रविवार, 21 मार्च 2021

वाट्स एप पर संचालित समूह "साहित्यिक मुरादाबाद" में प्रत्येक रविवार को वाट्स एप कवि सम्मेलन एवं मुशायरे का आयोजन किया जाता है । इस आयोजन में समूह में शामिल साहित्यकार अपनी हस्तलिपि में चित्र सहित अपनी रचना प्रस्तुत करते हैं । रविवार 21 मार्च 2021 को आयोजित 245 वें आयोजन में शामिल साहित्यकारों रामकिशोर वर्मा, रेखा रानी,डॉ शोभना कौशिक, दीपा पांडेय, राजीव प्रखर, श्री कृष्ण शुक्ल, डॉ पुनीत कुमार, अशोक विद्रोही, अखिलेश वर्मा, वैशाली रस्तोगी,चंद्रकला भागीरथी और सन्तोष कुमार शुक्ल की रचनाएं......














 

शनिवार, 20 मार्च 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष पंडित मदन मोहन व्यास का गीत । यह गीत प्रकाशित हुआ था मुरादाबाद से राजनारायण मेहरोत्रा के सम्पादन में प्रकाशित 'प्रदेश पत्रिका' के वर्ष 1, अंक 14 ,रविवार 27 जनवरी 1963 में .....



 ::::::::प्रस्तुति:::::::

डॉ मनोज रस्तोगी

8, जीलाल स्ट्रीट

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नम्बर 9456687822

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था 'हस्ताक्षर' की ओर से 20 मार्च 2021 को होली के उपलक्ष्य में ऑन लाइन काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया । गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों डॉ अजय अनुपम, डॉ मक्खन मुरादाबादी, वीरेंद्र सिंह बृजवासी, डॉ पूनम बंसल, श्रीकृष्ण शुक्ल, ओंकार सिंह विवेक, डॉ मनोज रस्तोगी, योगेन्द्र वर्मा व्योम, राजीव प्रखर, जिया जमीर, हेमा तिवारी भट्ट, मोनिका शर्मा मासूम, मीनाक्षी ठाकुर, डॉ रीता सिंह, दुष्यन्त बाबा और निवेदिता सक्सेना द्वारा प्रस्तुत की गईं रचनाएं ......


मन में थी उठती रही,

रह रह कर जो हूक।
हुरियारे मन सोचते,
अबकी रहे न चूक।।

मन में उठती हूक की
पिय तक गई तरंग।
मुखड़े से पहले खिला
नयनों-नयनों रंग।।

सूखे मौसम को मिली
सरस रंग सौगात।
बूढ़ी बूढ़ी कनखियां
बातों की बरसात।।

रंगों से ठंडी करें,
मद्धम मद्धम आग।
जो सबको निर्मल करे,
आओ खेलें फाग।।

✍️ डॉ. अजय 'अनुपम', मुरादाबाद
---------------------------------


होली मन से खेल ली
खिलकर आया खेल।
ऊपर हैं सकुचाहटें,
भीतर चलती रेल।।1।।

तन-मन होली खेलते,
निकले इतनी दूर।
वापस मन लौटा नहीं,
कोशिश की भरपूर।।2।।

खेल-खेल सब लौटते,
अपने-अपने द्वार।
सोचें तो, है दीखता,
हुआ प्रेम विस्तार।।3।।

मठरी,बर्फी,सेब की,
रही न तब औकात।
गुझिया जब करने लगी,
मथे दही से बात।।4।।

होली रस्ता प्रेम का,
रखता नहीं विभेद।
इसपर चल होता नहीं,
कभी किसी को खेद।।5।।

होली है त्योहार भी,
जीने का भी मंत्र।
बचे नहीं यदि प्रेम तो,
भटका सारा तंत्र।।6।।

मन से सबने रंग लिए,
हुए उमंगित गात।
तुम भीतर भुनते रहे,
दिन से बोली रात।।7।।

रंगों से तर हो लिए,
लगे पुलकने गात।
कौन कुलांचे मारता,
करने को दो बात।।8।।

हाथों के सौभाग्य ने,
मसले रंग-गुलाल।
अधर फड़कते रह गए,
लगी न उनकी ताल।।9।।

रंग चढ़ों के सामने,
फीके सब पकवान।
रिश्तों की सब गालियां,
होली का मिष्ठान।।10।।

होली की ये मस्तियां,
अद्भुत इनके सीन।
मीठी-मीठी भाभियां,
दीख रहीं नमकीन।।11।।

भाभी के हों भाव या,
फिर देवर के राग।
होली रंग पवित्र हैं,
नहीं छोड़ते दाग।।12।।

सब कुछ जग में प्रेम है,
होली का संदेश।
छोड़ो इसमें देखना,
जाति,धर्म, परिवेश।।13।।

होली पर यूं बोलता,
पानी पीकर रेत।
पकने को गेहूं चले,
हुए सुनहरे खेत।।14।।

होली ने मन कर दिया,
फुलवारी से बाग।
जमकर भीगे तर हुए,
बुझी न मन की आग।।15।।

ब्याहे गये अनेक थे,
क्वारे भी कुछ रंग।
सबमें उठे तरंग थी,
बिना पिये ही भंग।।16।।

प्रदूषण भी आये ले,
औने-पौने रंग।
बैठी मिली पवित्रता,
मचा नहीं हुड़दंग।।17।।

✍️ डॉ. मक्खन मुरादाबादी, मुरादाबाद
---------------------------------------


कान्हा बरसाने मति अइयो,
ऐसी     लठामार   होरी  में,
ऐसी    लठामार   होरी   में,
जा   ब्रज   की  बरजोरी में।
        ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
तेरे    संग     खेलिबे    होरी,
बरसाने    के    छोरा - छोरी,
लै-लै लट्ठ खड़ी सजधज के,
बन हुरियारिन ब्रजकी  गोरी,
मेरौ कह्यौ मानि मतिबनियो,
कलाकार        होरी       में।

रंगै  न कोरी चटक चुनरिया,
कंगन झूमर लहंगा  फरिया,
हाथ  न  आवै   हुरियारे  के,
काहू  की  चोली   घांघरिया,
रह-रह   लट्ठ  चलावें   गोरी,
लगातार        होरी        में।

टूटै  ढाल फूटि जाए हड़िया,
परै  लट्ठ ग्वारिन कौ बढ़िया,
भाजें  छोड़ि  छोड़ि हुरियारे,
रंग   भरी  मटुकी  गागरिया ,
पीपी भंग  भूलि जाएं सगरौ,
सदाचार       होरी          में।

तेरे  बिना  रंग  नाहि   भावै,
पर कान्हा तू इत मति आवै,
लै-लै लट्ठ कहें सब  ग्वारिन,
घेर लेउ  जब  कान्हा  आवै,
मेरौ    मन  घवरावै  कान्हा,
बार - बार      होरी       में।

तेरे   बिना   कौन   है   मेरौ,
फीकौ - फीकौ  लगै  सवेरौ,
कोटिक रंग  निछावर  तोपै,
मैं  राधा  तू   कान्हा    मेरौ,
कहूँ न  घायल  होय हमारौ,
महा      प्यार   होरी     में।
कान्हा  बरसाने मति,,,,,,,,
✍️ वीरेंद्र सिंह ब्रजवासी, मुरादाबाद,उ,प्रदेश
  मोबाइल फोन 09719275453
  -----------------------------------


रंग उड़ाती स्वप्न सजाती लो फिर आई है होली।
छिटक रही चहुँ ओर चाँदनी पूनम जाई है होली।।

फागुन का त्यौहार प्रेम का मन में है विश्वास लिए।
रूठों को हम आज मनाएं एक मिलन की आस लिए।
यादों में भी खूब भिगोती ये हरजाई है होली।।

गोरी की गालों पर लगकर रंग बड़े इतराते हैं।
नीला पीला हरा हुआ है मिल जुल कर बतियाते हैं।।
दिल से दिल की बात कराती अवसर लाई है होली।।

भीग रही है चूनर चोली बुरा न मानो होली है।
देवर भाभी जीजा साली सबने करी ठिठोली है।
रिश्तों की इस बरजोरी से लो शरमाई है होली।।

फूल खिले हैं टेसू के ये सरसों पीली फूल रही।
गन्ने पर गेहूं की बाली इठलाती सी झूल रही।
नफ़रत की जब जले होलिका तब मुस्काई है होली।। 

✍️ डॉ पूनम बंसल , मुरादाबाद ,मोबाइल 9412143525

----------------------------------------



घनाक्षरी:

बरसाने की ये होली, करें जी कैसे  ठिठोली, सभी दिखें एक से ही, करें बरजोरी है।
केश कटी नारियां हैं, नर मूंछ मुंडे हुए,
कैसे जानें लट्ठ लिये, खड़ी कहाँ गोरी है।
जींस टाप धारे हुए, लिपे पुते मुख लिये, ये भी तो पता न चले, छोरा है या छोरी है।
कृष्ण ढूँढते ही रहे,  गोपियों ने रंग दिये, मल मल गाल कहें, होरी है जी होरी है।।
हैप्पी होली

गीतिका: बरसाने की होली

बरसाने में गए देखने, होली का हुड़दंग।
जम कर झूमे नाचे, गाये हुरियारों के संग।।

मादकता सी आज भर रहा, होली का ये रंग।
पाँव स्वतः ही लगे थिरकने, मानो पी हो भंग।।

रहे बजाते खूब साथ में, ढोलक और मृदंग।
कृष्ण बने बच्चों में बच्चे, किया खूब हुड़दंग।

छोरा समझ लगाया हमने, कस के जिसको रंग।
जींस टॉप में रही पड़ोसन, हुआ रंग में भंग।।

हुरियारिन के बीच दिखी जब बीबी थामे लट्ठ।
झटपट भगे छोड़कर चप्पल उतर गई सब भंग।।

जोगीया सा रा रा रा रा।

✍️ श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद।
-----------------------  



दीवाली   के   दीप  हों  , या   होली   के   रंग,
इनका आकर्षण तभी ,जब हों प्रियतम संग।

रस्म  निभाने  को  गले , मिलते  थे  जो  यार,
अपनेपन  से  वे  मिले ,  होली  अबकी  बार।

होली  का  त्योहार  है , हो  कुछ  तो  हुड़दंग,
हमसे   यह   कहने   लगे ,  नीले - पीले  रंग।

महँगाई  ने  जेब  को ,जब  से  किया उदास,
गुझिया की जाती रही,तब से सखे  मिठास।

✍️ ओंकार सिंह विवेक, रामपुर
-------------------------------------

होली  के   पावन  पर्व पर,
आओ मिल सब गीत गाएं।
भेदभाव  छुआछूत भूलकर,
एक  सूत्र में सब बंध जाएं ।
प्रेम भाव से  सब होली खेलें,
रंग  अबीर गुलाल बरसाएं ।
आपस के सब झगड़े भूल,
आज गले से सब लग जाएं।
✍️ डॉ मनोज रस्तोगी, 8, जीलाल स्ट्रीट, मुरादाबाद 244001, उत्तर प्रदेश, भारत, मोबाइल फोन नंबर 9456687822
Sahityikmoradabad.blogspot.com
-----------------------------------

मनके सारे त्याग कर, कष्ट और अवसाद ।
पिचकारी करने लगी, रंगो से संवाद ।।

रिश्तो की शालीनता, के टूटे तटबंध ।
फागुन ने जब जब लिखा, मस्ती भरा निबंध ।।

गुझिया से कचरी लड़े, होगी किसकी जीत ।
एक कह रही है ग़ज़ल, एक लिख रही गीत ।।

सुबह सुगंधित हो गई, खुशबू डूबी शाम ।
अमराई ने लिख दिया, खत फागुन के नाम ।।

तन मन में उल्लास के, फूटे अंकुर देख ।
सबने पढ़े गुलाल के, गंध पगे आलेख ।।

हर चेहरे से हो गई, सभी उदासी दूर ।
मन के भीतर जब बजा, फागुन का संतूर ।।

मस्ती और उमंग वो, आई जब जब याद ।
रंग सारे करने लगे, होली का अनुवाद ।।

फिर से भरने के लिए, रिश्तो में एहसास ।
रंगो की अठखेलियां, जगा रही विश्वास ।।

✍️ योगेन्द्र वर्मा 'व्योम', मुरादाबाद
----------------------------------



मुक्तक
--------
स्नेह-प्रेम-सद्भाव के, सीख सुहाने ढंग।
सच्चे मन से फिर लगा, वही पुराने रंग।
दूर हटा त्योहार से, सभी बैर-विद्वेष,
मर्यादित रहकर मचा, होली का हुड़दंग।।
------------
दोहे
-----
आहत बरसों से पड़ा, रंगों में अनुराग।
आओ टेसू लौट कर, बुला रहा है फाग।।

गुमसुम पड़े गुलाल से, कहने लगा अबीर।
चल गालों पर खींच दें, प्यार भरी तस्वीर।।

ऐसी भटकी राह से, रंगों की बौछार।
लुकता-छिपता फिर रहा, अब है शिष्टाचार।।

फागुन लेकर आ गया, फिर अपना मृदुगान।
बैर-भाव अब बाँध ले, तू अपना सामान।।

बदल गई संवेदना, बदल गए सब ढंग।
पहले जैसे अब कहाँ, होली के हुड़दंग।।

गुझिया-पारे-पापड़ी, बड़े-समोसे-भात।
सबने जाकर पेट में, मचा दिया उत्पात।।

अपने फ़न में आज भी, प्यारे इतनी धार।
चुपके-चुपके जेब से, कर दें गुझिया पार।।

मरते-मरते भी रहे, मुख पर तेरा नाम।
ऐसी होली खेल जा, मुझसे ओ घन-श्याम।।

✍️ राजीव 'प्रखर', मुरादाबाद
मो. 8941912642
-------------------------------  


क्या मोहब्बत का नशा रूह पे छाया हुआ है
अब के होली पे हमें उसने बुलाया हुआ है

वह जो खामोश सी बैठी है नई साड़ी में
उसने पल्लू में बहुत रंग छुपाया हुआ है

अपनी छज्जे से पलट रंग का पानी उस पर
तेरा दीवाना है, दहलीज़ पे आया हुआ है

अगली होली पे तुझे रंग लगाएंगे ज़रूर
पिछली होली से यही ख़्वाब दिखाया हुआ है

अब के होली पे लगा रंग उतरता ही नहीं
किस ने इस बार हमें रंग लगाया हुआ है

यह करिश्मा भी तो होली ने दिखाया है हमें
वो जो रुठा था गले मिलने को आया हुआ है

✍️ ज़िया ज़मीर, मुरादाबाद
-------------------------------------



सभी आओ,चलो गाएँ,सुअवसर आज होली है।
छबीली है,रसीली है,असरकर आज होली है।

कहीं भीगी,कहीं सूखी,सजे रंगीन होकर के।
किशोरी हों कि वृद्धा हों, हुईं तर आज होली है।

"अरे जीजा,बुझे लट्टू",सलज ने जाके छेड़ा है।
चिढ़े जीजा,रंगें साली,रगड़कर आज होली है।

खड़े देवर रचे तिगड़म,लगाना रंग भाभी पर,
मगर भाभी,सयानी है,'नहीं घर' आज होली है।

बड़े दिन बाद आयें हैं,पिया जिसके विलायत से,
बहक चलती,मटक हंसती,संवरकर आज होली है

रहे क्यों कैद कमरों में,खिले सब रंग हैं बाहर।
चलो देखो,मशीनों से निकलकर आज होली है

न कोई हो,अलग मुझ से,अलग मैं क्यों दिखाई दूँ।
खिले सब रंग रंगोली,निखरकर आज होली है।

✍️ हेमा तिवारी भट्ट, मुरादाबाद
-----------------------------------



फाल्गुन पर ऐसा चढ़ा, रंग सियासी यार
सत्ता को लेकर हुई, फूलों में तकरार

लगाने रंग दुनिया को , है निकला चांद पूनम का
नहाकर दूध से निखरा ये उजला चांद पूनम का
किये शिंगार सोलह चांदनी ने दिल लुभाने को
कि  बैरी चांदनी के दिल से खेला चांद पूनम का

✍️ मोनिका मासूम, मुरादाबाद
----------------------------------------



आँखों में गुलाबी डोर,गाल लाल -लाल भए,
होलिया में गोरी देखो,भंग पिलाय रही।

दीखै नाहिं मोहे कछु,जबसे है आयी होली।
भर पिचकारी मोहे,रंग वो लगाय रही ,

नैनन में डूब तेरे ,भीग गये अंग-अंग
फिर काहे डार रंग,तन को भिगोय रही।

होली का खुमार छाया,लाल पीला रंग भाया
देख-देख मुखड़े को ,गोरी शर्माय रही।

खड़ा रह दूर -दूर, पास नहीं आना मेरे
दूँगी तुझे गारी आज ,यही बतलाय रही।

बरसाने की मैं नार,अजब ही चाल मेरी
रंगने से पहले ही, लट्ठ भी बजाय रही।

बरसाय भर -भर ,कोई पिचकारी रंग
भीग गयी चूनर तो ,काहे भन्नाय रही।

फाग में मचल जाये ,मन का मयूर देखो
होलिया में गोरिया ,जिया  भरमाय रही।

✍️ मीनाक्षी ठाकुर, मिलन विहार, मुरादाबाद ,
------------------------------------------------


होली आयी होली आयी
गुझिया पापड़ कचरी लायी
आलू चिप्स व मूँग बरी की
देखो घर - घर में है छायी ।
होली आयी......

गरम- कचौड़ी और पकौड़ी
सबने बहुत चाव से खायी
दही बड़े में चटनी मीठी
मुन्नी - मुन्ना को भी भायी ।
होली आयी.....

हरा - गुलाबी नीला - पीला
भर पिचकारी खूब चलायी
पास - पड़ोसी जो रूठे थे
हुई सभी की मेल मिलायी ।
होली आयी.....

✍️ डॉ. रीता सिंह, मुरादाबाद
-------------------------------------


इस होली साजन आ जाते,
दिल के मैल मिटा लेती मैं।।
उनको अपने रंग रंग लेती ,
या उनके रंग में रंग जाती मैं।।

कैसे विरह की रतिया कटती,
पिया बिना न सुहागिन लगती।
अरे! सखी मांग में सिंदूर लगाते,
उम्र भरको उनकी हो जाती मैं।।

उनके नाम का सुमरिन करती,
मीरा सी गलियों में मारी फिरती।।
अरे! सखी विष प्याला दे जाते,
अमृत समझ उसे पी जाती मैं।।

मैं नलिनी हिम पात की मारी,
विरह अग्नि जल हो गई कारी।
अरे! सखी सिर आंचल दे जाते,
फिर कली बन खिल जाती मैं।।

हीरे-मोती मैं कभी नही माँगी,
कभी न महल-दुमहला चाही।
अरे! सखी कुछ मांग तो करते
जान न्योछावर कर जाती मैं।।
✍️ दुष्यंत 'बाबा'
पुलिस लाइन, मुरादाबाद
------------------------------------- 




✍️निवेदिता सक्सेना, मुरादाबाद

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष डॉ ज्ञान प्रकाश सोती की रचना । वह 'ठुंठ' उपनाम से कविताएं लिखा करते थे । प्रस्तुत रचना मुरादाबाद से राजनारायण मेहरोत्रा के सम्पादन में प्रकाशित 'प्रदेश पत्रिका'के प्रवेशांक रविवार 19 अगस्त 1962 में प्रकाशित हुई थी ।



 :::::::प्रस्तुति::::::::

डॉ मनोज रस्तोगी

8,जीलाल स्ट्रीट

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नम्बर 9456687822

मुरादाबाद मंडल के धामपुर (जनपद बिजनौर) से डॉ अनिल शर्मा अनिल द्वारा संपादित अनियतकालीन ई-पत्रिका 'अभिव्यक्ति' का महाशिवरात्रि अंक 50 ( 11-03-2021)-----

क्लिक कीजिए और पढ़िये

👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇

https://documentcloud.adobe.com/link/track?uri=urn:aaid:scds:US:5cd3a69f-65f3-4f47-af08-98823b125679 

सोमवार, 15 मार्च 2021

मुरादाबाद की साहित्यकार रश्मि प्रभाकर का गीत -----एक दूजे के भाव को समझें ,प्यार और तकरार हो ....


 

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार मनोरमा शर्मा की गीतिका ---वर्ष नूतन नवल खिल रहा है कमल-


 

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की व्यंग्य कविता ----


 

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार प्रीति चौधरी की गीतिका ------





 

मुरादाबाद के साहित्यकार राजीव प्रखर के मुक्तक


 

मुरादाबाद मंडल के गजरौला (जनपद अमरोहा) की साहित्यकार रेखा रानी का गीत


 

मुरादाबाद के साहित्यकार श्रीकृष्ण शुक्ल की रचनाएं -----


 

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ प्रीति हुंकार के मुक्तक -----


 

मुरादाबाद के साहित्यकार दुष्यन्त बाबा की कुण्डलिया ---- इस होली की आ गई देखो फुलरा दोज


 

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ शोभना कौशिक की कविता ----हां, मैं बदल रही हूं ......


 

रविवार, 14 मार्च 2021

राष्ट्रभाषा हिंदी प्रचार समिति मुरादाबाद की ओर से रविवार 14 मार्च 2021 को काव्य गोष्ठी का आयोजन

राष्ट्रभाषा हिंदी प्रचार समिति मुरादाबाद की ओर से रविवार 14 मार्च 2021 को  काव्य गोष्ठी का आयोजन जंभेश्वर धर्मशाला लाइन पार मुरादाबाद में किया गया । अध्यक्षता रामेश्वर प्रसाद वशिष्ठ ने की। मुख्य अतिथि ओंकार सिंह ओंकार और विशिष्ट अतिथि योगेंद्र पाल सिंह विश्नोई रहे। संचालन अशोक विद्रोही ने किया।

   काव्य गोष्ठी में योगेंद्र पाल विश्नोई ने कहा-

जो बात सुनने में है सुनाने में कहां

जो बात खिलाने में है खाने में कहां।

यूं तो सुख अपने अपने मन का है मगर ,

जो सुख अपने घर में है वह जमाने में कहां।

रामेश्वर प्रसाद वशिष्ठ ने कहा-

दीप के अभिसार दीपदान वाले 

मुझे निम्न स्थानों पर रख दे 

मुंडेर ,दहलीज ,देवालय घर की खनोची

 जहां की कर्मभूमि हो।।

अशोक विद्रोही ने कहा-

बेटों से बढ़के आज हमारी हैं बेटियां,

हो कोई इम्तिहान न हारी हैं बेटियां।

देता विदा के वक्त कलेजा निकाल के,

बाबुल को अपनी जान से प्यारी हैं बेटियां।।

राम सिंह निशंक ने कहा-

होली तो सब की होली है,

सब खुशी मनाओ होली में।

आओ रूठो को प्यार करें,

फिर गले लगाएं होली में।।

के पी सिंह सरल ने कहा-

बल न गए रस्सी जली, रही ऐंठ भरपूर।

शिथिल अंग तन के हुए,फिर भी है मग़रूर।।

रघुराज सिंह निश्चल ने कहा-

जिंदगी का सफर है बड़ा ही कठिन,

क्यों न ,निश्चल, जियें हम इसे प्यार से।

अशोक विश्नोई ने कहा--

दावत नामें में नहीं वह आदमी ! 

जो बैठा है भूखा प्यासा 

देख रहा है रोटी के टुकड़े पर 

लड़ते हुए कुत्तों को!!

ओंकार सिंह  ओंकार ने कहा--

ग़मो के बीच में आओ खुशी तलाश करें,

अंधेरे चीरकर हम रोशनी तलाश करें।।

शायर मुरादाबादी ने कहा

उल्टी-सीधी मैं लकीरें खींच रहा  हूं,

मैं अपने कल की तस्वीरें खींच रहा हूं।।

सरफराज़ हुसैन फराज़ ने कहा-

किसी की खूबियों पर कब नज़र है।

वह अपनी बस सताइस कर रहे हैं।।

 राजीव प्रखर ने कहा-

आहत बरसों से पड़ा रंगों में अनुराग,

आओ टेसू लौटकर बुला रहा है फाग।।

शबाब मैनाठेरी ने कहा--

जाम हाथ आते ही जो उछलने लगते हैं।

ज़र्फ़ उनका नाफिस है मैकसी अधूरी है।।

ताज भोजपुरी ने कहा-

जब कोई अपना दूर होता है

दर्द दिल में जरूर होता है।।

डा एम पी बादल जायसी ने कहा--

न आना है न जाना है ,यह हिला है बहाना है।

हंसते थे कभी हमभी बादल,अब अश्क बहाना है।।

     काव्य गोष्ठी में शिवओम वर्मा, रमेश चंद्र गुप्ता, चिंतामणि जी, चौधरी हरपाल सिंह,एवं अन्य कवियों ने भाग लिया। रामेश्वर प्रसाद वशिष्ठ अध्यक्ष राष्ट्रभाषा हिंदी प्रचार समिति ने आभार अभिव्यक्त किया।















:::::::::प्रस्तुति::::::   

अशोक विद्रोही

 उपाध्यक्ष

राष्ट्रभाषा हिंदी प्रचार समिति, मुरादाबाद