मंगलवार, 10 मार्च 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ अलका अग्रवाल कहती हैं -- मिलेगा मन से मन, तब मनेगी मेरी होली।



फूले टेसू कनेर, अवनी हुई लाल-गुलाबी।
आम भी बौराया है, बसंती पुरवैया शराबी।
मधु-मकरन्द मर्मर करते दिवानिश ठिठोली
मिलेगा मन से मन तब मनेगी मेरी होली।।

तन तानपूरा, बजाता रहा रागिनी अनगिन।
झंकृत ना कर सका पर, टूटा इकतारा मन।
परदेसी प्रिय की रिझाती,  मदभरी बोली
मिलेगा मन से मन, तब मनेगी मेरी होली।।

रंगो की बौछार में भीगी अंगिया-चदरिया।
मदिर नयन, उड़त गुलाल संग गावत रसिया।
भंग-तरंग की मस्ती, दिल की झोली खाली
मिलेगा मन से मन, तब मनेगी मेरी होली।।

कहने को तो हम एक हैं, विवाद अनेक हैं।
छोटी-छोटी बातों में भी मतभेद अनेक हैं।
ईद-दीवाली संग घूमेगी हिंदू-मुस्लिम टोली
मिलेगा मन से मन, तब मनेगी मेरी होली।।

✍️ डा. अलका अग्रवाल
एसोसिएट प्रोफेसर
अंग्रेजी विभाग
एन. के. बी. एम. जी. कालेज
चंदौसी , जिला सम्भल
उत्तर प्रदेश, भारत

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