![]() |
| कृति का विमोचन करते प्रख्यात हास्य व्यंग्य कवि हुल्लड़ मुरादाबादी |
मित्र मंडली को जगी, वृंदावन की प्रीत।
अजित सचिन के साथ में, दुष्यंत रवि विनीत।।1।।
भक्ति रस में डूब कर, खूब किया आनन्द।
देखे केलि कुँज में, बाबा प्रेमानन्द।।2।।
राधा-मोहन के निकट, देख कालिया घाट।
कुंज गलिन में देखिए, ठाकुर जी के ठाठ।।3।।
राधा बल्लभ लाल की, लीला बड़ी विचित्र।
जैसी नजरें भक्त की, वैसा दिखता चित्र।।4।।
बांके बिहारी लाल के, दर्शन मिले अनूप।
श्याम सलोने गात में, अद्भुत सुंदर रूप।।5।।
निकुंज वट की छाँव में, बैठे भोलेनाथ।
वहीं रुद्र अष्टक किया, हम पाँचों ने साथ।।6।।
राधारमण जी हमसे, मिले सदा नाराज।
पल भर की देरी हुई, फिर से चूके आज।।7।।
निधिवन में निधियाँ झुका, वृंदा करतीं रास।
पग-पग राधा-कृष्ण का, होता है आभास।।8।।
धूप दीप नैवेद्य ले, अंतस किया अमान।
फिर नौका में बैठकर, किया दीप का दान।।9।।
इस इमली के पेड़ से, लोग हुए अनजान।
महाप्रभु चैतन्य ने, फिर से दी पहचान।।10।।
महारास से हो गईं, राधा अंतर्ध्यान।
इमली तले ही बैठकर, किया कृष्ण ने ध्यान।।11।।
यमुना जी में तैरतीं, तल-तर तरणीं तीर।
कल-कल करतीं आचमन, खारा-खारा नीर।।12।।
यहाँ बैठकर देखिए, उदय मध्य अवसान।
कितना कल-युग मुक्त है, यह टटिया स्थान।।13।।
भूख लगी थी जोर से, लंगर छका अमान।
दान दक्षिणा भेंट कर, किया शेष प्रस्थान।।14।।
अकबर दर्शन के लिए, पहुँचा जिनके धाम।
ऐसे वाद्य प्रवीन थे, हरिदासी उपनाम।।15।।
जहाँ नही है आज भी, कल-युग का सम्मान।
वृंदावन के बीच में, है इक टटिया स्थान।।16।।
देख देवरहा संत का, यमुना तीर मचान।
चंचल मनवा कह उठा, फीके महल मकान।।17।।
ऊँचे इसी मचान को, करके राधे-श्याम।
फिर से आगे बढ़ गए, हम पाँचों अविराम।।18।।
सकल वर्णनातीत है, श्री वृंदावन धाम।
गोपी-गोपी राधिका, बच्चा-बच्चा श्याम।।19।।
अगणित गौ के आश्रम, अगणित सेवा धाम।
अगणित सेवा संत की, अगणित ही घनश्याम।।20।।
लगा ब्रजरज भाल पर, चखा भक्ति का चूर्ण।
निकट गौरी-गोपाल के, परिक्रमा की पूर्ण।।21।।
✍️ दुष्यंत बाबा
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
चंदौसी का परदेसी : दुष्यंत कुमार
अलस्सुबह चना पीसते मुलायम हाथ
✍️सुरेंद्र मोहन मिश्र
(कोई भी रचनाकार जब पाठकों के बीच जाना जाने लगता है तब तक वह काफी परिपक्व हो चुका होता है. लेकिन वहां तक पहुंचने के लिए उसे किन रास्तों से गुजरना पड़ा, यह जानकारी भी पाठक के लिए उसकी रचनाओं से कम महत्त्वपूर्ण नहीं होती. दुष्यंत कुमार के बारे में ऐसी ही कुछ जानकारियां दे रहे हैं उनके छात्र जीवन के एक साथी.)
बात लगभग सन् '48 की है. मैं तब चंदौसी के एस. एम. कालेज की आठवीं कक्षा का छात्र था. उन्हीं दिनों पुलिस और छात्रों का संघर्ष बरेली में हुआ. साइकिल पर दो सवारियां बैठने पर प्रतिबंध लगाया गया था. इसी प्रतिबंध को लेकर पुलिस छात्र संघर्ष हुआ. सहानुभूति में चंदौसी के छात्रों ने हड़ताल की, नगर के सभी बाजार बंद कराये गये. पांच छात्र स्थिति का निरीक्षण करने बरेली गये. कालेज के प्रांगण में सैकड़ों छात्र बरेली के समाचार पाने के लिए एकत्रित थे. तभी घोषणा हुई कि कवि दुष्यंत कुमार 'परदेसी' बरेली का विवरण कविता में सुनायेंगे, अभी थोड़ी प्रतीक्षा करें. फिर घोषणा हुई कि दुष्यंत कुमार 'परदेसी' अपनी कविता सुनाने आ रहे हैं.
सारी सभा की नजरें हैली हॉस्टल के मुख्य द्वार की ओर उठ गयीं. मैं भी उस सभा में था. तब तक मेरे काव्य-जीवन का आरंभ नहीं हुआ था. बड़ी जिज्ञासा थी कि कवि नाम का प्राणी कैसा होता है?
तभी शोर मचा 'कविजी आ रहे हैं'. मैंने देखा - गौर वर्ण का एक तरुण खद्दर का कुर्ता - पाजामा और जवाहर-कट पहने बड़ी मस्ती से भीड़ चीरता हुआ मंच की ओर बढ़ रहा है.
कविता आरंभ हुई. उस कविता में पुलिस के अत्याचारों का अतिशयोवित-पूर्ण विवरण था.
कविता कैसी थी, यह मुझे अब स्मरण नहीं है पर कवि का व्यक्तित्व और उसका प्रभाव मेरे जीवन पर अमिट छाप छोड़ गये. इसी वर्ष मेरे काव्य-जीवन का भी आरंभ हुआ और मेरी प्रथम कविता दैनिक 'सन्मार्ग' (दिल्ली) में छपी.
चंदौसी से इसी वर्ष एक मासिक पत्रिका 'पुकार' का प्रकाशन आरंभ हुआ. संपादक थे स्वर्गीय रामकुमार राजपूत. यह पत्रिका एक वर्ष चली. दुष्यंत कुमार इसमें लिखते भी थे और संपादन में भी सहयोगी थे. मैं प्रायः पत्रिका के कार्यालय में जाता. मेरी आयु उस समय तेरह वर्ष की रही होगी. उन दिनों 'परदेसी' की लोक-प्रियता भी चंदौसी में खूब थी. स्थानीय आर्य-समाज मंदिर में गोष्ठियां होतीं. मैं तो उन दिनों अपने पारिवारिक बंधनों के कारण किसी भी गोष्ठी में सम्मिलित नहीं हो पाता था पर मित्रों से इतना पता मिलता रहता था कि 'परदेसी' पर मुग्ध होनेवाली लड़कियों की संख्या निरंतर बढ़ रही है.
दुष्यंत चंदौसी में उस समय नायक का जीवन जी रहे थे. उनके पास आने वाले प्रेम-पत्रों की संख्या काफी बड़ी थी. दुष्यंतजी के दूसरे मित्र महावीर सिंह उन दिनों बड़ी अच्छी कविता कर रहे थे. ये दोनों घंटों बैठे-बैठे अपने प्रेम-प्रसंगों की चर्चा करते रहते थे. मैं तब तक प्रेम की पीर से परिचित नहीं था. मुझे इन दोनों की बेचैनी समझ में नहीं आती थी. दोनों ही कवि विवाहित थे. घर पर सुशील और सुंदर पत्नियां होते हुए भी प्रेमिकाओं के प्रति उनका आकर्षण आज मुझे जितना स्वाभाविक लगता है, तब नहीं लगता था.
मुझे ठीक याद है कि दुष्यंतजी की एक प्रशंसिका इन पर इतना अधिक पागल हो गयी थी कि इनके साथ भागने को तैयार हो गयी थी. सारी योजना बन गयी. प्रातः 4 बजे की गाड़ी से दोनों को मुरादाबाद होकर कहीं निकल जाना था. रात्रि को महावीर सिंह ने देर तक दुष्यंतजी को समझाया. पत्नी के प्रति ही कर्तव्य की भावना को सजग किया. दुष्यंतजी तो मान गये पर इस घटना के दो वर्ष बाद ठा. महावीर सिंह ने अपनी एक प्रेमिका के द्वार पर सत्याग्रह कर ही दिया.
कई हजार उत्सुक दर्शकों के बीच ठा. महावीरजी धरना दिये हुए थे. एक तो कन्या ब्राह्मणों की थी, दूसरे ठा. महावीरजी विवाहित थे, अतः उनके इस कृत्य में कोई भी सहयोगी नहीं हो सकता था. मैं इस दृश्य को प्रत्यक्ष देखना चाहकर भी प्रत्यक्ष न देख सका था पर इतना पता लगा कि लड़की पर जब मां-बाप ने बहुत दबाव डाला तो उसने द्वार की झिरखी के पीछे खड़े होकर कह दिया, "मेरा आपसे कोई संबंध नहीं है, न मैं आपके साथ जाना ही चाहती हूं, आप यहां से चले जायें." ठाकुर साहब उस समय यह कहकर चले गये, "प्रिय, मैं जानता हूं, ये सारे शब्द तुमसे बलात कहलवाये जा रहे हैं. तुम मेरी हो और मेरी ही रहोगी."
उसी रात को 2 बजे के लगभग ठाकुर साहब घोड़ा-तांगा लेकर आये. कन्या को शायद किसी माध्यम से सूचना दे दी गयी थी. वह छत पर खड़ी प्रतीक्षा में थी. कन्या को छत से ही तांगे पर उतार लिया था. वह कन्या आज भी उनकी पत्नी है. कई बच्चों की मां है. दोनों पत्नियां साथ-साथ रह रही हैं.
..ठाकुर साहब छात्र-जीवन में अच्छे कवि थे. उनकी एक कविता कभी बड़ी प्रसिद्ध रही :
यौवन क्षणिक खुमार
कामिनी, करो न इतना मान.
दुष्यंतजी के एक कवि-मित्र थे-अभिमन्यु कुमार, आज भी हैं पर कविता नहीं लिखते.
चंदौसी का एस. एम. इंटर कॉलिज हिंदी के अनेक प्रसिद्ध साहित्यकारों, कवियों और पत्रकारों का आरंभिक साधना-स्थल रहा है. हिंदी के मूर्धन्य आलोचक डा. नगेंद्र जब यहां छात्र थे तो नगेंद्र नागायच 'अमल' के नाम से कविता करते थे.
स्व. श्री भारतभूषण अग्रवाल और डा. रामानंद तिवारी की आरंभिक साधना-स्थली चंदौसी ही रही. पत्रकारों में श्री महावीर अधिकारी का नाम लिया जा सकता है. दुष्यंत कुमार के काल में ही हिंदी के वरिष्ठ और अपने ढंग के अकेले ही गीतकार रामावतार त्यागी भी अपने गीतों की भूमिका तैयार कर रहे थे. कवि सम्मेलनों के अलावा बालीबाल टूर्नामेंट में भी उनकी आशु-कविता जो खिलाड़ियों से संबंधित होती थी, सुनने को मिल जाती थी.
दुष्यंतजी चंदौसी में गीत लिखते थे. पूरा नाम था दुष्यंत कुमार सिंह त्यागी. यों उनका 'परदेसी' उपनाम ही अधिक लोकप्रिय रहा.
चंदौसी से दुष्यंत कुमार प्रयाग विश्वविद्यालय पहुंचे और वहां से "विहान' नामक पत्रिका का एक अंक निकाला जिसमें कमलेश्वर और मार्कडेय भी सहयोगी थे. आगे चलकर ये तीनों ही संपादक अपनी विधाओं के अग्रणीय लेखक बने.
दुष्यंत कुमार की मुक्तछंद की कविता प्रथम बार 'विहान' में ही देखने को मिली. कविता कुछ यों थी :
पौ फूटी है
दर्द टीसने लग गया,
अलस्सवेरे बहुत मुलायम हाथ
चना पीसने लग गया.
चंदौसी के साथ दुष्यंतजी की अनेक मधुर स्मृतियां जुड़ी हुई हैं. जब भी कभी चंदौसी आते थे, अपनी पूर्व प्रेमिकाओं के कुशलक्षेम अवश्य पूछ लेते थे. पीने का शौक प्रयाग की ही देन रहा जिसने मृत्युपर्यंत दुष्यंत को नहीं छोड़ा. यही शौक हिंदी गजलों के इस अकेले मनचले सम्राट को हमारे बीच से असमय उठा ले गया.
हिंदी संसार का दुष्यंत कुमार, पर चंदौसी का 'परदेसी' इतनी शीघ्र हम सबसे 'परदेसी' हो जायेगा, यह किसे कल्पना थी.
:::: प्रस्तुति::::
डॉ मनोज रस्तोगी
संस्थापक
साहित्यिक मुरादाबाद शोधालय
8, जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
वाट्स एप नम्बर 9456687822
जगमग है दीपावली, उसको आती लाज।।1।।
ज्यों दीपों की ज्योत से मिटे धरा का शोक।
ऐसे ही करते रहें जग भर में आलोक।।2।।
दीप देहरी पर सखे, करें प्रज्वलित आप।
धन्वंतरि काटें सभी, पाप ताप, संताप।।3।।
जो समर्थ हैं बाल दें, दीपक कई हजार।
घना ॲंधेरा दूर हो, जगमग सब संसार।।4।।
कोना कोना झाड़ कर, स्वच्छ करें घर द्वार।
मन के नरकासुर मिटें, खुशियां मिलें हजार।।5।।
दीप और रंगोलियां, तोरण वंदनवार।
लक्ष्मी स्वागत हेतु सब, सजे हुए घर द्वार।।6।।
मात्र कनिष्ठा पर उठा, गोवर्धन गिरि राज।
कौतुक लीलाधर किया, हर्षित गोप समाज।।7।।
मिल जुलकर सबने लिया, अन्नकूट का भोग।
सिखा दिया श्रीकृष्ण ने, समरसता का योग।।8।।
यमुना के घर यम गये, हुआ खूब सत्कार।
भगिनी को निज बंधु से, मिला प्यार उपहार।।9।।
सुख संपति वैभव बढ़े, और बढ़े व्यापार।
मंगलमय हो आपको, दीपों का त्योहार।।10।।
✍️ श्रीकृष्ण शुक्ल
T-5/1103
आकाश रेजीडेंसी एपार्टमेंट्स
आदर्श कालोनी, कांठ रोड
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
धनतेरस पर हो भला, उनमें क्या उल्लास।।1।।
खील-बताशे-फुलझड़ी, दीपों सजी क़तार।
ले आई दीपावली, कितने ही उपहार।।2।।
हो जाये संसार में, निर्धन भी धनवान।
लक्ष्मी माता दीजिए, कुछ ऐसा वरदान।। 3।।
हो जाये संसार में, अँधियारे की हार।
भर दे यह दीपावली, हर मन में उजियार।। 4।।
निर्धन को देें वस्त्र-धन, खील और मिष्ठान।
उसके मुख पर भी सजे, दीपों सी मुस्कान।। 5।।
दीवाली के दीप हों, या होली के रंग।
इनका आकर्षण तभी, जब हों प्रियतम संग।।6।।
✍️ओंकार सिंह विवेक
रामपुर
उत्तर प्रदेश, भारत
सबसे पहले सुमर लें,गणपति जी की बात।।1।।
अंतर्मन गणपति बसा, जीमे छप्पन भोग।
मोदक सोहे हाथ में, कैसा शुभ संयोग।।2।।
राम चरित मानस भला,सु रचित तुलसी संत।
जन -मन की पीड़ा हरे, करें कष्ट का अंत।।3।।
इस अंधेरी रात में, दीप दिखाता राह।
सुमिरन हो श्री राम का, कष्टों का हो दाह।।4।।
श्वास -श्वास में राम हैं, तन में मन में राम।
हर पल मन यह गा रहा,राम नाम अविराम।।5।।
राम नाम विश्वास है, सुमिरन का आधार।
राम नाम की नाव से, भव सागर हो पार।।6।।
दीप कहो दीपक कहो, या कहो शुभ चिराग।
उर सदा उल्लसित रहे, गूंँजे जीवन राग।।7।।
सूनि देहरी साजते, जलते बाती तेल।
जलते दीपक कह रहे,बिछड़ों का हो मेल।।8।।
पिता तुल्य इह लोक में, अन्य नहीं इनसान।
हर बालक के मन बसा, यथा होत भगवान।।9।।
सारी धरती गेह है, अंबर तक फैलाव।
मानवता अपनाइए, तब ही होत लगाव।।10।।
✍️शशि त्यागी
अमरोहा
उत्तर प्रदेश, भारत
आओ तम को दूर भगायें।
अन्तर्मन को करें प्रकाशित,
जन-जन में जागृति हम लायें।
मन के कलुषित पाप मिटेंगे,
द्वेष कुहासा छट जायेगा।
जीवन है अनमोल धरा पर,
हर बन्धन फिर कट जायेगा।
मुक्त कण्ठ से गीत खुशी के,
आओ सब मिलजुलकर गायें।
दीप प्रज्ज्वलित करके यारो
आओ तम को दूर भगायें।
सुख,समृद्धि अरु खुशहाली का
सूर्य उदय होगा घर-घर में।
निर्धन की किस्मत चमकेगी
खूब धान्य होगा हर कर में।
मुस्काते बच्चों के चेहरे,
उछल-कूद करते इतरायें।
दीप प्रज्ज्वलित करके यारो,
आओ तम को दूर भगायें।
चौदह बरस बाद फिर रघुवर
लौटेंगे अपने महलों में।
वनवासी कष्टों को सहकर
दुष्ट दलन कर कठिन पलों में।
सभी नगरवासी खुश होकर
स्वागत में हँस दीप जलायें।
दीप प्रज्ज्वलित करके यारो
आओ तम को दूर भगायें।
✍️नवल किशोर शर्मा नवल
बिलारी
जनपद मुरादाबाद
उत्तर प्रदेश, भारत
हर तरफ दिखता उजाला, आज तो दीपावली है।।
हो रहे बच्चे मगन सब, छोड़कर वे बम पटाखे।
फुलझड़ी को छोड़ने की, होड़ अब उनमें चली है।।
झालरें अब टँग रही हैं, द्वार, घर, दीवार पर।
रोशनी से जगमगाती, दिख रही सुंदर गली है।।
बन रहे पकवान घर-घर, गृहणियाँ मिलकर बनातीं,
एक पूड़ी बेलती है, दूसरी ने फिर तली है।।
बेटियाँ आँगन सजातीं, खींचकर सुंदर रँगोली।
दिख रहा सुंदर अधिक है, घर जहाँ छोटी लली है।।
पूजते 'ओंकार' मिलकर, आज देवी लक्ष्मी को।
स्वच्छ मन से पूजता जो, लक्ष्मी उसको फली है।।
✍️ओंकार सिंह 'ओंकार'
मुरादाबाद 244001
भारत, उत्तर प्रदेश
मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति द्वारा हिन्दी दिवस पर विश्नोई धर्मशाला , लाइनपार में सम्मान समारोह एवं काव्य-गोष्ठी का आयोजन 14 सितम्बर 2025 को किया गया जिसमें मुरादाबाद के वरिष्ठ रचनाकार राजीव सक्सेना को संस्था की ओर से 'हिन्दी साहित्य गौरव सम्मान' से अलंकृत किया गया। सम्मान स्वरूप श्री सक्सेना को अंगवस्त्र, मानपत्र एवं सम्मान राशि प्रदान की गयी। सम्मानित रचनाकार श्री राजीव सक्सेना को प्रदत्त मानपत्र का वाचन प्रशांत मिश्र ने किया।
रामसिंह निशंक द्वारा प्रस्तुत माॅं शारदे की वंदना से आरंभ हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ. रमेश यादव 'कृष्ण' ने की। मुख्य अतिथि ओंकार सिंह ओंकार एवं विशिष्ट अतिथि के रूप में डॉ. कृष्ण कुमार नाज़ उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन राजीव 'प्रखर' द्वारा किया गया। सम्मानित साहित्यकार राजीव सक्सेना ने कहा - "हिन्दी की प्रगति का प्रमाण यह है कि उसका बाजार पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ा है यद्यपि हिन्दी के सम्मुख कुछ भाषा विकृति की समस्या भी है। इसके बावजूद हिन्दी आम व्यक्ति तक लगातार पहुॅंच बना रही है। वर्तमान साहित्यकारों की पीढ़ी का यह दायित्व है कि वह इन विकृतियों को दूर करने के लिए भी प्रयत्नशील रहे। कार्यक्रम के अगले चरण में काव्य-गोष्ठी हुई जिसमें अमर सक्सेना, प्रशांत मिश्र, राजीव प्रखर, रामसिंह निशंक, डॉ मनोज रस्तोगी, हरि प्रकाश शर्मा, विवेक निर्मल, चिरंजीलाल, डॉ. राकेश चक्र, रामगोपाल, योगेन्द्र पाल विश्नोई, डॉ. कृष्ण कुमार नाज़, ओंकार सिंह ओंकार एवं रमेश यादव कृष्ण ने हिन्दी की महिमा गरिमा को दर्शाती काव्यात्मक एवं गद्यात्मक अभिव्यक्ति की। रामसिंह निशंक द्वारा आभार अभिव्यक्ति के साथ कार्यक्रम समापन पर पहुॅंचा।