बत्ती कभी भी जा सकती है। बत्ती जाना और बत्ती निकालना दोनों का ही महत्व है। बत्ती के कई रूप हैं। वह वीआईपी में पावर है। पावर ऑफ एनर्जी। मध्यम वर्ग में बिजली। निम्न आय वर्ग में बत्ती। उच्च शुद्ध समुदाय में विद्युत।
विद्युत आ गई। विद्युत चली गई। इस जैसे मुहावरे को सिर्फ बिजली विभाग समझता है। इसका सामाजिक महत्व नहीं है। बहुत सी चीजें चलन से बाहर हुईं हैं। इसमें विद्युत भी है। जिन चीजों से करंट लगे या आउट डेटेड हों उनको चलन से बाहर कर देना चाहिए यथा घूंघट, चुनरी, चरण स्पर्श आदि।
शर्मा जी की बिजली चली गई (गलत मत सोचो, घर की लाइट चली गई। पत्नी घर में ही है)। शर्मा जी ने हेल्प लाइन नंबर पर फोन किया। वो सर्विस से बाहर था। बिजली घर फोन किया। नहीं मिला। टू टू की आवाज आती रही। शर्मा जी भी थके नहीं। बिजली आए या न आए...आज बिजली वालों का फोन उठाकर ही मानूंगा।
तीन घंटे हो गए। टू टू होती रही। अरे....मुबारक हो....उठ गया।
बिजली कब आएगी? शर्मा जी ने पूछा।
"अच्छा। लाइट। ऊपर से गई है। फोन कट।"
शर्मा जी छत पर गए। बिजली वाले झूठ क्यों बोलेंगे? ऊपर से ही गई होगी। चारों तरफ अंधेरा। अंधेर नगरी चौपट राजा। कुछ देर बाद लाइट आ गई। फिर चली गई।
बिजली जाना कोई खबर नहीं है। बिजली आना खबर है। रोज रोज की दिक्कत। शर्मा जी ने सोचा...बिजली कटवा दूं। पीडी ( परमानेंट डिस्कनेक्शन) हो जाएगा तो सोलर लगवा लूंगा।
"आप पीडी क्यों कराना चाहते हैं।"
लाइट नहीं आती।
"तो इसमें पीडी की क्या जरूरत। पत्नी मायके चली जाए तो क्या उसे छोड़ देंगे?"
नहीं साब। हमको बिजली चाहिए ही नहीं।
ठीक है। यह फॉर्म भर दो। जेई चेक करेगा। कटनी चाहिए या नहीं। ( जेई वो प्राणी है जो हर जगह पाया जाता है। नाना रूप धरे ये जेई।)
कई बार फोन करने पर जेई शुभ मुहूर्त में आया। मुस्कुराया। मलाई के कोफ्ते के मानिंद नमस्कार किया। शर्मा जी को अंकल कहा। "अंकल जी, काम हो जाएगा। आजकल बहुत दिक्कत हो रही है। सब परेशान हैं। हम और भी परेशान हैं। कोई बिजली ठीक करने को नहीं कहता। सबको कटवानी है।"
"अंकल जी। आपका बिल तो बहुत आरा होगा?"
अरे भाई। हम दो ही तो प्राणी हैं। बच्चे बाहर हैं। 100 यूनिट भी नहीं आती।
"ऐसा क्यों अंकल! ( इस बार उसने जी नहीं लगाया। समझ गया। मुर्गी फंस गई।)
आपके एसी है? पंखा है? फ्रिज है? टीवी है? फिर भी 100 यूनिट।"
शर्मा जी देखते रह गए। जेई ने मीटर शंट की रिपोर्ट दे दी। एक लाख की। जुर्माना लग गया।
"छी छी छी। सुना तुमने। शर्मा जी के यहां छापा पड़ा! बिजली चोरी पकड़ी गई।" पड़ोसी ने कहा।
दूसरा पड़ोसी-"वही तो मैं कहूं, अंकल आंटी कई इतनी बिजली फूंक रहे थे।"
शर्मा जी ने ऊपर कंप्लेंट की। गुरुत्वाकर्षण का नियम है। ऊपर फेंकी चीज नीचे आती है। वहीं हुआ। दन दनादन फोन तो बहुत आए। जांच जेई पर ही आ गई।
"शर्मा जी! ( अब अंकल भी नहीं बोला) ! आपने शिकायत की थी। बताइए, क्या कहना है?"
भैया! हमको कुछ नहीं कहना। शर्मा जी ने जैकेट में से पेंशन के रुपए निकाले। पांच सौ रुपए थमाए।
"अंकल जी। अब बात ऊपर पहुंच गई है। अब तो...! " शर्मा जी जेब हल्की करते गए। बात बिजली गुल से शुरू हुई थी। कहां पहुंच गई। दीमक कभी घर छोड़ती है? नहीं न। बिजली आ रही है तो भगवान का धन्यवाद दीजिए। चली जाए तो धन्यवाद दीजिए। यह व्यवस्था है। इसका कुछ नहीं होने वाला। फ्यूज बल्ब कभी रोशनी नहीं देते।
✍️ सूर्यकांत द्विवेदी, मेरठ
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