बुधवार, 18 जून 2025

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ रीता सिंह की तीन बाल कविताएं


 [1] दादी-दादा घर में होना

दादी-दादा घर में होना

सुख जैसे है दूना होना ,

बातें करता कल भी आँगन 

बोले घर का कोना-कोना ।।


सूनेपन को पड़ता सोना 

आलस को है आये रोना ,

खेल-खेल में सब कुछ सीखे

मुन्ने का मन बनता सोना ।


कथा कविता गिनती पहाड़े

वन में कैसे सिंह दहाड़े ,

अनगिन किस्से और कहानी 

मुन्नी सुनती रोज जुबानी ।


नानी - नाना कहते मोना

बीज प्रेम के ही तुम बोना

सिर पर उनका हाथ रहे जब

नहीं पड़ेगा कुछ भी खोना ।


[2] चिड़िया आँगन आकर बोले

चिड़िया आँगन आकर बोले

रस की गोली मुंह में घोले ।

आओ राजू तुम भी खेलो

मोबाइल से छुट्टी ले लो ।


सारे साथी बाहर आओ

मिलजुल कर है रेल बनाओ ।

खेल-खेल में दाना खाओ

दाना खाकर सेहत पाओ ।


फुदक-फुदक है मस्ती कर लो

चहक-चहक दुख सब के हर लो ।

साथी से है मन की कह लो

बचपन को है खुलकर जी लो ।।


धूप भोर की मन को भाये

खेल-कूद सेहत बन जाये ।

अपनी एक टोली बन जाये

पड़े जरूरत साथ निभाये ।


(3)सदाबहार 

पौधा प्यारा सदाबहार 

देता फूलों का उपहार, 

रंग गुलाबी और सफेद

पंचमुखी-सा है आकार ।


मधुमेह का करे उपचार 

पत्ती-पत्ती है उपकार,

बढ़ जाता है अपने आप

सुंदर लगती इससे क्यार ।


देता बारह मासों फूल

हरा-भरा खिलता बिन शूल,

हँसता रहता है दिन- रात

मानो करता कभी न भूल ।



✍️डॉ. रीता सिंह 

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

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