रविवार, 15 जनवरी 2023

वाट्स एप पर संचालित समूह साहित्यिक मुरादाबाद की ओर से मुरादाबाद के साहित्यिक आलोक स्तम्भ की बाइसवीं कड़ी के तहत 12, 13 और 14 जनवरी 2023 को प्रख्यात बाल साहित्यकार स्मृतिशेष शिव अवतार रस्तोगी सरस के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर तीन दिवसीय ऑनलाइन परिचर्चा का आयोजन







मुरादाबाद के प्रख्यात साहित्यकार स्मृतिशेष शिव अवतार रस्तोगी सरस के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर साहित्यिक मुरादाबाद की ओर से वाट्स एप पर तीन दिवसीय ऑनलाइन परिचर्चा का आयोजन 12, 13 और 14 जनवरी 2023 को किया गया । 

    

मुरादाबाद के साहित्यिक आलोक स्तम्भ की बाइसवीं कड़ी के तहत आयोजित कार्यक्रम के संयोजक वरिष्ठ साहित्यकार एवं पत्रकार डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा कि 4 जनवरी 1939 को संभल के एक प्रतिष्ठित वैश्य परिवार में जन्में शिव अवतार रस्तोगी सरस की काव्य कृति अभिनव मधुशाला के अनेक संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं । इसके अतिरिक्त उनकी प्रकाशित कृतियों में पंकज पराग, हमारे कवि और लेखक, नोकझोंक, सरस संवादिकाएं , पर्यावरण पचीसी, मैं और मेरे उत्प्रेरक और सरस बालबूझ पहेलियां उल्लेखनीय हैं।  गुदड़ी के लाल, राजर्षि महिमा, सरस-संवादिका शतक ,मकरंद मोदी,सरस बाल गीत आपकी अप्रकाशित काव्य कृतियां हैं । उनका निधन 2 फरवरी 2021 को हुआ।
     
उनके सुपुत्र पुनीत रस्तोगी ने कहा कि बाल साहित्य में उल्लेखनीय योगदान के लिए उन्हें डा मैमूना खातून बाल साहित्य सम्मान' (चन्द्रपुर, महाराष्ट्र),भूपनारायण दीक्षित बाल साहित्य- सम्मान' (हरदोई) मिला। इसके अतिरिक्त
उन्हें रंभा ज्योति, हिंदी प्रकाश मंच, सागर तरंग प्रकाशन, संस्कार भारती, राष्ट्रभाषा विकास सम्मेलन, बाल-प्रहरी, अभिव्यंजना, ज्ञान-मंदिर पुस्तकालय, तथा अखिल भारतीय साहित्य कला मंच आदि संस्थाओं द्वारा सम्मानित भी किया जा चुका है।
     
 राजीव सक्सेना ने कहा सरस जी की बाल कविताएं केवल बाल मनोभावों का सूक्ष्म चित्रण ही नहीं हैं, अपितु वे हमारे बचपन का 'टोटल रिकॉल' हैं। उनकी बाल कविताएं बच्चों से सीधा संवाद करती हैं, बतियाती हैं और बचपन को आधुनिक बाल परिवेश में रचती हैं। अपने बाल काव्य के माध्यम से वे अत्यंत सहजता के साथ बच्चों को संस्कारित भी करती हैं ।
     
अफजलगढ़ (जनपद बिजनौर) के साहित्यकार डॉ अशोक रस्तोगी ने कहा श्री सरस ने अपनी कालजयी कृति 'अभिनव-मधुशाला' में समाज और देश के भूत, वर्तमान और भविष्य के मदिरामयी विकृत व वीभत्स रूप का चित्र खींचते हुए ऐतिहासिक संदर्भों का भी उल्लेख किया है। मदिरापान से उपजे दुर्व्यसनों व दुष्परिणामों पर भी समुचित प्रकाश डाला  है। उनकी यह कृति समाज सुधार की दिशा में एक क्रांतिकारी साहित्यिक आंदोलन है। इसके अतिरिक्त संवाद शैली में रची उनकी बाल कविताएं बच्चों के जीवन को नैतिकता, मानवीयता व आदर्शवाद से भरपूर बनाती हैं।
        
शिव अवतार सरस की आत्मकथा मैं और मेरे उत्प्रेरक के संपादक बृजेंद्र वत्स ने कहा उनके बाल साहित्य में बच्चों की कोमल भावनाओं, संवेदनाओं व मन:स्थिति का दर्शन होता है। अभिनव मधुशाला उनकी कालजई काव्य कृति है ।
     
रंगकर्मी धन सिंह धनेंद्र ने कहा बाल रंगमंच के क्षेत्र में उनकी कविताएं उपयोगी है। उनका सहजता के साथ मंचन किया जा सकता है। मैंने स्प्रिंग फील्ड कालेज , देहली रोड के वार्षिकोत्सव में उनकी 'सास-बहू', 'कौआ-कोयल' और 2 अन्य संवादिकाओं का मंचन छोटे-छोटे बच्चों से कराया । स्वंय 'सरस' जी अपनी धर्म पत्नी के साथ अपनी  बाल-कविताओं का मंचन देखने कालेज की प्रधानाचार्या महोदया के निमंत्रण पर कार्यक्रम में पहुंचे थे। मंचन की हर तरफ प्रशंसा हो रही थी। स्कूल प्रबंधन, शिक्षिकाओं और अभिभावकों को इन नाटकों के मंचन ने बडा प्रभावित किया। छात्रों का उत्साह तो देखते ही बनता था। 'सरस' जी छात्रों के उस मंचन को यू देख कर गदगद् हो गए थे।
कुरकावली (जनपद संभल) के साहित्यकार त्यागी अशोका कृष्णम ने कहा अद्भुत  व्यक्तित्व ,कर्मठ, अत्यंत सौम्य, बालक जैसे मन के साथ-साथ,समाज को पूर्णत: समर्पित थे कीर्तिशेष श्री शिव अवतार "सरस" जी। उनकी बाल पहेलियां मन को गुदगुदाती हैं। आपकी बाल रचनाएं  नया सवेरा, मेरी गुड़िया, मेरा घोड़ा, झरना, खजूर का पेड़ आदि पढ़ी। ये सभी  सुंदर सरल,सरस होने के साथ साथ,बच्चों का ज्ञानवर्धन करती बाल रचनाएं हैं। 
       
डॉ प्रेमवती उपाध्याय ने कहा सरस जी की काव्य प्रतिभा की जितनी प्रशंसा की जाए यह कम ही है ।वे जितने उच्च कोटि के कवि थे उतने ही मानवीय गुणों की खान थे।सहजता, सरलता समरसता उनके व्यक्तित्व में रची बसी थी।उनकी अनेक कृतियां शिक्षा जगत के लिए अमूल्य है । उनका साहित्य नैतिकता चारित्रिक उदारता व मानवीय संवेदना से परिपूर्ण है और भारतीय संस्कृति से साक्षात्कार कराता है।
      
अशोक विश्नोई ने कहा स्मृतिशेष शिव औतार रस्तोगी " सरस " जी बाल रचनाओं के  सशक्त हस्ताक्षरों में से एक थे,उनकी अधिकतर बाल रचनायें मंचीय हैं।कई रचनाओं का विद्यालयों में बच्चों द्वारा सफलतापूर्वक मंचन हो चुका है । उनकी रचनाओं में बाल पन झलकता है यह तभी संभव है जब रचनाकार बच्चों जैसा मन रखता हो यह विशेषता सरस जी में थी। वह बहुमुखी व्यक्तित्व के बहुत ही सरल ,विनम्र स्वभाव के रचनाकार थे। उनकी रचनाएं सामाजिक,राजनीतिक व प्राकृतिक विसंगतियों पर प्रहार भी करती है।
    
रामपुर के साहित्यकार रवि प्रकाश ने कहा अनेक साहित्यकारों के संदेशों, पत्रों तथा लेखों से भरी हुई उनकी पुस्तक “मैं और मेरे उत्प्रेरक”, उनके जीवन और कृतित्व के विविध आयामों को उद्घाटित करती है । अपनी इस पुस्तक में सरस जी ने बहुत सादगी से भरी भाषा और शैली में अपने जीवन का चित्रण किया है। 
    
श्री कृष्ण शुक्ल ने कहा वे सरल, सहज, सरस  और सौम्य व्यक्तित्व के स्वामी थे। साहित्यिक मुरादाबाद पटल पर वह मेरी रचनाओं पर नियमित प्रतिक्रिया करते थे, जहाँ आवश्यकता होती सुझाव भी देते थे । उनका समस्त लेखन सहज और साधारण बोलचाल की भाषा में  है और उनका लेखन शिक्षाप्रद और समाज को सही दिशा दिखाने वाला है।
        
डॉ पुनीत कुमार ने कहा सरलता, सहजता, सौम्यता, शालीनता और विनम्रता,सरस जी में कूट कूट कर भरी थी। उनकी कालजयी कृति,"अभिनव मधुशाला" सबको बहुत प्रभावित करती थी । हम सब उसको मन से सुना करते थे। उनकी बाल रचनाओं में सरसता भी है,और संप्रेषणीयता भी।मनोरंजन के साथ साथ शिक्षा भी और संदेश भी।
       
अशोक विद्रोही ने कहा कि उनकी कृति अभिनव मधुशाला समाज को एक नई दिशा प्रदान करती है। उनकी बाल कविताओं की भाषा शैली सरल, सहज, सुबोध, सरस होने के कारण बच्चों के मन को छू जाती है।

       

अमरोहा की साहित्यकार मनोरमा शर्मा ने कहा सरस जी की लब्धप्रतिष्ठ रचनाएं -पर्यावरण पचीसी ,सरस बालबूझ पहेलियाँ ,उनकी बाल कविताएं 'मेरा घोड़ा ''मेरी गुड़िया''प्यारी चिड़िया'और 'नया बसेरा ' पढ़ने को मिलीं उनकी कविताओं में बालसुलभ जिज्ञासा और उसका समाधान दोनों ही बड़ी कोमलता से  परिलक्षित होतें हैं  कवि बच्चों के मन से बतियाते वह खुद बच्चे बन जाते हैं यह विशेषता उनके निर्मल मन को चिन्हित करती है

   

 धामपुर के साहित्यकार डॉ. अनिल शर्मा 'अनिल' ने कहा वह शिक्षक के रूप में बच्चों के मनोविज्ञान को बखूबी जानते थे और उसी के अनुसार प्रभावशाली बाल साहित्य की रचना करते थे।कोरी उपदेशात्मक रचना न करके किसी रोचक कविता, कहानी के माध्यम से वह सीख दे देते थे। अपने नाम के अनुरूप ही सरस जी ने सरस  साहित्य  ही रचा,जो पाठक/श्रोता के मन को सीधा प्रभावित करता है। वह सरस के साथ ही साथ सहज और सरल भी थे।
         
 साहित्यपीडिया की संस्थापक डॉ अर्चना गुप्ता ने कहा श्री सरस जी को मेरी बाल रचनाएं भी बहुत अच्छी लगती थी । उन्होंने मुझे बहुत प्रोत्साहित भी  किया बाल लेखन की तरफ। उनकी पहेलियां और  कविताएं फेस बुक और साहित्यिक मुरादाबाद में  पर पढती और प्रभावित होती रहती थी। फोन पर भी उनसे इस संदर्भ में  कई बार वार्तालाप हुये और उनका आशीष  मिलता रहा।
         
 रामपुर के साहित्यकार राम किशोर वर्मा ने कहा स्मृति शेष श्री शिव अवतार रस्तोगी 'सरस' जी ने साहित्य जगत में अपने जन्म स्थान सम्भल का नाम अमर कर दिया । सम्भल को उन जैसा रत्न मिला । वह केवल साहित्य तक ही सीमित न रहकर एक सामाजिक व्यक्ति भी थे जो सभी से प्रेमभाव भी रखते थे। मिलनसार थे ।
       
राजीव प्रखर ने कहा कि स्मृतिशेष गुरुवर श्रद्धेय सरस जी के सान्निध्य में मैंने काफी समय बिताया। मेरे राजीव कुमार सक्सेना से राजीव 'प्रखर' बनने तक की यात्रा में उनकी  अप्रत्यक्ष रूप से बहुत बड़ी भूमिका भी रही। उनकी कृति हमारी कवि और लेखक विद्यार्थियों में अत्यंत लोकप्रिय हुई इसमें साहित्यकारों का संपूर्ण परिचय कुंडलियों के रूप में था जो सरलता से याद हो जाता था।
       
हेमा तिवारी भट्ट ने कविता के माध्यम से श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए कहा..
        सरस संवादिकाएं भाये,
        कवि और लेखक पथ दिखाए,
        नोकझोंक कायदा चाहिए,
        हमें सरस संपदा चाहिए। 

   डॉ प्रीति हुंकार ने कहा  श्री सरस जी मेरी बाल कविताओं के पहले समीक्षक थे। उन्होंने  मेरी प्रारम्भिक बाल कविताओं में सुधार किया । "नोक झोंक " नामक बाल कविता संग्रह भी उन्होंने मुझे आशीर्वाद स्वरूप दिया । उनके व्यक्तित्व में एक बालक की सी सौम्यता के दर्शन होते है 
        
मयंक शर्मा ने कहा साहित्यकार होने के साथ-साथ वे हिंदी के कुशल अध्यापक के रूप में भी विद्यार्थियों के प्रेरणा स्रोत रहे। मेरा सौभाग्य रहा कि महाराज अग्रसेन इण्टर कॉलेज में कक्षा 11 और 12 में उनके अध्यापन में हिंदी सीखने का अवसर मिला। वह इतने सरल और रोचक ढंग से हिंदी पढ़ाते थे कि 40 मिनट का पीरियड कब निकल जाता था, पता ही नहीं चलता था।  उनके मार्गदर्शन का ही प्रताप था कि विज्ञान का मैं विद्यार्थी बोर्ड परीक्षा में हिंदी में ही सबसे अधिक अंक ला पाया। मेरे प्रति उनका विशेष स्नेह था। विद्यालय स्तर पर होने वालीं वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में विद्यालय का प्रतिनिधित्व करने के लिए वह सदा मुझे ही चुनते थे।
       

जकार्ता, इंडोनेशिया की साहित्यकार वैशाली रस्तोगी ने कहा स्मृतिशेष शिव अवतार "सरस" जी विराट व्यक्तित्व के धनी थे। बहुत सारी स्मृतियां हैं जो हमारे ह्रदय में बसी हुई है। अनेक कविताएं आपके मुख से सुनी। आपने हमेशा लिखने  और सही सोच के साथ आगे बढ़ने का बढ़ावा दिया।
     
 ठाकुरद्वारा के साहित्यकार नृपेंद्र शर्मा सागर ने कहा साहित्यिक मुरादाबाद के पटल पर "सरस" जी की जितनी भी रचनाओं को प्रस्तुत किया गया उन्हें पढ़कर सिद्ध होता है कि सरस जी  उच्च कोटि के साहित्यकार थे। विशेषकर बाल साहित्य की उनकी रचनाएं तो स्वयं में शोधशाला ही प्रतीत होती हैं।
         
  कंचन खन्ना ने कहा सरसजी का स्नेहपूर्ण आशीर्वाद मुझे उनके जीवन काल में प्राप्त होता रहा है। अनेक बार वह मेरे घर आये व मुझे उत्साहपूर्ण ऊर्जा प्रदान कर कुछ नवीन करने हेतु प्रेरित किया। उनकी रचनाएँ भी पढ़ीं व सुनीं। वह मुझे ऊर्जावान बेटी मानते थे और उनकी हार्दिक इच्छा जो उन्होंने एक बार फोन पर बताई कि वह मेरे जीवन पर एक पुस्तक अथवा लेख अपनी लेखनी द्वारा लिखना चाहते थे, जिससे कि समाज में अवसाद से घिरे लोग प्रेरित हो सकें।
   
नकुल त्यागी ने कहा साहित्यिक पटल मुरादाबाद पर स्मृति शेष शिव अवतार रस्तोगी सरस जी के बारे में चल रहे कार्यक्रम में पटल पर प्रस्तुत सामग्री पढ़कर हमें मुरादाबाद साहित्य की बड़ी  जानकारी प्राप्त हुई I स्मृति शेष श्री शिव अवतार रस्तोगी जी को मैंने अनेक बार साहित्यिक कार्यक्रमों में  सुना था I पटल पर विभिन्न साहित्यकारों के द्वारा प्रस्तुत विवरण को पढ़ने के बाद इतना अवश्य कहा जा सकता है कि वह एक उत्तम साहित्यकार और उत्तम शिक्षक के साथ-साथ एक उत्तम मानव भी थे I
       
स्मृतिशेष सरस जी की पुत्रवधु लीना रस्तोगी ने कहा मुझे हमेशा यह सोचकर सुखद अनुभूति होती है कि मैं ऐसे सरल, सौम्य व्यक्तित्व के विलक्षण साहित्यकार परम आदरणीय श्रद्धैय सरस जी के परिवार में बहू बनकर आई। सरस जी जो कार्य हाथ में लेते थे बड़ी ईमानदारी और निष्ठा से उस कार्य को करते थे। वह अपने उपनाम के अनुरूप ही हमेशा सरस रहे , यही कारण है कि कर्म क्षेत्र में आने के बाद वह खोया पाया के झंझट से मुक्त रहकर मात्र कर्म ही करते रहे। सेवा भाव उनके व्यक्तित्व कीविशेषता है, जिससे वे यथाशीघ्र किसी से भी सामंजस्य बना लेते थे।
     
स्मृतिशेष सरस जी की सुपौत्री शुभांगी रस्तोगी ने कहा  बाबाजी (सरस जी) के बारे में आप सबके लेख पढ़कर मैं शुभांगी अपने आप को गौरवान्वित महसूस कर रही हूं। बचपन से ही बाबा जी की बातें और बाल कविताएं सुनकर हम बड़े हुए हैं, आज आप सब ने उनके बारे में लिखकर हमारी यादें ताजा कर दी हैं। आदरणीय बाबा जी की यादें आज भी हमारे साथ हैं, यह मेरा सौभाग्य है कि मेरी बेटी  को भी उनका आशीर्वाद मिला।
     
स्मृतिशेष सरस जी की सुपुत्री ऋचा रस्तोगी ने कहा हमारे पिता जी (सरस जी) ने स्वयं के पुरुषार्थ  एवं स्वाध्याय के द्वारा अर्जित आजीविका से अपने बच्चों को बड़ा किया है। उनके बारे में आप सभी के लेख पढ़कर मैं बहुत भावुक हो रही हूं और अपने आपको गौरवान्वित महसूस कर रही हूं कि आज भी वह हम सब की यादों में जीवित हैं। बचपन से अब तक की यादें आप सब के माध्यम से ताजा हो रही हैं। आप सब का बहुत-बहुत धन्यवाद।
          कार्यक्रम में  आमोद कुमार अग्रवाल (दिल्ली), सूर्यकांत द्विवेदी (मेरठ), राजेश अग्रवाल, प्रदीप गुप्ता (मुंबई), रश्मि रस्तोगी, धैर्य शील आदि ने भी विचार रखे।
           
स्मृतिशेष सरस जी के सुपुत्र पुनीत कुमार रस्तोगी ने आभार व्यक्त करते हुए कहा श्रद्धेय पिताजी श्री शिव अवतार रस्तोगी सरस जी के साहित्य पर आयोजित गोष्ठी में सम्माननीय लेखक गण जिन्होंने उनके बारे में अपने विचार व्यक्त किए एवं दुर्लभ फोटोग्राफ डाले ,उन सभी का बहुत-बहुत आभार। इस गोष्ठी को आयोजित करके पिताश्री सरस जी को जीवंत रखने के लिए डॉ मनोज रस्तोगी जी का विशेष आभार ।

:::::: प्रस्तुति:::::::
डॉ मनोज रस्तोगी
8, जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर
9456687822
dr.rastogimanoj@gmail.com

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