बुधवार, 16 अप्रैल 2025

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष माहेश्वर तिवारी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर केंद्रित डॉ मनोज रस्तोगी का आलेख । यह प्रकाशित हुआ है उत्तर केसरी मुरादाबाद संस्करण के 16 अप्रैल 2025 के अंक में

 



मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष माहेश्वर तिवारी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर केंद्रित आलेख । यह प्रकाशित हुआ है अमृत विचार मुरादाबाद संस्करण के 16 अप्रैल 2025 के अंक में

 



रविवार, 13 अप्रैल 2025

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष माहेश्वर तिवारी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर केंद्रित डॉ मनोज रस्तोगी का आलेख ।यह प्रकाशित हुआ है दैनिक जागरण मुरादाबाद संस्करण के 13 अप्रैल 2025 के सबरंग पेज पर

 


मुरादाबाद के साहित्यकार योगेन्द्र वर्मा व्योम का संस्मरणात्मक आलेख .... ठहाके भी गूंजते थे दादा माहेश्वर तिवारी के



  'धूप में जब भी जले हैं पांव, घर की याद आई...' नवगीत दादा माहेश्वर तिवारी की लेखनी से शायद तब सृजित हुआ होगा जब दूर दराज़ इलाकों में आयोजित कवि सम्मेलनों और साहित्यिक आयोजनों में उन्हें कई-कई दिन घर से बाहर रहना पड़ा होगा, यह अलग बात है कि उनके इस नवगीत को तब 1970 के दशक में आपातकाल के परिणामस्वरूप आम जनमानस की पीड़ा की अति संवेदनशील अभिव्यक्ति कहा गया। दादा पास बैठना-बतियाना, मतलब साहित्य के एक युग से बतियाना होता था। उनके पास साहित्यकारों के, कविसम्मेलनों के, साहित्यिक आयोजनों के इतने संस्मरण थे कि जब भी बातचीत होती थी तो समय कब गुजर जाता था, पता ही नहीं चलता था। इसके साथ-साथ वह अपनी विशेष वाकशैली से उन किस्सों, घटनाओं और संस्मरणों को और अधिक रोचक बना देते थे।

            एक बार उन्होंने सुल्तानपुर (उ.प्र.) के राजकीय इंटर कॉलेज में कविसम्मेलन का संस्मरण सुनाया था। कविसम्मेलन के संयोजक कथाकार स्व. गंगाप्रसाद मिश्र थे। कविसम्मेलन में देर से पहुँचने के कारण वह जिन कपड़ों में थे उन्हीं में सीधे मंच पर पहुँच गए। मंच पर पहुँचते ही उन्हें काव्यपाठ करना पड़ा। कविसम्मेलन में उन्होंने अपना याद वाला गीत पढ़ा- 'याद तुम्हारी जैसे कोई कंचन कलश भरे / जैसे कोई किरन अकेली पर्वत पार करे...'। गीत पढ़कर मंच से उठकर चाय पीने के लिए आये, चाय पी ही रहे थे तभी एक वयोवृद्ध सज्जन उनके पास आए और ऐसा सवाल कर बैठे कि उनकी आयु और प्रश्न सुनकर तिवारी जी चौंक गए। उन सज्जन ने बड़ी गंभीरता से कहा- 'तिवारीजी, एक बात बताईए कि यह घटना कहाँ की है और यह किरन कौन है? क्या वह आपके साथ नहीं थी उस पहाड़ पर...?' जैसे-तैसे उन्हें टाला और जब कवि मित्रों से उसकी चर्चा की तो सभी ठहाका मारकर हँस पड़े। यह सुनकर उन्हें भी हँसी आ गई और इस ठहाके के साथ ही उठना ठीक लगा।

            इसी गीत को लेकर उन्होंने एक और रोचक संस्मरण सुनाया था। शायद 1980 के दशक की बात है कि वाराणसी में एक कवि सम्मेलन में वह गये थे, कविसम्मेलन की अध्यक्षता उस समय के शीर्ष गीतकार भवानी प्रसाद मिश्र कर रहे थे। तिवारी जी ने वहाँ 'डायरी में उंगलियों के फूल से / लिख गया है नाम कोई भूल से...' और 'डबडबाई है नदी की आंख / बादल आ गए हैं...' सुनाए, किन्तु तभी अध्यक्षता कर रहे भवानी दादा वोले- 'माहेश्वर, वो याद वाला गीत और सुनाओ'। दरअसल, भवानी प्रसाद मिश्र को यह गीत बहुत प्रिय था। तिवारी जी ने अपने सुरीले अंदाज में सुनाया- 'याद तुम्हारी जैसे कोई कंचन कलश भरे / जैसे कोई किरन अकेली पर्वत पार करे...'। कवि सम्मेलन समाप्त हो जाने के बाद भवानी दादा ने कहा- 'माहेश्वर कल को मेरे साथ इलाहाबाद (अब प्रयागराज) चलना, गांधी जयंती पर कविसम्मेलन है।' इलाहाबाद पहुंचकर भवानी दादा से तिवारी जी बोले- 'दादा, लेकिन मेरे पास गांधीजी के संदर्भ में गीत नहीं है, फिर मैं क्या सुनाऊंगा'। भवानी दादा बोले- 'वो याद वाला गीत सुनाओ'। तिवारी जी ने फिर से उसी अंदाज में सुनाया- 'याद तुम्हारी जैसे कोई कंचन कलश भरे...।' देर रात समाप्त हुए कविसम्मेलन के बाद पत्रकारों ने भवानी दादा से पूछा- 'आपने गांधी जयंती पर आयोजित कविसम्मेलन में प्रेम गीत- याद तुम्हारी जैसे कोई कंचन कलश भरे... कैसे पढ़वा दिया?' भवानी प्रसाद मिश्र बोले- 'गांधीजी की याद भी कंचन कलश भरवा सकती है।' 

            दादा माहेश्वर तिवारी जी के गीत जितने लोकप्रिय और प्रसिद्ध थे, उससे भी अधिक उनके ठहाके चर्चित रहते थे। उनसे जब भी कोई मिलता था, बातचीत के दौरान उनके ठहाकों की उन्मुक्तता में डूबे बिना नहीं रहता था। इन ठहाकों की गूँज तब और बढ़ जाती थी जब तिवारी जी के साथ इलाहाबाद (अब प्रयागराज) के कवि कैलाश गौतम और होशंगाबाद (म.प्र.) के कवि विनोद निगम होते थे। एक बार दादा तिवारी जी ने बताया था कि बात 1983 की है, जब डा. शम्भूनाथ सिंह के संपादन में 'नवगीत दशक-1' आया था, तय हुआ कि इसका लोकार्पण तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी के हाथों होगा। प्रधानमंत्री कार्यालय से स्वीकृति मिल जाने के बाद लोकार्पण की तिथि को निर्धारित समय पर डा. शम्भूनाथ सिंह, देवेंद्र शर्मा इन्द्र, नचिकेता, उमाकांत मालवीय, माहेश्वर तिवारी, उमाशंकर तिवारी, कैलाश गौतम, नईम, श्रीकृष्ण तिवारी, विनोद निगम सहित लगभग 20 नवगीतकार प्रधानमंत्री आवास के प्रतीक्षा कक्ष में बैठकर इंतजार कर रहे थे, प्रोटोकॉल के तहत कक्ष के भीतर एक गहरी चुप्पी पसरी हुई थी, तभी शम्भूनाथ सिंह तिवारी जी गीत गुनगुनाते हुए बोले- 'यह तुम्हारा मौन रहना, कुछ न कहना सालता है...', तुरंत बाद ही सुरक्षा बल के जवान धड़धड़ाते हुए प्रतीक्षा कक्ष में आ गए। सभी कुछ सामान्य देखकर वे वापस चले गए, उनके जाते ही कैलाश गौतम, विनोद निगम और तिवारी जी ठहाके मारकर हँसने लगे।

              ऐसा ही एक और किस्सा दादा तिवारी जी ने सुनाया था, जब बुद्धिनाथ मिश्र और कैलाश गौतम के साथ वह एक कवि सम्मेलन से रात 2 बजे वापस लौट रहे थे और सड़क पर बस का इंतजार कर रहे थे। चारों ओर सुनसान सड़क पर सन्नाटा पसरा हुआ था। तीनों ही लोग कविसम्मेलन में अन्य कवियों के कवितापाठ पर टिप्पणी करते हुए ठहाके मारकर हँस रहे थे, तभी वहाँ पुलिस की गश्ती जीप आ गई। पूछा- 'आप लोग कौन हैं और कहाँ जाएंगे? दादा तिवारी जी बोले- 'हम कवि लोग हैं, जहाँ ले जाना चाहो वहीं चले जाएंगे' और बहुत जोर से ठहाका लगा कर हंसने लगे। पुलिस के लोग बोले- 'चलो, ये सब पिए हुए हैं।' यह सुनकर तीनों ही ठहाके मारकर जोर जोर से हंसने लगे।

     इसी प्रकार वर्ष 2019 में पावस गोष्ठी में आमंत्रण देने के लिए दादा तिवारी जी ने कवि राजीव प्रखर को फोन किया, मैं भी उस समय वहां उपस्थित था। दादा फोन पर बोले- 'राजीव प्रखर बोल रहे हैं?' उधर से आवाज आई- 'जी, राजीव प्रखर बोल रहा हूं, लेकिन आप कौन बोल रहे हैं?' दादा बोले- 'मैं माहेश्वर तिवारी का पड़ोसी बोल रहा हूं' इतना सुनते ही मैं और दादा ठहाका मारकर हंसने लगे। ऐसे अनगिनत किस्से, प्रसंग और संस्मरण हैं जो आज भी किसी चलचित्र की तरह जीवंत हैं यादों में। 

✍️योगेन्द्र वर्मा 'व्योम'

शनिवार, 12 अप्रैल 2025

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृति शेष माहेश्वर तिवारी पर केंद्रित उनकी पत्नी बाल सुंदरी तिवारी का संस्मरणात्मक आलेख... वे मेरे उत्सव थे...





कैसे और कहाँ से शुरू करूँ, जिनके साथ 48 वर्ष बिताए हों, यात्रा पर जाने के अलावा कभी अकेली नहीं रही, खाने का पहला कौर मैंने कभी अपने हाथ से नहीं खाया, ना ही उन्होंने। हम मित्र अधिक पति पत्नी कम थे, कभी मैं कुछ सोचती, वे बोल पड़ते और वो कुछ सोचते तो मैं बात कह पड़ती, ऐसा अद्भुत संबंध था हमारा। खिलखिलाहट से भरा कोमल मन, मीठी वाणी, मीठा स्वर, हर किसी के अपने थे वे। उनकी रचना की प्रथम श्रोता भी प्रायः मैं ही रहती थी। मैं संगीत-साहित्य से जुड़े परिवार में जन्मी थी अतः कविता को अच्छे से समझती और हर पंक्ति में डूब जाती। वे लिखते तो मैं उसका संगीत तैयार करती, वे मधुर मुस्कान से प्रतिक्रिया व्यक्त करते थे। हमारा उनका  साहित्य तथा संगीत से जुड़ा संबंध रहा है। वे विदिशा, मध्य प्रदेश में महाविद्यालय में कार्यरत थे। दो दिन का अवकाश लेकर बंबई मुझे देखने आये। यह मेरी शर्त थी पहले मुझे देखें तभी शादी करूंगी। अतः 29 जून 1975 को आये और 30 जून 1975 में मात्र एक दिन में ही हम एक दूसरे के हो गए। अतः उत्तर प्रदेश की मैं महाराष्ट्र (बंबई) में विवाह और विदा हो कर मध्य प्रदेश गयी। उनसे मिलन के पहले दिन ही मुझे तीन बच्चो की मां बनने का सौभाग्य मिला। तीनों को हम दोनों का प्यार मिले। मेरे बहुत कहने पर भी उन्होंने मेरी सर्विस नहीं छुड़वाई, वरन अपनी सर्विस छोड़कर हमेशा के लिए मुरादाबाद आ गए। एक पुरुष के लिए यह बहुत बड़ा कदम था। वे यहां मुरादाबाद में रहते अवश्य थे किंतु वे देश विदेश हिंदुस्तान के अधिक से अधिक परिवारों से जुड़े थे सबके प्रति स्नेह अपनापन था। जब यात्राओं पर चले जाते तो मैं उनके आने के दिन गिनती थी, उनसे उनके नये-नये अनुभव सुनती फिर दोनों हँसते, ऐसा हमारा लगाव था।

     वो मेरे उत्सव थे, मैं संकोची थी उन्होंने मुझे साहस दिया। उन्होंने ही मुझे कविता लिखने की प्रेरणा दी। हमने मुरादाबाद में गोकुलदास रोड पर स्थित 'प्रकाश भवन' (किराये के घर) में सत्रह वर्ष बिताए फिर हम नवीन नगर में अपने घर 'हरसिंगार' में आ गए और लगभग तीस साल के बाद पिछले साल ही गौर ग्रीशियस के निवासी हो गए। अपनी पुस्तकों-'हर सिंगार कोई तो हो', 'नदी का अकेलापन', 'सच की कोई शर्त नहीं', 'फूल आये हैं कनेरो में' में वह सदैव जीवित रहेंगे। उनकी ही पंक्ति 'इन शरीरों से परे क्या है हमें जो बाँधता हैं' याद आती है, सच ही है कि हम दोनों केवल शरीरों से ही नहीं, मन प्राणों से जुड़े हुए रहे।

आज वे उर्धगामी यात्रा पर निकल गए, अब मैं उनके लौटने की प्रतीक्षा नहीं कर पा रही हूँ, अब केवल बस केवल मेरी उनकी यादों की यात्रा शुरू हो गयी है। क्या क्या याद करूँ असीमित यादें हैं, एक-एक क्षण जो मैंने उनके साथ जिया, उन पलों की यादों को शब्द देना कठिन है। आज उनका अमूल्य धन असंख्य पुस्तकें मेरे पास है। इस धन को कोई मुझसे नहीं छीन सकता, गुलजार साहब की लाइनें याद आ रही हैं- 'बंद अलमारी के शीशों से झाँकती हैं किताबें, बड़ी हसरतों से ढूँढ़ती हैं। उन कोमल हाथों को जो पलटते थे उनके सफों को, अब बड़ी बेचैन रहती हैं किताबें अब उन्हें नींद में चलने की आदत हो गयी है।

✍️ बालसुंदरी तिवारी

 मुरादाबाद

बुधवार, 9 अप्रैल 2025

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिन्दी साहित्य संगम की ओर से छह अप्रैल 2025 को आयोजित काव्य गोष्ठी

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिन्दी साहित्य संगम की ओर से रविवार छह अप्रैल 2025 को मिलन धर्मशाला मिलन विहार में काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। 

      राजीव प्रखर द्वारा प्रस्तुत माॅं सरस्वती की वंदना से आरंभ हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए रामदत्त द्विवेदी ने कहा...

आज अवध में राम जी आए। 

सबके मन लगते हर्षाये। 

 मुख्य अतिथि रघुराज सिंह निश्चल के उद्गार थे - 

निमंत्रण राम का दुत्कारते हो। 

जो दानव हैं, उन्हें पुचकारते हो।

  विशिष्ट अतिथि के रूप में राजीव प्रखर ने कहा - 

मेरी दीपक पर्व पर, इतनी ही अरदास। 

पाऊं अंतिम श्वास तक, सियाराम को पास।। 

झिलमिल दीपक दे रहे, चहुॅंदिशि यह संदेश। 

तू-तू-मैं-मैं छोड़िए, सबके हैं अवधेश।। 

 राम सिंह निशंक का कहना था - 

श्री राम का गुणगान गा ले। 

चरणों में तू शीष झुका ले।

 पदम बेचैन के अनुसार - 

कहां खो गए रास्तों में भटक कर।‌ 

क्यों न हो सके हमसफर साथ चल कर। 

साहित्यिक मुरादाबाद शोधालय के संस्थापक डॉ. मनोज रस्तोगी ने कहा ...

वर्षों की प्रतीक्षा के बाद शुभ घड़ी है आई, 

अयोध्या में राम मंदिर का स्वप्न हुआ साकार, 

चार दशक पूर्व लिया संकल्प हुआ आज पूरा 

हर ओर हो रही श्री राम की जय जयकार। 

योगेंद्र वर्मा व्योम ने कहा - 

राम तुम्हारे नाम का, बस इतना-सा सार। 

जीवन का उद्देश्य हो, परहित पर-उपकार।। 

नष्ट हुए पल में सभी, लोभ क्रोध मद काम।

बनी अयोध्या देह जब, और हुआ मन राम।। 

कार्यक्रम का संचालन करते हुए प्रशांत मिश्रा ने कहा ....

स्वस्थ मनुष्य की कोमल काया पर 

देश में मचा बवाल है। 

फूली तोंद प्रशासन की कर्मठता पर

बड़ा सवाल है। 

रामदत्त द्विवेदी ने आभार अभिव्यक्त किया। 





















रविवार, 6 अप्रैल 2025

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार राम किशोर वर्मा के दोहे


हर प्राणी से प्यार हो, सिखलाता यह धर्म ।

जीवन में शुचिता रखें, करें राम से कर्म ।।1।।


सदियां बीतीं 'राम' से,  भारत की पहचान ।

सभी देव भी अवतरित,  यह है भूमि महान ।।2।।


'राम' रूप में जन्म ले, आये 'श्रीभगवान' ।

बाल रूप लीला रची, नष्ट किये अभिमान ।।3।।


'राम' नाम है प्रेम का, त्याग तपस्या ज्ञान ।

नहीं भेद करते कभी, रखते सबका मान ।।4।।


छोड़े हैं जब साथ सब, तब दिखते बस 'राम' ।

जग तब बैरी-सा लगे, वह ही आते काम ।।5।।


राम नाम में है छिपा, जीवन का सब सार ।

जिसने इसको पढ़ लिया, समझो बेड़ा पार ।।6।।


जन्म हुआ श्रीराम का, आनंदित सब लोग ।

कष्ट हुए सब दूर ज्यों, घर-घर लगते भोग ।।7।।


राम नाम ही सार है, यह जीवन आधार ।

कर दायित्वों निर्वहन, होगा बेड़ा पार ।।8।।


माया में उलझा रहा, लिया न प्रभु का नाम ।

दुविधा में दोनों गये, माया मिली न राम ।।9।।


देते हैं शुभ कामना, खुशियां चारों ओर ।

राम जन्म पर हर नगर, सोहर का है शोर ।।10।।

  ✍️राम किशोर वर्मा 

रामपुर

उत्तर प्रदेश, भारत

   

मुरादाबाद मंडल के कुरकावली ( जनपद संभल) के साहित्यकार त्यागी अशोका कृष्णम् की रचना ...."अयोध्या में मंदिर था मंदिर है और मंदिर रहेगा"

 


पुरुषों में उत्तम मर्यादा पुरुषोत्तम,

बारह कलाओं के स्वामी अवधेश,

हारे के हरिराम निर्धनों के ईश,

दशरथ पुत्र कोशल्या नंदन रघुनंदन,

आपका आपके धाम में बारंबार वंदन अभिनंदन।

और प्रभु जी!

आपके इधर सब ठीक-ठाक है,

क्या हाल-चाल है ?

अपने यहां तो सभी राजी खुशी हैं ?

खुराफातियों के दिमाग में अब भी बड़े बवाल हैं,

भगवन यूं तो त्रेता में भी आपको,

कठोर बनवास काटते हुए 

राक्षसों से भयानक युद्ध करना पड़ा। 

किंतु इधर कलयुग में,

अपनी ही जन्म भूमि के लिए,

लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी,

बेईमानों से मुकदमा लड़ना पड़ा,

जिसमें अनगिनत प्रभु भक्तों ने,

करते हुए आप का गुणगान,

हंसते-हंसते दे दी अपनी जान।

आम जनों की छोड़ो,

आपने अपने मामले में देखा,

कलमुँहा कलयुगी आदमी,

कितना मक्कार मौकापरस्त मतलबी कामी है।

यहां एक से बढ़कर एक,

ढोंगी मायावी नामी-गिरामी है।

गंदी नाली के कीड़ों बारूदी जमीनों ने,

पहुंचे हुए शिकारी छठे हुए कमीनों ने,

अपनी करनी में कहीं कोई कसर नहीं छोड़ी है।

जहां भी मौका हाथ लगा,

मानवता की हांडी बीच चौराहे पर फोड़ी है।

शैतानों ने कभी प्रश्न उठाया,

आप के अस्तित्व पर,

कभी आपके होने पर,

कभी राम सेतु जैसे कृतित्व पर,

कोई पुछ रहा था आपकी पहचान,

मांग रहा था पत्रावली,

कोई कुलद्रोही खंगाल रहा था,

आप की वंशावली,

किसी ने आपको बताया कोरी कल्पना,

उड़ाई जमकर मजाक,

तो कोई मांग रहा था,

आपके जन्म का हिसाब किताब 

कोई कह रहा था,

हमारे होते पत्ता नहीं खड़क सकता,

आदमी क्या परिंदा भी नही फटक सकता।

लेकिन प्रभु जी!

जब आपकी कृपा से पत्ता खड़का,

पलक झपकते ही हो गया पत्ता साफ,

बंदा दूर तक रड़का।

भगवान कोई माने या ना माने,

हम तो थे अनजाने फिर भी जाने,

आप भी देख रहे थे,

किसमें कितना है दम कितना है पानी,

किसकी करानी है जय जयकार,

याद दिलानी है किसको नानी।

तभी तो अक्ल के अन्धो को भी,

दी खुली छूट करने दी मनमानी।

अच्छा अब सब छोड़ो एक बात बताओ,

कहीं आपकी इच्छा के बिना तिनका भी हिलता है,

ना कुछ खोता है ना ही मिलता है।

तो प्रभु जी!

आपकी इच्छा के विरुद्ध,

कोई भी कहीं भी उछलेगा कूदेगा,

जो आसमान पर थूकेगा,

उसके ही मुंह पर गिरेगा। 

अयोध्या में मंदिर था,

मंदिर है,

और मंदिर रहेगा।।

          

✍️त्यागी अशोका कृष्णम्

कुरकावली, संभल

उत्तर प्रदेश, भारत

शनिवार, 5 अप्रैल 2025

मुरादाबाद के साहित्यकार के डी शर्मा (कृष्ण दयाल शर्मा ) की सोलह रचनाएं....


 1. साधक रखता संतोष निर्झर

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सदा सदुपयोग सतत व्यस्तता

सराहनीय सद्गुण श्रम शीलता

प्रसन्नता स्रोत निरंतर उद्यम

सावधान साधक सदा सर्वोत्तम


भगवत्ता की प्रतीक चेतनता

उद्यमी को उपलब्ध सफलता

परिश्रमी में प्रमाद हीनता

साधक कभी न दर्शाता दीनता


सकारात्मक सोच आशावदिता

अनवरत अनुभव दिव्यता

परिणाम गोविंद पर निर्भर 

साधक रखता संतोष निर्झर


सर्वोपरि परमपिता प्रसाद

मुदित स्वीकारना हर्ष विषाद

सृष्टि रचनाकार पर विश्वास

संतोषी साधक कभी ना निराश


संसारी लीला संचालक चक्रधारी

गिरधारी वंशीधारी बनवारी

आस्तिकता वास्तविक धार्मिकता 

परहित कर्म ही आध्यात्मिकता


पंचतत्व परमात्मा का स्वरूप

असंतुलन से संसार विद्रूप

भगवान एक अगोचर शक्ति

उसको प्रकटंती केवल भक्ति


2. निरोगी तन सर्वत्र लोकप्रिय 

...............................

स्वस्थ तन हितकारी सर्वोपरि 

रोगी अस्वस्थ का नारायण हरि 

निरोगी तन सर्वत्र लोकप्रिय 

सुस्वास्थ्य हेतु रहना सक्रिय 


दिनचर्या में लाना परिवर्तन 

शिव शक्ति सुत से शक्ति करण 

नियम संयम पालन सचेत

आहार व्यवहार में विवेक


प्रकृति सदा करती परमार्थ 

परमात्मा की पाठशाला शिक्षार्थ

प्रत्येक अंग का हो सदुपयोग 

अहितकर मनमाने प्रयोग 


अपनाना योगासन प्राणायाम 

भास्कर नमन दैनिक व्यायाम 

निज कर्म प्रति न उचित प्रमाद

शांति संतोष परिश्रम प्रसाद


परमात्मा जीवन का आधार 

श्वास प्रतिश्वास उनका आभार

धन संपदा  पर न अंहकार 

पल पल गोविंद को नमस्कार 


समर्पित साधक सदा सुखी 

पतन गर्त गिरते मन मुखी 

शास्त्र बताते पथ सदाचरण 

आनंद दायक उचित वरण 


 3. समाप्त हो खेल जनम - मरण

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कदापि ना छोड़ना अधूरा प्रयास

निरंतरता से पूर्णता की आस

गोविंद भर दो उत्साह - उल्लास

अनुभव करा दो आत्म-विश्वास


आपके भजन में अनंत शक्ति

तिरोहित कर दो जग आसक्ति

हटाना पथ के सकल संकट

चलाना गंतव्य तक निष्कंटक


जीवन सफल रखना सोद्देश्य

प्रियकर लगे सरल परिवेश

इंद्रिय उद्वेग ना करें अधीर

रखना सदैव विवेकी  गंभीर


बिन आपकी कृपा साधक दीन

सतत रखना अपने आधीन 

नहीं अपनी कोई निज कामना

 केवल अपनी शरण रखना


कृपालु नियंत्रित रखना मन 

रखना स्वस्थ तन का अंग - अंग

अनवरत रखना कर्म शील 

सदा रखना सदाचारी सुशील


नत मस्तक खड़ा आपके द्वार 

करना अपराध क्षमा इस बार 

प्रदान करना शाश्वत शरण 

समाप्त हो खेल जन्म मरण


 4 . दिव्यानंदित समर्पित जीवात्मा

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सर्वत्र सर्वदा सर्वव्यापक

एकमेव गोविंद व्यवस्थापक 

अंतःकरण में खिलाता कमल

विकार विहीन विमल धवल


नियंत्रित हो मन की चंचलता 

संयम का अर्थ  नियम बद्धता 

पल पल स्वयं को रखना व्यस्त

निष्क्रिय प्रमादी का जीवन ध्वस्त 


संसारी दायित्व न उपेक्षणीय 

सदा कर्म शीलता सराहनीय 

अभेद करना  सेवा सहायता 

सहृदयता मानव की विशेषता 


उपलब्धि पर न करना गर्व 

परमेश्वर का स्वामीत्व सर्व

नियति अनुसार भौतिक प्राप्ति 

उद्यमशीलता की नहीं समाप्ति


संसार एक विचित्र दुखालय 

पूर्ण समर्पण से  औषधालय 

सतत बढ़ाना सहन शीलता 

आचार में मधुरता शीतलता 


सब कुछ पूर्व कर्म परिणाम 

बुद्धिमान संवारते वर्तमान 

सबका परमपिता परमात्मा 

दिव्यानंदित समर्पित जीवात्मा।


5. बिन उदारता मनुज कंगाल

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चिंतन नश्वर अनश्वर ज्ञान 

ईश्वर को अपनाता मतिमान

परिवर्तन शील यह संसार 

सदैव रखना शाश्वत विचार 


जग जगदीश रचित परिवार

सत्य प्रेम दया से करना प्यार

सत्य अनवरत  अपराजित 

शास्त्रीय सिद्धांत में लगाना चित्त 


सांसारिक पदार्थों की प्रचुरता 

उपजाती मानसिक दरिद्रता 

और अधिक की बढ़ती लालसा 

लगती प्रिय प्रदर्शन प्रियता


राग द्वेष जन्मती असमानता 

गोविंद दृष्टि में न कोई भिन्नता 

संपति सर्वेश्वर का उपहार

केवल परोपकार से उद्धार


अकल्याणकारी संकुचित दृष्टि

सर्वेश्वर सृजित सकल सृष्टि 

चेतन विहीन शरीर कंकाल

बिन उदारता मनुज कंगाल 


मानव का मूल्यांकन सुविचार 

सत्संग से निज  आचार सुधार

सतत करना चिंतन मनन 

जीवन सार एकमात्र भजन 


6. आत्म ज्ञान शाश्वत संतोष सेतु

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परमानंददायी एकाकीपन

साधक चिंतन मनन सलंग्न 

हृदय सतत गोविंद निवास

आध्यात्मिकता में गहन विश्वास


सांसारिक कर्म अवश्य करना

कर्म संपादन धर्म समझना 

सत्संग बनाता मन निर्विकार 

मन पर हो विवेकी अधिकार


एकांत हेतु समय उपलब्ध 

साधक को प्राप्त उत्तम प्रारब्ध 

समय सदैव करना सार्थक 

न करना वार्तालाप निरर्थक


समय करना ईश्वर अर्पण

उत्तमोतम भाव समर्पण 

भौतिकता में न रहना संलिप्त 

अवगत हो आत्मज्ञान गुप्त 


इंद्रियां मांगती सकल पदार्थ 

विषय रस पुष्टि उसका स्वार्थ 

दान दया दमन उत्तम धर्म 

सदैव हितकारी अकेलापन


आयु पर्यन्त मनुज की परीक्षा 

कल्याणकारी विरक्ति तितिक्षा 

जगत में जगदीश को नमन

जीव जीव परमेश्वर अयन 


7. अभिलाषी को सदैव चिंता व्याप्त

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काम क्रोध लोभ मोह राग द्वेष 

प्रत्येक प्राणी प्रभावित विशेष 

प्रिय पदार्थ प्राप्ति की इच्छा काम

इसके त्याग से जीवन अभिराम 


सहनशीलता ही सराहनीय 

उत्तम चरित्र अनुकरणीय 

मानसिक विकार से पराजित 

न उपलब्ध आत्म उन्नति वांछित


सत्संग से संभव परिमार्जन

विकारी हृदय का परिशोधन

आवश्यक दैनिक आत्मचिंतन 

सदाचार मनुज का मूल्यांकन 


स्वयं को प्राप्त समझना पर्याप्त 

असंतोषी को सदैव चिंता व्याप्त 

सर्वोपरि ईश्वरीय संविधान 

सतत पूजना करूणानिधान


नित्यानंद का एकमेव उपाय 

निश्चित भजना नमः गोविंदाय 

परमात्मा की इच्छा को समर्पित 

अवश्यमेव सर्वदैव विजित 


सर्वकल्याणमय दिव्य प्रार्थना 

न उपजे अनावश्यक कामना 

जीवन पर्यन्त करना साधना

कल्याणकारी ईश्वर आराधना 


8. कर्म हों कल्याणकारी उपयोगी

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रखना तन अवयव संपुष्ट 

मानसिक संतुलन से संतुष्ट 


कर्म में प्रवीण कहलाता योगी 

कर्म हों कल्याणकारी उपयोगी 


निरन्तर ध्यान रखना चेतन

सकल संसार ईश निकेतन 


अभेद प्यार नित्यानंद आधार 

सर्वोपकारी रखना विचार 


अवश्यमेव हो दैनिक चिंतन 

नम्रतापूर्वक सबको नमन 


व्यावहारिक निपुणता प्रथम

बनेगा जीवन आनन्द सदन


वैचारिक श्रेष्ठता सदा उत्तम

विकारी मन वाला सदा अधम 


अनवरत अपनाना सत्संग

स्रोत उत्तमोतम जीवन ढंग 


मनमानी जीवन शैली निंदनीय 

निगम आज्ञाकारी  सराहनीय 


जीवन में सहायक गुरुदेव

पूजनीय वंदनीय महादेव 


जग उपलब्धि व्यर्थ अहंकार 

प्राप्त परिणाम ईश उपहार


पतनकारी गोविन्द विस्मरण 

स्मरण उपाय आत्म जागरण 


9. धरातल रखना सिक्त करुणा 

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भाव सागर में उठती तरंग 

लेखनी लिखती सहित उमंग

रचना में रचनाकार उपस्थित 

स्वयंमेव अभिव्यक्ति व्यवस्थित 


एकमेव सत्य रचना आधार 

आत्मोन्नति हेतु आत्मिक विचार 

शास्त्र सम्मत उक्ति का संपादन

सत्य ज्ञान सिद्धांत प्रतिपादन


आत्मज्ञान स्वयमेव असंभव 

गोविंद अनुकंपा से संभव 

समय सदुपयोग हरि स्मरण

कविता जन्मती आत्म जागरण 


सच्चरित्रता सत्य जागरूकता 

सत्य न प्रकटना घोर  भीरूता 

ईश्वर की संतान ईश्वरवादी

असत्य हेय सदैव सत्यवादी 


उचित शब्द प्रदाता भगवान 

पल पल आनंदित भाग्यवान 

भावुकता न करती प्रभावित 

सद्ज्ञान बादलों से न आच्छादित 


हृदय  पूर्ण प्रसन्नता  पूरित 

प्रकट आभार आनंद सहित

धरातल रखना सिक्त करुणा 

समीप न आवे दुर्भाव  दारूणा 


 10. होलिका दहन विकार समापन

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होलिका दहन विकार समापन 

प्रहलाद अभ्यस्त नाम उच्चारण

हुआ प्रसार नाम नारायण 

सनातन धर्म का पुनः स्थापन 


अवगत हुई नाम की महिमा 

प्रदाता सिद्धियां अणिमा गरिमा 

कल्याणकारी नाम का अवलंबन

प्रकट हुआ स्वरूप अविलंब


कल्याणकारी कर्म का सत्यापन 

न करना चरित्र का विज्ञापन 

हृदय में बसाना समरसता 

उत्सव में संवर्द्धन प्रसन्नता


तिरोहित हो रूप रंग भिन्नता 

प्रयत्न पूर्वक मिटाना खिन्नता 

प्रतिकूलता में करना संघर्ष 

मन वाणी कर्म हों पूरित हर्ष 


उत्सव त्योहार लाते उत्सुकता 

धनी निर्धन मन में प्रफुल्लता

परमात्मा रचित यह संसार 

सतत मानना उसका आभार 


गोविंद चढ़ाना प्रहलाद का रंग 

परिमार्जित करना जीवन ढंग

निराकार प्रकटता सर्वाकार 

जीव जीव को करना नमस्कार 



11.अनुचित संलिप्तता जग भोग

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सागर में लहरें करती क्रीड़ा 

उठती गिरती सिंधु को न पीड़ा

तरंगों की स्वाभाविक गति

सबकी अपनी अपनी नियति


सकल तरंगें सागर का अंश

अंततोगत्वा मिलती निज वंश 

जीवन का एकमेव यही सत्य 

जन्मने वाला प्रत्येक जीव मर्त्य


हर्ष विषाद का कारण ममत्व

शाश्वत सत्य न समझना जड़त्व 

केवल करना अपना कर्तव्य 

परिणाम इच्छानुसार असत्य 


वेद शास्त्र का सनातन सिद्धांत 

न उपलब्ध अपवाद दृष्टांत 

सराहनीय दायित्व निर्वहन 

मुदित मन कठिनाई सहन


आयु अवधि सदैव सुनिश्चित 

गोविंद स्मरण करना निश्चिंत 

कल्याणकारी निरन्तर उद्योग 

अनुचित संलिप्तता जग भोग 


सरिता को न विस्मृत निज स्रोत

रखना प्रज्वलित आत्मिक ज्योत

बिन आत्म जागरण न कल्याण 

ईश्वर को न भूलना म्रियमान 


12.सुदृढ़ मन कभी न पराजित 

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मन को बना दो कोमल सुमन

प्रवाहित हो सुवासित पवन

सत्य दया प्रेम पूरित हो मन 

गोविंद की अनुकंपा को नमन


सकल संसार मन का विस्तार 

निरन्तर रखना मन उदार 

तिरोहित करना सर्व विकार

देना मन को सुशोभित संस्कार 


मन ही उपजाता हर्ष विषाद 

कल्याणी मन पवित्र निर्विवाद 

मन को अपावन करता संग

 मन परिवार्जक केवल सत्संग


मन अलंकृत करता साहित्य

अज्ञान कालिमा हरता आदित्य 

मन चंचलता रोकता विवेक

सदगुरू शरण कल्याणी विशेष 


मन सागर में आनंद भरना 

कृपालु विकृत विचार हरना 

मन उपजाता वास्तविक शक्ति 

मन को लगाना आराध्य की भक्ति 


मन रखना उद्देश्य सुकेंद्रित 

मन चंचलता करती बाधित 

मन सहायक कर्म नियोजित

सदृढ़ मन कभी न पराजित 


13. प्रथम सदगुरु जनक जननी 

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जनक जननी की कृपा अपार

प्रदान किए अनुपम संस्कार 

उत्तम विचार जीवन आधार 

जीवन पर्यन्त अद्भुत आभार 


निरन्तर अपनाया सदाचार 

मधुर परोपकारी व्यवहार 

सर्व सेवा समय सदुपयोग 

सर्वदा सचेत प्रति उपभोग 


अवगत कराया जीवन उद्देश्य 

ध्येय प्राप्ति हेतु साधना विशेष 

पशु वत जीवन स्वार्थ पूरित 

जीवन जीना उदारता सहित


सर्वोत्तम गुण आत्म निर्भरता 

शुभ अवसर खोना कायरता 

मिथ्या आकर्षण पूर्ण प्रवंचना 

सांसारिक लोलुपता से बचना


जीवन अवधि सदा सुनिश्चित 

प्रमादी न बनना कभी किंचित 

सतत आवश्यक जागरूकता 

अकल्याणकारी उत्साह हीनता


गोविन्द से सदा करना प्रार्थना 

निरर्थक न उत्पन्न हो कामना 

अंतर हीन हो कथनी करनी 

प्रथम सदगुरु जनक जननी 


14. उत्थानकारी अर्चना आराधना

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एक ही आश्रय एक ही आधार 

गोविन्द आपकी महिमा अपार

संसार सपना सत्य ज्ञान सार 

वास्तविकता कदापि न बिसार


एक जलनिधि जलद सरिता 

भिन्न भिन्न नाम दैवीय कविता 

एकमेव सर्वदा सर्वत्र व्याप्त 

एक ही रचनाकार असमाप्त 


एक ही जनक सुमन कंटक 

आनंद प्रदाता मिटाता संकट

एक ही संचालक शक्ति चेतन 

सकल संसार उसका निकेतन 


अज्ञानता समझना विविधता

निर्माता की सबमें विद्यमानता 

अवनि गगन उसका प्रकाश

एकमेव आस्था एक ही विश्वास


विभिन्नता में देखना रचनाकार 

विस्तार निस्सार एकमेव सार

एक ही निर्माता उसी का संसार 

कल्याणमय सबके प्रति प्यार 


सत्य ज्ञान प्राप्ति साधन साधना 

परम पिता से एक ही प्रार्थना 

अधोपतन का कारण कामना

उत्थानकारी अर्चना आराधना 


15. सरिता आतुर स्रोत से मिलन

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सरिता व स्रोत में न पृथकत्व

स्रोत से संयुक्त करती कर्तव्य 

निरन्तर आनंदित प्रवाहित 

अनवरत संलग्न परहित 


सतत प्रवाह में निरंतरता 

परोपकार में निस्वार्थ समता 

उद्देश्य सदैव गोविंद स्मरण 

उपाय मन बुद्धि शुद्धि करण 


कर्म संग न भूलना परमात्मा 

उसी का सूक्ष्मतम अंश आत्मा 

अवगत हो ध्येय जीवन प्राप्ति 

उसी में लगना पर्यन्त समाप्ति


जानना पशु मनुज में अन्तर

मनुज को प्राप्त दिव्य अभ्यन्तर 

आज्ञाकारी सेवक से स्वामी प्रसन्न

आज्ञाकारिता से उन्नत मन 


व्यस्तता ही आयु सदुपयोग 

अवश्य अपनाना आसन योग

निश्चित महत्वपूर्ण सात्विकता

विचार और कर्म की पवित्रता 


सरिता आतुर स्रोत से मिलन 

एक दिन धूमिल जीवन सुमन

रहना कर्मशील आयु पर्यन्त 

विस्मृत न करना ईश अनंत 


16. सफल साधक सदैव आज्ञाकारी

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साधक शारीरिक रूप से शुद्ध 

मन बुद्धि चित्त रखता विशुद्ध

सांसारिक आचरण में प्रबुद्ध

आत्म उन्नति पथ अनावरूद्ध 


स्वामी की आज्ञा पर केंद्रित ध्यान 

सकल वर्णित गीता रामायण 

गीता समझाती जीवन सिद्धांत

अवधेश का आचरण  दृष्टांत 


काम क्रोध लोभ सदैव बाधक

सतत सचेत रहता साधक

नियम संयम उपाय पालक 

सेवक सदा गोविंद आराधक 


रखना नश्वर अनश्वर ज्ञान 

पल प्रतिपल भजता नाम

आज्ञाकारिता सेवक का काम 

यात्रा में अवरोधक विश्राम


सतत समक्ष रखना उद्देश्य 

अविस्मृत न हो जाना परदेश 

सांसारिक आकर्षण मिथ्या माया

पकड़ना अवलंबन न छाया 


रचयिता करा रहा  अभिनय

अवश्यमेव रहना मतिमय 

मनमाना आचरण पतनकारी

सफ़ल साधक सदैव आज्ञाकारी 

✍️कृष्ण दयाल शर्मा

लाजपत नगर

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नंबर 97515899 80


शुक्रवार, 4 अप्रैल 2025

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी राम किशोर वर्मा का गीत ....पुरुषोत्तम श्रीराम


भारत के कण-कण बसे, पुरुषोत्तम श्रीराम ।

हर जन के वह प्राण हैं, यही धारणा आम ।।


राम चरित वह ग्रंथ है, सारे शास्त्र समाय ।

मात-पिता गुरु के लिए, आदर भाव सिखाय ।।

सौतेली माँ हो कभी, करें न दुर्व्यवहार ।

दासी कैसी है सदा, करिए सोच-विचार ।।

पुरुषोत्तम श्रीराम के, कर्म सभी अभिराम ।

हर जन के वह प्राण हैं, यही धारणा आम ।।


प्रजा प्रेम का भी करें, बहुत अधिक सम्मान ।

केवट जैसे की सदा, रखें आय का ध्यान ।।

श्राप मुक्त पत्थर किया, दे नारी का रूप ।

पशु-पक्षी सबके बने, चिंतक राम अनूप ।।

भिलनी के उस प्रेम में, नहीं जाति का काम ।

हर जन के वह प्राण हैं, यही धारणा आम ।।


मित्र बने तो दीजिए, उसका पूरा साथ ।

शरण पड़े तो लीजिए, उसको हाथों-हाथ ।।

बुरी दृष्टि का कीजिए, तत्क्षण ही उपचार ।

कोई जब शंका करे, दिया सभी कुछ वार ।।

पग-पग पर सिखला रहे, वनवासी प्रभु राम ।

हर जन के वह प्राण हैं, यही धारणा आम ।।


विद्वजनों को दीजिए, सदा मान-सम्मान ।

लक्ष्मण भ्राता से कहा, लो रावण से ज्ञान  ।।

राक्षस सारे तर गये, सफल हुआ यह काज ।

जीती लंका सौंप दी, दिया विभीषण राज ।।

किये शत्रु हित कार्य भी, पुरुषोत्तम श्रीराम ।

हर जन के वह प्राण हैं, यही धारणा आम ।।

  

✍️राम किशोर वर्मा 

   रामपुर

उत्तर प्रदेश, भारत



शनिवार, 29 मार्च 2025

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ प्रशांत कुमार भारद्वाज की कहानी.... आखिरी किश्त

 


सुबह के सात बज चुके थे। दीवार पर टंगी घड़ी की सुइयाँ थकान से लटकी हुई थीं, जैसे कई सालों से वक्त ढोते-ढोते अब थककर सुस्ताने लगी हों। अविनाश ने करवट बदली। बिस्तर पर पड़े-पड़े उसे लगा, जैसे उसकी ज़िन्दगी भी उसी घड़ी की तरह हो गई है-एक ही जगह ठहरी हुई, एक ही तरह घूमती हुई, बस बिना रुके, बिना किसी नए मोड़ के।

रसोई से चाय की महक आई। पूजा चाय का कप मेज़ पर रखकर बिना कुछ कहे चली गई। पहले ऐसा नहीं था। पहले वह चाय के साथ मुस्कान भी देती थी, अब सिर्फ़ अदरक देती है। मुस्कान जैसे ब्याज की तरह चुकता हो गई थी, बस कड़वाहट रह गई थी।

मोबाइल वाइब्रेट हुआ। स्क्रीन पर वही नंबर चमक रहा था-बैंक ।

"सर, आपकी होम लोन ईएमआई आज कटनी है। बैलेंस चेक कर लीजिए, वरना पेनल्टी लग जाएगी।"

अविनाश ने फोन काट दिया। यह कॉल हर महीने आती थी, उसी दिन, उसी समय। जैसे कोई मशीन हो, जो हर महीने उसकी आत्मा से एक और टुकड़ा काट लेती हो। वह सोचता था, "ज़िन्दगी की सबसे बड़ी त्रासदी यह नहीं कि हम गरीब हो जाते हैं, बल्कि यह है कि हम हर महीने थोड़ा-थोड़ा मरते रहते हैं।"

बेटे बिट्टू का स्कूल बैग टूटा हुआ था। पिछले हफ्ते उसने कहा था-

"पापा, नया बैग ला दोगे?"

अविनाश ने हाँ कह दिया था। झूठ बोलना भी शायद अब उसकी ज़रूरत बन गया था। ऑफिस में बॉस की निगाहें उसे घूर रहीं थीं।

"क्या चल रहा है तुम्हारे दिमाग़ में?" क्या बताता? बैंक बैलेंस, होम लोन, क्रेडिट कार्ड, बच्चों की स्कूल फीस, राशन का बिल, बिजली का बिल... दिमाग़ किसी हाइवे पर दौड़ते ट्रैफिक की तरह था, तेज़ रफ्त्तार, बेतरतीब, हर मोड़ पर टकराने के लिए तैयार।

लंच ब्रेक में वह वॉशरूम गया। आईने में अपना चेहरा देखा-गहरी आँखों के नीचे काले धब्बे, सफ़ेद होते बाल, बुझी हुई आँखें। "कब हुआ मैं इतना बूढ़ा?" 

बचपन में उसे लगता था कि आद‌मी तब बूढ़ा होता है, जब उसकी कमर झुकने लगती है।

लेकिन असली बुढ़ापा तब आता है, जब जेब में पैसे झांकते रह जाएँ और अंदर कुछ न मिले।

ऑफिस से लौटते वक्त समोसे की दुकान दिखी। जेब में पड़े पचास के नोट को टटोला। बचपन में माँ कहती थी-"जब मूड खराब हो, कुछ मीठा खा लो, अच्छा लगेगा।"

पर समोसे मीठे नहीं होते। और पंद्रह रुपए का समोसा भी अब गैरजरूरी खर्चा लगता था।

रात के खाने की मेज़ पर बिट्टू ने फिर सवाल किया -"पापा, इस बार मेरे बर्थडे पर क्या गिफ्ट दोगे?"

अविनाश ने मुस्कुराने की कोशिश की। "इस बार सरप्राइज़ दूँगा।"

बिट्टू खुशी से उछल पड़ा।

पूजा ने उसकी आँखों में देखा। उसे समझ आ गया कि अविनाश झूठ बोल रहा है।

पर बिट्टू को नहीं आया। शायद बच्चे बड़े होने के बाद झूठ पकड़ना सीखते हैं, और बड़े होने के बाद झूठ बोलना।

अगली सुबह बैंक का फिर कॉल आया। इस बार आवाज़ में थोड़ी सख्ती थी- "सर, आपकी आखिरी डेट थीं, अब पेनल्टी लग जाएगी।"

वह चुप रहा।

पेनल्टी? जो आद‌मी पहले से ही किश्तों में कट रहा हो, उसे और कौन-सी सजा दी जा सकती थी?

रात को करवटें बदलते हुए पंखे की आवाज़ सुनाई दी।

"पंखे से लटकने की मत सोचना," अचानक पूजा की आवाज आई।

अविनाश चौंक गया। "क्या?"

"कुछ नहीं।"

पर वह समझ गया कि पूजा ने उसके मन के विचार पढ़ लिए थे।

बाहर कुत्ते भौंक रहे थे। उसे लगा, जैसे कोई कर्ज़ वसूली एजेंट दरवाज़ा खटखटा रहा हो।

"कब तक बचूंगा?"

उसने आँखें बंद कर लीं।

...और फिर कुछ भी नहीं।


 ✍️ डॉ. प्रशांत कुमार भारद्वाज

सूर्य नगर, लाइन पार

मुरादाबाद– 244001 

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नंबर 9410010040

शुक्रवार, 28 मार्च 2025

मुरादाबाद की साहित्यकार सरिता लाल के मधुबनी स्थित आवास पर 25 मार्च 2025 को आध्यात्मिक काव्य गोष्ठी का आयोजन

मुरादाबाद की साहित्यकार सरिता लाल के मधुबनी स्थित आवास पर मंगलवार 25 मार्च 2025 को आध्यात्मिक काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया।    डॉ.ममता सिंह द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना से आरंभ हुए इस गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार अशोक विश्नोई ने सुनाया- 

जकड़े हुए लोगों की, बेड़ियाँ तोड़ीं, 

राम नाम जप  कर, कड़ियाँ जोड़ीं 

आडम्बर से वो लड़ते रहे सदा, 

भक्ति रस में डूब कर, रुढ़ियां तोड़ी। 

मुख्य अतिथि के रूप में साहित्यिक मुरादाबाद शोधालय के संस्थापक डॉ.मनोज रस्तोगी का व्यंग्य था ....

होली पर कीचड़ लगवाने से

मत कीजिए  इनकार 

स्वच्छ मुरादाबाद का 

कीजिए सपना साकार 

सब मिलकर 

नालों से कीचड़ निकालिए 

एक दूसरे को प्रेम से लगा 

होली मनाइए

विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ नवगीतकार योगेंद्र वर्मा व्योम का कहना था ....

ऋषि-मुनि संत-फ़क़ीर यह, कहते हैं अधिकांश। 

आँखें ही होती सदा, भावों का सारांश।। 

आशाएँ मन में न अब, होतीं कभी अधीर। 

इच्छाएँ सूफ़ी हुईं, सपने हुए कबीर। 

संयोजिका सरिता लाल ने पढ़ा- 

अपने प्रभु को भेंट चढ़ाने 

मैं स्वयं पूजा का थाल बनी,

मैं ही पत्री, मैं ही नारियल

मैं रोली और श्रंगार बनी ।

डॉ. प्रेमवती उपाध्याय ने गीत सुनाया-

 राम का मंदिर बना, साकार सपना हो गया। 

स्वर्ग उतरा अब धरा पर, आ गए श्रीराम हैं।

श्रीकृष्ण शुक्ल ने सुनाया- 

भगवान तुम्हारी करुणा से, 

चलता क्षण क्षण मेरा जीवन। 

किस भांति तुम्हें आभार कहूॅं, 

शत् कोटि नमन मेरे भगवन।

वरिष्ठ शायर डा.कृष्णकुमार नाज़ की अभिव्यक्ति रही- 

शब्दकोश सामर्थ्यवान तुम,

 मैं तो एक निरर्थक अक्षर। 

अपनी शक्ति मुझे भी दे दो, 

अधिक नहीं केवल चुटकी-भर। 

 डॉ.अर्चना गुप्ता ने सुनाया- 

जितना ये मन भावुक होगा 

उतना ही दुर्बल होगा। 

उतना ही इसको दुख होगा 

जितना ये निश्छल होगा। 

विवेक निर्मल ने सुनाया- 

गर चुनौती दे सकें अज्ञान को 

तो ज्ञान अपना आवरण खुद खोल देगा। 

राजीव 'प्रखर' ने सुनाया- 

आहत बरसों से पड़ा, रंगों में अनुराग,

आओ टेसू लौट कर, बुला रहा है फाग। 

 डॉ.ममता सिंह ने कुछ इन शब्दों से समां बांधा- 

माया के पीछे लोभी बन, 

सारा जीवन भागा, 

अपने सुख की खातिर तूने, 

अपनों को ही त्यागा। 

 रवि शंकर चतुर्वेदी ने सुनाया- 

पत्थर भी बोलते हैं मेरी अर्चना के बाद, 

कोई कल्पना नहीं है मेरी कल्पना के बाद। 

संचालन करते हुए दुष्यंत बाबा ने सुनाया- 

केसर ढोल बजा रहे, नत्थू की चौपाल। 

झांझर झनझन कर रहे, बजा बजाकर लाल। 

 गोष्ठी में मयंक शर्मा, डॉ. सुगंधा अग्रवाल, शालिनी भारद्वाज, आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ, राघव शर्मा आदि ने भी काव्यपाठ किया। सरिता लाल द्वारा आभार अभिव्यक्त किया गया।