग हुई मैंने उसे गले से लगा लिया और पत्नी की ओर प्रेम से देखकर मुस्करा भर दिया।

✍️ प्रवीण राही, मुरादाबाद

बुधवार, 16 सितंबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार प्रवीण राही की लघुकथा - जायज प्रश्न


     बारह साल की रंजना बचपन से जिज्ञासु बच्ची रही है, उसके मां - पापा उसके सभी प्रश्नों  की झड़ी का जवाब प्यार से देते और  समझाते ,साथ ही उसकी  सराहना करते। यही वजह है कि वह अपने कक्षा कि सबसे होशियार बच्ची थी।सभी शिक्षक की लाडली...
रविवार का दिन था, रंजना नियमानुसार सुबह का अख़बार पढ़ रही थी,उसके मां और पापा  बगल में साथ बैठकर चाय पी रहे थे।
तभी रंजना ने  पूछा - '  पापा आप कहते हैं ,माता-  पिता से बड़ा कोई नहीं ...भगवान भी नहीं। पापा यहां अख़बार में लिखा है एक मां अपनी 8 साल की बच्ची को घर में बंद करके अपनी प्रेमी युवक के साथ भाग गई ।फिर हरेक मम्मी पापा अच्छे तो नहीं  ,है ना पापा ।'   कल मैंने पेपर में पढ़ा था की एक पिता ने अपनी बेटी को पैसे की कमी की वजह से किसी को बेच दिया ,पुलिस ने आखिरकार उसके पिता को पकड़ लिया  और जेल भेज दिया, आप कल ऑफिस गए थे इस वजह से  मैं आपसे पूछ नहीं पाई.....
थोड़े देर तक मैं रंजना के इस प्रश्न से डर गया और बुत सा बना रहा.... फिर बोला हां बेटी रंजना, सभी मां -बाप अच्छे नहीं होते, पर ज्यादातर अच्छे हैं बेटी। सामान्यता मां-बाप अच्छे ही होते हैं इसीलिए ये धारणा है मां बाप सबसे उच्च स्थान पर होते है,और मां-बाप अच्छे होने के लिए पहले अच्छा इंसान होना जरूरी है

✍️ प्रवीण राही
मुरादाबाद

शनिवार, 12 सितंबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार प्रवीण राही की कविता ----मन की बात


भाइयों, बहनों, मित्रों
यहां "मन की बात "का तात्पर्य है
केवल स्वयं के मन की बात
क्या मतलब पड़ी है जनाब को
हम जनता के हैं क्या है हालात?
केवल बात बड़ी करने से
कोई कुशल न्यायाधीश नहीं होता
गीता का उपदेश देने से
कोई द्वारिकाधीश नहीं होता
काश ,कुछ वादे जमीनी स्तर के होते
चाहे , उनमें कुछ पूरे होते
कुछ अधूरे भी अंतस को छूते
पर मान गए जनाब
आप हर मुद्दे में हाथ लगाते हैं
फिर लुढ़कते पत्थर सा
खुद ही साबित हो जाते हैं
कुंभकरण की नींद नहीं सो रहे हैं हम
हम लोग बहुत जल्द मिलकर जागेंगे
फिर देखते हैं आप सब किधर भागेंगे
आप जिस थाली में खाते हैं
बंद करें उसमें छेद पे छेद करना
यह देश की  पावन मिट्टी है
 सबको अपने कर्मों को यही है भरना
अब थोड़ा हमारे मन की बात भी कर ले
कई कदम  आप आगे चल रहे हैं
थोड़ा  थम कर हमारे साथ भी चल ले

✍️ प्रवीण राही
मुरादाबाद 244001

गुरुवार, 3 सितंबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार प्रवीण राही की लघुकथा --- विज्ञापन


  बूट प्राइवेट लिमिटेड जूते की नई कंपनी है।अच्छे डिजाइन और क्वालिटी के बावजूद भी उनके जूतों की मांग नहीं बढ़ रही है।इस पर विचार करने के लिए कंपनी के मालिक ने पूरी टीम को मीटिंग के लिए बुलाया .......
अंततः सभी के विचार से यह निष्कर्ष निकला कि,जूते को ब्रांड प्रमोशन की जरूरत है ।कुछ दिनों बाद मालिक ने अपने एक भरोसेमंद कर्मचारी को बुलाकर अच्छे खासे पैसे दिए और साथ ही एक मीडिया वाले को भी पैसे देकर एक डील की.....डील के तहत कल राष्ट्रीय कार्यकर्ता पार्टी के अध्यक्ष अशोक केजरी  रैली निकाल रहे हैं... रैली में भीड़ बहुत होगी और उन कार्यकर्ता पर भीड़ से जूता फेंकना है.... अगले दिन यही हुआ भी, भीड़ से किसी ने कार्यकर्ता पर जूता फेंक कर मारा और वहां खड़ी मीडिया ने उस जूते का कार्यकर्ता के साथ चित्र ले लिया। कई दिनों से टीवी पर यही न्यूज चल रहा है कि राष्ट्रीय कार्यकर्ता पार्टी के कार्यकर्ता पर भीड़ से किसी ने जूता फेंका और जूता बूट कंपनी का है....काफी मजबूत जूता, जिसकी वजह से उनके सिर पर गहरी चोट लगी है।अब इन कुछ दिनों से जूतों की मांग बढ़ गई है और  राष्ट्रीय,अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस जूते को पहचान मिल गई है। अब हर नाप की पहले से ज्यादा कीमत बढ़ा दी गई है...... आखिर मीडिया और कर्मचारी को दिया गया पैसा, आम जनता से निकालना है।

 ✍️ प्रवीण राही
मुरादाबाद

शुक्रवार, 21 अगस्त 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार प्रवीण राही की लघुकथा ---- प्रेमचंद

 
      बस कल ही की तो बात है, जगन ताऊ मेरे पापा के बचपन के घनिष्ठ मित्र लंदन से यहां मेरठ आए।आते ही शाम  को पापा से मिलने घर पर आ गए।
मैं उनके चरण स्पर्श करने आया.... आशीर्वाद लेने के बाद ताऊ जी ने मेरे पढ़ाई लिखाई के बारे में बात की, फिर मुझसे मेरे भविष्य में किसके जैसा बनना है इसके बारे में पूछे.....
मैं बचपन से ही लिखने में ज्यादा रूचि रखता हूं... सो जाहिर सी बात है, अपने उपन्यासकार और कलम के सिपाही मुंशी प्रेमचंद, जिनसे मैं सबसे ज्यादा प्रभावित रहा हूं.... उनके जैसा बनने की  ही इक्षा  जाहिर की।
ताऊ जी  के जाने के बाद पापा मुझ पर झल्लाते हुए कहे, यह क्या बकवास है, गरीब की जिंदगी जीनी है क्या?....
पढ़ लिख कर पैसा कमाने पर ध्यान दो।
दो दिन बाद जब हम सब  परिवार दिल्ली जा रहे थे। तो ट्रेन में किसी साहब को प्रेमचंद जी की किताब गोदान को पढ़ते हुए देखकर पापा ने कहा-  साहब मैंने भी प्रेमचंद जी की बहुत सारी उपन्यास ,नाटक,किताबे पढ़ी  है। कमाल की सटीक पकड़ और नजरिया था उनका, सामाजिक विसंगतियों पर आघात करने का... लगभग 80 साल बाद भी इनको पढ़ने के बाद  ये आज भी सार्थक नजर आते है।
ये सुनकर मेरा निश्चय और भी पक्का हो गया था।।

✍️ प्रवीण राही
मुरादाबाद

गुरुवार, 13 अगस्त 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार प्रवीण राही की लघुकथा - बॉर्डर


बाघा बॉर्डर के मुंडेर पर बैठे दो कौए एक दूसरे से बात कर रहे थे ।पहला  कौआ दूसरे कौए से- " भाई तू ,हमारी तरफ क्यों नहीं आ जाता ?
 क्या ,उस तरफ तुझे कुछ ज्यादा स्वादिष्ट खाना मिल रहा है ?....
दूसरे कौए ने जवाब दिया -  ऐसी कोई बात नहीं .... चलो एक काम करते हैं , महीने के 15 दिन मैं तेरी तरफ और बाकी के 15 दिन तू मेरी तरफ रहेगा। पहले ने कहा ,अगर महीना 31 का रहा तो .....
दूसरे  कौए ने  हस कर कहा -  उस फालतू दिन का बाद में सोचेंगे....
पहला कौआ दूसरे कौए से -  भाई कल तेरी तरफ से ,कई गिद्घ झुंड में हमारी तरफ आए थे .....
तभी बातचीत के दरमियान नीचे तैनात सिपाहियों की बातचीत दोनों कौवों को साफ-साफ सुनाई दी, वो बोल रहे थे -  कोई भी अगर इधर से उधर जाते वक्त दिखे ...तो आदेश है ,देखते ही बिना पूछे भून डालो ।
दोनों कौवों ने डरते हुए एक दूसरे को देख कर  कहा - अच्छा है ,हम पक्षियों के लिए कोई बॉर्डर नहीं ....हमारी तो पूरी धरती भी अपनी और पूरा आकाश भी अपना। जाने इन इंसानों ने धरती कितने भागों में बांट रखी है .....मर कर या मार कर क्या जन्नत में कोई टुकड़ा लेकर जाएंगे।।

प्रवीण राही
मुरादाबाद

बुधवार, 5 अगस्त 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार प्रवीण राही की लघुकथा---------समीक्षा


कवि तिवारी जी ने कवि त्यागी जी से कहा - भाई त्यागी जी इस नव रचनाकार 'बादल ' ने रचनाएं तो अच्छी लिखी हैं ,अपनी नई किताब  'ग्रहण' में।
पर किताब छपवाने से पहले उसने हम दोनों में से किसी से भूमिका नहीं लिखवाई है । मेरे सम्मान को ठेस पहुंचा है।
तिवारी जी ने शर्मा जी से  कहा - आप बताएं क्या चाहते हैं।
शर्मा जी  ने  कहा - तिवारी जी जो आप बड़े समीक्षक हैं ,किताब आने दे फिर लिखने वाला इंसान है ,छापने वाला इंसान है और साहित्य तो महासागर है... कहीं ना कहीं थोड़ी या ज्यादा गड़बड़ी मिल ही जाएगी। इकबाल ,ग़ालिब, कबीर ,कुमार दुष्यंत.........आदि तक ने हल्की-फुल्की  गलती कर दी है  पर ये इतने बड़े नाम हैं कि इन सब बातों को उनकी रचना के भाव की गहराई को देखते हुए हैं नजरअंदाज कर दिया गया और गलतियों को दफ़न कर दिया गया। पर यह तो नव रचनाकार हैं, किस खेत की मूली है.... बस हल्की फुल्की भी गलती रह गई तो धज्जियां उड़ा देंगे ,अपनी समीक्षा में इस महानुभाव की.....
प्रवीण राही
मुरादाबाद

बुधवार, 29 जुलाई 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार प्रवीण राही की लघुकथा--------- - फूल सी बेटी

      
कई बार अखबार पढ़ कर सिहर सा जाता हूं।  बहू बेटियों की अस्मिता घर की चारदीवारी में भी सुरक्षित नहीं हैं। उम्र में बढ़ती बेटी को लेकर कभी कभी मेरे मन में भी बुरे ख्याल आने लगते थे । उसकी सुरक्षा को लेकर मैंने एक युक्ति निकाली।।      एक महीने तक घर में जो भी आगंतुक आए, उनको मैं अपने बागीचे में लेकर जाता और अपनी बेटी को उनकी  फूलों के प्रति व्यवहार को  देखने को कहता।
कुछ आगंतुक फूलों को निहारते,तो कोई दूर से देखता ,कोई देखकर उनकी तारीफ करता ,तो किसी ने फूल तोड़ा और मसलकर खुशबू सूंघी  जबकि किसी ने फूल को टहनी से तोड़कर अपने हाथ में ले लिया, तो किसी आगंतुक ने फूल की तारीफ कर यह कहा यह फूल यूं ही खिलते रहे और आपके उपवन को सुंदर बनाए रखें और तो और उन जनाब ने  मुझसे भी यह  कहा  कि आप भी इन फूलों को छूने की कोशिश ना करें ताकि फूल जब खिले तो पूरा घर उसकी खुशबू से महक उठे। इस तरीके से मेरी बेटी  पूरे महीने लगभग सारे नजदीकियों , रिश्तेदारों के फूलो के प्रति व्यवहार को देखती और परखती रही।एक महीने बाद मैंने बेटी से पूछा कि  इस एक महीने में तुम्हें किसका  कौन सा व्यवहार  सबसे ज्यादा फूलों  के प्रति  उत्तम लगा । बेटी ने दूर से फूलों को निहारने वालों की तारीफ की और उसके व्यवहार को ही उत्तम बताया।
फिर मैंने उसे समझाया  प्यारी बेटी तुम्हें अपने आप को इसी तरीके से फूल  समझना है और  उनके व्यवहार को देखते हुए तुम्हे उनसे नजदीकियां या दूरी बनाकर रखनी है।

प्रवीण राही
मुरादाबाद

बुधवार, 22 जुलाई 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार प्रवीण राही की लघुकथा ---- अंतर्द्वंद्व


      महेश अनपढ़ होते हुए भी अपनी इंसानियतऔर काम के प्रति सजग और ईमानदार था। शायद इसी वजह से पढ़े लिखे लोग भी उसे आदर से नमस्ते करते थे। वह ऑटो चला कर भी अच्छी कमाई कर रहा था।
बिटिया  का विवाह करने के लिए महेश को चार लाख रुपए चाहिए थे। किन्तु उसे समझ नहीं आ रहा था कि कैसे होगी इसकी व्यवस्था?
आज ही काम पर जाने से पहले पेपर में महेश ने पढ़ा - "भागता फिरता इसी शहर गाजियाबाद में छुपा प्रख्यात गुंडा 'आकाश दुबे' जिसकी खबर देने वाले को 4 लाख रुपए का इनाम  मिलेगा...।"
देर रात किसी ने महेश की ऑटो को सुनसान रास्ते पर आवाज़ देकर रोका और किसी जगह तक ले जाने को कहा।
महेश ने कहा, "साहब वहां तक 100 रुपए लगेंगे...काफी सुनसान रास्ता है।"
उस आदमी ने कहा - "200 रुपए ले ले, पर जल्दी चल...।"
रास्ते में थोड़ी रोशनी में उस आदमी की शक्ल पर जैसे ही महेश की नज़र पड़ी  उसकी शक्ल सुबह के अखबार वाले उस गुंडे आकाश दुबे से मिलती हुई लगी...अब महेश के मन में चार लाख घूमने लगा-
"पुलिस को बता दूंगा, इसके उतरते ही। भगवान ने मेरी समस्या सरल कर दी" वह सोच रहा था तभी उसकी नज़र ऑटो में उसके  3 साल के बेटे द्वारा लगाए स्टीकर पर गई जिसपर लिखा था..."हर ग्राहक भगवान का रूप है"
बस जरूरत और आत्मा के अंतर्द्वंद्व में आत्मा फिर से महेश पर हावी हो गई...और उसने इस गुंडे को भी अपना भगवान का एक रूप समझा
लेकिन अगले ही पल उसके विवेक ने आवाज दी, "ईनाम के लिए ना सही लेकिन मानवता के लिए समाज के इस दुश्मन को कानून के हवाले करना भी उसका फ़र्ज़ है। समाज के दुश्मनों का सफाया भी तो भगवान का ही काम है।"
और वह जेब से मोबाइल निकाल कर नम्बर
मिलाने लगा..।


प्रवीण राही
मुरादाबाद

शुक्रवार, 17 जुलाई 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार प्रवीण राही की लघुकथा ----- अंतर


मेरी आंखों के सामने ही,रेंज रोवर गाड़ी चला रहे , किसी बड़ी शख्सियत ने शराब के नशे में सड़क पर लेटे हुए कुत्ते  को कुचल दिया। और तो और गाड़ी से उतर कर मानवता के नाते उस कुत्ते को बचाने की कोशिश भी नहीं की। कुछ दिनों बाद इन्हीं के बारे में पेपर में पढ़ने को मिला, सड़क के किनारे किसी गरीब को इनकी गाड़ी ने कुचल दिया, थोड़े दिन बाद इस मामले से उनको बरी कर दिया गया... क्योंकि उस गरीब के घर वालों ने मुआवजा ले कर अपना केस वापस कर लिया था। शायद इंसानों और जानवरों के बीच यही अंतर है.....

प्रवीण राही

शुक्रवार, 10 जुलाई 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार प्रवीण राही की कहानी ------बदलाव


       सुधीर बाबू- हैलो.... राजू ,काका (माखन लाल) कहां है.. बात करा , उनकी तबीयत तो ठीक है ना। आज पार्क में भी टहलने नहीं आए।।
राजू - जी साहब मैं बाबूजी को आपके कॉल का बता कर आ रहा हूं ,पर साहब सुबह से बाबूजी ने अपने कमरे का दरवाजा नहीं खोला है।
राजू थोड़ी देर बाद आकर फोन उठाया
और बोला
साहब, बाबूजी का कमरा अंदर से बंद है,काफी दरवाजा खटखटाने पर भी कोई सुगबुगाहट नहीं......जाने क्या हुआ... दरवाजा नहीं खोल रहे हैं । साहब आप आ जाए ,मेरी बुद्धि काम नहीं कर रही है।मुझे तो  डर लग रहा है ।
सुधीर बाबू- राजू तुमको याद है, कुछ हुआ हो तो बता....। राजू - बस ,सुबह राहुल भैया का बाबूजी के पास फोन आया और फिर बाबूजी बहुत तेज चिल्ला चिल्ला कर बात कर रहे थे। मानो नाराज हो रहे हो भैया पर।
राजू तू डर मत मैं आ रहा हूं ।
राहुल माखनलाल का इकलौता बेटा है और अपने जॉब की वजह से जम्मू में ही रहने लगा था। माखन लाल कभी-कभी उसके पास आते जाते रहते थे। दो घर छोड़कर ही सुधीर बाबू का भी घर था और माखनलाल और सुधीर बाबू दोनों ही कॉलेज के समय से ही पक्के दोस्त हैं। रिटायरमेंट के बाद दोनों ने आसपास ही घर बना लिया।
जैसे ही सुधीर बाबू घर आए राजू को दरवाजे पर बैठा हुआ पाए।
तेजी से सुधीर  बाबू माखन के कमरे की ओर गए और दरवाजे को जोर जोर से खटखटाया ,पर अंदर से कोई आवाज नहीं आने पर राजू और सुधीर बाबू ने मिलकर दरवाजे को तोड दिया । सामने पंखे से लटके माखनलाल ......माखन...कहते हुए दौड़कर गोद में सुधीर बाबू ने उठा लिया और माखन को  सहारा दिया। राजू और सुधीर बाबू  ने मिलकर माखन बाबूजी को  नीचे उतारा। माखन लाल की सांसे चल रही थी ,मानो आत्महत्या की कोशिश थोड़ी देर पहले की गई हो ...राजू दौड़ कर रसोई से पानी लेकर आया , बाबूजी को पानी पिलाकर ,आंखों पर पानी कि  छिंट मारी। सुधीर बाबू उनके सिरहाने बैठ गए और राजू पैर के पास...बिछावन के नीचे।
कुछ 15 मिनट बाद बाबूजी रोते रोते बैठ गए और सुधीर को जोर से से गले लगा कर फुट  फुट कर रोने लगे ।सुधीर बाबू ने राजू की तरफ इशारे में कमरे से बाहर चले जाने को कहा। क्या हुआ ....माखन ,क्या बात हो गई ....बच्चे की तरह क्यों हो रहा है ,बात बता । माखन - राहुल ने शादी कर ली है और वो भी दूसरे जाति की लड़की के साथ और शादी के बाद मुझे फोन करके बताया। मेरी सारी आज तक की इज्जत उसने एक झटके में खत्म कर दिया,...दोस्त। क्या शक्ल लेकर  मैं तुझसे मिलने आता,कैसे अब बाहर घूम सकता हूं। आज तक सर उठा कर जिया हूं ।पर,राहुल ने सब खत्म कर दिया । अब सगे संबंधियों को भी क्या जवाब दूंगा।लोगों के ताने सुनने पड़ेंगे। उसके मां के बाद इसे मा बाप दोनों का प्यार  दिया है मैंने। जाने क्या कमी रह गई। तू ही बता दोस्त ,मरू नहीं तो और क्या करू।
सुधीर ने माखन से-  अगर तू मुझसे पूछ रहा है तो मै बोलता हू।  तू तो पहले कहानी में  या फिल्मों में अगर ऐसा कुछ पढ़ते या देख लेते थे तो बुरा नहीं मानते थे। खुद ही कहते थे कि जात पात से हमें ऊपर उठकर अब सोचना है ,जीना है । अब फिर ...अब ऐसा क्यों ...क्यों? क्यों इस बदलाव को स्वीकार नहीं कर पा रहे हो। घर की बहू है  वो और मुझे भरोसा है,जैसा राहुल पढ़ा लिखा है.. लड़की भी पढ़ी लिखी होगी ,संस्कारी होगी ।जाओ मिलो और अपनाओ उनको।  एक नई रोशनी फैलाओ और एक नया उदाहरण पेश  करो । पता है माखन -  *हमें बदलाव* *पसंद है पर अपने घर से* *नहीं* ...बस यह सुनते ही माखन के अंदर हिम्मत आ गई......, आंखों में एक बदलाव से लड़ने की हिम्मत । और सुधीर ने एक बात और कहा -  दोस्त माखन याद है मुझे (अच्छी तरीके से ) पार्क में तुमने ही अभिनेता  सुशांत कि  आत्महत्या पर कहा था, जिंदगी में  कोई भी ऐसी परिस्थिति नहीं जिसका  आत्महत्या  उपाय हो.... फिर अपनी बात से तुम कैसे पलट सकते हो? जो आदर्श तुमने मानसिक स्तर पर रखे है,उसे वास्तविक भूमि पर भी फलीभूत करों,दोस्त....

प्रवीण राही
मुरादाबाद

बुधवार, 1 जुलाई 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार प्रवीण राही की कहानी ---- नाम

   

        कमल ने अपनी पत्नी जया, दो बच्चों और माँ-पापा के साथ नया मकान किराए पर लिया। पापा-मम्मी दोनों ही की तबीयत ठीक ना होने की वजह से, कमल ने अपना काम घर से ही करना शुरू कर दिया था।
कमल अपनी व्यस्तता की वजह से बाजार  से सब्जी नहीं ला पाता था।
जया भी अपने ऑफिस से  काफी लेट आती। जया ने घर आते ही कमल से कहा,  "आप ज्यादातर घर पर ही रहते हो, सब्जी लेकर आ सकते हैं।"
कमल ने सवाल किया, "तुम क्यों नहीं लेकर आती?"
"क्या कह रहे हो आप ? सब्जी का थैला इतना ज्यादा भारी हो जाएगा, मैं कैसे बाजार से यहां तक लेकर आऊंगी।" जया ने जवाब दिया।
दोनों के बीच की बहस को देख-सुनकर बीमार पापा ने कहा, "तुम दोनों मत जाओ, मैं खुद ही जाकर सब्जी लेकर आजाऊँगा।"
"नहीं पापा मैं कुछ रास्ता निकलता हूं। आप इतना भारी थैला कैसे लेकर आ सकते हैं?" ऐसा कह कर जया कि तरफ कमल ने तिरछी निगाहों से देखा....।
काम की व्यस्तता, घर के सारे सदस्यों की अपेक्षाओं के बीच समझदारी और तालमेल नहीं बना पाने की वजह से कमल बहुत ज्यादा चिड़चिड़ा हो गया था।
अगले दिन जया के ऑफिस जाने के बाद , लगभग 12:00 बजे कमल को सब्जी वाले की आवाज सुनाई दी। कमल बालकोनी में आया.., "भैया!!, सब्जी वाले भाई, रुक जाना सब्जी लेनी है..।"
"जी साहब आ रहा हूं मैं, आपके मकान के नीचे..।" सब्जी वाला मुस्कुराकर बोला।
"आलू ,प्याज ,टमाटर ...इन सब का भाव बताओ", कमल ने पूछा।
सब्जी वाले के कहे भाव को सुनकर कमल ने कहा,  "अरे तू तो बहुत ज्यादा भाव बता रहा है। लूट मचा रखी है तुम जैसो ने, देना है तो सही भाव में दे वरना खिसक ले।"
"नहीं साहब मंडी से बस हर किलो पर तीन रुपए ज्यादा ले रहा हूँ। आप चाहो तो मालूम कर लो..., साहब यह भी तो देखो धूप में घूम रहा हूं।", सब्जी वाला सफाई देता हुआ बोला।
 "मै तुम जैसों के मुंह नहीं लगता। सब्जी दे और पैसे लेकर खिसक ले । और सुन,हर रोज इसी समय पर आ जाया कर", कमल ने बहुत रुखेपन से कहा।
"जी ...जी साहब!!
साहब आपको जो सही लगे पैसे दे देना", सब्जी वाले ने प्यार से कमल को कहा। पर कमल का रुखा व्यवहार हर रोज बढ़ता ही जा रहा था।
रविवार का दिन था ,जया घर पर ही थी सब्जी वाले ने घंटी बजाई। कमल- जरूर सब्जीवाला होगा। कमल जया दोनों बालकनी में गए।
आ गया तू ,वहीं रुक और सुन घंटी एक ही बार बजाया कर। हमें तेरा समय पता है", कमल ने चिढ़कर कहा।
"कमल रहने भी दो", जया ने टोका।
दोनों साथ नीचे गए।
"भैया क्या नाम है आपका?" जया  ने मुस्कुराकर पूछा। 
"दीदी, मेरा नाम गणेश है", सब्जी वाले ने धीरे से कहा।
"भैया आप अपना मोबाइल नंबर दे दो, हम सब कल बाहर जा रहे हैं... वापिस आते ही कमल आपको फोन कर देंगे। फिर आप सब्जी देने आ जाना", जया ने कहा।
सब्जी वाले ने जया को कहा - "जी दीदी।" गणेश नाम सुनकर राहुल का व्यवहार उस दिन सब्जी वाले के साथ थोड़ा मधुर था, और उस दिन उसने सब्जी वाले को आप कह  कर बोला।
कुछ दिनों बाद जब जया ,कमल सहित पूरा परिवार शहर वापस आए तो कमल ने सब्जी वाले को फोन किया,  "भैया गणेश जी आप सब्जी देना आ जाओ।"
"साहब मैंने आप सबके आशीर्वाद से  छोटी सी सब्जी दुकान खोल ली है ।आपके घर के पीछे वाली गली में  ही है। गेट से शायद पचास कदम दूर ही होगा...., साहब आप मेहरबानी कर यहीं आ जाइए", उधर से सब्जी वाले कि आवाज आई।
शाम होते ही कमल उस दुकान पर गया। कमल सब्जी वाले से -  "कैसे हो गणेश भैया?"
सब्जी वाला -  "ठीक हूं साहब ,और आप और दीदी..?"
कमल - "हम भी बढ़िया। बधाई हो गणेश भैया, अब धूप से बचोगे। एक जगह बैठकर बेचना है सब्जी।अच्छी है तरक्की...."
तभी बगल में एक साहब आए,बोले - "वालेकुम सलाम मियांं,अब्दुल।"
सब्जी वाला - अस्ससलाम वालेकुम आरिफ़ भाईजान सब खैरियत।"
"साहब इनका नाम गणेश है।"कमल ने  बीच में कहा उसे समझ नहीं आ रहा था। 
वे दोनों एक दूसरे को हतप्रभ होकर देखने लगे।
"भैया क्या नाम है आपका?", आरिफ ने भी चौंक कर पूछा।
"साहब आप दोनों माफ करे, मेरा नाम जॉन है। पर साहब मेरा नाम आप सब ने जब अपने भगवान, खुदा के नाम पर सुना तो फिर मै आपके रूखे व्यवहार से, गाली-गलौज से बच गया। अब आप सब मुझसे प्यार और आदर से पेश आते हैं।" सब्जी वाले ने धीरे से कहा।
ऐसा सुनकर कमल और आरिफ़ दोनों ने अपनी नजर शरम से झुका लीं।
"भैया जॉन माफ करना हमें" दोनों के मुँह से एक साथ निकला।


✍️  प्रवीण "राही"
मुरादाबाद

मंगलवार, 23 जून 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार प्रवीण राही की कहानी -----मापदंड


स्नेहा - मां देखना, गेट पर किसी ने घंटी बजाई है। मैं नहा कर आ रही हूं। मां - और कौन होगा, महारानी आई होंगी। कल आधे घंटे लेट थी, और आज एक घंटे । मां-  स्नेहा ,बेटा संभल के बाथरूम में जाना।स्नेहा - ठीक है मां। मां गेट खोलते ही,स्नेहा महारानी शशि आई है। शशि - नमस्ते आंटी, पर आंटी ने कोई जवाब नहीं दिया। आने दे  स्नेहा को वही तुझसे बात करेगी....
स्नेहा नहाकर जब बाहर आई। शशि-  दीदी नमस्ते । स्नेहा - नमस्ते शशि, कैसी है? और शशि हर दिन तू आधे घंटे  ज्यादा लेट होते जा रही है । शशि - ओ दीदी, आपको तो पता है ना मेरा पांचवा महीना चल रहा है,पैदल ज्यादा तेज नहीं चल पाती। इसलिए ज्यादा समय लग जाता है,और ऑटो वाले आने आने का 100र लेते है,सारी कमाई आने जाने में ही खर्च हो जाएगी।अच्छा ठीक है... मुझे ऑफिस जाना है, जल्दी खाना बना दे और हां बर्तन बाद में धोना....
स्नेहा - मां  आप शशि को ,राहुल के मेरे और अपने तीनों के कपड़े धोने को  दे दो...
मां- इस सप्ताह तो महारानी शशि ने एक बार भी कपड़े नहीं धोया,जबकि महारानी ने बोला था दो बार तो हर हप्ते कपड़े धो देंगी....। शशि - धो दूंगी दीदी,आंटी दे दो.....सारे कपड़े। दीदी एक बात कहूं....स्नेहा - हां बोल, बस कुछ भी बोल पर छुट्टी मत मांगना। तू तो दूसरी बार मां बन रहीं है पर मेरा पहला है। मुझे किसी तरह की कोई परेशानी नहीं चाहिए,और हा समय पर आ जाया कर। शशि - दीदी ,बस कल डॉक्टर को दिखाने जाना है ।अकेले ही जाऊंगी ....आपको पता है ना मेरे पति का पैर जब से ऐक्सिडेंट में कटा सारा काम मेरे ही माथे है।  कल 3:00 बजे दोपहर तक आ जाऊंगी ,दीदी । स्नेहा - देख , बार-बार बोलना सही नहीं लगता, तू नहीं आती है तो घर की पूरी व्यवस्था गड़बड़ हो जाती है ।तुझे पता है ना.. मेरा भी दूसरा महीना चल रहा है... ऐसा मत किया कर। और हां ...ज्यादा छुट्टी करेगी तो मैं , सुशीला और रीता  हम तीनों ही तेरी जगह किसी और को रख लेंगे... फिर मत मेरे पास आकर रोना, याद है ना तुझे दो साल पहले , जब तू मेरे पास आ कर रोने लगी थी... मेरे कहने पर ही उन्होंने भी तुझे दोबारा रखा था।
शशि - ना दीदी, ना ना ऐसा मत करना।।
मां - स्नेहा बेटा ,रीता का कॉल आ रहा है।
स्नेहा -  फोन देना मां। स्नेहा- हैलो ,रीता ... हैलो, बोल कैसी है.... काफी दिनों बाद कॉल किया
रीता - ठीक हूं बस व्यस्त थी,शशि को बोल देना तेरे पास से जल्दी आ जाएगी मेरे पास। एक बात बता....
स्नेहा - हां बोल
रीता - सुशीला बोल रही थी ,खुशखबरी है।
स्नेहा - हां यार, मैं आज तुझे जरूर बताती .... दूसरा महीना चल रहा है। छह-सात महीने में तू मौसी बन जाएगी। ऑफिस जा रही हूं, लेट हो रहा है रीता... बाद में बात करूंगी
रीता- अब ऑफिस क्यों जा रही है, पगली....
स्नेहा - बस आज ऑफिस जा रही हूं, ऑफिस वाले तो छह महीने की प्रेग्नेंसी पर छुट्टी दे रहे हैं। सरकार का नियम है, छह महीने की छुट्टी मिल सकती है प्रेग्नेंसी पर । पर बहन रीता मुझसे नहीं हो पाएगा..... और काम। दूसरा महीना है ,अब आराम चाहिए, बहुत मुश्किल है मां बनना। मैं अब कल से काम पर नहीं जाऊंगी।अच्छा बहन चल बाय,रखती हूं काल.....
रीता - बाय,स्नेहा,ध्यान रख अपना...।
शशि, रीता और स्नेहा दीदी बातों को सुनकर यह नहीं समझ पा रही थी की
ये लोग भी उसे औरत समझती हैं या नहीं...???

✍️ प्रवीण राही
मुरादाबाद 

बुधवार, 10 जून 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार प्रवीण राही की लघुकथा -------- रोटी


कुसुम और उनके पति मयंक का मानना है कि उनके जीवन में समृद्धि और शांति तब से ज्यादा शुरू हुई जब से उन्होंने रात में एक रोटी गली के कुत्ते को खिलाना शुरू किया । गली के उस कुत्ते का नाम उन्होंने टोनी रख दिया था।टोनी भी उनकी आवाज़ पहचानता था। कुसुम- मयंक के रोटी रखते ही और आवाज़ लगाते ही टोनी  भागकर आता और रोटी  उठा ले जाता। यह सिलसिला पिछले कई महीने से निरंतर चल रहा था ।
  एक रात कुसुम-मयंक के आवाज लगाने पर जब काफी देर तक टोनी नहीं आया तो उन्होंने रोटी गेट के बाहर रख दी और गेट बंद करके चले गए । उनके अंदर जाते ही उन्हें भौं भौं की आवाज सुनाई दी । वे समझ गए कि टोनी आ गया है ।
 अब  यह रोज की बात हो गई। वह रोटी गेट के बाहर रखकर टोनी को आवाज़ लगाते और गेट बंद करके चले जाते । उनके जाते ही भौं भौं की आवाज आती । रोज की तरह आज भी रात को जब वह रोटी रख रहे थे , तो एक सज्जन ने उन्हें आवाज़ लगाई और पास आकर कहा-  मैं आपके सामने  रहता हूं। आप अब रोटी यहां मत रखा कीजिये । आप की रोटी खाने वाला लड़का अब नहीं रहा.......  कल रात आपकी रखी रोटी  लेकर जैसे ही वह झूमता हुआ सड़क पार कर रहा था वैसे ही तेजी से आते एक ट्रक ने उसे टक्कर मार दी और उसने दमतोड़ दिया। यह सुनकर हतप्रभ मयंक और कुसुम उसका मुंह देखने लगे  । मयंक ने कहा - भाई साहब ,हम तो रोटी टोनी के लिए रखते थे । सज्जन ने कहा-  टोनी तो दस दिन पहले ही ऐक्सिडेंट में मर चुका है। कुसुम बोली -पर भाई साहब , कुत्ते की आवाज........!! उन सज्जन ने कहा-  कोई बड़ी बात नहीं बहन,पेट क्या नहीं कराता,कला या तो जरूरत से या शौक से उपजती है ....और .....यह तो बात रोटी की थी.....
   
 ✍️ प्रवीण राही
एनसी 102,रेलवे कॉलोनी
         मुरादाबाद, यूपी
  मो. (8860213526,8800206869)

शनिवार, 23 मई 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार प्रवीण राही की लघु कथा -- आचरण


    पचास किलोमीटर के क्षेत्रफल में धनिया जैसा बेहतर कोई और मूर्तिकार नहीं था।धनिया की बनाई मूर्ति मां सरस्वती ,गणेश-  लक्ष्मी, मां काली की प्रतिमा साक्षात जीवंत सी जान पड़ती थी...। आसपास का कहना था कि मां सरस्वती ने उसे ही नहीं बल्कि उसके पूरे खानदान को यह वरदान दिया है कि जिस पत्थर या मिट्टी को वो गढ़ दे उसमे साक्षात देवी वास कर जाएगी।उसका पूरा खानदान इसी पेशे में कई दशक से लगा हुआ था, हां यह सत्य है कि जितनी शोहरत, पैसा धनिया ने कमाया उतना उसके पूर्वजों ने नहीं...

पर जाने क्यों उसके अब अभागे दिन आ गए हैं,  दो साल से कोई भी मूर्ति नहीं बिकी। लोगों का कहना है अब धनिया तेरे हाथ में वह बात नहीं रही...
घर में पैसे आने बंद हो गए हैं और घर में  रोज कलह होने लगी ।
धनिया की पत्नी मुनिया ने अंदर से आवाज लगाई-   सुनो जी अंदर आओ.....जल्दी....मां की प्रतिमा कैसे खंडित हुई ,तुमने तो कल ही बनाई थी ...हमने तो छुआ भी नहीं ,यहां तो हवा भी नहीं आती । मुझे तो लगता है कि जरूर कोई अपशगुन है।
 हे.... हे... मां मां .. माफ करो कुछ गलती हुई जाने अनजाने में.
धनिया की बेटी मुन्नी ने कहा-  बाबा आप तो मां लक्ष्मी की मूर्ति बनाते हो, इतनी सुंदर ,फिर भी हमारे पास पैसे की तंगी.. क्यों बाबा, क्यों??
धनिया जोर जोर से रोने लगा.. मां ....मां... मां माफ करो मां .....।
बिना खाना खाएं वह उस रात जल्दी सो गया।
देर रात महालक्ष्मी उसके सपने में आईं औऱ बोलीं  - बेटा धनिया तुमने अपने काम का  अनादर किया है। घमंड में आकर मदिरा का सेवन करते हुए तुम मूर्ति बनाते हो उस समय तुम असलियत में तुम नहीं होते,तुम्हारी नजर में भी वो बात नहीं होती.....
नशे में चूर तुम मुनिया को मारते पीटते हो ,गाली गलौज करते हो,और वह भी बेटी के सामने.....
 अरे मूर्ख ,देवी की प्रतिमाएं बनाता है और नारी का अपमान करता है। कर्तव्य का आचरण से सीधा संबंध है ।यह कहकर मां अंतर्ध्यान हो गई। सुबह उठते ही धनिया अपनी पत्नी का पैर पकड़कर माफी मांगने लगा और कहा - मुनिया तुझ पर जितनी बार हाथ उठाया मुझे उससे ज्यादा मार पर माफ कर दे...माफ कर ...माफ कर,कह कर रोने लगा
 "घर की देवी है तू,उसका अपमान देवी का अपमान ,फिर मूर्ति में कैसे लाऊं जान"

प्रवीण राही
Nc-102, मुरादाबाद
मो.नो.- 8860213526,8800206869

गुरुवार, 14 मई 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार प्रवीण राही की लघु कथा ------ नारी सशक्तिकरण


मानसी त्यागी बहुचर्चित, सुप्रसिद्ध लेखिका है। अभी कल की ही बात है, अपनी किताब "नारी सशक्तिकरण" के लिए साहित्य अकादमी से नवाजी गई हैं।
मानसी के पति आलोक सफल व्यवसाई हैं। व्यवसाय के क्षेत्र में उन्होंने कई बार अवार्ड लिया है।
मानसी के मोबाइल पर एक कॉल आता है
.... हैलो , हेलो मैम....जी बताएं, कौन?
मैम बधाई,मै सूरज बोल रहा हूं....
आपके सम्मान में हमने कल एक कार्यक्रम आयोजित किया है।
आप आए और अपने अनुभव को युवा पीढ़ी के साथ साझा करे....मैम आप अपने पति को भी लाए,सम्मान हमने आपके पति से दिलवाने को सोचा है।
कल सुबह 9 बजे मैम ।
जी भाई ,बिल्कुल,मै समय पर आ जाऊंगी।
रात होते ही खुशी से झूम रही मानसी ने अपने पति से कहा..... आप सुनकर खुश हो जाएंगे,कल मेरा सम्मान समारोह है। और यह सम्मान आपके द्वारा ही देने का निर्णय लिया गया है।
आप साथ चलेंगे ना.....
आलोक-  मैंने कई बार कहा, यह लिखना बंद करो ₹25000 की पुरस्कार से ज्यादा खुश ना हो। मेरे साथ काम कर लेती तो अच्छी खासी आमदनी हो जाती, पर लिखने की ज़िद...
मुझे फुर्सत नहीं है मेरा कल एक बिजनेस डील है...
और हां याद रखना समय पर घर आ जाना। कल रात मेरे 4-5 दोस्त घर आएंगे,खाना बनाकर रखना .....स्वादिष्ट
। आलमिरे में ऊपर के हिस्से में शराब की बोतल है,वो भी ग्लास में हमें  देना।
अब सो जाओ,मुझे जल्दी काम पर जाना है....उदास मानसी
समझ नहीं पा रही थी क्या कहे क्या नहीं....पूरी रात यही सोचती रही "नारी सशक्तिकरण "पर लिखी किताब और उसका सम्मान सब बेमानी सा लग रहा है.............
प्रवीण राही

गुरुवार, 7 मई 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार प्रवीण राही की लघु कथा ----मां की पीड़ा


अपने 16 साल के  हंसमुख चिंटू की उदासीन,हताश पूर्ण बातोंं को सुनकर मांं मुखी के पैरोंं तले जमीन खिसक गई।.... मांं मैंं हार गया, तुमने मुझे बर्तन,झाड़ू पोछा कर पापा के जाने के बाद पाला,पढ़ाया,याद है मेरे बारहवीं मेंं 94 प्रतिशत नम्बर आने पर तुमने अपनी औकात से ज्यादा मिठाइयां बांटी थी।मै एक जॉब भी नहीं ढूंढ पा रहा,निरर्थक है ये पढ़ाई,अच्छा होता मुझे भी तू झाड़ू पोछा सिखा देती या कूड़ा उठाना,कुछ तो कमा ही लेता।बिना जुगाड़,या सिफारिश के जॉब बहुत मुश्किल है, मैंं  हार गया मांं मांं, कहकर बिना खाए चिंटू सो गया।मै पत्थर सी उसकी बातोंं को सुनती रही।जिद्दी है अपने बाप की तरह,महत्वाकांक्षी भी ........
सहसा मुखी दौड़ी,उसके जेब को टटोला।दिमाग में कुछ ग़लत ख्याल चल रहे थे, हाथ में एक कागज कुछ लिखा हुआ मिला.... हे भगवान (कुछ अनर्थ ना हो) बुदबुदाई।रात के 10.30 बजे हैंं क्या करूंं ,किससे पढ़वाऊंं,क्या लिखा है इस पर......
मुखी घर से बाहर निकल सड़क पर भागी,एक बुजुर्ग को देख - भाई जरा पढ़ो इस कागज पर क्या लिखा है ....
रुको बहन पढ़ता हूं - मत घबराओ,इस पर   कंपनी के पते लिखे हैंं।
बुजुर्ग ने कहा - मै तुम्हारी पीड़ा समझ सकता हूं, मुझ अभागे के बेटे ने ऐसे ही कागज पर कुछ लिख अगले दिन अपनी आखिरी सांस ली।
बहन हर बच्चा कमजोर नहीं होता।ये सुन बस मुखी के आंखो के अंदर का छुपा समंदर बस उफान मारने लगा।

प्रवीण राही