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1.
बाढ़!नदी की जब भी बदले बहती धारा
तहसीलों में हो जाता है वारा - न्यारा
सुनवाई पर लग जाते हैं खास मुकदमे
आम आदमी फिरता रहता मारा-मारा
लोकतंत्र की उनको चिंता सबसे ज़्यादा
कर घोटाले मान जिन्होंने पाया सारा
धूल फाइलें रहीं चाटती दफ्तर में ही
नेग नहीं जब तक हमने बाबू पर वारा
खपा ज़िन्दगी एक मुकदमे में ही अपनी
जीत गया वह अपना सबकुछ हारा-हारा
लगना तो था सीमेंट मगर मिलीभगत से
लगा पड़ा है मिल रेते में खालिस गारा
2.
तेल निकल आया घानी में,पता चलेगा चार जून को
कौन रहा कितने पानी में,पता चलेगा चार जून को
हाथ लगा कुछ या सूने ही रस्ते नापे गाल बजाते
हासिल क्या कड़वी बानी में,पता चलेगा चार जून को
सबने अपना ज्ञान बघारा जितना था उससे भी ज़्यादा
अंतर ज्ञानी-अज्ञानी में,पता चलेगा चार जून को
अपनी-अपनी हाँक रहे सब किसकी पार लगेगी नैया
किसकी भैंस गई पानी में,पता चलेगा चार जून को
लड्डू खाकर उछलोगे या,सोचोगे तुम पिछड गए क्यों
इस सत्ता की अगवानी में,पता चलेगा चार जून को
गोढ़ रखी थीं हर दिन गाली शब्दकोश के बाहर की सब
क्या निकला खींचातानी में,पता चलेगा चार जून को
मजबूरी में हाथ मिले थे या स्वाभाविक थे गठबंधन
हारे किसकी निगरानी में,पता चलेगा चार जून को
इनके दावे उनके दावे झूठे सच्चे कैसे भी हैं
दम निकला किसकी नानी में,पता चलेगा चार जून को
जाने कैसे क्या कर बैठे और कहाँ पर गच्चा खाया
समझदार ने नादानी में,पता चलेगा चार जून को
3.
दिनभर हाथ राम के जोड़े
और रात को कूमल फोड़े
वैद्य दवा तब लेकर आए
रिसन लगे जब सबके फोड़े
निकल गए सब छापों में ही
बिना कमाए जितने जोड़े
वोट बढ़ाने की कोशिश में
बैठे हार अक्ल के घोड़े
गाली पर गाली दे गाली
कीर्तिमान सदियों के तोड़े
जूँ ना रेंगी किसी कान पर
रेवड़ियों ने रस्ते गोड़े
मिलीभगत की लूट-पाट ने
कूप सभी खाली कर छोड़े
आजादी में ठाठ हमारे
पुरखों ने खाए थे कोड़े
जो भी आए पार उतरने
पाप किए हैं ज्यादा थोड़े
4.
वादे आए भर-भर बोरी
पूर्ण हुए कुछ कुछ की चोरी
है वेतन अब लाखों में, पर
नहीं छूटती रिश्वतखोरी
चिज्जी देती माँ बच्चों को
छुपा-छुपाकर चोरी-चोरी
चक्कर काट अदालत के भी
नहीं मानते छोरा-छोरी
ब्लैक कलर का लड़का भी तो
दुल्हन चाहे चिट्टी गोरी
पास निरंतर हो जाता है
कॉपी रखकर आता कोरी
बाँस बाँसुरी तब बनता है
करनी पड़ती उसमें सोरी
सुनते ही बच्चे सो जाते
ऐसी औषधि माँ की लोरी
पूरे घर की देखभाल को
खुली छोड़ते घर में मोरी
5.
इधर-उधर संकट ही संकट कहने को है बात जरासी
प्यास बुझाई जिसने सबकी है वर्षों से खुद वह प्यासी
जग भर का साहित्य व्यस्त है एक कहानी की चर्चा में
पढ़ कर देखो उपन्यास है कहने को है सिर्फ कथा सी
गौरव मिलना बहुत जरूरी उस नट को भी कलाकार सा
खेल खिलाती जिसकी मुनिया लगती सबको पूर्ण कला सी
अब तो बेटी बदल रही है किस्मत अपने घर वालों की
बेटा घर में ना होने पर पसरी क्यों फिर आज उदासी
सबके घर में बच जाता है ज्यादा या फिर थोड़ा खाना
फिर भी अपने इर्द-गिर्द ही रहती क्यों है भूख बला सी
अरमानों की फूँके होली मन मारे सब खड़े हुए हैं
भीड़ देखिए सबके सब ये बनने आए हैं चपरासी
चन्दा पर तो प्लाट कटेंगे होगी खेती-बाड़ी शायद
कौन चाँदनी बिखरायेगा सोच रही है पूरनमासी
6.
किस दुनिया में पहुँची माँ ।
प्यारी - प्यारी मेरी माँ ।।
पड़ी दूध में रहती थी,
सदा बताशे जैसी माँ ।।
उपवन सब बेकार लगे,
जब फूलों सी खिलती माँ ।।
मेरी भूल दिखावे को,
बादल जैसी तड़की माँ ।।
लगी सदा थी खिचड़ी में,
देसी घी के जैसी माँ ।।
मैंने भी कविता लिक्खी,
लिखवाने वाली भी माँ ।।
7.
हँसते रहिए , हँसते रहिए
और दिलों में बसते रहिए।
इस दुनिया को हँसी बाँटकर
ख़ुश रखने को जगते रहिए।
बतरस में जिसने विष घोला
उस विषधर को डसते रहिए।
दुख बोता है जो जीवन में
उससे थोड़ा बचते रहिए।
जग फुव्वारा एक हँसी का
इसमें खुद भी खिलते रहिए।
सौ मर्जों की एक दवा है
मार ठहाके हँसते रहिए।
हँसी चीरती सन्नाटों को
इसकी कसरत करते रहिए।
8.
तालमेल यदि है तो घर की गाड़ी आप धिकलती है
गलियारे गाने लगते हैं जब बारात निकलती है
साँझ-सवेरे अपने हों तो दिन भी अपना ही समझो
वरना पैरों के नीचे से मंज़िल रोज़ फिसलती है
धाराशाई तब हो जाते हैं पहलवान नौसिखियों से
जब दंगल में उनसे उनकी ही तकदीर विचलती है
मतदाता को झोंक दिया है जात औरआरक्षण में
वोट विभाजन की चतुराई नेताओं को फलती है
बोझ लाद कर के फ्यूचर का भेज दिया था कोचिंग को
खबर आत्महत्या की आई जाने किसकी ग़लती है
राजनीत के दल सारे ही दुबले निर्धन के मारे
किन्तु ग़रीबी जम बैठी है घर से नहीं निकलती है
9.
इधर-उधर जो करना था वह कर बैठा है
अब भीतर-भीतर उसका ही डर बैठा है
आखिरकार नहीं सुधरा उद्दंडी बालक
विद्यालय से नाम कटा अब घर बैठा है
खेती जिसको दी बोने को,रखवाली को
जाने किस हिकमत से उसको चर बैठा है
आना-जाना नहीं छूटता उसके घर का
कहता रहता है वह उस पर मर बैठा है
नहीं मयस्सर थी जिसको सूखी रोटी भी
उसको देखो देसी घी में तर बैठा है
पीते-पीते खेत बचा था दो बीघा बस
आखिर आज उसे भी गिरवी धर बैठा है
राजनीति नाली में रोज़ गिरेगी अक्सर
हर नेता में भाव दुश्मनी गर बैठा है
10.
उनके घर तो रिमझिम-रिमझिम कहकर ग़ज़ल गए
मेरे घर तक आते-आते बादल बदल गए।।
नानी के घर जाने को जैसे ही मना किया
एका करके गोल बनाकर बच्चे मचल गए।।
पहले अपनी जेब भरी पटवारी जी ने फिर
मेरे हक़ का ही मुझको दिलवाने दखल गए।।
उनका नाम करेगा उनका मेधावी बेटा
सारे घर वाले मिलकर करवाने नकल गए।।
बोई तो थी रामसरन ने ज्ञात सभी को था
पर,ले अमला मुखिया जी कटवाने फसल गए।।
जो सरकारी मदद दिलाने आए विपदा में
अपनी-अपनी सेवा करवा सारे डबल गए।
आम इलेक्शन सिर्फ अदावत अब तो आपस की
गाली खाकर गंगा न्हाने मुद्दे असल गए।
11.
जिसने मन से राम उचारे
पहुँच गए वह उसके द्वारे
भवसागर से पार लगाते
दो छोरों के राम किनारे
छोड़ जिदों को एक रहेंगे
समझें जो हम राम इशारे
इसके उसके राम सभी के
राम हमारे......राम तुम्हारे
राम भला ही करते सबका
हर बिगड़ी के...राम सहारे
राम काज में लड़ना कैसा
सबमें उनका नाम बसा रे
बीत रही जो, बीती जो या
हर लीला के...वही सितारे
उनकी निन्दा करने वाले
खुद को अब मत और गिरा रे
रावण ने भी....उनको माना
तब जाकर वह कहीं तिरा रे
हर उसने ही.....राम पुकारा
विपदा में...जो कहीं घिरा रे
पुण्य हमारे...तब ही फलते
जब हमने हों....पाप निथारे
भूत चढ़ा हो जब मिटने का
उसको कैसे.....कौन उतारे
12.
अद्भुत सुन्दर सबसे न्यारे
अचरज लगते राम हमारे
ग़ैर नहीं हो अपने ही हो
तुम भी ठहरे राम-दुलारे
उनके दर्शन करले वाला
और निहारे और निहारे
घर से उनके विस्थापन ने
रामचरित ही खूब निखारे
चमत्कार कर सकते थे वह
टिके रहे जो न्याय सहारे
उल्टे लटके उत्तर पाकर
राम विरोधी प्रश्न तुम्हारे
सहनशील मर्यादा जीती
गूँज उठे पुरुषोत्तम नारे
घोर विरोधी मन्दिर जाकर
माँग रहे अब गद्दी सारे
13.
डूबा सूरज कल निकलेगा
अँधियारे का हल निकलेगा
ज्ञान तनिक सा मिल तो जाए
खोटा सिक्का चल निकलेगा
बर्फ़ जमा है जितनी जग में
उसका होकर जल निकलेगा
स्वर्ण हिरण के पीछे-पीछे
दौड़ोगे तो छल निकलेगा
प्यास अगर है मन में सच्ची
कदम-कदम पर नल निकलेगा
दुख को भी मेहमान समझना
छक जाने पर टल निकलेगा
ठहरे ग़म को छाँट दिखाओ
खुशियों वाला पल निकलेगा
रोप दिए को पानी तो दो
पौधा-पौधा फल निकलेगा
14.
बात सुना!कुछ ताजा कर
दे दस्तक, मत भाजा कर
ग़म भी साझा कर लेंगे
इधर कभी तो आजा कर।
मुँह का स्वाद बदल देगी
चटनी से भी खाजा कर ।
सतत सनातन गाने को
जा बढ़िया सा बाजा कर।
ओछों को गरियाने दे
सुन!उनको भी राजा कर।
सहना अपनी आदत है
तू इतना मत गाजा कर।
15.
अगर भलाई कल की सोचें।
सबसे पहले जल की सोचें।।
उलझे रहते हो झगड़ों में
आओ इनके हल की सोचें।।
अपनी प्यास भूलकर दो पल
औरों के घर नल की सोचें।।
विफल रहे हैं अबतक हम तुम।
अब तो अच्छे फल की सोचें।।
बातचीत से काम बनें सब
कभी नहीं हम बल की सोचें।।
करें परस्पर घुल मिल बातें
नहीं किसी से छल की सोचें।।
मक्खन जी दे रहे परीक्षा
सभी परीक्षाफल की सोचें।।
✍️ डॉ. मक्खन मुरादाबादी
झ-28, नवीन नगर
काँठ रोड, मुरादाबाद
बातचीत:9319086769