सूरज जल रहा था !
अंबर दहक रहा था !!
धरती धधक रही थी !!!
बस्ती में -
सन्नाटों की गूंज थी ।
बाशिंदे घरों में कैद थे ।
कभी
कोई खिड़की
अपनी आँखें खोल लेती,
तो तुरंत ही -
बंद कर लेती थी ।
हाँ ! कभी
कोई दरवाजा भी
पलकें झपका लेता था ।
गली हो या सड़क,
वीरानगी की -
चहल-पहल थी ।
ऐसे सूनेपन की भीड़ में,
एक अकेली लड़की
या एक अकेली निर्भया,
या एक अकेली दामिनी,
बदहवासी ओढ़े,
''मिल्खासिंह'' बनी
भाग रही थी !
भाग रही थी !!
भाग रही थी !!!
और -
उसके पीछे भाग रहे थे-
कुछ इंसानी भेड़िए ।
इक्का-दुक्का
आँखे देख भी लेतीं,
तो तुरंतअंधी बन जातीं ।
इक्का-दुक्का कान भागती हुयी
लड़की/निर्भया/दामिनी
की "बचाओ - बचाओ"
सुन भी लेते तो -
तुरंत बहरे बन जाते ।
सड़क पर -
चलते-फिरते तमाम मुर्दे
पीछे भागने वालों को
पकड़ने दौड़ते जरूर,
मगर उनके
दुःशासन मन
कबके लंगड़े हो चुके थे ।
भागते हुये पीछे छूटी
पक्की सड़क,
खड़ी फसलों के -
बीच से गुजरती हुयी,
कच्चे रास्ते में,
और फिर बटिया में,
बदल कर -
कब घने जंगल में
जा पहुंची ?
पता ही नहीं चला ।
सामने जंगली भेड़िये ?
पीछे इंसानी भेड़िये ?
उस अकेली लड़की ने,
उस अकेली निर्भया ने,
उस अकेली दामिनी ने -
निर्णय लेने में
कतई भी देर नहीं की ।
वो खेल गयी -
प्राणों का दांव,
इज्ज़त के नाम पर,
और कूद गयी
जंगली भेड़ियों के बीच ।
इज्जत की
बेदाग़ चादर पर
बिखरा उसका हाड़-मास
दूर खड़े हांफते
इंसानी भेड़ियों पर
अट्टहास कर रहा था ।
✍️ इन्द्रदेव भारती
"भरतीयम"
ए / 3, आदर्श नगर
नजीबाबाद- 246 763, जनपद बिजनौर,उ.प्र.
मोबाइल फोन नम्बर 99 27 40 11 11
indradevbharti5@gmail.com
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें