सुधा कार्यालय में अकेले बैठी थी। लगभग साढ़े छः बजे पति से बात हुई थी । वे उसे लेने कार्यालय आने वाले थे परंतु तेज आँधी बारिश के चलते रास्ते में एक पेड़ गिर जाने से वे रास्ता खुलने का इंतजार कर रहे थे और सुधा ढलती हुई शाम में अपने पति का ।
अधिकांश स्टाफ या तो बीमार था या घर में किसी के बीमार होने पर क़वारन्टीन। कोरोना की तीसरी लहर और तेज़ आँधी तूफान से मौसम ने भयावह रूप ले लिया था ।यह देखते हुए उसने अपनी चार माह पश्चात सेवानिवृत्त होने वाले इंचार्ज एवं अपनी पियोन को जिद करके घर भेज दिया था । उसकी संतोष आंटी बार-बार कह रही थी बिटिया अकेले कैसे बैठोगी आफिस में ? वह हँस कर बोली- कोई बात नहीं ये हमेशा समय पर आ जाते हैं। अभी मेट्रो भी नहीं चल रही है। आप समय रहते निकल जाओ। कार्यालय प्रथम तल पर था। थोड़ी देर के बाद उसने कार्यालय के बाहर कॉरीडोर में चहल कदमी करते हुए देखा कि आसपास के सभी कार्यालय बंद हो चुके थे। सामने बस सुनसान सड़क दिखाई दे रही थी। वह वापस आकर अपनी कुर्सी पर बैठ गई तभी अचानक बिजली की फुर्ती से कई बंदर गुस्से में खों खों चिल्लाते हुए उसके ऑफिस में घुस आये । सुधा तेजी से अंदर की ओर भागी और अंदर वाले चेंबर में जाते ही उसने दरवाजा बंद कर लिया। चेम्बर भी क्या था बस एक आठ फुट की दीवार मात्र थी जिसके ऊपर छत तक खुला था। एक छलांग में ही बन्दर अंदर चले आते। वह साँस रोककर दरार में से देख रही थी। वे तीन बन्दर बुरी तरह से लड़ रहे थे। सुधा का फोन भी सामने टेबल पर पड़ा था वह चाह कर भी बंदरों के बीच में अपना फोन लाने की स्थिति में नहीं थी उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए। तभी उसे शोर मचाते हुए किसी के आने की आवाज सुनाई दी वह समझ गई कि यह तो वह भिखारी है जिसको प्रतिदिन अपने खाने में से दो रोटियाँ दे देती है । थोड़ी देर बाद वह एक लोहे की रॉड पीटता हुआ आया और उसने उन बंदरों को भगा दिया वह बाहर से बोला मैडम जी अब घर जाओ हमने बंदरों को भगा दिया है ।
सुधा बाहर आई तब तक वह भिखारी लोहे की रॉड को जमीन पर घसीटता हुआ कॉरिडोर में दूर चला जा रहा था। और सामने से उसके पतिदेव आ रहे थे। सुधा के माथे पर पसीना व चेहरे पर मुस्कान थी । उसके दिल ने कहा कि भलाई हमेशा ही वापस आती है।
✍️ सपना सक्सेना दत्ता, सेक्टर 137, नोएडा
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