सोमवार, 11 जनवरी 2021

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था 'हस्ताक्षर' की ओर से रविवार 10 जनवरी 2021 को वाट्सएप पर ऑन लाइन मुक्तक गोष्ठी का आयोजन किया गया । गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों द्वारा प्रस्तुत मुक्तक ------


वेदना  का  भार  लेकर  जी   रहा  हूँ

गीत  का  सम्भार  लेकर  जी  रहा हूँ
तोड़ दी वीणा ह्रदय की जिस किसी ने
बस  उसी  का  प्यार लेकर जी रहा हूँ ।
       
कौन  हो  कहना  सरल है
भाव  को  पीना  गरल   है
बीच  की  चुप्पी न  अच्छी
अध कहा निभना विरल है ।
        
नियति हर श्वांस को तूफान बना देती है
विवशता  फूल  को पाषाण बना देती है
जन्म  से कोई भी  शैतान नहीं  होता है
भूख  इंसान  को  शैतान  बना  देती  है
         
✍️ अशोक विश्नोई, मुरादाबाद
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1 ओठोंपर तनिक बुदबुदाहट है
फूल पत्तों में सरसराहट है
शर्म से झुक रही हैं ख़ुद पलकें
तेरे आने की सुगबुगाहट है
2
चाह अभ्यास होने लगी है
आस विश्वास होने लगी है
क्या अमृत प्यार का दे गये तुम
तृप्ति फिर प्यास होने लगी है।
3
अकुलाहट गाती रहती हैं
मन को भरमाती रहती हैं
छोटी-छोटी जिज्ञासाएं
जीवन सरसाती रहती हैं

✍️ डॉ. अजय 'अनुपम',मुरादाबाद
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उदित हुआ नव भास्कर, स्वर्णिम हुआ विहान।
विमल हृदय से कीजिये, ईश्वर का गुणगान।
जीवन में यदि चाहते, तुम खुशियों का साथ
सदभावों से हो सजा, अन्तर्मन परिधान।।

शीत पवन की चले कटारी, सूरज है लाचार।
सिमटा सिमटा सा लगता है, देख सकल संसार।
कुहरे में जा धूप छुपी है, पंछी भी बेहाल
माँ की अदरक चाय बनी है, सर्दी का उपचार।।

भूली बिसरी यादों से ही, सजता मन का गाँव।
बड़ी कटीली डगर प्रेम की, बिंधे हुए हैं पाँव।
वही खुशी तो बाँट सकेगा, जिसके अपने पास
पतझर के मौसम में तरुवर, कब देते हैं छाँव।।

✍️ डॉ पूनम बंसल, मुरादाबाद
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1- सच को कहना सच को सुनना सीखना होगा हमें
झूठ के फैलाव को अब रोकना होगा हमें
चाहते हो यदि चतुर्दिक शांति व सद्भाव हो
हर तरह की बेड़ियों को तोड़ना होगा हमें
2- इक नया सूरज उगायें इस गहन अंधियार में
अब नये उत्तर तलाशें प्रश्नो के अंबार में
हो रही नैतिकता खंडित रो रही इंसानियत
इक नये बदलाव की दरकार है  संसार में
3- चेतना के स्वर यहाँ पर मौन कैसे हो गये
लोग औरों को जाते क्यों स्वयं ही सो गये
लुप्त क्योंकर हो रहीं हैं सत्य की परछाईंया
कौन हैं पथ पर हमारे शूल इतने बो गये

✍️ शिशुपाल "मधुकर ",मुरादाबाद
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          (1)
सुन  रहे यह साल  आदमखोर है
हर तरफ  चीख, दहशत, शोर है
मत कहो वायरस जहरीला बहुत
इंसान ही आजकल कमजोर है

(2)
मौतों   का  सिलसिला  जारी है
व्यवस्था की कैसी ये लाचारी है
आप  शोक संदेश  पढ़ते  रहिये
आपकी इतनी ही जिम्मेदारी है

(3)
लेकर फिर हाथ में वो मशालें निकल पड़े हैं
बेकुसूरों  के  घर  वो जलाने निकल पड़े हैं
यह सोच कर उदास हैं चौराहों पर लगे बुत
हमारे शहर में  वो लहू बहाने निकल पड़े हैं

✍️ डॉ मनोज रस्तोगी
Sahityikmoradabad.blogspot.com
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त्यागकर स्वार्थ का छल भरा आवरण
तू दिखा तो  सही प्यार का आचरण
शूल  भी  फिर नहीं दे सकेंगे चुभन
जब छुअन का बदल जाएगा व्याकरण
×-×-×-×-×-×-×-×-×-×-×-×
द्वंद  हर  साँस  का साँस के संग है
हो  रही  हर  समय स्वयँ से जंग है
भूख - बेरोज़गारी  चुभे   दंश - सी
ज़िन्दगी  का  ये  कैसा  नया रंग है
×-×-×-×-×-×-×-×-×-×-×-×
व्यर्थ आपस में क्यों हम हमेशा लड़ें
भेंट षडयंत्र की क्यों सदा हम चढ़ें
छोड़कर नफ़रतें प्यार की राह पर
दो क़दम तुम बढ़ो, दो क़दम हम बढ़ें

✍️  योगेन्द्र वर्मा ‘व्योम’, मुरादाबाद
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    जमा  दिया  नदियों का पानी,
    किया  हवा  को  भी  तूफ़ानी,
    पता  नहीं  कब तक सहनी है,
    हमें शिशिर की यह मनमानी।
 
और  न  अपना  कोप  बढ़ाओ  हे सर्दी  रानी,
तेवर   में   कुछ  नरमी  लाओ  हे  सर्दी  रानी।
कुहरा भी फैलाओ लेकिन हफ़्तों-हफ़्तों तक,
सूरज  को  यों  मत  धमकाओ  हे  सर्दी रानी।

✍️ ओंकार सिंह विवेक, रामपुर
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धूप में गम की दरख्तों का घना साया है मां,
नेअमतें है एक अता दौलत है सरमाया है मां,
मां तेरे सदके मेरी शोहरत की हर शाम ओ सहर,
इस  जहां  में तेरा रुतवा कौन ले पाया है मां,,

कुछ तो था जिसका ग़म नहीं जाता,
दिल से वो ...दम से कम नहीं जाता,
कोई .... शिद्दत  से   याद   करता  है,
मुद्दतों ...यह    वहम    नहीं   जाता,,

कहीं तो जिस्म को बेपैरहन रखे फैशन,
कहीं बे पैरहन बैठे हैं मुँह ज़रा सा लिए,
कहीं नसीब मसर्रत जहां की शाम ओ सहर ,
कहीं गमों का तलातुम है सिलसिला सा लिए,,

नजर से जान लेते हैं जिगर की बात भी साहिब,
कहां सबके पहुंच पाते वहां जज्बात भी साहिब,
तमन्ना आसमां छू कर भी उन तक लौट आती है,
मोहब्बत तो बना देती है यह हालात भी साहिब,,

अदब शनास  तबीयत का पास रखते हैं ,
उदास दिल भी  मुहब्बत का पास रखते हैं ,
कभी कहीं भी तेरा तस्करा नहीं करते,
'मनोज' हम भी रवायत का पास रखते हैं,,
          
✍️ मनोज 'मनु', मुरादाबाद
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1
पसीने से ये अपने अन्न धरती पर उगाता है। 
कृषक ही इस धरा पर हम सभी का अन्नदाता है।
किसानों की बदौलत ही हमारा देश कृषि उन्नत,
सियासत खेलना इन पर नहीं हमको सुहाता है।।

2
आना है इसको आएगा, आने वाला कल।
आकर फिर कल बन जायेगा,आने वाला कल। भरी हुई सुख दुख से रहती, उसकी तो झोली,
किसे पता पर क्या लाएगा,आने वाला कल।।

✍️ डॉ अर्चना गुप्ता , मुरादाबाद
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पीछे सारे रह गये, मज़हब-फ़िरके-ज़ात।
जब लोगों ने प्यार से, की हिन्दी में बात।।
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मानो मुझको मिल गये, सारे तीरथ-धाम।
जब हिन्दी में लिख दिया, मैंने अपना नाम।।
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माँ हिन्दी के नाम पर, करके जय-जयकार।
हाय-हलो में व्यस्त क्यों, इसके ठेकेदार।।

अरे चीं-चीं यहाँ आकर, पुनः हमको जगा देना।
निराशा दूर अन्तस से, सभी के फिर भगा देना।
चला है काटने को जो, भवन का मोकला सूना,
उसी में नीड़ अपना तुम, मनोहारी लगा देना

फिर विटप से गीत कोई, अब सुनाओ कोकिला।
आस जीने की जगा कर, कूक जाओ कोकिला।
हों तुम्हारे शब्द कितने, ही भले हमसे अलग,
पर हमारे भी सुरों में, सुर मिलाओ कोकिला।

- ✍️ राजीव 'प्रखर', मुरादाबाद
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1-
धरती पर अब तक मानव की प्यास अधूरी है
सुख संग दुख से जीवन की परिभाषा पूरी है
युगों युगों से चक्र तभी ये चलता जाता है,
फूलों संग "काँटों " का होना बहुत जरूरी है
2-
सत्य हम बोल तो लें,यह पर,सुनेगा कौन?
पुष्प 'प्रिय' झूठ का है,काँटें चुनेगा कौन?
लक्ष्य है 'सुख',सभी का,'सच' कब रहा है ध्येय
प्रश्न 'कटु' मेहनत के,मन में गुनेगा कौन?
3-
मीत लौट आ इधर,राह वह निहारती
हाथ चंद्रमा लिए,चेहरा संवारती
चूनरी में स्वप्न की,टाँकने नखत लगी,
दीप जला सांझ का,रूपसी पुकारती

✍️ हेमा तिवारी भट्ट, मुरादाबाद
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आज़ादी का बिगुल बजाया मेरी प्यारी हिन्दी ने
जन जन में है जोश जगाया मेरी प्यारी हिन्दी ने
माँ ने मीठी लोरी गायी जिस भाषा के भावों में
सुंदर सा है स्वप्न दिखाया मेरी प्यारी हिन्दी ने ।

✍️ डॉ रीता सिंह, मुरादाबाद
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कहूँ कैसे दबी जो आज मेरे बात दिल में है ।
बिताये साथ जो लम्हे वही  सौगात दिल में है ॥
समय अब आ गया है प्यार का इज़हार करने का ,
मुहब्बत से भरे जज़्बात की बरसात दिल में हैं ॥

दिल के जज़्बात यूँ ही दिल में दबाए रखना।
कोई कुछ भी कहे अश्क़ों को छुपाए रखना।।
जाने किस मोड़ पे मिल जाए मसीहा कोई,
आस का दीप सदा दिल में जलाए रखना।।

✍️ डाॅ ममता सिंह मुरादाबाद
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हाथों की भी यह कैसी मजबूरी है  
सब कुछ पाया है, एक चाह अधूरी है।
हाथ मिलाने से पहले सोचा न था
रेखाओं का मिलना बहुत जरूरी है।

मैं जानती हूं कि मुझको तेरी तलाश नहीं
ढूंढती रहती हूं जाने क्या मेरे पास नहीं।।
तड़प है दर्द है खामोशी है तन्हाई है,
फिर भी कहती हूं जमाने से मैं उदास नहीं।।

अभी मुझको जमाने की तरह चलना नहीं आता
रिवाजों में यहां की रीत में ढलना नहीं आता
  मुझे आता है बस लोगों के होंठों पर हंसी लाना
मुझे मंदिर में पूजा आरती करना नहीं आता।।

✍️ निवेदिता सक्सेना, मुरादाबाद

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश की रचना --नैनीताल में नववर्ष-


 

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृति शेष सर्वेश्वर सरन सर्वे पर केंद्रित डॉ मनोज रस्तोगी का आलेख जो दैनिक जागरण के 11 जनवरी 2015 के अंक में प्रकाशित हुआ था


 

रविवार, 10 जनवरी 2021

मुरादाबाद मंडल के गजरौला (जनपद अमरोहा) की साहित्यकार डॉ मधु चतुर्वेदी का गीत ---अस्मिता का हिन्द की सत्कार है हिन्दी, एकता के सूत्र का विस्तार है हिन्दी.....


अस्मिता का हिन्द की सत्कार है हिन्दी ।

 एकता के सूत्र का विस्तार है हिन्दी ।।


संस्कृता,संजीविता,अपराजिता है।

मर्दिता बहु भांति पर कठ जीविता है।।

आत्म गौरव की गहन हुंकार है हिन्दी।

राष्ट्र के जयघोष की टंकार है हिन्दी।।


वन्दिता,अभिनंदिता,वाणी पुनीता।

रंजनी,दुखभंजनी,सुखदा, सुनीता।।

भक्ति की अभिव्यक्ति का उद्गार है हिन्दी।।

भावना के भाष्य का उच्चार है हिन्दी।।


संलयन,संदर्शना का उन्नयन है।

भिन्न परिवेशी स्वरों का सम्मिलन है।।

सार्वभौमिक ऐक्य का संचार है हिन्दी।

राष्ट्रवादी भावनद की धार है हिन्दी।।


आत्म का विश्वात्म मेँ शुभ संचरण है।

संस्कृति की सौम्यता का संवहन है।। 

कूट सूत्रों का सरल व्यवहार है हिन्दी।

लक्ष्य के उत्कर्ष का सुविचार है हिंदी।।


वर्ण,अक्षर,नाद योजित व्याकरण है।

ज्ञान का विज्ञान सम्मत आचरण है।।

आदि कवि की कल्पना का सार है हिन्दी।

नवरस तरंगित तारिणी का तार है हिन्दी।।


आप्त ऋषियों की गिरा से निःसृता है।

है कलेवर दिव्य यह प्रांजल ऋता है।।

पूत वैदिक वाङ्गमय अनुहार है हिन्दी

स्वस्ति की संकल्पना,संस्कार है हिंदी।।


क्योँ विमाता-मोह मेँ, माता भुलाई।

क्योँ परिष्कृति ने विकृति से मात खाई।।

इस भ्रमित व्यामोह का उपचार है हिन्दी।

गर्व से उद्घोष हो,स्वीकार है हिन्दी।।


✍️ डॉ. मधु चतुर्वेदी

गजरौला गैस एजेंसी चौपला,गजरौला

जिला अमरोहा 244235

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नंबर 9837003888

मुरादाबाद के साहित्यकार शिव अवतार रस्तोगी 'सरस' की कृति ''सरस बाल बूझ पहेलियों" का महाराजा हरिश्चन्द्र कालेज में लोकार्पण

विश्व हिंदी दिवस की पूर्व संध्या पर शनिवार 9 जनवरी 2020 को महाराजा हरिश्चंद्र स्नातकोत्तर महाविद्यालय मुरादाबाद में आयोजित समारोह में मुरादाबाद के वयोवृद्ध बाल साहित्यकार शिव अवतार रस्तोगी 'सरस' की कृति 'सरस बाल  बूझ पहेलियों" का लोकार्पण किया गया ।

          दीप प्रज्ज्वलन एवं डॉ कामिनी शर्मा द्वारा प्रस्तुत मां सरस्वती वंदना के उपरांत डॉ मुकेश गुप्ता के संचालन में आयोजित समारोह की अध्यक्षता करते हुए महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य डॉ विश्व अवतार जैमिनी ने कहा कि श्री सरस जी ने सूक्ष्मतर विषयों को अपनाकर अपनी पैनी दृष्टि से उनके गुणों, कर्म एवं धर्म के आधार पर ऐसी दुर्गम किंतु सहज बोधकारी पहेलियों की रचना की है जिन्हें सुनकर कभी आह और कभी वाह की अभिव्यक्ति स्वतः होने लगती है।                 

      मुख्य अतिथि के रुप में हिंदू महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य डॉ रामानंद शर्मा ने कहा कि श्री सरस जी की पहेलियों में बाल मनोविज्ञान के दर्शन होते हैं। मुख्य वक्ता प्रख्यात साहित्यकार डॉ राकेश चक्र ने कहा कि कृति में प्रकाशित पहेलियां बच्चों के मनोरंजन के साथ-साथ ज्ञानार्जन में भी सहायक हैं। संयोजक वरिष्ठ साहित्यकार एवं पत्रकार डॉ मनोज रस्तोगी ने हिंदी बाल साहित्य में मुरादाबाद के साहित्यकारों के योगदान एवं परंपरा पर विस्तृत प्रकाश डाला। साहित्यकार अशोक विश्नोई ने श्री सरस के कृतित्व के संदर्भ    में जानकारी दी। युवा साहित्यकार राजीव प्रखर और गोविंद नोन्याल ने श्री सरस के व्यक्तित्व को अनुकरणीय बताया। अतिथियों का स्वागत महाविद्यालय के प्रबंधक  डॉ  काव्य सौरभ रस्तोगी ने किया। उन्होंने कहा कि बाल साहित्य के क्षेत्र में श्री सरस ने जो उल्लेखनीय योगदान दिया है उसे विस्मृत नहीं किया जा सकता।

   लोकार्पित कृति का परिचय प्रस्तुत करते हुए रचनाकार  शिव अवतार रस्तोगी सरस  ने कहा कि इस कृति में 185 पहेलियां हैं जिसमें 'शिक्षण शास्त्र' की मान्यता के अनुरूप भाषा की दृष्टि से ' सरल से कठिन' की ओर बढ़ने का प्रयास किया गया है । 

   आभार व्यक्त करते हुए महाविद्यालय की प्राचार्य डॉ मीना कौल ने कहा कि  बाल साहित्य लेखन  अत्यंत दुष्कर कार्य है। इसके लिए बाल मनोविज्ञान में पारंगत होना अति आवश्यक है। 

 समारोह में डॉ प्रियंका गुप्ता, मनीष भट्ट, डॉ अय्यूब, अर्जुन सिंह, डॉ अजीत कुमार , डॉ दुर्गा प्रसाद पांडेय, जितेंद्र सिंह, डॉ मुकेश मोहन आदि उपस्थित रहे ।































गुरुवार, 7 जनवरी 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार दुष्यन्त बाबा की कहानी --- विशुद्ध प्रेम


राजन का बचपन पीएसी के सरकारी क्वार्टरों में ही बीता था। राजन के पिता इसी विभाग में हवलदार थे। राजन अब धीरे-धीरे समय किशोरावस्था में प्रवेश कर रहा था। सामने के क्वार्टर में तीसरी मंजिल पर सुधा नाम की एक सुंदर कन्या रहती थी उसके पिता भी इसी विभाग में सिपाही थे। दोनों के पिता की ही ड्यूटियां कम्पनी के साथ अक्सर बाहर जाया करती थीं। इसलिए दोनों आपस में मित्र भी थे।

        सुधा और राजन दोनों ही पढ़ने में बहुत तेज थे किंतु दोनों का ही अंतर्मुखी स्वभाव था। घरेलू काम-काज में दोनों ही अपने परिवार का हाथ बटाते थे। आस पड़ोसी भी सोचते थे कि काश इन दोनों की जोड़ी होती तो कितना अच्छा होता। परंतु राजन और सुधा के बीच कभी कोई ऐसी बात न  सुनी थी। दोनों आपस में बात किये बिना भी एक-दूसरे का बहुत सम्मान करते थे। इसी बीच ड्यूटी के दौरान राजन के पिता शहीद हो गये थे। कुछ समय बाद पिता के स्थान पर राजन को उपनिरीक्षक की नौकरी हेतु संस्तुति हुई। राजन को 07 दिवस के बाद ट्रैनिंग के लिए जाना था। राजन के पिता की मृत्यु के बाद सुधा अक्सर राजन के घर आ जाती और मां की बहुत सेवा करती थी। राजन को यह बात मां से पता चली थी। 

        उसने सुधा को अपनी संगनी बनाने के उद्देश्य से एक प्रेम पत्र लिखा और एक किताब में रखकर सुधा तक पहुँचा दिया। राजन ने पत्र में लिखा कि "सुधा! तुम एक बहुत अच्छी लड़की हो मां अक्सर तुम्हारी चर्चा मुझसे करती है मेरी अनुपस्थिति में तुम घर आकर मां की सेवा करती हो। इससे मेरी नजर में तुम्हारा सम्मान और बढ़ जाता है। यदि तुम्हारा मेरी संगिनी बनना स्वीकार हो तो मेरे ट्रैनिंग को जाने से पूर्व उत्तर दे देना।....तुम्हारा और सिर्फ तुम्हारा...राजन!"। सुधा उस पत्र को पढ़कर बहुत खुश हुई। और खुद की सहमति देते हुए एक पत्र लिखा कि "राजन! मैं भी बचपन से तुम्हारा बहुत सम्मान करती हूँ मैं कभी भी अपनी बात तुमसे नही कह सकी। आज तुम्हारा प्रेम पत्र पाकर बहुत खुश हूँ मुझे तुम्हारे द्वारा इजहार का इंतजार था आज से... तुम्हारी और तुम्हारी अपनी....सुधा!" यह लिख ही रही थी की बिल्ली ने रसोई में दूध गिरा दिया। जल्दी-जल्दी में प्रेमपत्र राजन की किताब में न रख सुधा ने अपने स्टूडेंट प्रवीण की किताब में रख दिया। राजन, सुधा की असहमति समझ ट्रैनिंग को चला गया। इधर प्रवीण ने सारी कॉलोनी में सुधा और राजन की प्रेम कहानी के चर्चे कर दिये। आनन-फानन में माता-पिता ने सुधा की शादी एक वकील से कर दी। राजन को इसकी भनक तक न लगी।

            Part-2

"हेलो! हाँ कहा हो कौशल?" राजन ने गाड़ी में ही फोन लगते हुए मित्र से पूछा। " मैं तो मोदीनगर में हूँ और तू बता कहाँ है आज-कल" कौशल ने उत्तर देते हुए राजन से पूछा। "मैं लखनऊ हूँ आजकल एक जरूरी काम से नोयडा निकल रहा सोचा तुझसे मिलता चलूँ"  राजन ने प्रतिउत्तर दिया। "आ जा मेरे भाई! बहुत दिनों में मिलेंगे आज बैठते है सुनील भी लाल कुर्ती इंचार्ज है और नरेश भी कोतवाली सिटी देख रहा है।" कौशल ने राजन को बताया। चारों मित्रों ने कांफ्रेंस पर बात हुई और एक वार रेस्टोरेंट पर मिलना तय हुआ। सभी तय समय पर प्रस्तावित रेस्टोरेंट में पहुंच गए। ड्रिंक आर्डर किया गया और बहुत जल्दी ऑर्डर आ भी गया।

         सभी मित्र पीने लगे गप-शप चलने लगी कुछ ट्रेनिग की यादें कुछ साथ बचपन में बिताए पल। तभी एक पागल खाना माँगते हुए सामने से गुजरा। "अरे! सुन राजन वह सामने जो पागल दिखाई दे रहा है पता है कौन है?" सामने के फुटपाथ की तरफ इशारा करते हुए वार में बैठे कौशल ने कहा। "मुझे क्या पता" राजन ने लड़खड़ाती जुबान में कहा। कौशल ने फिर कहा कि तुम्हारे क्वाटर के सामने दूसरी मंजिल पर सुधा नाम की मैडम रहती थी जो छोटे-छोटे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाती थी, उनका भाई विभोर है। इतना सुनते ही राजन का सारा नशा उतर गया। वह टेबल से उठा और ब्रेड-टोस्ट और लेकर उसके पास पहुँचा। किंतु उसे कुछ भी समझ न थी चाय और टोस्ट खाकर वह आगे बढ़ गया। राजन कुछ देर अवाक खड़े रहकर वापस आ गया। अब उसे कौशल से सुधा और विभोर के बारे में जानने की बहुत उत्सुकता थी। उसने कौशल के पास जाकर अपने मन की उत्सुकता बयाँ कर दी। राजन की उत्सुकता देख कौशल ने बताया की ये विभोर है सुधा का भाई! तुझे तो पता है ये पढ़ने में बहुत तेज था ही सिविल सेवा परीक्षा के इंटरव्यू में फैल होते ही इसका दिमाग चल गया और आजतक इसी हालत में है "और सुधा!" कौशल को बीच में रोकते हुए राजन ने कहा। तब कौशल ने कहा की प्रवीण को सुधा मैडम के बारे में पता होगा क्योंकि वही ट्यूशन में उनका प्रिय शिष्य था। हो सकता आज भी उनके सम्पर्क में हो। "क्या तेरे पास उसका नम्बर है?" राजन ने कौशल को पुनः बीच में टोकते हुए कहा। कौशल ने कॉलेज के जूनियर से प्रवीण का नम्बर लेकर राजन को दिया। राजन ने बिना देरी किये प्रवीण का नम्बर लगाया और कहा कि प्रवीण मैं 'राजन भैया' बोल रहा हूँ। सुधा मैडम के सामने बाले घर में रहता था। प्रवीण ने अभिवादन व्यक्त करते कुशलता पूछ ली। "प्रवीण! क्या तुम अभी मेरठ आ सकते हो।" राजन ने पूछा। "भैया! रात बहुत हो चुकी है यदि कोई साथ को मिल जाए तो आ सकता हूँ" प्रवीण ने कहा। "विकास लोनी में है मैं उससे कहता हूँ वह तुम्हें लेकर आएगा" इतना कहकर राजन ने फोन काट दिया। 

       राजन के कहने पर विकास अपने साथ प्रवीण को लेकर मित्रों के पास पहुँचा। "प्रवीण! ये बताओ की सुधा मैडम कैसी है और तुम्हारे पास उनका कोई सम्पर्क सूत्र है क्या?" उत्सुकता दिखाते हुए राजन ने प्रवीण से पूछा। प्रवीण ने बताया की मैडम की शादी बरेली में हुई थी.."क्या..क्या हुआ फिर" राजन ने बीच में टोकते हुआ पूछा। एक दुर्घटना में उनके पति गुजर गए और अपने 8 साल के बेटे को साथ लेकर एकांकी जीवन गुजार रही है। "प्रवीण!क्या तुम मुझे दिखा सकते हो?" पुनः राजन ने कहा। "वैसे तो अब वह किसी से मिलती नही है परन्तु प्रयास अवश्य करेंगे" प्रवीण में कहा। पार्टी खत्म हुई दोस्तों से मिलने की खुशी उत्सुकता ने छीन ली थी। 

       रात की योजना के अनुसार अगले दिन बरेली पहुँच गये बहुत देर तक राजेंद्र नगर की गलियों में घूमते रहे। कोई पूछता तो बता देते कि किराये पर मकान लेना है। अगली ही गली में कुछ बच्चे क्रिकेट खेल रहे थे। प्रवीण और राजन को समय बिताने की जगह न थी इसलिए इन्ही बच्चों के साथ क्रिकेट खेलने लगे। उन्ही बच्चों में एक बच्चा, जो कि सुधा का था। प्रवीण ने उसे पहचान लिया और राजन को बताया कि जो ऑफ़साइड पर फील्डिंग कर रहा है वही सुधा मैडम का बेटा है। उसे देखकर तो मानों राजन की आँखों में बत्सल्य उमड़ पड़ा हो। कभी एक टक तो कभी नजरें चुराकर राजन उसे देखे जा रहा था ताकि उसे किसी भी तरह का शक न हो। राजन उस बच्चे से दोस्ती बढ़ाने लगा क्योंकि सुधा तक पहुचने का एकमात्र साधन था। खेल खत्म हुआ सभी अपने-अपने घर जाने लगे। राजन और प्रवीण उस बच्चे के पीछे-पीछे चलने लगे और उसके घर तक पहुँच गये। बच्चे ने घंटी बजाई एक अधेड़ सी महिला बाहर आयी राजन ने तुरंत पूछा "मैम! आपके घर कमरा मिलेगा किराये पर"। इतना सुनते ही महिला ने बच्चे को गेट के अंदर लिया और बिना कुछ कहे तेजी से गेट बंद कर दिया। शायद वह राजन को पहचान गयी होगी।

        एक मोबाइल नम्बर जो सुधा के बेटे से राजन ने प्राप्त किया था अलग-अलग नम्बरों से मिलाया किंतु "हैलो" से अधिक कुछ सुन न सका। दस वर्षों से अधिक बीत गये मगर सुधा की अमिट छाप दिमाग से ओझल नही होती है इसी समयांतराल में पत्नी की बीमारी को देखते हुए दोनों बेटियों की शादी कर दी। बेटा नही होने के कारण दोनों को एक-एक मकान भी दे दिया था केंसर की बीमारी हो जाने के कारण राजन ने पत्नी को खो भी दिया था। इधर सुधा के बेटे ने लव लव मैरिज कर ली थी। उसकी पत्नी बहुत तेज निकली शादी होने के कुछ माह पश्चात ही उसने सुधा को घर से निकाल दिया था। 

        नवम्बर का महीना था राजन, प्रवीण को अपने साथ लेकर अपनी पत्नी की अस्थियां विसर्जित करने हरिद्वार आया था। अस्थियां विसर्जन के पश्चात घाट पर बैठे गरीबों को दान कर रहा था। उनमें से एक भिखारिन अन्य भिखारियों की तरह नही मांग रही थी और राजन से अपनी नजरें बचा रही थी। राजन को वह आंखे कुछ पहचानी सी लगी। वह प्रवीण से कुछ कह पाता तब तक प्रवीण खुद ही कह उठा "मैम! आप यहाँ! इस हालात में कैसे"  कहते ही प्रवीण की आंखों से आँसुओ के झरने फूट पड़े। वह सोच रहा था की सुधा मैम की ये हालत आज मेरी बजह से है। राजन ने सुधा को बिना कुछ कहे अपने बाजुओं में भर लिया मानों वर्षों के प्यासे पवित्र सरिता मिल गयी हो और उम्र भर उसी घाट पर सुधा के साथ रहने का प्रण कर लिया।

         राजन ने प्रवीण को यह कहते हुए घर की चाभियां थमा दी कि "अब मेरे पास खोने-पाने को कुछ नही है यही मेरी मंजिल थी जो मुझे अब मिल चुकी है।" आज भी सुधा और राजन आंनदमयी जीवन की चिलम पीते घाट पर देखे जा सकते है। 

✍️दुष्यंत 'बाबा', मुरादाबाद


मंगलवार, 5 जनवरी 2021

वाट्सएप पर संचालित समूह साहित्यिक मुरादाबाद में प्रत्येक मंगलवार को बाल साहित्य गोष्ठी का आयोजन किया जाता है। मंगलवार 24 नवंबर 2020 को आयोजित बाल साहित्य गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों प्रीति चौधरी, मनीषा वर्मा, वीरेंद्र सिंह बृजवासी, डॉ शोभना कौशिक, अशोक विद्रोही, रवि प्रकाश, इंदु रानी, दुष्यंत बाबा, राजीव प्रखर, रेखा रानी, डॉ रीता सिंह, उमाकांत गुप्ता और वैशाली रस्तोगी की बाल रचनाएं------


खेलूँगी दिन रात इसी मैं 

अब गंगा के डेरे में 

ये मन बसता है मेरा माँ 

इस गंगा के मेले में 

सजी रंग बिरंगी चूडियां 

उन अम्मा के ठेले में 

भरकर ले जाऊँगी घर को 

मैं अपने इस थैले में 


जोकर भी हँसाता खूब 

उछले बन्दर सर्कस में 

गोरिल्ला है ये तो स्याना 

शरबत पीता थर्मस में 

हाथी सूंड उठाकर नाचे 

मुर्गी जी घूमें बस में 

झुकता जंगल का राजा भी 

रिंग मास्टर के सामने 


चलो माँ  छूते हैं आसमाँ 

बैठें हम हिंडोले में 

धरती घूमती चारों ओर 

गोल गोल उस  झूले में 

चमके चाँदी सा है रेता 

चंदा की इस चाँदन में 

नजारा हर हृदय में बसता 

इस  गंगा के मेले में 


✍️ प्रीति चौधरी, गजरौला,अमरोहा

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गोल गोल गोलमगोल

वृत्त है मेरा नाम

बॉल बनाकर बच्चों को खिलाना

 मेरा अद्भुत काम


 पेंसिल बॉक्स के जैसा है मेरा आकार 

इसमें रखते बच्चे अपना सारा सामान

 ऊपर नीचे दाएं बाएं भुजाएं एक समान 

आयत है बच्चों मेरा नाम


 दिखता हूं कुछ समोसे जैसा

 पर्वत सा कुछ आकार 

तीन भुजाएं बच्चों मेरी

 त्रिभुज है मेरा नाम

 

चार भुजाएं मेरी है 

आती है बहुत काम 

लूडो कैरम मुझसे बनते 

वर्ग है बच्चों मेरा नाम


✍️मीनाक्षी वर्मा,मुरादाबाद ,उत्तर प्रदेश

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दाने-दाने को मीलों की सैर किया करते,

कभी  सुरक्षित  घर  लौटेंगे सोच-सोच डरते।

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कदम-कदम पर जाल बिछाए बैठा है कोई,

यही सोचकर आज हमारी भूख- प्यास खोई,

पर बच्चों की खातिर अनगिन शंकाओं में भी,

महनत से हम कभी न कोई समझौता करते।

दाने-दाने को----------------


बारी- बारी से हम दाना चुगने को जाते,

कैसा भी मौसम हो खाना लेकर ही आते,

खुद से पहले हम बच्चों की भूख मिटाने को,

बड़े जतन से उनके मुख में हम खाना धरते।

दाने-दाने को-------------------


सिर्फ आज की चिंता रहती कल किसने देखा,

कठिन परिश्रम से बन जाती बिगड़ी हर रेखा।

डरते रहने से सपनों के महल नहीं बनते,

बिना उड़े कैसे मंज़िल का अंदाज़ा करते।

दाने-दाने को---------------------


आसमान छूने की ख़ातिर उड़ना ही होगा,

छोड़ झूठ का दामन सच से जुड़ना ही होगा,

जो होगा देखा जाएगा हिम्मत मत हारो,

डरने वाले इस दुनियां में जीते जी मरते।

दाने-दाने को---------------------


श्रद्धा,फ्योना,अन्वी,ओजस,शेरी बतलाओ,

अडिग साहसी चिड़िया जैसा बनकर दिखलाओ,

छोटाऔर बड़ा मत सोचो धरती पर ज्ञानी,

किसी रूप में भी आ करके ज्ञान दान करते।

दाने-दाने को-------------------

         

✍️ वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी

 मुरादाबाद/उ,प्र,

मो0-     9719275453

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बचपन की जब याद आयी ।

मन ने ली एक अंगड़ाई ।

क्या राजकुमारी से ठाठ थे अपने।

बिन राजा के राज था अपना ।

सब एक रोने पर दौड़े आते थे ।

टॉफी ,चॉकलेट से चुप कराते थे ।

आँचल में अम्मा छिपा लेती,

सारी दुनिया की सैर करा देती ।

आज भी याद आता है ,वो आँचल,

भीनी -भीनी सौंधी सी वो खुशबू ।

आज भी याद करती हूँ ,अपने,

पाती हूँ ,सबसे पहले अम्मा का आँचल


✍️ डॉ  शोभना कौशिक, मुरादाबाद

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एक गीदड़ी प्रसव वेदना, 

              से थी जब घबराई।

गुफा शेर की खाली पाकर,

            झट उस में घुस आई।।

बच्चे चार जने, थी आकुल ,

                ‌ ‌‌कैसे   पेट  भरेगा।

नहीं सुरक्षित था जंगल,

        पहले ही, अब न चलेगा।।

खुश था गीदड़ किन्तु, 

         देखा शेर उधर है आता।

वरती चतुराई जबकि, 

     संकट में कुछ न सुहाता।।

कहा ज़ोर से महारानी 

        ,ये  बच्चे  क्यों  रोते  हैं।

औरों के बच्चों को देखो, 

         चैन से  सब  सोते  हैं।।

भूखे हैं महाराजा बच्चे, 

           यूं  आपा  खोते  हैं।

बिना शेर का मांस मिले, 

         ये शांत  कहां  होते हैं।।

ठिठका शेर सुनी जब बातें,

            उसको  पड़ी  सुनाई।

खाया चक्कर आंखों से भी

            ,कुछ न पड़ा दिखाई।।

वापस घूमा दौड़ लगाई, 

             कुछ देखा न भाला।

हाय हाय ये कैसा कौतुक,

          प्रभु तुमने कर डाला ।।

 मैं जंगल का राजा, 

      ये महाराज कहां से आए ?

संग महारानी और बच्चे हैं,

        कब  कैसे  घुस  पाए??

सारी घटना बड़े ध्यान से, 

          देख    रहा  था   बंदर।

रोक शेर को दिया समझता,

            खुद को बड़ा धुरन्धर !

जंगल के राजा हो बेसुध ,

             तुम क्यों दौड़े जाते!

गीदड़ और गीदड़ी हैं वे ,

            जिनसे तुम घबराते !!

हुआ नहीं विश्वास शेर फिर,

            देने     लगा    ‌दुहाई।

पूंछ बांध लें चला कपि,

           ने सुन्दर युक्ति लगाई।।

सुनो ध्यान से बंदर बाबू, 

             ‌जो आवाजें आती हैं!

बिना शेर का मांस चबाये,

         ‌नींद इन्हें नहीं आती है।।

महाराजा ये कल का वासी,

           मांस न बिल्कुल खायेंगे।

लाते होंगे बंदर भैया ,      

              ‌उसे प्रेम से खाएंगे।।

बिल्कुल ताजा शेर मंगाया, 

      ‌‌      ताजा जिसका भेजा है।

लाता होगा मित्र मेरा,      

              बंदर को मैंने भेजा है।।

रे कपि तेरा यह दुस्साहस,

            मुझको चकमा दे डाला।

वापस दौड़ा शेर बदन ,

       बंदर का रगड़ मसल डाला।। 


✍️अशोक विद्रोही , 412 प्रकाश नगर मुरादाबाद,मोबाइल फोन नम्बर 82 188 25 541

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                ( *1* )

जग   चमकाते   चंदा   मामा 

धीरे     आते     चंदा    मामा 

              ( *2* )

दिन जब छिपता ,आसमान में 

तब  दिख   पाते   चंदा   मामा

               ( *3* )

दिखते   गोलमटोल ,सींकिया 

कभी    कहाते    चंदा   मामा

               ( *4* )

जब आती है दूज , न दिखते

खूब    छकाते    चंदा   मामा 

             ( *5* )

गोरा    रंग   तुम्हारा    कैसे 

क्या  हो  खाते  चंदा  मामा

✍️ रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा ,रामपुर (उत्तर प्रदेश)

 मोबाइल 99976 15451

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फुदक फुदक के नन्ही चिड़िया मन ही मन हर्षाती है

दिखता आज साफ नभमण्डल गीत ख़ुशी के गाती है 

पेड़ों की घन छाह न भाए नीलगगन है रिझा रहा

संग अपने नन्ही नन्ही चिड़िये और बुलाती है

दाना पानी की न चिंता घर घर झांक रहीं देखो

देख अनुशाषित मानव को मन मन ही पुलकाती है

शोर मचाती नीड मे अपने जाने क्या कहना चाहे

इस डाली से उस डाली तक ची ची ची कर जाती है

खुल कर मोर नाचता दिखया कोयल कूक सुनी बहु जोर

बने अदृश्य जीवों का भी सृष्टि नवसृजन कराती है

✍️इन्दु रानी ,मुरादाबाद

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बड़ा सुहाना बचपन था जब गांव की गली में मारे फिरते

हाथ में रोटी, गुड़ की डली से खाते और खिलाते फिरते 


कोई गीत नहीं था याद हमें फिर भी कुछ तो गाते फिरते

सुर-ताल का ज्ञान नहीं, कितना अच्छा गुनगुनाते फिरते


शब्दों का नहीं था ज्ञान हमें कुछ भी कहते-जाते फिरते 

एक ही शब्द की पुनरावृति सौ-सौ बार भी करते फिरते


इसी बात पर कितने कुटते घर से बाहर मारे-मारे फिरते

पानी का नहीं था दोष पता ताल तलैया में नहाते फिरते


कहाँ खा लिया, कहाँ सो गए, माता-पिता खोजते फिरते

कितना निर्मल बचपन था वो जिसको आज ढूंढते फिरते                            

✍️ दुष्यंत ‘बाबा’,मुरादाबाद 

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चलो क़िताबें करें इकट्ठी,

अपनी सभी पुरानी।


हम तो पढ़कर निबट चुके हैं,

पर ये व्यर्थ न जायें। 

पड़ी ज़रूरत जिनको इनकी,

काम उन्हीं के आयें।

राजा,असलम, गोलू, रोज़ी,

बिन्दर, पीटर, जॉनी।

चलो क़िताबें करें इकट्ठी,

अपनी सभी पुरानी।


जिन मूरख लोगों ने इनको, 

केवल रद्दी माना।

उन्हें दिखा दो ज्ञान-ध्यान का, 

इनमें छिपा खजाना।

अपना सीखा बाँटें सबको, 

हम हैं हिन्दुस्तानी।

चलो क़िताबें करें इकट्ठी,

अपनी सभी पुरानी।


अबके छुट्टी में हम मित्रो, 

यह अभियान चलायें। 

नहीं किताबें व्यर्थ पुरानी,

द्वार-द्वार समझायें। 

दादा, दादी, मम्मी,पापा,

या हों नाना, नानी।

चलो किताबें करें इकट्ठी,

अपनी सभी पुरानी।


✍️राजीव 'प्रखर', मुरादाबाद

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दुनिया में रहूं जब तक आशीष सदा देना।

   जग भूले भले मुझको मां तुम न भुला देना।

तुम सामने हो मेरे,

जब आँख खुलें मेरी।

झूले वो बनें मेरे,

     भुजा इन्द्रधनुष सी तेरी।

बाहों का मां पलना,  जी भर के झुला देना।

जग भूले भले मुझको मां तुम न भुला देना।

   थक हार के जब आऊँ,

मां गोदी तेरी पाऊं।

 ध्रुव तारे से ऊपर,

पापा की गोद पाऊं।

ध्रुव तारे के जैसा , मेरा मान बढ़ा देना।

जग भूले भले मुझको ,मां तुम न भुला देना।

 बनूं राम, कृष्ण जैसा,

 आदर्श बना जाऊं।

भरत तपस्वी सा,

मां ख़ुद को बना पाऊं।

 तुम बन के सुमित्रा सी आशीष सदा देना।

जग भूले भले मुझको मां तुम न भुला देना।


✍️रेखा रानी

प्रधान अध्यापिका,एकीकृत विद्यालय गजरौला,

जनपद अमरोहा

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प्रभात सुमन जब मुस्काते हैं

हरे - भरे तरु लहराते हैं ,

प्रसून खिले हुए डाली पर

ज्यों मंद मंद मुस्काते हैं ।


कहते हैं खग , अब उठ जाओ

नील गगन में तुम छा जाओ

अपने अपने सत्कर्मों से 

इस घरती को स्वर्ग बनाओ ।


सूरज की लाली भी कहती

समय सुनहरा तुम न गँवाओ

बीत गयी अब रैना काली

नव उमंग मन में भर लाओ ।


✍️डॉ रीता सिंह, मुरादाबाद

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सूरज ताऊ दूर के

ठंड में छुट्टी लेते हैं;

फिकर नहीं वो 

करते हैं अपनी

 पर जब  आते हैं, 

 हमें पसीने लाते हैं। 

✍️उमाकांत गुप्त,मुरादाबाद

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