मेला एक लगा है भारी,
खेल खिलौने न्यारे।
मन को रोक न पाओगे तुम
लगते हैं सब प्यारे।
चलो खरीदें ये लाला है,
इनका पेट बड़ा है।
ये किसान है काॅंधे पर हल,
बैलों बीच खड़ा है।
ये सैनिक, बंदूक हाथ में,
सीमा पार निहारे ।
चलो चलें आगे भी घूमें,
मेला रंग बिरंगा।
वहाॅं खड़े नेता जी देखो,
थामे हाथ तिरंगा।
उनके पीछे खड़ा भिखारी,
दोनों हाथ पसारे।
चलो वहाॅं पर चलें देख लें,
भीड़ लगी है भारी।
अपने तन को बेच रही है
बेटी एक बिचारी।
चढ़ी बाॅंस पर नाच दिखाती
भूखे तन से हारे।
सब धर्मों के कैसे कैसे ,
प्यारे ग्रन्थ सजे हैं।
अलग अलग दूकानें इनकी,
न्यारे साज बजे हैं।
भला कौन इनको पढ़कर जो,
अपना भाग्य सॅंवारे।
✍️राजीव कुमार भृगु
सम्भल
उत्तर प्रदेश, भारत
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