गुरुवार, 7 अगस्त 2025

मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी की लघुकथा... बत्ती आ रही है?



       अरे भई, लाला अखंड ज्योति जी आपके घर बत्ती आ रही है क्या? हमारे पूरे मुहल्ले में तो पिछले चौबीस घंटों से ही अंधेरे की काली चादर फैली हुई  है। पंखों के पर ऐसे जाम हो गए हैं जैसे न हिलने की गारंटी में ही आए हों।

    इनवर्टर भी अधभर में साथ छोड़कर हमारी बेबसी पर खामोश होना ही अच्छा समझ रहा है। पानी की टोंटियों का भी कहाँ तक गला घोंटें भाई साहब।

घर की सारी खिड़कियां,दरवाजे खोलकर भी पसीना है, कि सूखने का नाम ही नहीं लेता। ए.सी.की तरफ देख-देखकर तो रोना आता है।ऐसा लगताहै कहीं भाग जाएं!

     बच्चे आकुल-व्याकुल से एक कतरा हवा के लिए तरस जाते हैं तथा सही से अपनी पढ़ाई पर भी  फोकस नहीं कर पाते। बूढ़े माता-पिता बार-बार गाँव छोड़ आने की रट लगाकर खुली हवा में सांस लेने की तैयारी में  सामान बांधकर बैठ जाते हैं।

    अरे भैयाअनोखे लाल कुछ मत पूछो, हमारा हाल भी बिल्कुल तुम्हारे जैसा ही है। बिजली विभाग को फोन करो तो फोन पहले तो उठेगा नहीं और कभी धोखे से उठ भी जाए तो रटे रटाए बहानों से बोलती बंद करने का हुनर कोई इनसे सीखे। ट्रांसफार्मर फुकना तो बहानों का ब्रह्मास्त्र समझो।

     मैं तो यह नहीं समझ पाया कि जनता जनार्दन का पैसा फिर भी जनता परेशान क्यों? हर महीने बिजली का बिल तो ऐसे भेज देते हैं जैसे हम मुफ्त में  बिजली जला रहे हों। 

     बड़ा ही अंधेर मचा रखा है इन बिजली वालों ने। सीधे मुँह बात करने को तैयार नहीं साहब, सहायक इंजीनियर से लेकर चीफ इंजीनियर तक भी कान में  रूई लगाकर बैठे मौज ले रहे हैं।

    मैं तो एक भुक्तभोगी के कथन का समर्थन करते हुए उसके द्वारा उच्चारित वाक्य को आपके सम्मुख रखना आवशयक समझ रहा हूँ।

       "हम धन की जुगाड़ में,

       जनता  जाए  भाड़  में" !!

           

✍️ वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"

मुरादाबाद, 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

             9719275453

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सोमवार, 4 अगस्त 2025

मुरादाबाद के साहित्यकार योगेन्द्र वर्मा व्योम का आलेख- सादगी के साथ ताज़गी के बड़े शायर : ज़मीर दरवेश


    माता शाकुम्भरी देवी के सिद्धपीठ स्थल और लकड़ी की नक्काशी के लिए दुनिया भर में मशहूर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के शहर सहारनपुर में मरहूम अमीरउद्दीन एवं श्रीमती लतीफन बेगम के आँगन में 8 दिसम्बर, 1943 को जन्में ज़मीरउद्दीन को अदबी दुनिया में उस्ताद शायर ज़मीर ‘दरवेश’ के नाम से जाना जाता है। सरल और सहज दरवेश साहब की शायरी भी बेहद सादगी लेकिन ताज़गी भरी है। उनकी शायरी से होकर गुजरना मतलब ज़िन्दगी की बारीकियों से रूबरू होना और उन्हें महसूस करना है। उनकी ग़ज़ल का शेर देखिए-

 'मैं घर का कोई मसअला दफ़्तर नहीं लाता, 

अन्दर की उदासी कभी बाहर नहीं लाता, 

तन पर वही कपड़ों की कमी, धूप की किल्लत,

 मेरे लिए कुछ और दिसम्बर नहीं लाता।'

          मण्डल रेल प्रबंधक कार्यालय मुरादाबाद में दूरभाष अधीक्षक के पद से वर्ष 2003 में सेवानिवृत्त हुए दरवेश साहब की शायरी के विभिन्न चित्र मिलते हैं, कभी वह अपनी समसामयिक विसंगतियों को अपनी शायरी का मौज़ू बनाते हैं तो कभी फलसफ़े उनके शे’रों की अहमियत को ऊचाईयों तक ले जाते हैं। उनका एक शे'र देखिए-

 'आदमी को इतना ख़ुदमुख़्तार होना चाहिए,

 खुलके हँसना चाहिए, जी भरके रोना चाहिए।'

सेवानिवृत्ति उपरान्त पूर्णतः साहित्य सृजन को समर्पित दरवेश जी की ग़ज़लें फ़ारसी की इज़ाफ़त वाली उर्दू के मुकाबले आज की आम बोलचाल की भाषा को तरजीह देती हैं। उनके अश्’आर मन-मस्तिष्क पर अपनी आहट से ऐसी अमिट छाप छोड़ जाते हैं जिनकी अनुगूँज काफी समय तक मन को झकझोरती रहती है। साधारण सी बात भी वह असाधारण रूप में कह देते हैं- 

'घर के दरवाज़े हैं छोटे और तेरा क़द बड़ा, 

इतना इतराके न चल चौखट में सर लग जायेगा।'

             इतिहास विषय में परास्नातक दरवेश साहब ने पिछले लगभग साठ वर्षों से साहित्य सृजन में रत रहकर ख़ूबसूरत ग़ज़लें तो कही ही हैं, बाल साहित्य के क्षेत्र में भी बहुत काम किया है।  उनकी अब तक 22 पुस्तकें प्रकाशित होकर चर्चित हो चुकी हैं जिनमें 'अंकुर'(ग़ज़ल संग्रह), 'जो दिल पे गुज़रती है'(ग़ज़ल संग्रह), 'अलअतश'(ग़ज़ल संग्रह), 'हाशिया'(ग़ज़ल संग्रह), ‘क़लम काग़ज़ के बोसे’(नात संग्रह) के साथ-साथ उर्दू में बाल कविताओं के संग्रहों में 'अबलू बबलू की नज़्में', 'खेल-खिलौनों जैसी नज़्में', 'प्यारी-प्यारी नज़्में', 'प्यारे नबी जी', 'तराना ए नौनिहालाने मिल्लत', 'गुंचा नज़्मों का', 'शाही चीलों के जज़ीरे पर', 'आदमज़ात परीलोक में' आदि चर्चित रही हैं तथा उनकी कुछ बाल कविताएँ महाराष्ट्र में पाठ्यक्रम में भी शामिल हैं। उनकी तीन कृतियों की पांडुलिपियाँ प्रकाशनाधीन हैं।

           दैनिक जागरण मुरादाबाद की ओर से 2019 में सम्मानित होने के साथ-साथ साहित्यिक संस्था ‘अक्षरा’ से 2013 में समग्र साहित्यिक साधना के लिए ‘देवराज वर्मा उत्कृष्ट साहित्य सृजन सम्मान’ व संस्था 'हरसिंगार' की ओर से 'माहेश्वर तिवारी गज़ल साधक सम्मान' व साहित्यिक संस्था 'हम्दो नात फाउंडेशन' व 'हस्ताक्षर' से सम्मानित होने वाले ज़मीर दरवेश साहब के ग़ज़ल संग्रह 'हाशिया' और नात संग्रह ‘क़लम काग़ज़ के बोसे’ के लिए बिहार उर्दू अकादमी द्वारा दरवेश जी को पुरस्कृत किया जा चुका है। दरवेश जी पर समूचे मुरादाबाद को गर्व है। 


✍️ योगेन्द्र वर्मा ‘व्योम’

ए.एल.-49, उमा मेडिकल के पीछे,दीनदयाल नगर-।, काँठ रोड, मुरादाबाद , उत्तर प्रदेश, भारत  चलभाष- 9412805981

मंगलवार, 22 जुलाई 2025

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष माहेश्वर तिवारी की याद में भोपाल के साहित्यकार मनोज जैन का गीत ...



याद माहेश्वर तिवारी जी हमें,

अब आ रहे हैं।


हों जहाँ भी वहीं महफ़िल, 

लूट लेते थे।

आरोह या अवरोह में कब, 

छूट लेते थे।


हैं जहाँ भी इस समय वह मगन,

हो मुस्का रहे हैं।

याद माहेश्वर तिवारी जी हमें,

अब आ रहे हैं।


प्रेम रस के थे पुजारी,

प्रेम करते थे।

बोल हों ज्यों मोंगरे के,

फूल झरते थे।


गीत गजलों में पराई वेदना,

को गा रहे हैं।

याद माहेश्वर तिवारी जी हमें,

अब आ रहे हैं।


वह समय की नब्ज़ पर, 

रख हाथ गाते थे।

गीत की संवेदना में,

देश लाते थे।


मार्गदर्शक बन सभी को 

राह नव,

दिखला रहे हैं।

याद माहेश्वर तिवारी ,

जी हमें,

अब आ रहे हैं।


✍️ मनोज जैन, 

संस्थापक संपादक 

समूह / ब्लॉग वागर्थ 

106 विट्ठलनगर

गुफ़ामन्दिर रोड लालघाटी 

भोपाल 462030 

मध्य प्रदेश,भारत




मंगलवार, 15 जुलाई 2025

मुरादाबाद के साहित्यकार ( वर्तमान में नोएडा निवासी) नरेन्द्र स्वरूप विमल का गीत.... धड़कनें यह पूछती हैं

धड़कनें यह पूछतीं हैं,

पत्थरों से प्यार क्यों है,

नीर बिन इन भावनाओं की 

डगर में ज्वार क्यों है?


घन बिना बरसात होती,

शून्यता आंसू पिरोती,

ग्रीष्म की सूखी नदी का,

तट भला मझधार क्यों है।


होंठ सूखे ,गाते सूखे,

लग रहे, संबंध रूखे,

उम्र के मधुमास का,

यह ठूठ सा पतझार क्यों है।


भेद पल पल,पल रहे हैं,

हम स्वयं को छल रहे हैं,

जीत में भी कुलबुलाती,

आह भरती, हार क्यों है।

धड़कनें यह पूछतीं हैं 

पत्थरों से प्यार क्यों  ‌है।


✍️नरेन्द्र स्वरूप 'विमल'

ए 220.से,122, नोएडा, उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नम्बर 9999031466 


रविवार, 13 जुलाई 2025

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष अम्बा लाल नागर के व्यक्तित्व और कृतित्व पर केंद्रित डॉ मनोज रस्तोगी का आलेख। यह प्रकाशित हुआ है दैनिक जागरण मुरादाबाद संस्करण के तेरह जुलाई 2025 के सबरंग पेज पर


 

मुरादाबाद के साहित्यकार उमाकान्त गुप्त की एक रचना जिन्दगी के नाम

 


ऐ मेरी जिन्दगी साथ चल तू जरा,

तुझको सच मै दिखा दूं यहां का जरा। 


कौन किसका भला बन सका है यहां,

स्वार्थ की सब दुकानें खुली हैं यहां। 


मज़हबी इस जहां के,सभी रंग हुए, 

रंग कैसा चुनेगी,बता तू  यहां ।


अट्टालिका व्यथा हर,छपती यहां,

मड़ैया की सदा, कौन सुनता यहाँ। 


आद्र स्वर तंग गलियों का तू भूलकर, 

राजपथ की हुई,अनुगामिनी यहां ।


✍️उमाकान्त गुप्त 

सिविल लाइन

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत


मुरादाबाद के साहित्यकार (वर्तमान में दिल्ली निवासी) आमोद कुमार का गीत ....


तुम तो नीले अम्बर मे जा मस्त पवन के संग संग फिरतीं

मै धरा पर तुम्हें पुकारुॅं तुम न आतीं नभ पर उड़तीं


कुछ दिन तुम सपनों मे आईं

कुछ दिन तुमको गीत मे पाया

बहुत दूर तक मन तुम्हारे

संग संग जाकर वापस आया

   राह क्षितिज तक सीधी जाकर

   जाने कौन दिशा मे मुड़तीं

   मै धरा पर तुम्हें पुकारुॅं

   तुम न आतीं नभ पर उड़तीं


जब जब फूल खिले बगिया मे

याद किया टूटे सपनों को

भीड़ मे खुद ही गुम हो गए हम

हमने जब खोजा अपनो को

   गए दिनों की ठहरी यादें

   तुम्हारी स्मृति से आ जुड़तीं

   मै धरा पर तुम्हें पुकारुॅं

   तुम न आतीं नभ पर उड़तीं


बचपन के वह खेल निराले

याद बाबरी घर आंगन की

प्यार का अन्तिम भाव क्षमा है

मन मे ही रह जाती मन की

   अनकही सफर की बातें

    आॉंसू बनकर गिर गिर पड़तीं

    मै धरा पर तुम्हें पुकारुॅं

    तुम न आतीं नभ पर उड़तीं

तुम तो नीले अम्बर मे जा

मस्त पवन  के संग संग फिरतीं

  ✍️ आमोद कुमार, दिल्ली

सोमवार, 30 जून 2025

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिंदी साहित्य संगम अध्यक्ष वरिष्ठ कवि रामदत्त द्विवेदी के 90वें जन्म दिवस की पूर्व संध्या 29 जून 2025 को काव्य संध्या का आयोजन

मुरादाबाद  की साहित्यिक संस्था हिंदी साहित्य संगम के अध्यक्ष वरिष्ठ कवि रामदत्त द्विवेदी के 90वें जन्मदिन की पूर्व संध्या रविवार 29 जून 2025 को काव्य संध्या का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ मां शारदे की प्रतिमा पर माल्यार्पण करके किया गया। इसके पश्चात मयंक शर्मा ने माॅं शारदे की वन्दना प्रस्तुत की। 

   कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए रघुराज सिंह निश्चल ने कहा...

 बड़ों का मन लुभाओगे, सदा ही मुस्कुराओगे। 

कृपा भगवान की होगी, सदा ही खिलखिलाओगे।। 

मुख्य अतिथि डॉ. महेश दिवाकर ने हिन्दी के प्रति उनके समर्पण को नमन करते हुए उनको जन्मदिन की बधाई दी ।

 विशिष्ट अतिथि डॉ. कृष्ण कुमार नाज़ का कहना था ......

 ये जो रिश्ते हैं ये लगते तो हैं जीवन की तरह,

कैफियत इनकी है लेकिन किसी बंधन की तरह। 

तुम अगर चाहो तो इक तुलसी का पौध बन जाओ, 

मेरे एहसास महक उटठेंगे आंगन की तरह।। 

विशिष्ट अतिथि डॉ प्रेमवती उपाध्याय ने सुनाया-

अब सम्बन्धों की गरमाहट, विदा हुई घर-घर से। 

सभी सुखी दिखते ऊपर से, दुखी दिखे अंदर से।। 

विशिष्ट अतिथि योगेन्द्र वर्मा व्योम ने सुनाया-

लोभ, क्रोध, मद, द्वेष, छल, 

अहम-वहम सब छोड़। 

चलों बना लें खुशनुमा, 

जीवन का हर मोड़। 

रामदत्त द्विवेदी ने सुनाया- 

इस चमकती ज़िन्दगी में प्यार छिनता जा रहा है, 

जान से प्यारा था जो, वह यार छिनता जा रहा है।  

कार्यक्रम का संचालन करते हुए मयंक शर्मा ने सुनाया -

जन्म सार्थक हो धरा पर 

स्वप्न हर साकार हो। 

हम चलें कर्तव्य पथ पर 

और जय - जयकार हो। 

  राम सिंह नि:शंक ने सुनाया-

अवलम्बन इनसे मिले, राह दिखाते नेक। 

इनको हम सम्मान दें, खुशियां मिलें अपने।। 

 नकुल त्यागी ने कहा-

मानव जीवन संघर्ष भरा और अनगिन बाधा आती हैं! 

बाधाएं हैं क्षणिक और कुछ देर में ही हट जाती हैं ! 

डॉ मनोज रस्तोगी ने गीत प्रस्तुत करते हुए कहा- 

महकी आकाश में चांदनी की गंध, 

अधरों की देहरी लांघ आए छंद, 

गंगाजल से छलके नेह के पिटारे। 

मनोज वर्मा मनु ने सुनाया-

उसने भी ऐतबार जता कर नहीं किया, 

हमने भी उसे प्यार बता कर नही किया। 

समीर तिवारी ने सुनाया-

रिश्ते नातों में पतझर है, 

तरुवर की क्या बात करुं, 

बदल रहा मौसम सारा, 

घर-घर की क्या बात करुं।

ज़िया ज़मीर ने सुनाया-

जाने वालों को मुसलसल देखता रहता हूं मैं,

किस लिए जाते हैं यह भी पूछता रहता हूं मैं। 

एक दरिया है कि जो करता नहीं मुझको क़ुबूल, 

बैठ कर साहिल पे अक्सर डूबता रहता हूं मैं।।

 दुष्यन्त बाबा ने कहा-

हम भारत के शूर समर में, 

भीषण विध्वंस मचाते हैं। 

आँख उठे भारत माता पर, 

हम अपना शौर्य दिखाते हैं। 

 डॉ प्रीति हुंकार ने सुनाया-

दादा-दादी नाना-नानी, 

ये सब हैं अनुभव की खान। 

प्यारे बच्चों नित करना है, 

जीवन में इनका सम्मान।। 

पदम सिंह बेचैन ने सुनाया-

सारे आलम की खुशियां मुबारक तुम्हें, 

मेरे मालिक जन्मदिन मुबारक तुम्हें। 

जितेन्द्र कुमार जौली ने सुनाया-

दिशाहीन थे हम अज्ञानी, 

दिया आपने हमको ज्ञान।

नमन करें सौ बार आपको, 

आप ही हो मेरे भगवान।। 

इस अवसर पर बाबा संजीव आकांक्षी, इशांत शर्मा ईशु, श्रीकृष्ण शुक्ल,केपी सिंह सरल, राजीव प्रखर, आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ सहित अनेक रचनाकार उपस्थित रहे। कार्यक्रम में उपस्थित विभिन्न समाजसेवियों एवं साहित्यकारों ने रामदेव द्विवेदी जी को सम्मानित किया एवं उपहार भी भेंट किए। संस्था के महासचिव जितेन्द्र कुमार जौली ने सभी का आभार व्यक्त किया।