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प्रिय महेंद्र जी
नमस्कार
प्रिय रवि की कहानियाँ पढ़ीं। उनमें बहुत सुंदरता से समाज की विविध मानसिकता का चित्रण किया गया है । कुछ बहुत अच्छे अंश हैं। मैंने नोट कर लिए हैं ।जैसे
*पृष्ठ 19-- तैरती लाशों के बीच एक जिंदा समझ अभी जवान है
*प्रष्ठ 27-- गर्मियों की रातें काटना ... नहीं है ।
*पृष्ठ 28-- रात के अंधेरे में कमाया धन ... नसीब ।
*पृष्ठ 46-- सचमुच आदमी ... हो गई ।
*पृष्ठ 49-- संसार में मृत्यु ... बाप मर गया है ।
*पृष्ठ 50-- तुम इतनी जिद कर ... चल बसा ।
*पृष्ठ 73-- आपको तो.. पूछ नहीं थी ।
*पृष्ठ 75-- जीवन की कठोर ..पाया जा सकता ।
*पृष्ठ 77-- मुझे तो शाहजहाँ.... बेटे बहू ने।
*पृष्ठ 89-- लोग चाहते हैं ...कुछ हो ।
*पृष्ठ 89-- पर देवत्व ... आतुर रहती हैं ।
*पृष्ठ 96 --हर बार... हो जाती है ।
यह ऐसे अंश हैं जो रवि जी को एक अच्छी ऊँचाई तक ले जा सकते हैं। मैं मूलतः कवि हूँ, इसलिए गद्य - लेखन के बारे में मेरी दृष्टि शायद कमजोर हो । किंतु फिर भी इस संग्रह की भावगत और वाक्यों के विन्यास की कुछ कमियों पर पुस्तक में ही निशान लगाए हैं। मैं चाहता हूँ कि उन पर रवि जी से ही बात हो तो अच्छा है । वैसे मैंने वर्षों से यह निश्चय किया हुआ है कि किसी को भी उसकी कमियाँ नहीं बताऊँगा । उसका अनुभव अधिकतर कड़वा रहा है । प्रिय रवि को मैं बहुत स्नेह करता हूँ। इसलिए चाहता हूँ कि यह प्रारंभिक दोष अभी दूर हो जाएँ, फिर आदत पड़ जाएगी इनकी ही । अब रिटायर भी हो रहा हूँ। इसलिए समयाभाव तो रहेगा नहीं । रामपुर अब मुझे भूल गया है। सम्मेलन अब पराए हो गए हैं भ्रष्ट हो गए हैं मैं क्योंकि भ्रष्ट नहीं हुआ हूँ, केवल इसी लिए निमंत्रण कम हो गए हैं।
अभी कुछ पूर्व आपके पत्र में रिपोर्ट पढ़ी थी कि शशि जी की स्मृति में सम्मेलन हुआ था । दुख भी हुआ आश्चर्य भी कि मुझे नहीं बुलाया जबकि शशि जी मुझे भी बहुत स्नेह करते थे ।
मैं रामपुर आऊँगा किसी दिन ,केवल रवि जी से बात करने । अभी गर्मी बहुत है। 1 - 2 बारिश हो जाए। गर्मी के कारण अभी अभी एक सप्ताह में डिहाइड्रेशन से उठा हूँ। 5-6 कार्यक्रम ,एक दूरदर्शन का भी था, छोड़ दिए । कौन पैसे के लिए मरता फिरे ! यह वृत्ति आरंभ से ही रही । प्रभु कुछ अच्छा लिखाते रहें, ये ही बहुत है ।मैं पूर्ण संतुष्ट हूँ, इसी में ही। प्रिय रवि को मेरा स्नेह । बच्चों को आशीष। संभव हो तो पत्र दें।
सप्रेम
भारत भूषण
:::::::;प्रस्तुति ::::::::
रवि प्रकाश
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