गुरुवार, 10 दिसंबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार (वर्तमान में नोएडा निवासी ) सपना सक्सेना दत्ता की रचना -----माटी का कर्ज चुकाते हैं, स्वेद-लहू बहाते हैं । हम धरती-पुत्र कहाते हैं, पर नेता नहीं सुन पाते हैं।।


 माटी का कर्ज चुकाते हैं।

स्वेद-लहू बहाते हैं ।।

हम धरती-पुत्र कहाते हैं। 

पर नेता नहीं सुन पाते हैं।।


हाड़ कँपाती सर्दी में, 

मौसम की बेदर्दी में। 

खुली सड़क पर बैठे हैं, 

बैठे,खड़े,अधलेटे हैं ।

भूख प्यास को भूल भाल,

जीवन लगता, बन रहा काल। 

तीन नियमों के विरोध में,

जीवन के गतिरोध में। 

अपनी बात सुनाते हैं ।

पर नेता सुन नहीं पाते हैं।।


जीवन सारा बलिदान किया,

धरती माँ का सम्मान किया।

जिन तन पर पूरे वसन नहीं,

सर्दी-गर्मी की तपन सही।

किस विधि खेत बचाएंगे,

अब कैसे कर्ज चुकाएंगे।

 कर्ज़ भी है, जुर्माना है, 

विपदा का विषम खजाना है।

वह किसान कहलाते हैं।

पर नेता सुन नहीं पाते हैं।।


पराली से प्लेटें बनाओ तुम,

प्लास्टिक को दूर भगाओ तुम।

बायोडीजल बन सकता है,

पौष्टिक चारा बन सकता है।

पशुचारा पर्वत पहुंचाओ,

प्रगति की राह पर तुम आओ।

कल कारखाने लगाओ तुम,

कुछ आगे तो भी आओ तुम।

क्या करना है? बतलाते हैं।

पर नेता सुन नहीं पाते हैं।। 


पराली नहीं जलाएंगे, 

कंपोस्ट खाद भी बनाएंगे।

मशरूम उत्पादन कर लेंगे,

पैकिंग पशु चारे में देंगे।

जितनी लागत जितनी मेहनत,

भरे बरस की जब आगत।

तब मूल्य अवमूल्यन होता है,

पूरा परिवार जब रोता है।

लागत की राशि न पाते हैं।

पर नेता सुन नहीं पाते हैं।।


माटी का कर्ज चुकाते हैं। 

स्वेद-लहू बहाते हैं ।।

हम-धरती पुत्र कहाते हैं। 

पर नेता सुन नहीं पाते हैं।।

✍️ सपना सक्सेना दत्ता, सेक्टर 137, नोएडा 

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