शुक्रवार, 5 सितंबर 2025

मुरादाबाद मंडल के जनपद संभल (वर्तमान में मेरठ निवासी) के साहित्यकार सूर्यकांत द्विवेदी का व्यंग्य.....कल्लू के बाल और सवाल

 


गांव में सर्वे हुआ। कितने बच्चे पढ़ना चाहते हैं। बीस बच्चे निकले। यह कम थे। फिर सर्वे हुआ। अबकी बार 18 निकले। दो घट गए। फिर सर्वे हुआ...बच्चे क्यों घट रहे हैं। स्कूल है। इमारत है। मास्टर हैं। बच्चे क्यों नहीं आ रहे। मास्टर पांच थे। बच्चे 18..। कोटा दिया। हर मास्टर पांच बच्चे लेकर आए। फिर सर्वे हुआ..बच्चे चाहते नहीं या अंदर से इच्छा शक्ति नहीं है।  पता लगा..पहले चाहते थे। अब नहीं चाहते। माथा ठनका। इसका मतलब..पढ़ाई ठीक नहीं। मास्टर जी का टेस्ट लो। 

अब मास्टर जी टेस्ट दे रहे हैं। बच्चों को फिर भी "टेस्ट" नहीं आ रहा। पहले मुर्गा बनते थे। अब खुद मुर्गा बन रहे हैं। गांव का कल्लू बहुत होशियार था। हर सवाल का जवाब देना उसके बाएं हाथ का खेल था। गांव के स्कूल में निरीक्षण हुआ। कल्लू से पूछा गया..कौन सी ऐसी चीज है जो रहती तो वही है लेकिन उसका स्थान बदलते ही नाम चेंज हो जाता है। कल्लू उस्ताद बताते गए। सिर के बाल। कान के बाल। नाक के बाल। पलकों के बाल। बगल के बाल। सीने के बाल। कल्लू कुछ और बोलता। निरीक्षक ने रोक दिया। स्कूल पास। पहली शिक्षक पात्रता परीक्षा मास्टर जी ने पास कर ली।

मास्टर जी ने कल्लू को बुलाया। "सुन। मैं तो तुझको उल्लू समझता था। यह तूने तो कमाल कर दिया ? "

कल्लू बोला..मास्टर जी! छोटी सी तो बात थी। कह दी।

बाल में से बाल निकल सकता है तो खाल क्यों नहीं निकल सकती ? कुछ दिन बाद कल्लू के मास्टर जी, हेड मास्टर हो गए। कल्लू बोला..आपकी किस्मत ही खराब है। मुझे और बोलने देते तो आज प्रिंसिपल होते।

शिक्षक। निरीक्षण। स्कूल। ये 19 का पहाड़ा है। अच्छी तरह याद नहीं होता। कल्लू बड़ा होकर इंटर कॉलेज में गया। वहां कोई निरीक्षण नहीं था। कोई पहाड़ा नहीं पूछता था।

बोर्ड की परीक्षा थी। गारंटी थी..फेल तू होगा नहीं। कल्लू 99% से टॉपर। कल्लू यूनिवर्सिटी पहुंचा। सज धज कर। उसको तो अपना प्राइमरी स्कूल याद था। 

गेट पर ही उसके मुंह से निकला.. वाह। उसको बताया गया। यहां आने जाने की पूरी छूट है। आओ चाहे ना आओ। निरीक्षण की टेंशन मत लो। बड़े लेवल के निरीक्षण होते हैं। सब मैनेज हो जाते हैं। 

कल्लू बचपन से मास्टर बनना चाहता था। दिक्कत दो थी। एक वो गांव का था। दूसरे उसके बालों से सरसों का तेल निकलता था। कल्लू होनहार था। उसने बहुत डिग्री ले ली।  लेकिन कल्लू पात्र नहीं था। उसको उसके बाल वाले मास्टर जी ने सलाह दी..टीईटी करनी होगी। 

कल्लू की क्वालिफिकेशन इससे ज्यादा थी। उसने गूगल बाबा से पूछा..शिक्षक कैसे बनें? गूगल बाबा ने लिस्ट थमा दी...ये करो। वो करो।

कल्लू ने फिर पूछा..शिक्षक बनने के लिए क्या जरूरी है। जवाब मिला...मेहनत, ईमानदारी, आत्म विश्वास, समर्पण। आप युग निर्माता है।

कल्लू तो कल्लू था। समझ गया। मुर्गा बनाया जा रहा है। जब टीईटी करानी थी तो बीएड क्यों कराया ? मास्टरों की योग्यता कौन मापेगा ? बहरहाल। गूगल बाबा के रस्ते पर चलकरकल्लू की नौकरी लग गई। अब वह डेली हनुमान चालीसा का पाठ करता है। आते जाते हर वक्त वही रटता है... भूत पिशाच निकट नहीं  आवे...संकट कटे मिटे सब पीरा। 

कल्लू की सैलरी अच्छी थी। बस आराम नहीं था। टेंशन बहुत थी। यह करो। वो करो। कभी यह भरो। कभी वह भरो। यह चुनाव कराओ। वो कराओ। 

कल्लू को अपने जीवन का पहला सवाल याद आ गया.. वही कौन सी ऐसी चीज है..जो स्थान  बदलने पर नाम बदल देती है लेकिन रहती वही है। तब उसने बाल बताया था। आज उसके मुंह से निकला..मास्टर।

प्राइमरी स्कूल में मास्टर, गुरुकुल में गुरु, माध्यमिक विद्यालय में शिक्षक या अध्यापक, डिग्री कॉलेज में टीचर, असिस्टेंट प्रोफेसर, प्रोफेसर, डीन आदि आदि। कल्लू बोला..एक शिक्षक...इतने सारे नाम। 

समय बदलते देर नहीं लगती। कुछ दिन पहले कल्लू ने प्रियंका चोपड़ा का इंटरव्यू पढ़ा। कैसे वो काली थी। लोग उसे चिढ़ाते थे। फिर कैसे वो सुंदरी बन गई। बॉलीवुड हॉलीवुड पर छा गई। कल्लू राजनीति में आ गया। कल्लू जान गया...बेंत, स्टूल, सीट, मुर्गा का दौर गया। मुर्गा बनना नहीं, बनाना है। मुर्गा जब मटन हो सकता है। तो कल्लू "केएल" क्यों नहीं हो सकता? कल्लू के अब कई कॉलेज और प्राइवेट यूनिवर्सिटी है। वह कुलाधिपति है। 

कल्लू के बालों से अब सरसों का तेल नहीं निकलता।  कल्लू के दो बच्चे हैं। स्कूल जाते हैं। पीटीए होती है। उसकी मम्मी पीटीए में झगड़कर आ जाती है।" टीचर को कुछ नहीं आता। बताओ, कोई बात हुई ...मासूम से बच्चे को डांट दिया।"

कल्लू को अपनी पुरानी बेंत याद आ गई। जिसने कल्लू को केएल बनाया। 


✍️ सूर्यकांत द्विवेदी, मेरठ


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें