"मैडम जी हमारा काम निपट गया अब हम घर जा रहे हैं। " कस्तूरी ने अपना झोला उठाते हुए कहा। "हाँ हाँ..चली जाना...थोड़ी देर सुस्ता तो ले। " मंदाकिनी ने टीवी का रिमोट उठाते हुए कहा। कोई सीरियल चल रहा था शायद जिसमें बला की खूबसूरत लड़कियाँ अभिनय कर रही थीं।
कस्तूरी नीचे जमीन पर ही बैठने लगी तो मंदाकिनी ने डाँटते हुए कहा। "अरे उपर ही बैठ जा...जब देखो तब गिल्ट फील कराती रहती है...यह मजबूरी है नहीं तो कभी कोई बाई नहीं लगाती । " मंदाकिनी ने अपने पेट को पकड़ते हुए कहा। आठ महीने की पेट से थी वह।
"अरे मैडम ऐसा क्यों कह रही हो ?...आपने तो हम जैसे असहाय गरीब लोगों को काम देकर हम पर उपकार ही किया है। " कस्तूरी की आवाज में एहसान का पुट था। "मैडम जी एक बात पूछे?" कस्तूरी ने डरते हुए पूछा।
"हाँ हां...दस पूछ। " मंदाकिनी ने किशमिश मुँह में रखते हुए कहा।
"जे हीरोइन कितनी सुंदर होती हैं न!" कस्तूरी ने मासूमियत से कहा।
"अरे सब मेकअप का कमाल है...इतनी ज्यादा भी खूबसूरत नहीं होती ये। " मंदाकिनी ने हँसते हुए कहा।
"क्या मेकअप से हम भी खूबसूरत लग सकते हैं?" कस्तूरी ने फिर से सवाल किया।
उसकी बात सुनकर मंदाकिनी आश्चर्य से उसका मुँह देखती रह गई।
"ठीक है मैडम जी हम चलते हैं...बच्चे इंतजार कर रहे होंगे...बिटिया के एग्जाम होने वाले हैं। " कहती हुई कस्तूरी एकदम से उठ खड़ी हुई।
मंदाकिनी मुस्करा भर दी। उसके जाते ही मंदाकिनी ने एक गहरी सांस ली और सोचने लगी। "खूबसूरती की कितनी तुच्छ सी परिभाषा हमारे इस समाज द्वारा निर्धारित कर दी गई है।"
"गोरा रंग और स्त्रियों के तीखे नाक नक्श। " यानी शारीरिक सुंदरता। मन की सुंदरता को तो जैसे बिल्कुल इस समाज ने दरकिनार ही कर दिया है। "मंदाकिनी ने गहरी सांस ली और जोर से सिर हिलाया जैसे कह रही हो कि कुछ भी नहीं हो सकता इस समाज का । वह न चाहते हुए भी खुद को रिलेक्स करने की लिए कोई पुराना सा लोक गीत गुनगुनाने लगी ...और उस दिन की घटना याद आ गई।
दरवाजे की घंटी बजते ही उसने दरवाजा खोला तो सामने साँवरी सलोनी सी कोई पच्चीस साल की लड़की खड़ी थी।
"मैडम नमस्ते। " उसने झेंपते हुए कहा।
"नमस्ते...क्या चाहिए?"
"मैडम काम..!"
"काम तो कोई नहीं है अभी....वैसे क्या काम कर लेती हो?"
"मैडम झाड़ू पोछा ...बर्तन....!"
"खाना बना लेती हो?"
"हाँ हाँ...बना लेती हूँ। "
"ठीक है...कल से आ जाना...। "
"धन्यवाद मैडम....आपने मेरी बहुत बड़ी समस्या हल कर दी। " उसने दोनों हाथ जोड़ते हुए कहा।
अगले दिन वह काम पर आई...मंदाकिनी ने पति जतिन को जब इसके बारे में बताया तो वह भी खुश हुआ क्योंकि उसकी घर बैठे ही बहुत बड़ी समस्या हल जो हो गई थी।
खाना तो इतना लजीज बनाया कस्तूरी ने कि पूरा घर ही कस्तूरी सी महक से खिल उठा।
"घर में कौन कौन है तुम्हारे?"
"मम्मी पापा और दो बच्चे मेरे!"
"और पति?" मंदाकिनी ने जिज्ञासावश पूछ लिया।
"वे हमारे साथ नहीं रहते। " उसने संक्षिप्त उत्तर दिया।
मंदाकिनी ने आगे पूछना उचित नहीं समझा।
"मैडम पूछा नहीं आपने...मुझे उन्होंने क्यों छोड़ दिया?" उसका प्रश्न सुनकर मंदाकिनी चौंक गई।
"मैं बदसूरत हूँ न...मेरी मोटी नाक...बड़े दांत और यह क़ाली चमडी़। " कहते हुए वह रुआंसी हो गई।
तथाकथित खूबसूरती से वह कोसों दूर जरूर थी लेकिन उसके भीतर एक कुशल स्त्री के सभी गुण मौजूद थे जो कि उसके पति को शायद नजर ही नहीं आये। कितनी शालीनता है इसके व्यवहार में और कर्तव्यनिष्ठा भी। अपने बच्चों को अपने दम पर पाल रही है।
तभी डोर की घंटी बजी....दरवाजा खोला तो सामने कस्तूरी खड़ी थी।
"अरे तुम फिर आ गई!"
"हाँ....कल न मेरी बेटी का जन्म दिन है...इसलिए थोड़ा लेट हो जाऊंगी मैडम। " उसने खुशी से चहकते हुए कहा।
"ठीक है कस्तूरी...बस ऐसे ही खिली खिली रहा करो कस्तूरी सी...और हाँ....तुम्हें किसी क्रीम और मेकअप की जरूरत नहीं है....तुम बहुत खूबसूरत हो...खुद की नजर से देखा करो खुद को। "मंदाकिनी ने मुस्कराते हुए कहा।
" हां मैडम जी...तभी तो जिंदा हैं...नहीं तो कब के खाक में मिल गए होते। "उसने हँसते हुए जवाब दिया।
मंदाकिनी की सारी शंकायें और डर धरे के धरे रह गए। उसको बहुत खुशी हुई।
✍️राशि सिंह
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
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