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सोमवार, 23 जनवरी 2023
वाट्स एप पर संचालित समूह साहित्यिक मुरादाबाद की ओर से माह के प्रत्येक रविवार को वाट्सएप कवि सम्मेलन एवं मुशायरे का आयोजन किया जाता है । रविवार 22 जनवरी 2023 को आयोजित 340 वें वाट्स एप कविसम्मेलन एवं मुशायरे में शामिल साहित्यकारों राजीव प्रखर, इंदु रानी, मोनिका मासूम, विनीता चौरसिया, विवेक आहूजा, राम किशोर वर्मा, सूर्यकांत द्विवेदी,शिव कुमार चंदन,हेमा तिवारी भट्ट और अशोक विद्रोही की रचनाएं उन्हीं की हस्तलिपि में
मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी का गीत ....मैं संसद से उठ आया हूँ
मैं संसद से उठ आया हूँ
सबकी आँख खोल आया हूँ
गुरुओं का आशीष पिता की
सीख स्वयं देकर आया हूँ।
....................
बोली माँ मत दूध लजाना
सच का केवल साथ निभाना
और पिता ने यह बतलाया
कभी पराया धन मत खाना
बचपन से सुनता आया हूँ।
मैं संसद से..............
झूठों से नफरत कर लेना
सच की दौलत तुम भर लेना
जिसे न पूरा कर पाओ तुम
ऐसा वादा कर मत लेना
जीवन में गुनता आया हूँ।
मैं संसद से..............
सब धर्मों का आदर करना
जात-पात से बचकर रहना
कोई कितना भी समझाए
मानवता से रिश्ता रखना
यही भाव बुनता आया हूँ।
मैं संसद से...............
खद्दर की पौषाक पहनना
वोटर को भगवान समझना
वह जो काम बताएं तुमको
उसको पूरे मन से करना
ऐसा ही करता आया हूँ।
मैं संसद से.............
रोज़ व्यर्थ का रोना - धोना
पाला रोज़ बदलते रहना
घालमेल की इस संसद में
चाहे जिसको आका कहना
भावों को चुनता आया हूँ।
मैं संसद से......
✍️ वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"
मोबाइल फोन नंबर 9719275453
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रविवार, 22 जनवरी 2023
मुरादाबाद मंडल के जनपद संभल (वर्तमान में गुरुग्राम निवासी) के साहित्यकार डॉ गिरिराज शरण अग्रवाल की बाल कविता --सर्दी में मत निकलो भाई
शीत लहर आई है भाई
सर्दी में मत निकलो भाई
कुहरा चारों ओर तना है
जाड़े से सबको बचना है
ठंडी-ठंडी हवा चल रही
कमरा गर्म हमें रखना है
बंद हुआ स्कूल हमारा
हीटर से तुम तप लो भाई
तालाबों में बर्फ जमी है
हलचल बाहर सभी थमी है
दुबके लोग घरों में सारे
सर्दी में बस यही कमी है
अंदर आकर बैठो, तुम सब
या बिस्तर में घुस लो भाई
मफलर गर्म गले में डालो
स्वेटर जर्सी सभी निकालो
फिर पहनेंगे ऐसा कहकर
बात नहीं तुम कल पर टालो
सर्दी से बचना है हमको
कमर आज तुम कस लो भाई
✍️ डॉ गिरिराज शरण अग्रवाल
ए 402, पार्क व्यू सिटी 2
सोहना रोड, गुरुग्राम
78380 90732
मुरादाबाद मंडल के जनपद संभल के साहित्यकार डॉ फहीम अहमद की बाल कविता ....घुमक्कड़ तितली
अपनी मर्ज़ी की मालिक है
तितली बड़ी घुमक्कड़।
नन्ही है पर घूम चुकी दुनिया
का चप्पा-चप्पा।
खुश होकर झूमी मस्ती में
गाती लारा-लप्पा।
थकती नहीं ज़रा भी पगली
वह है पूरी फक्कड़।
देख चुकी है वह दुनिया का
रंग बिरंगा मेला।
लगा उसे जग का हर मंज़र
फूलों सा अलबेला।
बूझे नई पहेली फूलों से
बन लाल बुझक्कड़।
हवा,रोशनी,मिट्टी,पानी,
खुशबू वाली बातें।
छिपी हुई नन्हे पंखों में
जाने क्या सौगातें।
कहां कहां से लाई क्या क्या
भूली, बड़ी भुलक्कड़।
✍️ डॉ फहीम अहमद
असिस्टेंट प्रोफ़ेसर ,हिंदी विभाग,
महात्मा गांधी मेमोरियल पी.जी.कालेज,
सम्भल 244302
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल 8896340824,9450285248
Email hadi.faheem@yahoo.com
drfaheem807@gmail.com
मुरादाबाद के साहित्यकार धन सिंह धनेंद्र की लघुकथा ...डरी सिमटी व्यथा .
कमरे मे बेटे के आने की आहट होते ही उसके पिता ने अपने बिस्तर पर उघडी़ चादर को अपने शरीर में पूरा ढक लिया और चुपचाप एक तरफ करवट लेकर सिकुड़ कर मुंह ढक कर लेट गया। जब बेटा कमरे से चला गया ,गठरी बने बूढ़े पिता ने चादर हटाई और अपने सिरहाने से अपनी दिवंगत पत्नी की छोटी सी कागज में लिपटी फोटो निकाली, उसे निहारता रहा जैसे अपनी व्यथा कहना चाह रहा हो। उसके आंसू टप-टप गिरने लगे-
" तुमने भी खाना कैसै खाया होगा शांति , रात के 11 बज चुके हैं मुझे अभी तक किसी ने यहां खाना नहीं दिया है। मांगूंगा तो ...... (मुंह बंद कर फूट-फूट कर रो पड़ा)"
✍️ धन सिंह धनेंद्र
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
शनिवार, 21 जनवरी 2023
मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विश्नोई की लघुकथा-- कम्बल
....भैया कम्बल कैसे दिए हैं ।
अरे आप तो ले लो, बस दो ही बचे हैं... पैसे तो हो ही जायेंगे ।
ठीक है, दोनों दे दो ," ग्राहक ने कहा"।
विक्रेता ने दोनों कम्बलों के चार सौ रुपये लेकर उसे चलता किया।
गोलू जो उधर से गुज़र रहा था, यह देखकर कह उठा,"अरे.... तुम तो अपने बच्चों के साथ कम्बल वितरण की लाइन में लगे हुए थे... अब समझा...."।
अशोक विश्नोई
मो०9458149223
मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश का एकांकी ....रामपुर के राजा रामसिंह
काल : लगभग अठारह सौ ईसवी
पात्र परिचय
पंडित रामस्वरूप जी : आयु लगभग साठ वर्ष
भगवती : पंडित रामस्वरूप जी की पत्नी, आयु लगभग 60 वर्ष
सुलोचना : पंडित रामस्वरूप जी एवं भगवती की पुत्री, आयु लगभग तेरह वर्ष
स्थान : रामपुर रियासत
पर्दा खुलता है।
पंडित रामस्वरूप गीता पढ़ रहे हैं:
धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सव:
मामका: पांडवाश्चैव किमकुर्वत संजय
धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र में, रण की इच्छा पाल
क्या करते संजय कहो, पांडव मेरे लाल
सुलोचना : पिताजी ! आपने संस्कृत गीता का हिंदी दोहा किस पुस्तक से पढ़ा है ?
पंडित रामस्वरूप जी : बेटी तुम तो जानती हो, मुझे भूत और भविष्य सब अक्सर दिखाई पड़ते हैं । यह उन्हीं में से कोई एक रचना है ।
सुलोचना : पिताजी ! आप इतने विद्वान हैं, लेकिन हमारे राधा-कृष्ण और उनकी गीता इस घर की परिधि में छुपकर ही हम क्यों पढ़ते हैं ? घर के बाहर जो बड़ा-सा चौराहा है और जहॉं बहुत सुंदर वृक्ष स्थापित है, उसके नीचे हम राधा-कृष्ण की मूर्ति स्थापित करके वहॉं गीता क्यों नहीं पढ़ते? कई बार मैं आपसे कह चुकी हूॅं।
पंडित रामस्वरूप जी : बेटी ! हर बार मैंने तुम्हें समझाया है कि हमें ऐसी स्वतंत्रता रामपुर रियासत में रहते हुए प्राप्त नहीं है ।
सुलोचना : आज तो मैं अपने राधा-कृष्ण की मूर्ति ले जाकर पेड़ के नीचे रखकर वही गीता पढ़ूंगी।
भगवती देवी (अपने पति पंडित रामस्वरूप जी से):अरे भाग्यवान! सुलोचना तो बच्ची है। वह तो कुछ भी कह सकती है। लेकिन आप तो समझदार हो। उसे क्यों नहीं रोकते ? अर्थ का अनर्थ क्यों करने जा रहे हो ? घर पर बैठकर भी तो गीता पढ़ी जा सकती है ।
सुलोचना : मॉं ! तुम हर बार हमें रोक देती हो और बीच में पड़कर हमें सार्वजनिक रूप से राधा-कृष्ण की उपासना करने से मना कर देती हो ।
पंडित रामस्वरूप जी : बेटी ! समझने की कोशिश करो। तुम्हारी भलाई के लिए ही मॉं ऐसा कह रही हैं ।
(सुलोचना एकाएक राधा-कृष्ण की मूर्ति और गीता हाथ में उठाकर चौराहे पर पेड़ की तरफ दौड़ पड़ती है। भौंचक्के हुए पंडित रामस्वरूप जी और उनकी पत्नी भगवती सुलोचना …सुलोचना पुकारते हुए उस बच्ची के पीछे दौड़ने लगे । पेड़ के पास जाकर सुलोचना रुक गई । उसने राधा-कृष्ण की मूर्ति पेड़ के नीचे रख दी । गीता हाथ में लेकर बैठ गई और पढ़ने ही वाली थी कि दोनों माता-पिता पीछे-पीछे आ गए । पंडित रामस्वरूप जी सुलोचना के हाथ से गीता छीनते हुए तथा राधा कृष्ण की मूर्ति पर अपने कंधे पर पड़ा हुआ अंगोछा डाल कर रखते हुए कहने लगे )
पंडित रामस्वरूप जी: सुलोचना ! अभी यह समय नहीं आया है।
सुलोचना : कब आएगा समय ? आप तो भूत-भविष्य सब जानते हैं, फिर बताइए ?
पंडित रामस्वरूप जी : बेटी ! अभी लंबा समय बीतेगा । मेरा और तुम्हारा दोनों के जीवन का जब अंत हो जाएगा, तब एक उदार, धर्मनिरपेक्ष शासक रामपुर रियासत में राजसिंहासन पर आसीन होंगे । उनका नाम नवाब कल्बे अली खॉं होगा । उसी समय पंडित दत्त राम नामक एक अलौकिक शक्तियों से संपन्न सत्पुरुष अपनी प्रेरणा से नवाब कल्बे अली खां को रामपुर रियासत में सर्वप्रथम सार्वजनिक मंदिर बनवाने के लिए उत्साहित करेंगे और तब नवाब साहब द्वारा आधारशिला रखकर रामपुर के पहले शिवालय का निर्माण संभव हो सकेगा ।
सुलोचना : इस कार्य में तो पचास साल से भी ज्यादा लग जाएंगे ।तो क्या तब तक हम अपने राधा-कृष्ण की मूर्ति को घर के अंदर ही पूजने के लिए अभिशप्त होंगे ?
पंडित रामस्वरूप जी : हां, जब तक पंडित दत्त राम और नवाब कल्बे अली खॉं का युग नहीं आ जाता, स्थिति आज के समान ही अंधकारमय रहेगी । सत्पुरुष तो प्रायः एक सदी बाद ही होते हैं।
सुलोचना (दुखी होकर): ऐसा कैसा रामपुर है, जहॉं राम और कृष्ण के नाम लेने के लिए सौ साल बाद नवाब कल्बे अली खां की प्रतीक्षा करनी पड़ेगी ! फिर इसका नाम रामपुर क्यों है ?
(इतना कहकर सुलोचना अपने पिता के हाथ से गीता और राधा-कृष्ण छीन लेती है तथा उन्हें अपने सीने से चिपका कर घर की तरफ दौड़ जाती है । पीछे-पीछे माता-पिता भी घर पर आ जाते हैं। घर पर सुलोचना उदास और निढाल होकर खटिया पर लेट जाती है । माता-पिता उसके पास जाते हैं और उसके बालों को सहलाते हैं । सुलोचना सुबक उठती है।)
सुलोचना : पिताजी! आप तो भूत और भविष्य दोनों जानते हैं। आपने मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं दिया कि यह स्थान रामपुर क्यों कहलाता है ?
पंडित रामस्वरूप जी : बेटी ! यह शताब्दियों पुरानी कहानी है, जो राजा राम सिंह के अतुलनीय पौरुष, बल और वीरता से भरी हुई है । राजा राम सिंह का राज्य रामपुर, मुरादाबाद और ठाकुरद्वारा इन तीनों क्षेत्रों तक फैला हुआ था । तब यह स्थान “कठेर खंड” कहलाता था।
सुलोचना : कठेर-खंड का क्या तात्पर्य है पिताजी ? आखिर किसे कहते हैं ?
पंडित रामस्वरूप जी : बेटी ! मैं इतिहास में बहुत दूर तक तो नहीं देख पा रहा हूं, लेकिन अंतर्दृष्टि से मुझे एक ऋषि का भी दर्शन हो रहा है । इसका संबंध वेद और उपनिषद के ज्ञान से भी जान पड़ता है । लेकिन इतने पुराने इतिहास के बारे में देखते समय मेरी दृष्टि धुंधला जाती है।
सुलोचना : तो फिर जरा निकट का ही इतिहास आप देखकर हमें बताइए ?
पंडित रामस्वरूप जी : (उत्साहित होकर) हां, वह तो स्पष्ट दिख रहा है । कोई राजा रामसिंह थे,जिनका शासन महान राजाओं में सर्वश्रेष्ठ था । वह प्रजा पालक, वात्सल्य से भरे हुए तथा न्याय और नीति के मार्ग पर चलने वाले महान शासक थे । उनके राज्य में पूजा-अर्चना और हवन की सुगंध चारों ओर फैलती थी ।
सुलोचना : (हर्षित होकर) तो क्या रामपुर रियासत में भी राजा राम सिंह के यज्ञों की सुगंध प्रवाहित होती थी ?
पंडित रामस्वरूप जी : भूतकाल को देखने पर मुझे तो कुछ-कुछ ऐसा ही प्रतीत हो रहा है ।
सुलोचना : कुछ और बताइए पिताजी ! इतने महान शासक के बारे में कुछ और जानने की इच्छा है ।
पंडित रामस्वरूप जी : बेटी ! अधिक तो प्रतीत नहीं हो रहा । मैं देखने का प्रयत्न करता हूं , लेकिन पटल पर धुंध और धूल छा जाती है । बस इतना दिख पाता है कि किसी ने धोखे से एक महा प्रतापी राजा रामसिंह के जीवन का अंत कर दिया था । उसी के साथ सनातन जीवन मूल्यों से जुड़े आचार-विचार की क्षति इस कठेर-खंड में चारों तरफ छा गई।
सुलोचना : फिर मुरादाबाद का क्या हुआ पिताजी ?
पंडित रामस्वरूप जी : वह तो अभी हाल का ही इतिहास है । उस पर मुगलों का शासन स्थापित हो गया । बस रामपुर वाला हिस्सा बचा । उसका नाम रामपुर रख दिया गया ।
सुलोचना : रामपुर का नामकरण रामपुर कैसे पड़ा ? यह किसके नाम पर है ?
पंडित रामस्वरूप जी : राम का नाम तो सर्वविदित है । हजारों-लाखों वर्षों से यही तो परमेश्वर का सत्य स्वरूप है । इस नाम का संबंध उस परम ब्रह्म परमात्मा से अवश्य ही बनता है। लेकिन हां, जब तुम कठेर-खंड के पतन के बाद निर्मित रामपुर रियासत के बारे में पूछ रही हो, तो इसका अभिप्राय राजा रामसिंह से है । राजा रामसिंह की मृत्यु के बाद उनके अनुयायियों ने इस बचे-खुचे कठेर-खंड का नाम राजा राम सिंह के नाम पर रामपुर रखना अधिक उचित समझा।
सुलोचना : रामपुर कितना धन्य है, जिसका नामकरण भगवान राम और उनके भक्त राजा रामसिंह के नाम पर अनुयायियों द्वारा किया गया है । अब हम उस समय की प्रतीक्षा करेंगे, जब फिर से इस क्षेत्र में उदार विचारों की प्रधानता होगी और सबको अपने मन के अनुरूप पूजा-अर्चना का अधिकार और अवसर मिल सकेगा ।
पंडित रामस्वरूप जी : हां बेटी ! मैं भविष्य के पटल पर और भी बहुत कुछ देख रहा हूॅं। न केवल नवाब कल्बे अली खां और पंडित दत्त राम के परस्पर सहयोग और उदार विचारों के फलस्वरुप रियासत में एक मंदिर की स्थापना के महान कार्य को इतिहास के पृष्ठों पर अंकित होते हुए मुझे दिखाई पड़ रहा है, बल्कि यह भी दिख रहा है कि राजे-रजवाड़े अतीत का हिस्सा बन जाएंगे। समूचे भारत में जनता का शासन होगा । लोकतंत्र स्थापित हो जाएगा तथा फिर शोषण, उत्पीड़न, अत्याचार और शासक वर्ग की स्वेच्छाचारिता इतिहास का भूला-बिसरा अध्याय बन जाएगी ।
(सुलोचना अपने पिता के मुॅंह से यह सुनकर तालियॉं बजाने लगती है । उसकी मॉं की ऑंखों से भी ऑंसू निकल आते हैं । वह भी बेटी के साथ मिलकर तालियॉं बजाती हैं। पार्श्व में स्वर गूंजता है कि हमारी एकता अमर रहे ….हम सब भारतवासी आपस में भाई-बहन हैं..)
इसके बाद पर्दा गिर जाता है।
✍️ रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा,
रामपुर
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल 99976 15451
मुरादाबाद के साहित्यकार श्री कृष्ण शुक्ल की हास्य कविता ....सात जन्म के साथ का वरदान
शादी की पचासवीं सालगिरह पर
पति पत्नी ने घर में पूजा रखी,
जैसे जैसे पंडित जी बोलते गये
वैसे वैसे दान दक्षिणा रखी,
उनकी श्रद्धा देख भगवान भी प्रसन्न हो गये,
तुरंत आकाशवाणी हुई
और वर माँगने का मौका दिया,
पति ने तुरंत सात जन्मों तक
एक दूसरे का साथ माँग लिया,
भगवान् ने कहा एवमस्तु ,
अगले सात जन्मों तक
तुम्हें एक दूजे का साथ दिया
यह सुनते ही पत्नी बोली
भगवन ये क्या कर दिया,
ये वरदान है या सजा,
न कोई चेंज न मजा
पूजा तो हम दोनों ने की थी,
तो वरदान इनको ही क्यों दिया,
पूजा की सारी तैयारी तो मैंने की,
वेदी मैंने सजाई,
प्रसाद मैंने बनाया,
पूजा की सारी सामग्री मैं लाई,
यहाँ तक कि पंडित जी को
दक्षिणा भी मैंने थमाई
इन्होंने क्या किया सिर्फ हाथ जोड़े,
मस्तक नवाया, आरती घुमायी,
ये सब तो मैंने भी साथ में किया,
फिर वरदान अकेले इनको क्यों दिया,
अब मुझे भी वर दीजिए
सात जन्म वाली स्कीम को
वापस ले लीजिए,
भगवान भी हतप्रभ हो गये, सोचने लगे,
मेरी ही बनायी नारी,
मुझ पर ही पड़ गयी भारी,
बोले: एक बार वरदान दे दिया सो दे दिया,
दिया हुआ वरदान कभी वापस नहीं होता,
इतना जान लो,
तुम भी कोई वरदान मांग लो,
पत्नी ने फिर दिमाग लगाया,
तुरंत उपाय भी सूझ आया,
बोली भगवन कोई बात नहीं वरदान वापस मत लीजिए,
बस थोड़ा संशोधन कर दीजिए,
अगले जन्म में मुझे पति और इन्हें मेरी पत्नी बना दीजिए,
मैं भी चाहती हूँ, कि मैं पलंग पर बैठूँ
और ये दूध का गिलास लेकर आयें,
मैं जब लेटूं, ये पैर दबाएं,
मैं खाना खाऊं तो ये पंखा झुलायें,
मैं दफ्तर जाऊँ तो ये दरवाजे पर छोड़ने आयें,
और जब आऊँ तो ये दरवाजे पर खड़े मुस्काएं,
और क्या बताऊँ,
थोड़े में ही बहुत समझ लीजिए,
बस मुझे इतना ही वरदान दे दीजिए.
भगवान कुछ कहते, इससे पहले ही पति चिल्लाया,
भगवन ये अनर्थ मत कीजिए, हमें ऐसे ही रहने दीजिए,
सात जनम के चक्कर में
हमारे शेष जीवन का सुख चैन मत छीनिये.
प्रभु कृपा कीजिए,
और हमें इसी जन्म में सुख-चैन से रहने दीजिए,
भगवान ने भी मौका तलाशा,
तुरंत एवमस्तु कहा और अंतर्ध्यान हो गये
✍️ श्रीकृष्ण शुक्ल,
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मुरादाबाद मंडल के कुरकावली (जनपद संभल ) के साहित्यकार त्यागी अशोका कृष्णम् के सात दोहे ....
शीशे पर चलना पड़ा,तलुवे लहूलुहान।
होठों पर ओढ़े रहे, फिर भी हम मुस्कान।। 1।।
जीवन अपने आप से,हारा एक जवान।
जहर न पीता वह अगर,बिछड़ रही थी जान।।2।।
अपनी सच्ची शान थी, छोटी सी पहचान।
जिसके पीछे पड़ गए,मानव कई महान।।3।।
माथे पर चोटें लिखी,गहरे पड़े निशान।
देव पुरुष सब मौन थे,बहरे सबके कान ।।4।।
हमको देखो ध्यान से,लोगे खुद को जान।
ऐरे गैरे हम नहीं,जिंदा हिंदुस्तान ।।5।।
रोते रोते सीखना,है जो तुमको गान।
आंखें मेरी देखना,पूरा अनुसंधान।। 6।।
जिसने समझा वक्त पर, यहाँ वक्त का मोल।
उसे बनाया वक्त ने, दुनिया में अनमोल।। 7।।
✍️ त्यागी अशोका कृष्णम्
कुरकावली, संभल
उत्तर प्रदेश, भारत
मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की व्यंग्य कविता ...विकास क्या है ....,,?
विकास
कैसा दिखता है?
कल्पना है
या वास्तविकता है
नाटा है या लंबा
गोरा है या काला
अनजान है
या फिर देखा भाला
विकास क्या है?
इसकी
क्या परिभाषा है?
कोई
खाने की चीज है
या फिर
खेल तमाशा है
शायद विकास
एक स्वादिष्ट गोली है
जिसको नेता
चुनाव से पहले
पब्लिक को खिलाते हैं
और आसानी से
चुनाव जीत जाते हैं
विकास
टी वी चैनलों पर
धड़ल्ले से बिकता है
कोई इस पर कविता
कोई बड़े बड़े
लेख लिखता है
विकास
हर किसी को
दिखता नहीं है
किसी छोटे या
बड़े स्टोर पर
मिलता नहीं है
इसकी
ऑनलाइन डिलीवरी
नहीं हो रही है
किसी मशीन में
मैन्युफैक्चरिंग
नहीं हो रही है
कुछ खास लोग ही
विकास को
महसूस कर पाते हैं
और चमचे
आंख बंद कर
उनकी हां में हां
मिलाते हैं
विकास को लेकर
सबका अलग विचार है
फुटपाथ पर
रहने वाले के लिए
विकास
सूखी रोटी के साथ
अचार है
जिनके पास
हर तरह की
सुख सुविधा है
उनके मन में
बड़ी दुविधा है
उनको विकास का
आभास तभी होता है
जब कोई मजबूर
उनके आगे
गिड़गिड़ाता या रोता है
जैसे जैसे
समय आगे बढ़ा है
विकास का भी
विकास हो गया है
उसकी कहानी को
मिल गया है
नया कथानक
बदल चुके हैं
सभी मानक
मंदिर,मस्जिद,
चर्च, गुरुद्वारा
अब विकास
आंका जाने लगा है
इनके द्वारा
✍️ डॉ पुनीत कुमार
T 2/505 आकाश रेजीडेंसी
मुरादाबाद 244001
M 9837189600
बुधवार, 18 जनवरी 2023
रविवार, 15 जनवरी 2023
मुरादाबाद की साहित्यकार प्रो ममता सिंह को राष्ट्रीय संस्था आगमन ने शान-ए-अदब खिताब से नवाजा
मुरादाबाद की साहित्यकार प्रो ममता सिंह को राष्ट्रीय संस्था आगमन - एक खूबसूरत शुरुआत द्वारा शान-ए-अदब खिताब से सम्मानित किया गया। उन्हें यह सम्मान दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी के अमीर खुसरो सभागार में रविवार 15 जनवरी 2023 को आयोजित "जश्न ए ग़ज़ल" कार्यक्रम में दिया गया। संस्था के राष्ट्रीय अध्यक्ष और संस्थापक पवन जैन ने उन्हें सम्मान स्वरूप प्रशस्ति पत्र, स्मृति चिन्ह प्रदान किया।
आयोजन में देश के विभिन्न हिस्सों से आए शायरों ने अपने कलाम पेश किए। अतिथियों के रूप में वरिष्ठ शायर लक्ष्मी शंकर बाजपेई जी, ममता किरण जी, कमला सिंह ज़ीनत , देव साध, ओमप्रकाश यति उपस्थित रहे।
मुरादाबाद की साहित्यिक व साॅंस्कृतिक संस्था कला भारती द्वारा 15 जनवरी 2023 को साहित्यकार रामदत्त द्विवेदी को कलाश्री सम्मान से किया गया सम्मानित, काव्य-गोष्ठी का भी हुआ आयोजन
मुरादाबाद की साहित्यिक व साॅंस्कृतिक संस्था कला भारती की ओर से महानगर के साहित्यकार रामदत्त द्विवेदी को रविवार 15 जनवरी 2023 को आयोजित एक समारोह में कलाश्री सम्मान से सम्मानित किया गया। यह कार्यक्रम मिलन विहार स्थित आकांक्षा विद्यापीठ इंटर कॉलेज में हुआ। राजीव प्रखर एवं आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ के संयुक्त संचालन में आयोजित इस कार्यक्रम की अध्यक्षता बाबा संजीव आकांक्षी ने की। मुख्य अतिथि ओंकार सिंह ओंकार तथा विशिष्ट अतिथि के रूप में बाल साहित्यकार राजीव सक्सेना मंचासीन हुए।
सम्मान स्वरूप श्री रामदत्त द्विवेदी को अंग वस्त्र, मानपत्र एवं प्रतीक चिन्ह अर्पित किए गए जबकि उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर आधारित आलेख का वाचन राजीव प्रखर द्वारा किया गया। अर्पित मान-पत्र का वाचन आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ ने किया। कार्यक्रम के द्वितीय चरण में एक काव्य-गोष्ठी का भी आयोजन किया गया।
काव्य-पाठ करते हुए सम्मानित रचनाकार रामदत्त द्विवेदी ने कहा -
इस चमकती ज़िन्दगी में प्यार छिनता जा रहा है।
चाॅंद से प्यारा था जो यार छिनता जा रहा है।
वरिष्ठ कवि रघुराज सिंह निश्चल ने देश को नमन किया -
विश्व में चाहे कहीं भी घूम लो,
सबसे अच्छा देश हिंदुस्तान है।
डॉ. मनोज रस्तोगी ने कहा -
सूरज की पहली किरण
उतरी जब छज्जे पर,
आंगन का सूनापन उजलाया।
चर्चित नवगीतकार योगेन्द्र वर्मा व्योम ने सर्दी का सुंदर चित्र कुछ इस प्रकार खींचा -
छॅंटा कुहासा मौन का, निखरा मन का रूप।
रिश्तों में जब खिल उठी, अपनेपन की धूप।।
राजीव प्रखर ने आह्वान किया -
दिलों से दूरियाॅं तज कर, नये पथ पर बढ़ें मित्रों।
नया भारत बनाने को, नई गाथा गढ़ें मित्रों।
खड़े हैं संकटों के जो बहुत से आज भी दानव,
सजाकर श्रृंखला सुदृढ़, चलो उनसे लड़ें मित्रों।
मनोज मनु भी कुछ इस अंदाज़ में चहके -
सर्दी भी महंगाई सा, बढ़ा रही है ग्राफ।
हरिया दोनों से कहे, अब तो कर दो माफ।।
लोकप्रिय शायर ज़िया ज़मीर ने अपने सुंदर अशआर रखे -
ज़िन्दगी रोक के अक्सर यही कहती है मुझे,
तुझको जाना था किधर और किधर आ गया है।
मयंक शर्मा की अभिव्यक्ति थी -
रूप मन में तुम्हारा बसाने लगे।
मीत हम प्रीत के गीत गाने लगे।
जितेंद्र जौली ने हास्य रस की फुहार छोड़ी -
तुम पर न हम अपने पैसे लुटाते।
अगर बेवफा तुमको पहचान जाते।
अमित सिंह ने कहा -
नभ थल और जल में जो भारत का सम्मान बने।
हे प्रभु उनको हिम्मत देना जो भारत माॅं की लाज रखे।
ईशांत शर्मा ईशु ने जीवन के सत्य को उजागर किया -
जीवन के कठिन पथ पर चल रहा हूॅं मैं।
मगर देख लो सूरज ढल रहा हूॅं मैं।
कार्यक्रम में नकुल त्यागी, उत्कर्ष अग्रवाल, सचिन कुमार, कमल शर्मा आदि ने भी रचना पाठ किया। ईशांत शर्मा ईशु ने आभार अभिव्यक्त किया।