शादी की पचासवीं सालगिरह पर
पति पत्नी ने घर में पूजा रखी,
जैसे जैसे पंडित जी बोलते गये
वैसे वैसे दान दक्षिणा रखी,
उनकी श्रद्धा देख भगवान भी प्रसन्न हो गये,
तुरंत आकाशवाणी हुई
और वर माँगने का मौका दिया,
पति ने तुरंत सात जन्मों तक
एक दूसरे का साथ माँग लिया,
भगवान् ने कहा एवमस्तु ,
अगले सात जन्मों तक
तुम्हें एक दूजे का साथ दिया
यह सुनते ही पत्नी बोली
भगवन ये क्या कर दिया,
ये वरदान है या सजा,
न कोई चेंज न मजा
पूजा तो हम दोनों ने की थी,
तो वरदान इनको ही क्यों दिया,
पूजा की सारी तैयारी तो मैंने की,
वेदी मैंने सजाई,
प्रसाद मैंने बनाया,
पूजा की सारी सामग्री मैं लाई,
यहाँ तक कि पंडित जी को
दक्षिणा भी मैंने थमाई
इन्होंने क्या किया सिर्फ हाथ जोड़े,
मस्तक नवाया, आरती घुमायी,
ये सब तो मैंने भी साथ में किया,
फिर वरदान अकेले इनको क्यों दिया,
अब मुझे भी वर दीजिए
सात जन्म वाली स्कीम को
वापस ले लीजिए,
भगवान भी हतप्रभ हो गये, सोचने लगे,
मेरी ही बनायी नारी,
मुझ पर ही पड़ गयी भारी,
बोले: एक बार वरदान दे दिया सो दे दिया,
दिया हुआ वरदान कभी वापस नहीं होता,
इतना जान लो,
तुम भी कोई वरदान मांग लो,
पत्नी ने फिर दिमाग लगाया,
तुरंत उपाय भी सूझ आया,
बोली भगवन कोई बात नहीं वरदान वापस मत लीजिए,
बस थोड़ा संशोधन कर दीजिए,
अगले जन्म में मुझे पति और इन्हें मेरी पत्नी बना दीजिए,
मैं भी चाहती हूँ, कि मैं पलंग पर बैठूँ
और ये दूध का गिलास लेकर आयें,
मैं जब लेटूं, ये पैर दबाएं,
मैं खाना खाऊं तो ये पंखा झुलायें,
मैं दफ्तर जाऊँ तो ये दरवाजे पर छोड़ने आयें,
और जब आऊँ तो ये दरवाजे पर खड़े मुस्काएं,
और क्या बताऊँ,
थोड़े में ही बहुत समझ लीजिए,
बस मुझे इतना ही वरदान दे दीजिए.
भगवान कुछ कहते, इससे पहले ही पति चिल्लाया,
भगवन ये अनर्थ मत कीजिए, हमें ऐसे ही रहने दीजिए,
सात जनम के चक्कर में
हमारे शेष जीवन का सुख चैन मत छीनिये.
प्रभु कृपा कीजिए,
और हमें इसी जन्म में सुख-चैन से रहने दीजिए,
भगवान ने भी मौका तलाशा,
तुरंत एवमस्तु कहा और अंतर्ध्यान हो गये
✍️ श्रीकृष्ण शुक्ल,
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
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