मंगलवार, 6 अक्तूबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार राजीव सक्सेना के पत्र के उत्तर में प्रख्यात साहित्यकार गोपाल दास नीरज का यादगार पत्र । यह पत्र उन्होंने सत्रह वर्ष पूर्व 30 सितंबर 2003 को लिखा था ....…

 स्मृतिशेष महाकवि गोपालदास नीरज युवा साहित्यकारों को पत्रों के उत्तर  कम ही देते थे फिर भी मुरादाबाद के प्रसिद्ध कवि एवं बालसाहित्यकार दिग्गज मुरादाबादी जी के विशेष आग्रह पर मैंने  सन 2003 में एक पत्र उन्हें लिख ही दिया।दरअसल,नीरज जी की कश्मीर पर एक कविता पांचजन्य में छपी थी जिसमें छंद के कई दोष थे और छान्दसिक कविता के महारथी दिग्गज जी ने उन दोषों को  पकड़ लिया था । नीरज जी और छंद दोष,यह  मेरे  लिए भी एक हतप्रभ कर देने वाली बात थी।दिग्गज जी का आग्रह था कि इस कविता और उसके छान्दसिक दोषों को लेकर  मैं  नीरज जी को सीधे एक पत्र लिखूँ।बड़े संकोच और हीला हवाली के बाद आखिर  मैंने  नीरज जी को पत्र लिख ही दिया जिसका उन्होंने 30.09.03 को उत्तर भी मुझे भेज दिया।पत्र के आरंभ में नीरज जी ने अपनी कमी को स्वीकार नहीं किया किन्तु आखिर में चुपके से मान भी लिया।इसे  मैं एक बड़े कवि और शायद अपने समय के सर्वश्रेष्ठ कवि की महानता ही कहूंगा ।वरना आज तो  नवोदित कवि भी अपनी गलती कहाँ स्वीकार करते हैं?यहां प्रस्तुत हैं नीरज जी द्वारा मुझे लिखे गए पत्र की दो छवियां------



:::::::प्रस्तुति::::::::::
राजीव सक्सेना, मुरादाबाद

2 टिप्‍पणियां:

  1. पत्र महत्वपूर्ण है । न केवल नीरज जी की उदारता का परिचायक है अपितु यह भी बताता है कि सभी साहित्यकार अपनी लेखनी को निरंतर सुधारते रहे हैं और तब उन्हें अपना ही 50 वर्ष पूर्व का लिखा हुआ अनेक बार ठीक नहीं लगता।
    रवि प्रकाश , बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश )
    मोबाइल 99976 15451

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  2. महाकवि गोपालदास नीरज एक यह पत्र मेरे लिए तो अनमोल है ही साहित्यिक दृष्टि से मुरादाबाद नगर के लिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह एक ऐसे दौर का जीवंत दस्तावेज है जब वरिष्ठ रचनाकार न केवल एक -दूसरे की रचनाओं में दिलचस्पी लेते थे बल्कि रचनाकर्म पर सार्थक चर्चा और विमर्श भी किया करते थे जिसमें मुझ जैसे रचनाकार भी सक्रिय सहभागिता करते थे।यद्यपि वह दौर अब बीत चला है और एक- दूसरेकी टांग खींचकर आगे बढ़ने तथा अखबारों में अपना फ़ोटो और नाम छपाने की होड़ में साहित्य तो क्या साहित्यिकता का भी विलोपन हो गया है । आपने इस पत्र का अपने ब्लॉग/सोशल मीडिया पर पुनर्पाठ प्रस्तुत कर एक सुनहरे दौर को पुनर्जीवित कर दिया।इसके लिये आपको बहुत-बहुत हार्दिक आभार।
    राजीव सक्सेना

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