बुधवार, 18 जून 2025

मुरादाबाद के साहित्यकार ओंकार सिंह 'ओंकार' की दो सजलें



[1] 

शान्त पिपासा कैसे होगी, धन से अब धनवान की ।

व्याधि न जब तक कम हो उसके, जीवन से अज्ञान की ।।


पाते हैं सम्मान जगत में, धनपति या बलवान अब ।

चर्चा कभी नहीं होती है,  त्याग और बलिदान की ।।


नित्य नए हथियार बढ़ रहे, धरती पर हर देश में ।

क्या रक्षा हथियार करेंगे, निर्धन जन के प्रान की।।


दो देशों के बीच युद्ध में,     रक्त सने हथियार हैं ।

निकले जो भट्टी में ढलकर, किसी एक अनजान की।।


धौंस जमाने को औरों पर,    लगती रहती होड़ है ।

लगता है दलदल में सब हैं, स्वार्थ और अभिमान की।।


दुख  के पंख अमर होते हैं, मन हर दुख का स्रोत है ।

दुख की तो आधारशिला है, इच्छा के अवधान की।। 


आशा पर अवसाद घिरा जो,  'ओंकार' वह दूर करें।

मुरझाए- अधरों पर फूटे, कलियाँ चिर मुस्कान की।। 

[2] 

लगा- लगाकर पेड़, धरा-शृंगार करेंगे। 

करें प्रदूषण मुक्त, सुखी संसार करेंगे।। 


उन्नत अपना देश, बनाने का है ठाना। 

विना किसी व्यवधान, स्वप्न साकार करेंगे।। 


सफल करें सब काम, बुद्धि-श्रम साथ मिलाकर। 

बदलेगा परिवेश,           प्रबल आधार करेंगे।। 


मिल-जुलकर सब लोग, रहेंगे इस धरती पर। 

कठिनाई कर दूर,  अल्प  दुख-भार करेंगे।। 


हे कविवर 'ओंकार', धरा पर होंगी खुशियाँ। 

जब दुनिया के लोग,  परस्पर प्यार करेंगे।। 


✍️ओंकार सिंह 'ओंकार' 

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

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