रविवार, 13 जुलाई 2025

मुरादाबाद के साहित्यकार उमाकान्त गुप्त की एक रचना जिन्दगी के नाम

 


ऐ मेरी जिन्दगी साथ चल तू जरा,

तुझको सच मै दिखा दूं यहां का जरा। 


कौन किसका भला बन सका है यहां,

स्वार्थ की सब दुकानें खुली हैं यहां। 


मज़हबी इस जहां के,सभी रंग हुए, 

रंग कैसा चुनेगी,बता तू  यहां ।


अट्टालिका व्यथा हर,छपती यहां,

मड़ैया की सदा, कौन सुनता यहाँ। 


आद्र स्वर तंग गलियों का तू भूलकर, 

राजपथ की हुई,अनुगामिनी यहां ।


✍️उमाकान्त गुप्त 

सिविल लाइन

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत


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