रविवार, 7 सितंबर 2025

मुरादाबाद मंडल के जनपद संभल (वर्तमान में मेरठ निवासी) के साहित्यकार सूर्यकांत द्विवेदी का व्यंग्य..... पृथ्वीलोक क्यों जाना चाहते हो पितृ..?

 


-सर। हमारे श्राद्ध आ रहे हैं। हम ही नहीं होंगे तो श्राद्ध कैसे होंगे?

मतलब क्या है? सीधे सीधे बोलो।

-सर। हम पृथ्वीलोक जाना चाहते हैं। 15 दिन की ही तो बात है। आ जाएंगे।

पृथ्वीलोक क्यों जाना चाहते हो? यहां अब कुछ तो है! 

-यह बात नहीं सर। आपकी कृपा से सब कुछ है। लेकिन पृथ्वी लोक तो पृथ्वी लोक है।

अगर हम यहीं से सब दिखा दें तो..?

-दिखा दीजिए। लेकिन हम जाना चाहते हैं। 

वहां ऐसा है क्या, जो जाना चाहते हो? नारद जी का भी यहां मन नहीं लगता?

-सर। आपको नहीं पता। वहां बहुत सुविधाएं हैं। 

कैसे? 

-सर। हम सीनियर सिटीजन होकर मरे या यमराज जबरदस्ती ले आए। मरे न आखिर।

हां

-वहां वाईफाई है। चैनल हैं। चैलेंज हैं। तकरार है। प्यार है। इजहार है। दुत्कार है। राजनीति है। 

यह क्या अच्छी बात है?

-न हो। मन तो लगता है वहां। टीवी पर संसद देखकर मन प्रसन्न हो जाता है। 

हां। मैने भी देखा। लोग मेरे नाम पर दुकान चला रहे हैं। लेकिन हे पितृ! तुमको वहां अब कुछ नहीं मिलेगा। तुम निष्प्राण हो।

-यह सब भी आपकी कृपा से है। हम कोई अपने आप मरे?

नहीं। तुमको दुनिया ने मारा। अपनों ने मारा। तुम्हारा सब कुछ हजम कर गए।

-सर जी। बातों में मत उलझाओ। जाने दो।

ठीक है। जाओ। मगर हालात बदल गए हैं। 

तुम खुद देख लेना। तुमको काले तिल, दूध और पानी भी नहीं मिलेगा? तर्पण भूल गए हैं लोग।

-ऐसा नहीं होगा। मेरे अपने ऐसा नहीं कर सकते।

और सुनो। कुत्तों को पूरी सड़क पर खिला नहीं सकते। कोर्ट का ऑर्डर है। कौए गायब हो चुके हैं। गाय ? नारायण की आंखों में आंसू आ गए।

-सर जी। प्लीज जाने दो। इमोशनल न करो।

ठीक है। जाओ। 


सीन 2

पितृ पृथ्वी लोक में आ गए। लेकिन यह क्या? सब कुछ वैसा ही चल रहा है। कोई हमको याद नहीं कर रहा। कहीं श्राद्ध हो रहा है। ज्यादातर नहीं। सब बिजी हैं। कहते हैं, पितृ अमावस्या पर कर देंगे ! 

मेरे अपनों ने पंडित जी को बोल दिया..आपको पेमेंट कर देंगे। आप कर देना।किसी ने बरसी पर सब निबटा दिया।

मेरे अपनों को यह भी नहीं पता, मेरी मोक्ष तिथि क्या है? 

नारायण! आपने सच कहा। दुनिया बदल चुकी है। परदादा, परनाना के नाम की क्या कहें? दादा नाना के नाम लोगों को याद नहीं। इनको जीएसटी की छूट याद है। हमारी नहीं।

सब संस्कारों का तर्पण कर चुके हैं। ॐ शांति।

✍️ सूर्यकांत द्विवेदी, मेरठ


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