[1]
व्याधि न जब तक कम हो उसके, जीवन से अज्ञान की ।।
पाते हैं सम्मान जगत में, धनपति या बलवान अब ।
चर्चा कभी नहीं होती है, त्याग और बलिदान की ।।
नित्य नए हथियार बढ़ रहे, धरती पर हर देश में ।
क्या रक्षा हथियार करेंगे, निर्धन जन के प्रान की।।
दो देशों के बीच युद्ध में, रक्त सने हथियार हैं ।
निकले जो भट्टी में ढलकर, किसी एक अनजान की।।
धौंस जमाने को औरों पर, लगती रहती होड़ है ।
लगता है दलदल में सब हैं, स्वार्थ और अभिमान की।।
दुख के पंख अमर होते हैं, मन हर दुख का स्रोत है ।
दुख की तो आधारशिला है, इच्छा के अवधान की।।
आशा पर अवसाद घिरा जो, 'ओंकार' वह दूर करें।
मुरझाए- अधरों पर फूटे, कलियाँ चिर मुस्कान की।।
[2]
लगा- लगाकर पेड़, धरा-शृंगार करेंगे।
करें प्रदूषण मुक्त, सुखी संसार करेंगे।।
उन्नत अपना देश, बनाने का है ठाना।
विना किसी व्यवधान, स्वप्न साकार करेंगे।।
सफल करें सब काम, बुद्धि-श्रम साथ मिलाकर।
बदलेगा परिवेश, प्रबल आधार करेंगे।।
मिल-जुलकर सब लोग, रहेंगे इस धरती पर।
कठिनाई कर दूर, अल्प दुख-भार करेंगे।।
हे कविवर 'ओंकार', धरा पर होंगी खुशियाँ।
जब दुनिया के लोग, परस्पर प्यार करेंगे।।
✍️ओंकार सिंह 'ओंकार'
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
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