बुधवार, 25 जून 2025

मुरादाबाद के साहित्यकार राशिद हुसैन की ग़ज़ल....


मौहब्बत की दुनिया बसाने से पहले ।

कोई ग़म न था तेरे आने से पहले।। 


बिछड़ने की इतनी कहानी है अपनी ।

खफा वो हुए आज़माने से पहले।।


खुशी इस कदर कोशिशों से मिली थी।

के हम रो पड़े मुस्कुराने से पहले ।।


न रह पाए हम लब हिलाने के काबिल।

उन्हें हाल दिल का सुनाने से पहले।।


हमें उम्र भर की मिलेगी जुदाई ।

ये सोचा न था दिल लगाने से पहले।।


मनाने का हमको तरीका बता दो।

सनम बेसबब रूठ जाने से पहले।।


तुम्हारी भी आंखों से आंसू बहेंगे। 

मेरी हर निशानी मिटाने से पहले।।


तड़पता न दिल इस तरह मेरा हमदम।

बताते तो कुछ दूर जाने से पहले।।


मुझे आ दबोचा अंधेरों ने रशिद।

मेरी जिंदगी जगमगाने से पहले।।


✍️ राशिद हुसैन 

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद की संस्था जैमिनी साहित्य फाउंडेशन की ओर से 22 जून 2025 को आयोजित समारोह में डॉ मनोज रस्तोगी के संपादन में प्रकाशित डॉ मुहम्मद जावेद की कृति किस्से कहानियां का लोकार्पण



 मुरादाबाद की संस्था जैमिनी साहित्य फाउंडेशन की ओर से महाराजा हरिश्चन्द्र स्नातकोत्तर महाविद्यालय में रविवार 22 जून 2025 को आयोजित समारोह में युवा साहित्यकार डॉ मुहम्मद जावेद की कृति किस्से कहानियां (लोक कथाएं) का लोकार्पण किया गया। इस कृति का संपादन वरिष्ठ साहित्यकार डॉ मनोज रस्तोगी ने किया है। 

 फाउंडेशन के संस्थापक स्मृतिशेष डॉ विश्व अवतार जैमिनी के  चित्र पर माल्यार्पण से आरम्भ समारोह की अध्यक्षता करते हुए सोशल एक्टिविस्ट डॉ राकेश रफीक ने कहा लोक कथाओं के माध्यम से बच्चे अपनी संस्कृति और समाज से समरसता कायम कर लेते थे। आज मैकाले शिक्षा पद्धति और संयुक्त परिवारों के विघटन ने बच्चों को अपनी सांस्कृतिक, सामाजिक परंपराओं और विरासत से वंचित कर दिया है।

   मुख्य अतिथि बाल संरक्षण आयोग के पूर्व अध्यक्ष डॉ विशेष गुप्ता ने कहा लोक कथाओं के माध्यम से जहां हम अपनी संस्कृति, सभ्यता और जीवन मूल्यों से परिचित होते हैं वहीं वह हमें संस्कारित भी करती हैं।

     जैमिनी साहित्य फाउंडेशन की संरक्षिका आशा जैमिनी ने कहा लोक कथाओं का उद्‌देश्य मनोरंजन करना कभी नहीं रहा। इनके माध्यम से अनुभवों का आदान प्रदान, मानवता की शिक्षा, सद्कर्म  का महत्व, अनुचित कार्यों से दूर रहने का संदेश दिया जाता रहा है।

     फाउंडेशन के अध्यक्ष डॉ काव्य सौरभ जैमिनी ने कहा लोककथाएं हमें मनोरंजन के साथ साथ आत्म सम्मान, साहस और पारस्परिक सद्‌‌भावना के साथ जीवन जीने की कला सिखाती हैं।

        कृति के संपादक डॉ मनोज रस्तोगी ने संचालन करते हुए कहा लालपुर गंगवारी  गांव में जन्में डॉ मुहम्मद जावेद की यह कृति जैमिनी साहित्य फाउंडेशन द्वारा युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच लखनऊ के सहयोग से प्रकाशित हुई है। इस कृति में पचास शिक्षाप्रद लोककथाएं है। स्मृतिशेष विश्व अवतार जैमिनी को समर्पित यह कृति न सिर्फ विस्मृत हो चुकीं लोककथाओं को जन-जन तक पहुंचाने का कार्य करेगी बल्कि उन्हें संरक्षित करने में भी योगदान देगी। 

     जे. एल. एम, इंटर कालेज कुंदरकी के पूर्व प्रधानाचार्य मुहम्मद इरफान ने कहा  बच्चों को संस्कारित करने में लोक कथाओं का सर्वाधिक योगदान है। डॉ मुजाहिद फराज ने कहा इंटरनेट के युग में  किस्से-कहानियों से नई पीढ़ी का दूर हो जाना चिंताजनक है। योगेन्द्र वर्मा व्योम ने कहा आज माता पिता की व्यस्तता और मोबाइल फोन ने बच्चों को लोक कथाओं से दूर कर दिया है। फरहत अली खान ने बाल पत्रिकाओं और बाल साहित्य से बच्चों को जोड़ने पर जोर दिया। उर्दू साहित्य शोध केंद्र के संस्थापक डॉ मुहम्मद आसिफ हुसैन ने कहा डॉ जावेद ने सरल भाषा और रोचक शैली में लोक कथाओं को प्रस्तुत किया है।

   समारोह में डॉ प्रेमवती उपाध्याय, डॉ राकेश जैसवाल, हरि प्रकाश शर्मा, प्रो रियाजउद्दीन, हाजी अतीक, अजीजुर्रहिम, डॉ राकेश चक्र, डॉ पूनम बंसल, मुजाहिद चौधरी, धवल दीक्षित,मुशाहिद पाशा, दुष्यंत बाबा, असद मौलाई, मनोज मनु, कौशल क्रांतिकारी, डॉ कृष्ण कुमार नाज, डॉ रामानंद बाजपेई, जाबिर हुसैन,राशिद हुसैन, डॉ उजैर, मुहम्मद शावेज़ आदि ने भी विचार व्यक्त किए।  आभार डॉ  मुहम्मद जावेद ने व्यक्त किया।
























































बुधवार, 18 जून 2025

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ रीता सिंह की तीन बाल कविताएं


 [1] दादी-दादा घर में होना

दादी-दादा घर में होना

सुख जैसे है दूना होना ,

बातें करता कल भी आँगन 

बोले घर का कोना-कोना ।।


सूनेपन को पड़ता सोना 

आलस को है आये रोना ,

खेल-खेल में सब कुछ सीखे

मुन्ने का मन बनता सोना ।


कथा कविता गिनती पहाड़े

वन में कैसे सिंह दहाड़े ,

अनगिन किस्से और कहानी 

मुन्नी सुनती रोज जुबानी ।


नानी - नाना कहते मोना

बीज प्रेम के ही तुम बोना

सिर पर उनका हाथ रहे जब

नहीं पड़ेगा कुछ भी खोना ।


[2] चिड़िया आँगन आकर बोले

चिड़िया आँगन आकर बोले

रस की गोली मुंह में घोले ।

आओ राजू तुम भी खेलो

मोबाइल से छुट्टी ले लो ।


सारे साथी बाहर आओ

मिलजुल कर है रेल बनाओ ।

खेल-खेल में दाना खाओ

दाना खाकर सेहत पाओ ।


फुदक-फुदक है मस्ती कर लो

चहक-चहक दुख सब के हर लो ।

साथी से है मन की कह लो

बचपन को है खुलकर जी लो ।।


धूप भोर की मन को भाये

खेल-कूद सेहत बन जाये ।

अपनी एक टोली बन जाये

पड़े जरूरत साथ निभाये ।


(3)सदाबहार 

पौधा प्यारा सदाबहार 

देता फूलों का उपहार, 

रंग गुलाबी और सफेद

पंचमुखी-सा है आकार ।


मधुमेह का करे उपचार 

पत्ती-पत्ती है उपकार,

बढ़ जाता है अपने आप

सुंदर लगती इससे क्यार ।


देता बारह मासों फूल

हरा-भरा खिलता बिन शूल,

हँसता रहता है दिन- रात

मानो करता कभी न भूल ।



✍️डॉ. रीता सिंह 

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद के साहित्यकार ओंकार सिंह 'ओंकार' की दो सजलें



[1] 

शान्त पिपासा कैसे होगी, धन से अब धनवान की ।

व्याधि न जब तक कम हो उसके, जीवन से अज्ञान की ।।


पाते हैं सम्मान जगत में, धनपति या बलवान अब ।

चर्चा कभी नहीं होती है,  त्याग और बलिदान की ।।


नित्य नए हथियार बढ़ रहे, धरती पर हर देश में ।

क्या रक्षा हथियार करेंगे, निर्धन जन के प्रान की।।


दो देशों के बीच युद्ध में,     रक्त सने हथियार हैं ।

निकले जो भट्टी में ढलकर, किसी एक अनजान की।।


धौंस जमाने को औरों पर,    लगती रहती होड़ है ।

लगता है दलदल में सब हैं, स्वार्थ और अभिमान की।।


दुख  के पंख अमर होते हैं, मन हर दुख का स्रोत है ।

दुख की तो आधारशिला है, इच्छा के अवधान की।। 


आशा पर अवसाद घिरा जो,  'ओंकार' वह दूर करें।

मुरझाए- अधरों पर फूटे, कलियाँ चिर मुस्कान की।। 

[2] 

लगा- लगाकर पेड़, धरा-शृंगार करेंगे। 

करें प्रदूषण मुक्त, सुखी संसार करेंगे।। 


उन्नत अपना देश, बनाने का है ठाना। 

विना किसी व्यवधान, स्वप्न साकार करेंगे।। 


सफल करें सब काम, बुद्धि-श्रम साथ मिलाकर। 

बदलेगा परिवेश,           प्रबल आधार करेंगे।। 


मिल-जुलकर सब लोग, रहेंगे इस धरती पर। 

कठिनाई कर दूर,  अल्प  दुख-भार करेंगे।। 


हे कविवर 'ओंकार', धरा पर होंगी खुशियाँ। 

जब दुनिया के लोग,  परस्पर प्यार करेंगे।। 


✍️ओंकार सिंह 'ओंकार' 

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

रविवार, 15 जून 2025

मुरादाबाद मंडल के साहित्य के प्रसार एवं संरक्षण को पूर्ण रूप से समर्पित संस्था साहित्यिक मुरादाबाद की ओर से साहित्यकार स्मृतिशेष राजेन्द्र मोहन शर्मा श्रृंग की जयंती 12 जून 2025 को आयोजित सम्मान समारोह एवं संगोष्ठी में राजेन्द्र मोहन शर्मा श्रृंग' स्मृति सम्मान से रामदत्त द्विवेदी को किया गया सम्मानित






मुरादाबाद मंडल के साहित्य के प्रसार एवं संरक्षण को पूर्ण रूप से समर्पित संस्था साहित्यिक मुरादाबाद की ओर से साहित्यकार स्मृतिशेष राजेन्द्र मोहन शर्मा श्रृंग की जयंती 12 जून 2025 को  सम्मान समारोह एवं संगोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें हिन्दी साहित्य के प्रति समर्पण एवं सक्रियता के लिए वयोवृद्ध साहित्यकार रामदत्त द्विवेदी को अंगवस्त्र, मानपत्र, श्रीफल भेंट कर राजेन्द्र मोहन शर्मा श्रृंग स्मृति सम्मान से सम्मानित किया गया। इस अवसर पर अखिल भारतीय साहित्य कला मंच ,वर्णन प्रकाशन, हेमा तिवारी भट्ट और मनोज मनु द्वारा भी उन्हें सम्मानित किया गया।

    मिलन विहार स्थित आकांक्षा विद्यापीठ इंटर कॉलेज में आयोजित समारोह का शुभारंभ मनोज व्यास द्वारा स्मृतिशेष पंडित मदन मोहन व्यास रचित मां सरस्वती वंदना की  प्रस्तुति से हुआ। साहित्यिक मुरादाबाद के संस्थापक डॉ मनोज रस्तोगी ने स्मृतिशेष राजेन्द्र मोहन शर्मा श्रृंग का जीवन परिचय प्रस्तुत करते हुए कहा कि 12 जून 1934 को जन्में राजेन्द्र मोहन शर्मा श्रृंग ने हिन्दी साहित्य की विभिन्न विधाओं में लेखन किया।  उनकी तीन कृतियां अर्चना के गीत, शकुंतला और मैंने कब ये गीत लिखे हैं प्रकाशित हो चुकी हैं। अप्रकाशित रचनाओं में मुक्तक शतक (मुक्तक संग्रह), गहरे पानी पैठ (लघुकथा संग्रह), श्रृंगारिकता( मुक्त छंद), सीख बड़ों ने हमको दी (बालोपयोगी कविताएं), भूली मंजिल भटके राही, अंबर के नीचे (कहानी संग्रह), अंतर्दृष्टि , लेखांजलि, साहित्य के गवाक्ष में मुरादाबाद (मुरादाबाद के साहित्यकारों के व्यक्तित्व व कृतित्व पर विवेचनात्मक लेख) उल्लेखनीय हैं। उनका देहावसान 17 दिसंबर 2013 को हुआ।

    कार्यक्रम सह संयोजक जितेन्द्र कुमार जौली ने सम्मानित विभूति रामदत्त द्विवेदी का जीवन परिचय प्रस्तुत करते हुए कहा कि 30 जून 1937 को रामपुर की तहसील शाहबाद में पंडित गोपाल दत्त द्विवेदी एवं कैलाशो देवी के पुत्र के रूप में जन्में रामदत्त द्विवेदी हिन्दी साहित्य के प्रति समर्पित भाव से सक्रिय हैं। उनकी दो काव्य-कृतियां 'हम अंधेरों को मिटायें' और 'खुद को बदलना होगा' प्रकाशित हो चुकी हैं। वह हिन्दी साहित्य संगम के अध्यक्ष भी हैं।

     इस अवसर पर साहित्यकारों द्वारा राजेन्द्र मोहन शर्मा श्रृंग के गीतों की प्रस्तुति भी की गई। मनोज मनु ने उनका गीत .... ज्योति की राह पर रख दिए जो चरण, वे चरण बढ़ गए फिर रुके ही नहीं, मीनाक्षी ठाकुर ने उनका गीत लग रही आज है आग़ इस देश में तुम गगन से अंगारे गिराओ नहीं प्रस्तुत किया।

   कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए डॉ महेश दिवाकर ने कहा कि छह दशक से भी अधिक हिन्दी की निरंतर बहुआयामी सेवा करने वाले राजेंद्र मोहन शर्मा 'श्रृंग' साहित्यिक संस्था हिंदी साहित्य संगम' के संस्थापक अध्यक्ष थे। वे अपने आपमें एक संस्था थे! सृजन और संयोजन का उनका व्यक्तित्व पर्याय था! उनकी स्मृति को जीवंत रखने हेतु श्री रामदत्त दिवेदी जी को उनकी बहु आयामी हिंदी सेवा के लिए 'श्रृंग'- सम्मान से सम्मानित करना निश्चित ही स्तुत्य है।

   मुख्य अतिथि बृजेंद्र सिंह वत्स ने कहा राजेंद्र मोहन शर्मा युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणास्त्रोत हैं । उन्होंने अपनी संस्था के माध्यम से मुरादाबाद में साहित्यिक गतिविधियों को बढ़ावा दिया।

   डॉ अजय अनुपम ने कहा उन्होंने मुरादाबाद में अंग्रेजी हटाओ आंदोलन में भी सक्रिय भागीदारी निभाई। यही नहीं उन्होंने अपने हस्तलेख में मासिक पत्र प्रकाशित कर साहित्य सेवा का अनूठा उदाहरण प्रस्तुत किया।

श्रीकृष्ण शुक्ल ने कहा कि वह ऋतुराज उपनाम से कहानियां लिखा करते थे, मच्छर मुरादाबादी उपनाम से हास्य कविताएं लिखते थे और गीतोंं का सृजन श्रृंग उपनाम से करते थे। 

हरि प्रकाश शर्मा ने कहा कि उन्होंने हस्तलिपि में एक साहित्य संवाद नामक मासिक पत्र भी निकाला जिस में कविता, कहानी,संस्मरण आदि सम्मिलित रहते थे।

डॉ प्रेमवती उपाध्याय ने कहा सहज सरल व्यक्तित्व के धनी और हिन्दी को समर्पित स्मृतिशेष राजेन्द्र मोहन शर्मा साहित्यिक पाठशाला के अनुशासित प्राध्यापक थे।

राजीव सक्सेना ने कहा स्मृति शेष राजेंद्रमोहन शर्मा श्रृंग जी केवल एक  गीतकार ही नहीं थे अपितु एक प्रतिबद्ध साहित्यकार भी थे जिनके लिए साहित्य एक जुनून था तभी उन्होंने हिंदी साहित्य  संगम जैसी साहित्यिक संस्था का गठन कर प्रत्येक माह नियमित रूप से इसकी गोष्ठियों का आयोजन किया और युवा साहित्यकारों की एक पौध भी तैयार की ।

   कार्यक्रम संयोजक योगेन्द्र वर्मा व्योम का आलेख प्रस्तुत करते हुए आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ ने कहा श्रृंग जी के गीतों में श्रंगार और प्रकृति चित्रण के साथ साथ छायावाद की छाया भी दिखाई देती है। उनके गीतों की भाषा आम जनभाषा के साथ साथ विशुद्ध संस्कृतनिष्ठ हिन्दी भी है।

अशोक विद्रोही ने उन्हें काव्यात्मक श्रद्धांजलि इस तरह दी....

हे कवि-कभी आकर देखो

अपने संगम की महफिल में।

जो दीप जलाया था तुमने,

न उसकी ज्योति हुई फीकी।

उत्साहित स्वर अब भी गुंजित ,

गीतों की तान नहीं रीती।

     डॉ कृष्ण कुमार नाज ने कहा कि वह जितने अच्छे साहित्यकार थे, उससे भी बहुत अच्छे इंसान थे। चश्मे के पीछे झाँकती हुई दो चमकदार आँखें, होंठों पर निरंतर अठखेलियाँ करती मुस्कान, सभी से हँसकर मिलना, सभी से उनकी और उनके परिवार की ख़ैर-ख़बर लेते रहना, उनके व्यक्तित्व की विशेषताएँ थीं।

डॉ पूनम बंसल, डॉ प्रदीप शर्मा, हेमा तिवारी भट्ट, चंद्रहास कुमार हर्ष, अल्पना मिश्रा, खुशबू शर्मा ने भी विचार व्यक्त किए।

      इस अवसर पर दुष्यंत बाबा, वीरेंद्र सिंह बृजवासी, प्रदीप  विरल, राम सिंह निशंक, घनश्याम सिंह चौहान, रूप चंद्र गोयल, जिया जमीर, फरहत अली, नकुल त्यागी, मोहम्मद जावेद,धवल दीक्षित, पदम सिंह बेचैन, नकुल त्यागी, श्याम रस्तोगी, मुकुल व्यास, एल  एस तोमर, अमर सक्सेना, कमल शर्मा, विवेक कुमार निर्मल, शर्मिष्ठा मिश्रा, राखी शर्मा, नीति शर्मा, प्रतीक्षा शर्मा आदि उपस्थित रहे। 

   उल्लेखनीय है इससे पूर्व संस्था द्वारा स्मृतिशेष रामलाल अनजाना, स्मृतिशेष डॉ मक्खन मुरादाबादी, स्मृतिशेष पंडित सुरेन्द्र मोहन मिश्र और स्मृतिशेष पंडित मदन मोहन व्यास की पावन स्मृति में आयोजन किया जा चुका है जिसमें क्रमशः वरिष्ठ साहित्यकारों ओंकार सिंह ओंकार , त्यागी अशोका कृष्णम, सुरेश चंद्र शर्मा तथा रामावतार रस्तोगी शरणागत को सम्मानित किया जा चुका है ।

















































































आयोजन से पूर्व  विभिन्न समाचार पत्रों में प्रकाशित समाचार .....….