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रविवार, 30 नवंबर 2025
रविवार, 23 नवंबर 2025
शुक्रवार, 21 नवंबर 2025
यादगार चित्र : लगभग चौतीस वर्ष पूर्व 1991 में सागर तरंग प्रकाशन द्वारा मुरादाबाद के वरिष्ठ साहित्यकार अशोक विश्नोई के संपादन में उपासना शीर्षक से काव्य संकलन प्रकाशित किया गया था। इस कृति के प्रकाशन में मुरादाबाद के साहित्यकार शंकर दत्त पाण्डे और दिग्गज मुरादाबादी का विशेष संपादकीय सहयोग रहा था। इस कृति में मुरादाबाद के ग्यारह साहित्यकारों सर्वश्री बहोरन सिंह वर्मा प्रवासी, शंकर दत्त पाण्डे, ईश्वर चन्द्र गुप्त ईश, दिग्गज मुरादाबादी, अशोक विश्नोई, डॉ प्रेमवती उपाध्याय, डॉ अजय अनुपम, अम्बरीष कुमार, योगेन्द्र कुमार, राजीव सारस्वत और फक्कड़ मुरादाबादी की कविताएँ संकलित हैं। इस कृति की भूमिका डॉ रामानन्द शर्मा ने लिखी है। इस कृति का लोकार्पण महाराजा हरिश्चंद्र महाविद्यालय में प्रख्यात हास्य व्यंग्य कवि हुल्लड़ मुरादाबादी ने किया था। लोकार्पण समारोह में मुख्य रूप से पारसी रंगमंच सम्राट मास्टर फिदा हुसैन नरसी, डॉ विश्व अवतार जैमिनी, मथुरा दत्त जोशी, विनोद सेठ, डॉ ए. एन. जोशी, लक्ष्मण प्रसाद खन्ना, उपस्थित थे। प्रस्तुत हैं लोकार्पण समारोह के कुछ दुर्लभ चित्र जो साहित्यिक मुरादाबाद शोधालय को उपलब्ध कराये हैं आदरणीय अशोक विश्नोई जी ने.... डॉ मनोज रस्तोगी संस्थापक साहित्यिक मुरादाबाद शोधालय 8, जीलाल स्ट्रीट मुरादाबाद 244001 उत्तर प्रदेश, भारत वाट्स एप नम्बर 9456687822
मंगलवार, 18 नवंबर 2025
मुरादाबाद के साहित्यकार दुष्यंत बाबा के इक्कीस दोहे .....
मित्र मंडली को जगी, वृंदावन की प्रीत।
अजित सचिन के साथ में, दुष्यंत रवि विनीत।।1।।
भक्ति रस में डूब कर, खूब किया आनन्द।
देखे केलि कुँज में, बाबा प्रेमानन्द।।2।।
राधा-मोहन के निकट, देख कालिया घाट।
कुंज गलिन में देखिए, ठाकुर जी के ठाठ।।3।।
राधा बल्लभ लाल की, लीला बड़ी विचित्र।
जैसी नजरें भक्त की, वैसा दिखता चित्र।।4।।
बांके बिहारी लाल के, दर्शन मिले अनूप।
श्याम सलोने गात में, अद्भुत सुंदर रूप।।5।।
निकुंज वट की छाँव में, बैठे भोलेनाथ।
वहीं रुद्र अष्टक किया, हम पाँचों ने साथ।।6।।
राधारमण जी हमसे, मिले सदा नाराज।
पल भर की देरी हुई, फिर से चूके आज।।7।।
निधिवन में निधियाँ झुका, वृंदा करतीं रास।
पग-पग राधा-कृष्ण का, होता है आभास।।8।।
धूप दीप नैवेद्य ले, अंतस किया अमान।
फिर नौका में बैठकर, किया दीप का दान।।9।।
इस इमली के पेड़ से, लोग हुए अनजान।
महाप्रभु चैतन्य ने, फिर से दी पहचान।।10।।
महारास से हो गईं, राधा अंतर्ध्यान।
इमली तले ही बैठकर, किया कृष्ण ने ध्यान।।11।।
यमुना जी में तैरतीं, तल-तर तरणीं तीर।
कल-कल करतीं आचमन, खारा-खारा नीर।।12।।
यहाँ बैठकर देखिए, उदय मध्य अवसान।
कितना कल-युग मुक्त है, यह टटिया स्थान।।13।।
भूख लगी थी जोर से, लंगर छका अमान।
दान दक्षिणा भेंट कर, किया शेष प्रस्थान।।14।।
अकबर दर्शन के लिए, पहुँचा जिनके धाम।
ऐसे वाद्य प्रवीन थे, हरिदासी उपनाम।।15।।
जहाँ नही है आज भी, कल-युग का सम्मान।
वृंदावन के बीच में, है इक टटिया स्थान।।16।।
देख देवरहा संत का, यमुना तीर मचान।
चंचल मनवा कह उठा, फीके महल मकान।।17।।
ऊँचे इसी मचान को, करके राधे-श्याम।
फिर से आगे बढ़ गए, हम पाँचों अविराम।।18।।
सकल वर्णनातीत है, श्री वृंदावन धाम।
गोपी-गोपी राधिका, बच्चा-बच्चा श्याम।।19।।
अगणित गौ के आश्रम, अगणित सेवा धाम।
अगणित सेवा संत की, अगणित ही घनश्याम।।20।।
लगा ब्रजरज भाल पर, चखा भक्ति का चूर्ण।
निकट गौरी-गोपाल के, परिक्रमा की पूर्ण।।21।।
✍️ दुष्यंत बाबा
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत





















