मंगलवार, 5 अप्रैल 2022

मुरादाबाद मंडल के जनपद सम्भल निवासी साहित्यकार राजीव कुमार भृगु का गीत---मेरी पीड़ा तुम क्या जानो


मेरी पीड़ा तुम क्या जानो,

कितने दर-दर में भटकी हूँ।

छोड़ा है जबसे दर तेरा,

बीच भँवर में मैं अटकी हूँ।


पाया नहीं किनारा मैंने,

जीवन में इतनी भटकन है।

पा न सकी फिर द्वार तुम्हारा,

विषयों की इतनी अटकन है।


देता कौन सहारा मुझको,

जग की आंखों में खटकी हूँ।


जब से मुझ पर यौवन आया,

जग के वैरी मुझे खींचते।

फैला जाल वासनाओं का,

मोह पाश में मुझे भींचते ।


जब से छूटा साथ तुम्हारा,

रोज़ अधर में मैं लटकी हूँ ।


तेरे घर से आकर मैंने,

ठौर नहीं जग में पाया है ।

नित्य बिकी हूँ बाजारों में,

नहीं किसी ने अपनाया है ।


स्वारथ के अंधों ने जग के,

बाँध डोर में मैं झटकी हूँ ।


अब तो एक चाह है मन की,

तेरे दर को फिर पा जाऊँ ।

इस भटकन को छोड़ जगत की,

तेरे चरणों में आ जाऊँ ।


क्या तुम मुझको अपना लोगे,

यही सोच कर मैं अटकी हूँ ।


✍️ राजीव कुमार भृगु

सम्भल, उ.प्र.,भारत

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