मंगलवार, 20 अक्तूबर 2020

मुरादाबाद मंडल के अफजलगढ़ (जनपद बिजनौर)निवासी साहित्यकार डॉ अशोक रस्तोगी का गीत उन्हीं की हस्तलिपि में -अनजाने शहर में


 

मुरादाबाद के साहित्यकार ( वर्तमान में आगरा निवासी ) ए टी ज़ाकिर की कविता उन्हीं की हस्तलिपि में -लेने का देना





 

मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर की रचना उन्हीं की हस्तलिपि में




 

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार ओंकार सिंह विवेक की ग़ज़ल उन्हीं की हस्तलिपि में ---जीवन में गम आने पर जो घबरा जाते हैं ,उनको हासिल खुशियों की सौगात नहीं होती ....


 

सोमवार, 19 अक्तूबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार राजीव प्रखर का मुक्तक उन्हीं की हस्तलिपि में


 

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश के चार दोहे उन्हीं की हस्तलिपि में ...


 

मुरादाबाद के साहित्यकार अनुराग रोहिला का गीत उन्हीं की हस्तलिपि में


 

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार सन्तोष कुमार शुक्ल सन्त का गीत उन्हीं की हस्तलिपि में ----कौन किसको पूछता है ,स्वार्थ के सम्बंध सारे .......


 

मुरादाबाद मंडल के बहजोई (जनपद सम्भल ) निवासी साहित्यकार दीपक गोस्वामी चिराग की गजल उन्हीं की हस्तलिपि में -- नशीली सी मदमस्त दरियाई आंखे, उन्हीं में सदा डूबना चाहता हूं ......


 

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार मरगूब अमरोही की रचना उन्हीं की हस्तलिपि में ---मोबाइल


 

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ शोभना कौशिक की रचना उन्हीं की हस्तलिपि में


 

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही का गीत उन्हीं की हस्तलिपि में ----अमर शहीदी लाशों पर चढ़कर आजादी आयी है ....


 

मुरादाबाद के साहित्यकार श्री कृष्ण शुक्ल की रचना उन्हीं की हस्तलिपि में .....


 

मुरादाबाद मंडल के जनपद सम्भल(वर्तमान में मेरठ )निवासी साहित्यकार सूर्यकांत द्विवेदी की कविता उन्हीं की हस्तलिपि में


 

रविवार, 18 अक्तूबर 2020

संस्कार भारती मुरादाबाद महानगर के तत्वावधान में रविवार 18 अक्टूबर 2020 को मातृ शक्ति विषय पर संस्कार भारती साहित्य समागम का आयोजन किया गया । बाबा संजीव आकांक्षी के मुख्य आतिथ्य में आयोजित इस कार्यक्रम में साहित्यकारों अशोक विश्नोई, योगेंद्र वर्मा व्योम, मुजाहिद चौधरी, राजीव प्रखर, डॉ रीता सिंह, इशांत शर्मा ईशु, नृपेन्द्र शर्मा सागर, आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ, इंदु रानी और ठाकुर अमित कुमार सिंह की काव्य रचनाएं ------



          माँ अष्ठ भुजा धारी,
          करें शेरों की सवारी ।
          श्रद्धा भक्ति और विश्वास
          मेरी यही अरदास ।
          बाकी सब बेकार,
          करो माँ इसे स्वीकार।
          दुनियां तुम पर बलिहारी,
          माँ अष्ठ---------------।
          करे मेहर की जो छाया,
          कुंदन बन जाती काया।
          भागे दूर सभी अंधियारा,
          फैले चारों ओर उजियारा।
          संकट कट जायें सब भारी,
          माँ अष्ठ-----------------।
          संसार की तुम चालक,
          भक्तों की तुम पालक ।
          जो भी तुम को पुकारे ,
          होते उसके वारे न्यारे ।
          होती जब कृपा तुम्हारी,
          माँ अष्ठ------------------।
                             
✍️अशोक विश्नोई, मुरादाबाद
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किसको चिंता, किस हालत में
कैसी है अब माँ

सूनी आँखों में पलती हैं
धुँधली आशाएँ
हावी होती गईं फर्ज पर
नित्य व्यस्तताएँ
जैसे खालीपन कागज का
वैसी है अब माँ

नाप-नापकर अंगुल-अंगुल
जिनको बड़ा किया
डूब गए वे सुविधाओं में
सब कुछ छोड़ दिया
ओढ़े-पहने बस सन्नाटा
ऐसी है अब माँ

फर्ज निभाती रही उम्र-भर
बस पीड़ा भोगी
हाथ-पैर जब शिथिल हुए तो
हुई अनुपयोगी
धूल चढ़ी सरकारी फाइल
जैसी है अब माँ

✍️योगेंद्र वर्मा व्योम, मुरादाबाद
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लोरियां मुझको सुनाएगी तो नींद आएगी ।
मां तू सीने से लगाएगी तो नींद आएगी ।।
अपने हाथों में छुपा कर के मेरे चेहरे को ।
अपने पहलू में सुलाएगी तो नींद आएगी ।।
फिरसे परियों की कहानी भी सुनाना तू मुझे ।
मुझको चंदा तू दिखाएगी तो नींद आएगी ।।
मुझको बरसों से मयस्सर नहीं कोई चैनो सुकूं ।
अपने दामन में छुपाएगी तो नींद आएगी ।।
तेरी आवाज़ को सुनने को मैं तरसूं कब तक ।
जब कोई गीत सुनाएगी तो नींद आएगी ।।
मैंने मुद्दत से कोई ख़्वाब नहीं देखा है ।
ख्वाब आंखों में सजाएगी तो नींद आएगी ।।
मैं हूं अनजान तू नाराज़ है आखिर क्यों कर ।
जब सज़ा कोई सुनाएगी तो नींद आएगी ।।
कैसे भूलेगा मुजाहिद वो मोहब्बत का सफ़र ।
फिर से सब याद दिलाएगी तो नींद आएगी ।

✍️ मुजाहिद चौधरी , हसनपुर अमरोहा
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हरे-भरे कलरव से गुंजित, प्यारा सा संसार मिला।
घोर अकेलेपन से लड़कर, जीने का आधार मिला।
बरसों से सूनी बगिया में, ज्यों ही पौध लगाई तो,
मैंने पाया मुझको मेरा, बिछुड़ा घर-परिवार मिला।
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दोहे
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सीपी बोली बूंद से, ओ कणिका नादान।
आकर मेरे अंक में, ले जा नव-उन्वान।।

पुतले जैसा जल उठे, जब अन्तस का पाप।
तभी दशहरा मित्रवर, मना सकेंगे आप।।

इधर धरा पर हो रहा, बेटी का अपमान।
उधर गगन में गूंजता, माता का गुणगान।।

क्या तीरथ की कामना, कैसी धन की प्यास।
जब बैठी हो प्रेम से,  अम्मा मेरे पास।।

✍️- राजीव  'प्रखर',मुरादाबाद
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भव्या अभव्या भाव्या भवानी
भवमोचिनी हो तुम्हीं भाविनी ,
चितिः चिता और चित्तरूपा
सर्वास्त्रधारिणी सत् - स्वरूपा ।

काली कराली कौमारी कुमारी
क्रिया क्रूरा कात्यायनी कैशोरी ,
बुद्धिदा बहुला ब्राह्मी बहुलप्रेमा
अनेकशस्त्रहस्ता अमेयविक्रमा ।

युवती यतिः प्रौढ़ा अप्रौढ़ा
आद्या अनन्ता अनेकवर्णा ,
सती साध्वी सत्या सावित्री
मनः मातंगी मधुकैटभहन्त्री ।

सर्वविद्या सुता सर्वदानवघातिनी
महाबला तुम अनेकास्त्रधारिणी ,
पाटलावती पटांबरपरिधाना
सर्वशास्त्रमयी सर्ववाहनवाहना ।

तुम्हीं कालरात्रि तपस्विनी नारायणी
रूप अनेक हैं तुम्हारे जगतारिणी ,
ध्यान तुम्हारा हम करें कल्याणी
सदा पार लगाना हे दुखहारिणी ।

✍️डॉ. रीता सिंह, मुरादाबाद
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घर से जब भी निकलता हूँ तुम्हे ही याद करता हूँ,

सभी मुश्किल राहों को मैं आसान करता हूँ,

तुम्ही चाहत तुम्ही हिम्मत तुम्ही हो जिंदगी मेरी,

तुम्हे ही याद करता हूँ तुम्हारी बात करता हूँ,

✍️इशांत शर्मा ईशु, मुरादाबाद
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हाँ मैं एक औरत हूँ जो हमेशा औरों में ही रत हूँ।
सारे संसार का अस्तित्व मुझसे है ।
लेकिन मैं खुद के अस्तित्व से ही विरत हूँ।
हाँ हाँ मैं एक औरत हूँ।।

मैं बेटी हूँ ,बहन हूँ  ,पत्नी हूँ  मैं माँ हूँ।
मैं सृस्टि कर्ता हूँ जन्मदात्री हूँ।
मैं हमेशा प्यार, वात्सल्य एवं ममता लुटाती हूँ।
हाँ मैं एक औरत हूँ।

मेरे बिना कल्पना भी नहीं इस संसार की।
मैं ही धुरी हूँ हर तरह के प्यार की।
मै त्याग और बलिदान की मूरत हूँ।
हाँ हाँ मैं एक औरत हूँ।।

मैं औरों में रत हूँ सबके लिए जीती हूँ।
अपने हर आँसू को अमृत मानकर पीती हूँ।
कभी पिता का मान,
कभी पति का अभिमान।
कभी बेटे के सुख में निहित हूँ।
हाँ हाँ मैं एक औरत हूँ।।

क्या कोई समझ पायेगा औरत होने का सही अर्थ।
क्यों कर लेती है वह निज जीवन को व्यर्थ।
क्यों सदा वह बस औरों में रत है।
क्योंकि वह एक माँ हैं,
हाँ हाँ वह एक औरत है।।

✍️नृपेंद्र शर्मा "सागर",ठाकुरद्वारा
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केवल शब्द नही है ‘माँ’ बल्कि बालक का पूरा संसार है।
जिससे उत्पन्न हुआ ये जग सारा ‘माँ’ ऐसा अलौकिक अवतार है।
जब -जब धरती पर आए प्रभु तो उन्होंने भी माँ के है पाँव पखारे
उसकी गोद मे खेले है, स्वयं जगदीश्वर जो स्वयं जगत के पालनहार है।
माँ न होती तो जीवन कहाँ से पाते, उसकी ममता की छाया बिना कैसे पल पाते।
ममता और त्याग की मूरत है माँ, धरती पर प्रथम गुरु की सूरत है माँ।
जो जीवन जिये वो ‘श्रेष्ठ’ हो कैसे, हमको बताती हमारी है माँ।
प्रेम में ही नही दण्ड में भी दिए ‘माँ’ के वरदान है।
अगर कैकयी न भेजती वन राम को, तो क्या कोई कहता भगवन राम को।
केवल जीवनदाता नही अपितु भाग्यविधाता भी है माँ ।
जो न पूजे माँ को उसे धिक्कार, उसका जीवन जीना ही बेकार है।
त्रिलोक की वैभव सम्पदाओं से भी बढ़कर ‘माँ’ का प्यार है।

✍️आवरण अग्रवाल “श्रेष्ठ”
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मैं मानू नौराते उस दिन,
जब नारी उत्पीड़न रुक जा।
करू मैं दीप प्रज्जवलित दिलसे,
जब दुष्टों का सर झुक जा।।

क्या ठोकू मैं ताल भजन की,
जब मैया मूँदें आँखे पड़ी।
करू भजन मैं उस दिन जब,
चीखों से सबका मन दुख जा।
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है बेटी अनमोल पर जो मोल न तुम समझोगे,

खो दोगे फिर मान घर की बरकत भी खो दोगे।

चूनर रख कर माथ रखती लाज सदा पगड़ी की,

जो न पूजो तुम पाँव तो लक्ष्मी भी धो दोगे।।

✍️इंदु, अमरोहा
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मानवता की सृजन जननी,
तुझ को मेरा नमन है ।
महिमा तेरी जनम-जनम है,
हे मां तुझे नमन है।।

संस्कृति की ध्वजवाहक हो,
सृजन की पतवार हो,
परिवार का आधार हो,
मानव जीवन का सार हो ।।

स्नेह,प्रेम,साहस की मूरत,
वात्सल्य,ममता की सूरत,
महिमा तेरी जनम जनम है,
हे मां तुझे नमन है।।

✍🏻अमित कुमार सिंह
7C/61, बुद्धिविहार फेज 2
मुरादाबाद 244001
मोबाइल-9412523624

मुरादाबाद मंडल के नजीबाबाद (जनपद बिजनौर) निवासी साहित्यकार इन्द्र देव भारती की कविता ----वो अकेली लड़की ! वो अकेली निर्भया ! वो अकेली दामिनी !


सूरज जल रहा था !
अंबर दहक रहा था !!
धरती धधक रही थी !!!
बस्ती में - 
सन्नाटों की गूंज थी ।
बाशिंदे घरों में कैद थे ।
कभी 
कोई खिड़की
अपनी आँखें खोल लेती,
तो तुरंत ही - 
बंद कर लेती थी ।
हाँ ! कभी 
कोई दरवाजा भी 
पलकें झपका लेता था ।
गली हो या सड़क,
वीरानगी की -
चहल-पहल थी ।
ऐसे सूनेपन की भीड़ में,
एक अकेली लड़की
या एक अकेली निर्भया,
या एक अकेली दामिनी,
बदहवासी ओढ़े,
''मिल्खासिंह'' बनी
भाग रही थी !
भाग रही थी  !!
भाग रही थी   !!!
और -
उसके पीछे भाग रहे थे-
कुछ इंसानी भेड़िए ।
इक्का-दुक्का 
आँखे देख भी लेतीं, 
तो तुरंतअंधी बन जातीं ।
इक्का-दुक्का कान भागती हुयी
लड़की/निर्भया/दामिनी
की "बचाओ - बचाओ"
सुन भी लेते तो -
तुरंत बहरे बन जाते ।
सड़क पर -
चलते-फिरते तमाम मुर्दे
पीछे भागने  वालों को
पकड़ने दौड़ते जरूर,
मगर उनके 
दुःशासन मन
कबके लंगड़े हो चुके थे ।
भागते हुये पीछे छूटी 
पक्की सड़क,
खड़ी फसलों के - 
बीच से गुजरती हुयी,
कच्चे रास्ते में, 
और फिर बटिया में,
बदल कर -
कब घने जंगल में
जा पहुंची ?
पता ही नहीं चला ।
सामने जंगली भेड़िये ?
पीछे इंसानी भेड़िये ?
उस अकेली लड़की ने,
उस अकेली निर्भया ने,
उस अकेली दामिनी ने -
निर्णय लेने में 
कतई भी देर नहीं की ।
वो खेल गयी -
प्राणों  का  दांव,
इज्ज़त के नाम पर,
और कूद गयी 
जंगली भेड़ियों के बीच ।
इज्जत की 
बेदाग़ चादर पर 
बिखरा उसका हाड़-मास
दूर खड़े हांफते
इंसानी भेड़ियों पर
अट्टहास कर रहा था ।

✍️ इन्द्रदेव भारती
 "भरतीयम"
ए / 3, आदर्श नगर
नजीबाबाद- 246 763, जनपद बिजनौर,उ.प्र.
मोबाइल फोन नम्बर   99 27 40 11 11
indradevbharti5@gmail.com


शनिवार, 17 अक्तूबर 2020

मुरादाबाद मंडल के बहजोई (जनपद सम्भल )निवासी साहित्यकार दीपक गोस्वामी चिराग की रचना ----माता उर बस जाओ,मन आज पुकारा है, मतलब की दुनिया में, तू एक सहारा है


माता उर बस जाओ,मन आज पुकारा है।

मतलब की दुनिया में, तू एक सहारा है।


जग के सम्बंधों ने, यह मन झुलसाया है।

पर तेरी ममता ने तो, मरहम ही लगाया है।

माँ! तेरा यह आँचल,जगती से न्यारा है।

मतलब की दुनिया में......................


यह मन मेरा दुखिया, माँ! इत-उत डोले है।

तेरी राहें तक-तक कर, ये नैना बोले हैं।

माँ! तेरा यह दर्शन,सबसे ही प्यारा है।

मतलब की दुनिया में.......................


जीवन में सुख-दुख तो, दिन-रैन से आते हैं।

पर माँ  तेरे सम्बल, मुझे पार लगाते हैं।

माँ! मेरा यह जीवन, तूने  संँवारा है।

मतलब की दुनिया में......................


✍️दीपक गोस्वामी 'चिराग'

शिव बाबा सदन, कृष्णा कुंज 

बहजोई.( सम्भल) पिन 244410

मो. 9548812618

ईमेल-

deepakchirag.goswami@gmail.com

मुरादाबाद के साहित्यकार श्री कृष्ण शुक्ल की रचना ----जगदम्बे का सज गया, घर घर में दरबार


जगदम्बे का सज गया, घर घर में दरबार । 

भक्ति भाव से शक्ति की, करिए जय जयकार ।।

आश्विन शुक्ला प्रतिपदा, शुभ तिथि दिन शनिवार।

शैलसुता मंगल करें, बाँटें सबमें प्यार ।।

✍️श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद 

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार संतोष कुमार शुक्ल संत की रचना ----- मैया के द्वार चलो मैया के द्वार चलो, करने श्रंगार चलो लेके फूल हार चलो


मैया के द्वार चलो मैया के द्वार चलो 

करने श्रंगार चलो लेके फूल हार चलो 

मैया के द्वार चलो ------------

ऊंचे पहाड़ों पे मैया का बासा है, 

दर्शन के मैया की मन को अभिलाषा है 

मैया बुलाती है जय कारा मार चलो 

मैया के द्वार चलो ------------

सिंह की सवारी है वर मुद्रा धारी है 

लाल लाल चूनर में माँ की छवि न्यारी है 

मैया की ऐसी छवि तुम भी निहार चलो 

मैया के द्वार चलो ------------

मैया निराली है अष्ट भुजा बाली है 

कभी मात चंडी है कभी मात काली है 

मैया के रूपों को करते नमस्कार चलो 

मैया के द्वार चलो ------------

मैया ही नैना है मैया ही ज्वाला है 

मैया का वैष्णव रूप निराला है 

माँ की सब पीठों का करने दीदार चलो 

मैया के द्वार चलो ------------

चंड मुंड संहारे मधु कैटभ भी मारे 

माँ उसके दुख तारे आता जो माँ द्वारे 

तुम भी अब कष्टों से होने उद्धार चलो 

मैया के द्वार चलो ------------

✍️ सन्तोष कुमार शुक्ल सन्त,रामपुर

मुरादाबाद के साहित्यकार अनुराग रोहिला का मुक्तक ---सुख हो या दुख हो हर पल मां का ध्यान लगाता हूं

 


सुख हो या दुख हो हर पल मां का ध्यान लगाता हूं !

निर्मम समय के साज़ पर बस यही गुनगुनाता हूं !!

कोई खाये व्यापार की या सरकार की कमाई !

मुझे तो फक्र है मैं अपनी माँ का दिया खाता हूं !!

✍️अनुराग रोहिला, कटघर, मुरादाबाद 244001 मोबाइल फोन नम्बर 9837312131

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विश्नोई की रचना --माँ अष्ठ भुजा धारी,करें शेरों की सवारी ....



         माँ अष्ठ भुजा धारी,

          करें शेरों की सवारी ।

          श्रद्धा भक्ति और विश्वास

          मेरी यही अरदास ।

          बाकी सब बेकार,

          करो माँ इसे स्वीकार।

          दुनियां तुम पर बलिहारी,

          माँ अष्ठ भुजा धारी ।

          करे मेहर की जो छाया,

          कुंदन बन जाती काया।

          भागे दूर सभी अंधियारा,

          फैले चारों ओर उजियारा।

          संकट कट जायें सब भारी,

          माँ अष्ठ भुजा धारी ।

          संसार की तुम चालक,

          भक्तों की तुम पालक ।

          जो भी तुम को पुकारे ,

          होते उसके वारे न्यारे ।

          होती जब कृपा तुम्हारी,

          माँ अष्ठ भुजा धारी ।             

✍️ अशोक विश्नोई, मुरादाबाद 244001

                       

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ रीता सिंह की रचना ---- आयी अश्वों पर सवार मैया ओढ़ चुनरी .....





 

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ अर्चना गुप्ता की रचना ---- आज घर मां हमारे आई है ....


 

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष डॉ ज्ञानप्रकाश सोती की कविता ---गांधी जयंती । यह प्रकाशित हुई थी 56 वर्ष पूर्व हिन्दी साहित्य निकेतन सम्भल द्वारा प्रकाशित कृति तीर और तरंग में ....




::::::::प्रस्तुति::::::::

डॉ मनोज रस्तोगी

8,जीलाल स्ट्रीट, मुरादाबाद 244001,उत्तर प्रदेश,भारत मोबाइल फोन नम्बर 9456687822
 

शुक्रवार, 16 अक्तूबर 2020

लगभग 35 वर्ष पूर्व लिखा एक पत्र। यह पत्र 30 दिसंबर1985 को लिखा था मुरादाबाद के साहित्यकार दिग्गज मुरादाबादी जी ने ।



 

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था ''राष्ट्रभाषा हिंदी प्रचार समिति" की ओर से 14 अक्टूबर 2020 को मासिक काव्य गोष्ठी का आयोजन

 मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था राष्ट्रभाषा हिंदी प्रचार समिति की मासिक काव्य गोष्ठी 14 अक्टूबर 2020 को जंभेश्वर धर्मशाला लाइन पार मुरादाबाद में संपन्न हुई । अध्यक्षता  योगेंद्र पाल विश्नोई  ने की। मुख्य अतिथि  रघुराज सिंह निश्चल  तथा विशिष्ट अतिथि केपी सरल  थे। सरस्वती वंदना रश्मि प्रभाकर ने प्रस्तुत की तथा मंच संचालन अशोक विद्रोही ने किया। 

 गोष्ठी में योगेंद्र पाल विश्नोई ने कहा-

जन्म मृत्यु आकर सिरहाने खड़ी

किन्तु जीवन का संघर्ष जारी रहेगा


रामेश्वर प्रसाद वशिष्ठ ने पढ़ा-

पंचशील के रथ से पहले, तुमने हाथ मिलाया।

विश्वास घात कर तुमने , अपने उर पर तीर चलाया।। 


अशोक विद्रोही  ने ओजपूर्ण कविता पढ़ी-

हम तेरे वीर जियाले मां, आगे ही बढ़ते जायेंगे।

एक रोज परम पद पर, माता तुझको बैठायेंगे ।।


रश्मि प्रभाकर ने कहा-

आंखों में उमड़े सपनों की, 

            जब हृदय तंत्र से ठनती है ।

तब जाकर निर्भीक लेखनी

              से एक कविता बनती है।।


वरिष्ठ कवि रघुराज सिंह निश्चल का कहना था -–

कहां तक चुप रहूं, कुछ भी न बोलूं।

 असत सत को निगलता जा रहा है।।


प्रशांत मिश्र ने कहा-

नैनो के नीर से जख्मों का

 दर्द कम नहीं होता।


केपी सरल ने पढ़ा-

नीड़ छोड़ शावक उड़े ,सभी मोह विसराय

काया  त्यागे जीव जो ,वापस कभी न आय।।


अरविंद कुमार शर्मा आनंद की ग़ज़ल थी----

जिंदगी रंग हर पल बदलती रही।

सात ग़म के ख़ुशी रोज़ चलती रही।।

अंत में  योगेंद्र पाल विश्नोई ने आभार अभिव्यक्त किया। 











::::::::::प्रस्तुति::::::

अशोक विद्रोही 

उपाध्यक्ष

राष्ट्रभाषा हिंदी प्रचार समिति मुरादाबाद