शनिवार, 15 मई 2021

मुरादाबाद की संस्था राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति की ओर से 14 मई 2021 को ऑनलाइन काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी,अशोक विश्नोई, डॉ पूनम बंसल , डॉ मनोज रस्तोगी,अशोक विद्रोही, मीनाक्षी ठाकुर, प्रीति चौधरी, रेखा रानी, कंचन लता पांडेय, डॉ रीता सिंह, हेमा तिवारी भट्ट, शिशुपाल "मधुकर ", रचना शास्त्री, राम सिंह 'निशंक', राम किशोर वर्मा, के पी सिंह 'सरल', शुचि शर्मा ‌, चन्द्र कला भागीरथी, प्रशान्त मिश्र, प्रवीण राही, राजीव प्रखर, रामेश्वर प्रसाद वशिष्ठ और योगेन्द्र पाल सिंह विश्नोई की रचनाएं ------


मौतसे जीवन बचाने का समय है,

जिंदगी को गुनगुनाने का समय है,
कब तलक  एकांत  में  बैठे  रहेंगे,
हुनरकोभीआज़मानेका समय है।
            
नोचकर मायूसियों  के पंख  फैकें,
हौसलों की भी उड़ानों को न रोकें,
व्याधियां नव रूप ले आती  रहेंगी,
कहाँतक इनका भयंकर,रूप देखें,
उठो, इनको मात देनेका समय है।

एकता की डोरको अक्षुण्य रखना,
सदा अंतरात्मा  को  पुण्य  रखना,
कोरोना कीअग्नि मेंजलते हुए को,
सहायतादेकरस्वयंकोधन्य रखना,
सांसमेंअबआस भरनेका समय है,

वैश्विक बीमारियों  का  दंश  झेला,
बड़ीमाता,प्लेग सा भयभीत  रेला,
समयके आगे ठहरपाया नहींकुछ,
रहगया बनकर समयकाएकखेला,
बुद्धि क्षमताआजमानेका समयहै।

कहर कोरोना ने बरपाया हुआ  है,
मौतबनकर हरतरफ छायाहुआ है,
करोड़ोंकी जिंदगी को लीलकरभी,
नित बदलकररूप इतरायाहुआ है,
सभीको टीका लगानेका समय है।

क्याबिगाड़ेगा हमारा हम गजब हैं,
मास्क,दूरी,हाथ  धोने में अजब हैं,
यह डरे  हमसे न हम इससे  डरेंगे,
प्रणहमारा कोरोनापर हीसितब है,
हारकर भी जीतजानेका समय है।
मौत से जीवन-----------------
           
✍️ वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी, मुरादाबाद/उ,प्र, मोबाइल फोन नम्बर 9719275453
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भारतीय,भावुक नागरिक ने
नव- निर्वाचित नेता
को बधाई
देने का विचार बनाया,
उसने फोन घुमाया ,
नेता जी बोले
कौन है भाई
नागरिक ने उत्तर
दिये बिना ही
पश्न किया,
आप कहाँ से बोल रहे हैं
श्री मान
नेता जी
जो अभी तक
अभिमान के आवरण से
मुक्त नहीं हो पाये थे,
झुँझलाकर बोले,
जहन्नुम से-
नागरिक ने उत्तर दिया
मैं भी, यहीं सोच रहा था
कि
तुम जैसा नीच, कमीन, बेईमान
स्वर्ग में तो जा ही नहीं सकता ।।

✍️ अशोक विश्नोई, मुरादाबाद
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आस है विश्वास है ये अब न दुख की रात हो
मुस्कुराएं सब दिशाएं फिर सुनहरा प्रातः हो

छा रहा है घोर तम ये खो गई है चाँदनी
वेदना के साज पर है सिसकियों की रागनी
कष्ट के बादल छँटे फिर नेह की बरसात हो
मुस्कुराएं सब दिशाएं.....

हैं घिरे अवसाद में सब ढूँढ़ते हैं ताज़गी
रूठती ही जा रही है प्राण वायू ज़िंदगी
योग से साँसें सँवारें नव सृजन की बात हो
मुस्कुराएं सब दिशाएं.....

सूखती जाती नदी ये आँख से जो बह रही
मानवी भूलें करीं जो वो सजा है सह रही
एक शिव का आसरा बस ईश कृपा प्रपात हो
मुस्कुराएं सब दिशाएं.....

जीत जाएंगे समर ये हाथ में ले हाथ हम
कोशिशे होंगी सफल अब चल पड़े हैं साथ हम
खिलखिलाकर फिर खिलेंगे प्रीत का जलजात हो
मुस्कुराएं सब दिशाएं फिर सुनहरा प्रातः हो

✍️ डॉ पूनम बंसल ,10.गोकुल विहार , कांठ रोड, मुरादाबाद उ प्र
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स्वस्थ भारत का निर्माण
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चकाचक सफेद कमीज पहने
काली टोपी लगाए
लघु पुस्तिकाओं से भरा झोला
कंधे पर लटकाए
हमारे एक राष्ट्रवादी मित्र
सुबह ही सुबह
बिना हमें बताएं
घर पर पधार गए
कोरोना काल में उन्हें देखकर
हम सब अचकचा गए
जब तक हम कुछ समझ पाते
उनके स्वागत में कुछ कह पाते
सोफे पर पसरते हुए
उन्होंने हमारी पत्नी को
हाथ जोड़कर की नमस्ते
बोले गुजर रहा था इस रस्ते
सोचा आप सब से मिलता चलूं
राष्ट्रहित पर चिंतन करता चलूं
हमने कहा - भाई साहब                    
आजकल हम बहुत तनाव में हैं
अगले हफ्ते पंचायत चुनाव हैं
शहरों के साथ-साथ गांव में भी
कोरोना पैर पसार रहा है
हर रोज बढ़ती जा रही है
पीड़ितों की संख्या
बता यह अखबार रहा है
एक और मास्क न पहनने पर
कट रहे चालान हैं
कैसे करेंगे चुनाव ड्यूटी
यह सोचकर हम हलकान हैं
कैसे हो पाएगी दो गज की दूरी
गांव में कैसे कट पाएगी रात पूरी
सुनकर हमारी बात
दार्शनिक अंदाज में उन्होंने
हमें समझाया
राष्ट्रहित का वास्तविक अर्थ
हमें बताया
पंचायत चुनाव
सत्ता का विकेंद्रीयकरण है
हर राजनीतिक पार्टी में
हर्ष का वातावरण है
लोकतंत्र की रक्षा हेतु
चुनाव करना -कराना
हम सबकी जिम्मेदारी है
हमने कहा - भाई साहब
चुनाव पर यह आपदा तो भारी है
मौतों का सिलसिला लगातार जारी है
अस्पतालों में बेड नहीं हैं
ऑक्सीजन की मारामारी है
चाय का घूंट पीते हुए
चेहरे पर मुस्कान लाते हुए
वह बोले
चुनाव का मामला
राष्ट्रहित से जुड़ा हुआ है
और राष्ट्र के हित में
अपने प्राणों की चिंता न करना
हम सबकी जिम्मेदारी है
रही बात इस वायरस की
यह कम इम्युनिटी वालों को ही
पकड़ता है
गंभीर रोग वालों को ही
जकड़ता है
यह शरीर तो नश्वर है
हमारी रक्षा करने वाला ईश्वर है
मौतों की खबरों से
बिल्कुल मत घबराइए
तनाव से पूरी तरह मुक्त हो जाइए
सकारात्मक सोच के साथ
राष्ट्र के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाइये
जाते-जाते वह जता गए
धीरे-धीरे हम
सुनहरे कल की ओर बढ़ रहे हैं
सशक्त भारत , स्वस्थ भारत
का निर्माण कर रहे हैं

✍️ डॉ मनोज रस्तोगी,मुरादाबाद
Sahityikmoradabad.blogspot.com
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जब सुबह हुई तो चाय लिये,
         उसका चेहरा था मुसकाया।
फिर सजा नाश्ता था लजीज़,
          मैंने उसको हंसता पाया।।
खाने की टेबल पर देखा,
            उसके सब ढंग निराले थे।
व्यंजन थे सारे स्वाद भरे,
            खुशबू से भरे निवाले थे।‌।
फिर रात शाम के खाने पर,
           कुछ मीठा निश्चित रहता था।
जादू था उसके हाथों में,
           उसका हर व्यंजन कहता था।।

जब जाऊं मैं घर से बाहर,
           वह झट रुमाल दे देती थी।
उसकी हर अदा निराली थी,
       कितने कमाल कर लेती थी।।
वह अक्सर मुझे अभावों में,
         आश्चर्यचकित कर देती थी।
अपने उस गुप्त खजाने से,
        जब पैसे मुझको देती थी।।
,,मेरे हैं वापस कर देना !,सुन ,
        सच्चा मुझको लगता था।
खाली मुट्ठी यूं भर देना तब,
        अच्छा मुझको लगता था।।

मेरे अन्तर के सारे ग़म वो,
           पल भर में हर लेती थी।
नूतन ऊर्जा उत्साह जगा ,
       मन आनंदित कर देती थी।।
उसके संग हंसी ठिठोली में,
कुछ समय का पहिया तेज चला।
संग कितने ही मधुमास जिये,
     जीवन का भी न पता चला।।
खो जाना उसकी यादो में ,
          रंग भरने जैसा लगता है।
उसका हंसना ,बातें करना ,
      अब सपने जैसा लगता है।।

उसके संग ही अपना वजूद,
      मैं मोक्षधाम पर खो आया।
संग यादों की बारात चली,
   उसको अन्तिम पल रो आया।।
अब निशदिन ही बरसातें हैं,
         जीवन की काली रातें हैं।।
तुम रहो प्रभु संग स्वर्ग लोक,
           हम पीछे पीछे आते हैं।।
इस क्षण भंगुर सी दुनिया में,
        कोई सोता है या जगता है।
है अपना जग में कोई नहीं
        बस  अपने जैसा लगता है।।

उसकी यादों में अक्सर अब,
          मैं रातों को जग जाता हूं ।
नींदें गुम नैना नीर भरे,
          और भीग भीग मैं जाता हूं।
उसकी भलमनसाहत मन से मैं,
          कितना ही रोज भुलाता हूं।
उसका भोला सुंदर चेहरा,
       पर भूल नहीं मैं पाता हूं।।
प्रभु तेरा माया जाल मुझे,
          नाना रूपों से ठगता है।
मैं जितना भी सुलझाता हूं,
          उलझाने फिर से लगता है।।

पर निश्चित ही यह तो होगा,
          यह आज नहीं तो कल होगा।
हम नहीं तो अपने बच्चों का,
         निश्चित प्रयास सफल होगा।
भारत ही क्या पूरे जग से
         कोरोना    मार   भगाएंगे।।
प्रिय अपना बंधन एक नहीं,
         हम सातों जन्म निभायेंगे।
ये घोर निराशा का कोहरा,
        अब छंटने वाला लगता है।।
फिर से कौतुक उस ईश्वर का,
         हो जाने वाला लगता है।।

✍️ अशोक विद्रोही ,412 प्रकाश नगर, मुरादाबाद
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चीर कर धरती का सीना ,आता है अंकुर नया,
जीव जीवन पा नया ,बढ़ता नये पथ पर सदा।

मौत से हारे नहीं जो, नाम उसका ज़िंदगी
देख लेना!! मौत को भी मार कर देगी सुला।

रख भरोसा ईश पर,मुमकिन बना हर काज को,
बंजरो में आस का , पौधा कोई फिर से उगा।

हाथ पर हम हाथ धर ,हिम्मत नहीं यूँ हारते,
भारती के लाल हम,सीखा सदा ही जीतना।

आएगी उजली सहर ,हर ओर होगी रोशनी
दूर होगा हर अँधेरा, दीप तो दिल से जला।

✍️ मीनाक्षी ठाकुर, मिलन विहार, मुरादाबाद
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जब बिन देखे हम चलते हैं
तब ही यारों हम गिरते हैं  ।।1।।

ताज्जुब उठते है मुश्किल से
गलती फिर भी हम करते हैं ।।2।।

इस कारण से ही तो हम तुम
कितने दुख नित दिन सहते हैं ।।3।।

उस पीडा का ही जीवन भर
दिल पर बोझा हम रखते हैं ।।4।।

आओ विपदा जो सब हरते
पेड़ो से धरती भरते हैं  ।।5।।

✍️ प्रीति चौधरी, गजरौला,अमरोहा
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एक पहल मुझको है करनी।
एक पहल तुमको है करनी।।
अपने बेहतर कल की खातिर।
सुखमय सुंदर पल की खातिर।

शुद्धिकरण अब करना होगा,
हवन-यज्ञ भी करना होगा।
प्राणवायु की वृद्धि हेतु नित
पौधारोपण अब करना होगा।
तन-मन स्वस्थ रहे इस खातिर
योगासन, ध्यान करना होगा।
जुड़े रहें वेद परम्परा से हम,
ग्रंथों को पढ़ना-गुनना होगा।
गीतों में बसी प्राचीन परम्परा,
फिर से हमको जीवित करनी।
एक पहल मुझको है करनी,
एक पहल तुमको है करनी।

नीम-पीपल संरक्षण की खातिर,
फिर अभियान चलाना होगा।
रिश्तों में दादी-नानी, काकी को
फिर से शामिल करना होगा।
अपने प्यारे मीठे वचनों से,
उर जमी धूल धोनी होगी।
रिश्तों की टूटी बिखरी माला ,
शुभ 'रेखा' हमें पिरोनी होगी।
अब टूटी हुई कड़ी है भरनी।
एक पहल हमको है करनी।।
  
✍️ रेखा रानी, गजरौला, अमरोहा (उ.प्र.)
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पतझड़ बाद बसन्त की ,
है प्रकृति की रीत !
मन का हो बसन्त ,
तो कुछ बात बने !!
जिधर नज़र जाए ,
मुस्कायें रंग बिरंगे फ़ूल !
होठों पर भी हो मुस्कान ,
तो कुछ बात बने !!
पतझड़ •••••••••
फूलों पर तितली भँवरों को ,
देखके ज्यों हरसायें !
एक दूजे को देख हों हर्षित ,
तो कुछ बात बने !!
पतझड़ ••••••••••
चिड़ियाँ तोते मोर नाचते ,
जो सुकून दे जायें !
वो सुकून हर दिन टिक जाए ,
तो कुछ बात बने !!
पतझड़ ••••••••••
सूरज की स्वर्णिम किरणें !
जो नित्य सवेरा लायें ,
यूँ ही सब “कंचन” हो जाए ,
तो कुछ बात बने !!
पतझड़ •••••••••

✍️ कंचन लता पांडेय,आगरा
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सरस सलिल सा बहता जीवन
अवरोधों संग बढ़ता जीवन
निशा - दिवस है रहता गतिमय
हँसते - गाते चलता जीवन ।

दुख के पल भी सहता जीवन
सुख के क्षण भी जीता जीवन
जिन्दगी की नियत डगर पर
अगणित सपनें गढ़ता जीवन ।

कभी सदी सा बनता जीवन
कभी घड़ी में घटता जीवन
संग समय के अपने सारे
मानक निश्चित करता जीवन ।

आशा में है पलता जीवन
अहसासों में गहता जीवन
मोह - निर्मोह का भेद खोजता
बना धरा पर रहता जीवन ।

फूलों में है खिलता जीवन
कांटों को है सहता जीवन
महक - चुभन जो भी मिल जाये
संग सभी के निभता जीवन ।

कभी झूठ से लड़ता जीवन
कभी सत्य पर अड़ता जीवन
ऐसे जाने कितने रण में
जीत सदा है लिखता जीवन ।

✍️ डॉ रीता सिंह, मुरादाबाद
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जितना मैंने पढ़ा,
जितना मैंने सुना,
डर फैलता गया,
आँखों के कोने कोने में,....
मुझे साक्षात दिखने लगी
पड़ोस में रहने आयी मौत.....
उसके नाखून भयानक थे,
हर पल मंडराने लगे
उसके नाखून
मेरे सिर पर......।
मौत के लक्षण
उतर आये
मेरे शरीर में।
प्राणवायु सूखने लगी....
और मैं जुट गयी इंसान होने के नाते
अपनी जान बचाने की होड़ में...
इसी होड़ा होड़ी के दरमियान
मैंने अचानक ध्यान दिया....
बेजुबानों पर.......
हमारा पालतू 'जैरी' निडर था
और मस्त भी....
छत पर आने वाली चिड़िया भी
दहशत में नहीं दिखी....
दाना लेने आयी गिल्लू भी
बेफिक्र थी....
उसने देखा मुझे मुड़कर
बार बार हमेशा की तरह....
जितना मैंने देखा...….
अपने आस पास....
ज़िन्दगी गुनगुनाती मिली....
चढ़ते सूरज की किरणों में,
सरसराते पत्तों में
मम्मी जी की आरती में।
दूध वाले,अखबार वाले,
सब्जी वाले,कूड़े वाले,
और ये गली में खेलते बच्चे,
सब ही तो ज़िन्दगी से भरे हुए थे।
अब नहीं दिख रही थी
मुझे मौत पड़ोसन सी...
और अब वे नाखून भी
गायब हो रहे हैं यकायक....
क्योंकि मैंने बंद कर दिया है
आभासी पढ़ना और सुनना
मैं अब पास पड़ोस का
सच देखने लगी हूँ...
जानने लगी हूँ....
मौत तो एक चारपाई है
जब कोई थक जाता है,
उस पर जाकर लेट जाता है।
लेकिन ज़िन्दगी मेहमान है,
उसे होंसलों के सोफे पर बैठाना होगा,
उम्मीद की मीठी चाय पिलानी होगी।
मेहमान का स्वागत सत्कार करना होगा,
क्योंकि 'अतिथि देवो भव' के
संस्कार है हमारे...
तब तक मौत की खटिया
खड़ी करनी ही होगी,
क्यों न शुरुआत हम सब
अपने दिमाग के दालान से करें....

✍️ हेमा तिवारी भट्ट, मुरादाबाद
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आ गया दहशत भरा कैसा ज़माना ।
लोग भूले जा रहे हैं मुस्कराना  ।।

कोई  जीवन में यहां विष भर रहा है ,
कोई जीते जी यहां पर मर रहा है ,
हो रही अनहोनियों की बात सुनकर
हर मनुज अब दिल के अंदर डर रहा है ।

कल की चिंता से दुखी होकर सभी अब
दर्द  का ही    गा  रहे  हैं    सब   तराना ।।

हर तरफ़   फैली      विषैली हैं    हवाएं ,
किस तरह हम गीत मन का गुनगुनाएं ,
वेदनाओं से  भरा   हर आदमी अब
फिर किसे जाकर व्यथा अपनी सुनाएं ।
वेदनाओं के समुंदर की सुनामी
जाने कितनों को बनाएंगी निशाना ।।

है भरोसा रोक लेंगे हम तबाही ,
दे रहा इतिहास भी हमको गवाही,
लौट कर आयेंगे फिर से दिन सुहाने
हैं निराशा को यहां आना मनाही ।
सब करें सम्मान यदि इंसानियत का
और सब सीखें यहां रिश्ते निभाना ।।

✍️ शिशुपाल "मधुकर ", C- 101, हनुमान नगर, लाइ पार, मुरादाबाद
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है नहीं कोई भवितव्य हमारा
हम हैं नदी की धार में तिरते दिये।

धर बाती अधिकार की जब
चाहे कोई हमें जला दे बुझा दे।
लहर कोई अंचल की ओट ले सहेजे
या जब चाहे धार हमें डुबा दे।
है नहीं कोई मंतव्य हमारा
हम हैं किसी मँझधार में बहते दिये।

माटी के इस दिवले में
तुम प्राण अपने डाल के।
जला दो कहीं मंदिर में
या धर दो देहरी पे बाल के
है नहीं कोई गंतव्य हमारा
हम हैं किसी के द्वार पे जलते दिये।

साँझ ढलते ही जलाये गये
हम भोर होने तक जलते हैं ।
मुसाफिर आते जाते हैं यहाँ
रास्ते भला कब चलते हैं।
कि प्रतीक्षा ही ध्येय हमारा
हम हैं जले बेकार में बुझते दिये।
है नहीं कोई भवितव्य हमारा
हम हैं नदी की धार में तिरते दिये।

✍️ रचना शास्त्री, जनपद बिजनौर
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नए रास्ते मैं बनाने चला हूँ ।
कि गिरते हुओं को उठाने चला हूँ ।।

जो भटके हुए हैं अंधेरी गली में ।
उजाला उन्हें मैं दिखाने चला हूँ ।।

नहीं कोई छोटा न कोई बड़ा है ।
हैं सब अंश प्रभु के बताने चला हूँ ।।

बिना बात तो मुझसे जो रूठे हुए हैं ।
मैं कर जोड़ उनको मनाने चला हूँ ।।

जिन्होंने सदा ही हैं कांटे चुभोये ।
सुमन उनको लेकिन सुंघाने चला हूँ ।।

जो डस लेते हैं मौका पाते ही सबको ।
मैं पय पान उनको कराने चला हूँ ।।

अवज्ञा जो करते हैं माता-पिता की ।
मैं उनके लिए ही कमाने चला हूँ ।।

रोशनी से जिसकी है रोशन जमाना ।
उसे ही मैं दीपक दिखाने चला हूँ ।।

सदा मुझसे साधा जिन्होंने है मतलब ।
स्वयं को मैं उन पर मिटाने चला हूँ।।

✍️ राम सिंह 'निशंक', मुरादाबाद
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पतझड़- सा माहौल बना है, देखे हैं कितने बसंत ।
इससे क्या घबराना हमको, कलयुग का निकट है अंत ।।

कलयुग का मतलब है जिसमें, होंय अधिक मशीनी काम ।
गलत बात के अधिक समर्थक, सच पुकारे बस हे ! राम ।।
दुष्ट लोग जब मौज मनायें, परेशान होते हों संत ।
पतझड़- सा माहौल बना है, देखे हैं कितने बसंत ।।

जीत सका नहिं जब वह हमको, कायर  हरकत कर डाली ।
कोरोना को छोड़ा जग में, सबका बनने को माली ।।
जैविक यह हथियार छोड़कर, खट्टे किये सबके दंत ।
पतझड़ -सा माहौल बना है,देखे हैं कितने बसंत ।।

अर्थ व्यवस्था चौपट है अब, जनता करती है त्राही ।
शिक्षा जैसे शून्य हो गयी, रोजगार है अब माही ।।
घर में सारे कैद हो गये, बाहर घूम रहा ज्यों हंत ।
पतझड़ -सा माहौल बना है, देखे हैं कितने बसंत ।।

बिखर गये थे जो भी रिश्ते, वह भी अब सब एक हुए ।
नदी-पवन सब शुद्ध हो गये, मन से मन का मिलन छुए ।।
मानव ने गलती स्वीकारी, क्षमा करो हमें हे! कंत ।
पतझड़-सा माहौल बना है, देखे हैं कितने बसंत ।।

विपदा हम पर बहुत बड़ी है, हमने हिम्मत नहिं हारी ।
*जीत जायेंगे हम* मान लो, वैक्सीन है संँग हमारी ।।
नवयुग का निर्माण करेंगे, सिंह, जेम्स,  जिया अरु पंत ।
पतझड़-सा माहौल बना है, देखे हैं कितने बसंत ।।

✍️ राम किशोर वर्मा, रामपुर (उ०प्र०)
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दुख के बादल छट
                जायेंगे!
ये विषाणु भी हट
                जायेंगे!!
धीरज रख तू हृदय
                   वावरे!
कष्ट सभी के मिट
                  जायेंगे !!
✍️के पी सिंह 'सरल',  मुरादाबाद
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खिलेंगी  आस  की  कलियां
अलि     फिर     गुनगुनायेंगे,
विश्वास रख हम जीत जायेंगे।

तय  अमावस   बाद  पूनम
का    उजाला,
सूर्य रश्मि मेट देती है सघन
अंधियारा काला,
मन के  मंदिर  दीप फिर
से जगमगाएंगे,
विश्वास रख........।

अंत    करना   है   विषाणु 
रोग   का,
हो  सुपथ  संयम नियम  व
योग  का,
आत्मशक्ति से जिजीविषा
को   बढ़ायेंगे ,
विश्वास  रख .........।

नीति प्रशासन वैद्य जन
की बात सुन,
हो भले किंचित कठिन, पर
लक्ष्य की धुन,
नव  सृजन  के   स्वप्न  सब
आकार पायेंगे,
विश्वास रख........।

हो  सुरक्षित  कर्म  चिंता
छोड़,  चिंतन,
कर  हृदय  में  ईश  का
विश्वास वर्धन,
आ  स्वयं   उंगली   पे
गोवर्धन उठायेंगे,
विश्वास रख........।

है सुनिश्चित हर अति का
अंत   होवे ,
संकेत प्रकृति का मनुज
अब संत  होवे ,
संशय नहीं कल्याण की
बस राह  पायेंगे
विश्वास रख ......।।
                
✍️ शुचि शर्मा ‌, शेरकोट, जनपद बिजनौर
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कैसी भी आपदा आये।
संभलना आता है हमको।
इन विषंम परिस्थितियों से।
निकलना आता है हमको।
क्योंकि भारत वासी हैं हम।
और जीत जायेगें हम।।

ये जो भारत हमारा है।
ये देवो की भूमि हैं।
अपनी संस्कृति को अपनायेंगे।
अपने वेद पुराणों को पढगे।
ईश्वर की दी हुई अमुल्य निधि।
प्रकृति को सुरक्षित रखेगें हम।
क्योंकि भारत वासी हैं हम।
और जीत जायेगे हम।।

भारत में एक से एक बिमारी आई।
प्रकृति से हमने अनेको औषधि पाई।
आयुर्वेद का सत्कार करेगें हम।
घरेलू उपचारों को अपनायेंगे हम।
क्योंकि भारत वासी हैं हम।
और जीत जायेगें हम।

✍️ चन्द्र कला भागीरथी, धामपुर ,जिला बिजनौर
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स्कूल में सभी के रंग एक थे
लंच में किसी के पराठे,
किसी में मैगी
किसी में रखे सेब थे
पर न जाने कौन
सिर पर टोपी और
माथे पर तिलक लगा जाता है
दोस्तों को हिन्दू
मुझे मुसलमान बता जाता है

✍️-प्रशान्त मिश्र
राम गंगा विहार, मुरादाबाद
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कोरोना की बीमारी में ये कैसी ईद आई है
गले मिलना तो बातें दूर की,दूरी बनाई है

लगा है लॉकडाउन कौन अब खाने को आएगा
सेवैया खीर से किसके लिए टेबल सजाई है

✍️प्रवीण राही, मुरादाबाद
संपर्क सूत्र 8860213526








मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी की लघु कहानी ----देश का सम्मान!


       एक बहुत बड़े देश के राजा को अपने देश में पहलवानों की कुश्तियां कराने और जीतने पर पारितोषिक देने का बड़ा शौक था।एक बार उसने देश के नामी ग्रामी पहलवान सुंदर को बुलाया और पहलवानी के विस्तार के संबंध में कुछ महत्वपूर्ण चर्चा की।

     पहलवान सुंदर ने नतमस्तक होते हुए विनम्रता पूर्वक कहा,महाराज अपने ही घर में प्रतियोगिताओं पर खर्चा करने तथा सही प्रतिभागी तक उसका लाभ न पहुचने से पहलवान प्रतियोगियों का मनोबल ही टूटता है।

    अच्छा तो यह हो कि अन्य देशों में होने वाली प्रतियोगिताओं में भी हमारा प्रतिनिधित्व हो,महाराज तभी तो असली हीरे की परख हो पाएगी।

महाराज को सुंदर की बात बहुत प्रभावित कर गई।

    भाग्य से पड़ौसी देश ईरान में ऐसी ही एक प्रतियोगिता का आयोजन रखा गया।उसमें जीतने वाले पहलवान को पांच करोड़ रु/-का इनाम देने की घोषणा भी की गई।राजा ने तुरंत सुंदर को बुलाया और इस प्रतियोगिता में भाग लेने का आदेश देते हुए ईरान के कुश्ती संघ में सुंदर का नाम लिखाते हुए उसके ठहरने की समुचित व्यवस्था कराई।

     सही समय पर प्रतियोगिता प्रारम्भ हुई।सुंदर की भिड़ंत ईरान के नामी,भारी-भरकम पहलवान से होने की घोषणा की गई।सभी दर्शक अपने-अपने देश के पहलवान की जीत का दावा करने लगे।

        सुंदर को देखकर सभी हंसने लगे। कोई  कुछ, तो 

कोई कुछ कहकर सुंदर का मनोबल गिराने का प्रयास करने लगे।तभी ईरान के भीमकाय पहलवान ने सुंदर को दबोचकर चित करना चाहा परंतु सुंदर ने ऐसा दांव चला कि देखते-देखते ईरानी लपहलवान चारों खाने चित हो गया।

   फिर क्या था ईरान के राजा ने घोषणा के अनुसार पांच करोड़ के इनाम के साथ अन्य कई मूल्यवान तोहफों के साथ सुंदर को सहर्ष विदा किया।

      अपने देश में पहुंचकर  सुंदर का जोरदार स्वागत हुआ।राजा ने उसके सम्मान में बोलते हुए सुंदर को पांच करोड़ की राशि पाने का असली हकदार बताया।तभी सुंदर उठा और राजा कर समीप जाकर बोला,महाराज मैं इतनी धन राशि का क्या करूंगा।मैं चाहता हूँ कि यह सारी धन राशि राजकोष में जमा करा दी जाए ताकि हमारा राज्य खुशहाल होऔर साथ में समस्त नागरिक भी।

        राजा ने सुंदर को गले लगा कर कहा जो अपने लिए जिए उसको जीना नहीं कहते।देश के सम्मान में ही सबका सम्मान निहित है।बोलो सुंदर पहलवान की जय।

  

✍️ वीरेन्द्र सिंह बृजवासी, 

 मुरादाबाद 244001, उत्तर प्रदेश, भारत

 मोबाइल फोन नम्बर  9719275453

                 

                

मुरादाबाद की साहित्यकार हेमा तिवारी भट्ट द्वारा प्रस्तुत मां सरस्वती वंदना


 

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ विश्व अवतार जैमिनी की रचना ---क्या मिला क्रूर कोरोना तुझको भला, शांत जीवन की स्वर्णिम लड़ी तोड़ कर


 

शुक्रवार, 14 मई 2021

मुरादाबाद मंडल के चन्दौसी (जनपद सम्भल )के साहित्यकार रमेश अधीर का गीत ----कैसे लिखूं प्रणय की कविता


 

मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर का घनाक्षरी छंद -----मेंहदी वाले हाथों ने उठाई तलवार जब....


 

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की कविता ----राजनीति में पता नहीं कौन सा भूचाल आ गया, शेयर बाजार बुरी तरह लड़खड़ाया फिर मुंह के बल गिर गया .....-


 

मुरादाबाद के साहित्यकार डा. रमेश कृष्ण के साहित्य पर केंद्रित राजीव सक्सेना का आलेख । यह आलेख प्रकाशित हुआ है डा रमेश कृष्ण की वर्ष 2006 में प्रकाशित पुस्तक "मैं और मेरी साहित्य साधना " में ।


 महान् कृष्णानुरागी एवं कृष्ण विद्या-विशारद के रूप में आचार्य डा. रमेश 'कृष्ण' समूचे भारत ही नहीं, बल्कि विदेश में भी ख्यात है। युगों से जन-जन में लोकप्रिय भारत के कालपुरुष भगवान कृष्ण के यह मानस-पुत्र आज कलयुग में उनकी कीर्ति-पताका को शाब्दिक एवं वाचिक रूप से दिग्-दिगन्त तक फहरा रहे हैं। कृष्ण भावना के जिस कार्य को गोलोकवासी अभय चरण भक्ति वेदान्त श्रील प्रभुपाद अधूरा छोड़ गए हैं, उसे आचार्य कृष्ण अपने ढंग से सम्पादित करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। 'श्रीकृष्ण पराक्रम- परिक्रमा' और 'श्रीकृष्ण कीर्तिकथा' जैसे कालजयी ग्रन्थ उनकी इस प्रतिबद्धता के जीवंत प्रमाण हैं। कृष्ण भावना से आपाद मस्तक ओतप्रोत एवं अद्वितीय सृजनात्मक प्रतिभा के धनी डा. रमेश कृष्ण ज्ञानमूर्ति डा. वासुदेव शरण अग्रवाल से प्रेरित रहे हैं। डा. वासुदेव शरण अग्रवाल की तरह ही डा. रमेश 'कृष्ण' की भी प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं शोधवृत्ति में गहरी रुचि रही है। शोधवृत्ति के कारण ही डा. साहब ने ऐसे विलक्षण ग्रन्थों की रचना की है, जो काल का अतिक्रमण करते हुए समकालीन साहित्य की निधि बन चुके हैं। इस दृष्टि से वे अपने प्रेरणास्रोत डा. वासुदेवशरण अग्रवाल के समरूप और कहीं-कहीं उनसे भी आगे जान पड़ते हैं।

     अपने मौलिक चिन्तन के ज़रिये डा. रमेश 'कृष्ण' ने अकाट्य प्रमाण प्रस्तुत कर अनेक नई स्थापनायें प्रस्तुत की हैं। डा. कृष्ण की यह दृढ़ मान्यता है कि इस्राइल के यहूदी मूलतया भारत की संतान हैं और यदुवंशी हैं। 'श्रीकृष्ण कीर्तिकथा' (भाग प्रथम- पंचम अध्याय) में वे बाबू उमेशचन्द्र विद्यारत्न एवं 'मेदिनीकोष' का सन्दर्भ प्रस्तुत करते हुए कहते हैं- 'राजा सगर की आज्ञा से यवनों ने जिस पल्ली स्थान में निवास किया था, वही पेलेस्टाइन हो गया और यवन शब्द का ही विकास (यवन जोन) 'जू' है। इस वर्णन से यह सिद्ध होता है कि यदुवंशी क्षत्रिय ही राजा सगर के द्वारा यवन करके निकाले गये, जो पेलेस्टाइन में जा बसे। यही बात बाइबिल और पोकाक के वचनों से भी सिद्ध होती है। बाइबिल का नूह का वर्णन भी मनु के तूफान की सूचना देता है। अतएव यहूदियों के आर्य होने में कोई सन्देह नहीं रह जाता। साथ ही यह भी सिद्ध हो जाता है कि वे भारत से ही जाकर वहाँ बसे हैं।

    नन्द भवन के नाम पर 'निनबीह', वृन्दावन के नाम पर बेबीलोन, गोकुल के नाम पर गालील, मगध के नाम पर मैगीडो या मैगडाला, यमुना (जमुना) के नाम पर जमनिया, मथुरा के नाम पर बैथेल, नन्दघर के नाम पर नाजरथ, यमुना के नाम पर यरदन और गोवर्धन के नाम पर गबर के स्रोत भी भारतीय हैं। 'श्रीकृष्ण कीर्ति कथा' में डा. कृष्ण लिखते हैं 'महाराज ययाति के पुत्रों यदु तुवर्सु, अनु, दहयु तथा पुरु ने सम्पूर्ण भारत में तथा भारत से बाहर चीन, जापान, यूनान, अमेरिका आदि में अपने राज्य स्थापित किए तथा भारतीय सभ्यता संस्कृति को विश्वव्यापी बनाया।'

    डा. रमेश यादव 'कृष्ण' के केवल पौराणिक तथ्यों या सन्दर्भों के आधार पर ही मौलिक उद्भावनायें / स्थापनायें प्रस्तुत नहीं करते हैं, बल्कि इनकी पुष्टि भौगोलिक एवं भाषा वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर भी करते हैं। ये सारे सूत्रों को संजोकर कुछ इस तरह तारतम्य स्थापित करते हैं कि यहुदियों के भारत के पहले एवं मान्यताओं को कपोलकल्पित मानकर  अस्वीकार नहीं किया जा सकता, न ही उनसे असहमत हुआ जा सकता है। डा. रमेश यादव 'कृष्ण' ने तार्किक आधार पर महाभारत की अनेक भ्रांत धारणाओं का जोरदार खण्डन किया. है। उदाहरणार्थ, उन्होंने यह सिद्ध किया है कि द्रोपदी केवल अर्जुन की भार्या थीं न कि पांचों पांडवों की। आगे चलकर उन्हें इसमें भी परिवर्तन करना पड़ा और द्रौपदी महाराज युधिष्ठिर की पत्नी सिद्ध हुई। डा. यादव लिखते हैं कि युधिष्ठिर के राज्याभिषेक के साथ पत्नी के रूप में द्रौपदी का भी अभिषेक हुआ तथा वे ही सम्राज्ञी बनीं और उन्होंने ही अवभृथ स्नान किया। इसी अधिकार से युधिष्ठिर ने द्रौपदी को जुए में दाँव पर लगाया था। इस प्रकार हम देखते हैं कि डा. यादव अपनी मान्यताओं को स्वयं भी समय-समय पर इतिहास एवं न्याय की तुला पर तोलते रहते हैं। इसी तरह ब्रह्मवैवर्त पुराण और विष्णु पुराण के सन्दर्भों के आधार पर उन्होंने प्रमाणित किया है कि कृष्ण के जीवन में राधा का कोई अस्तित्व नहीं था और यदि वे थी भी तो कृष्ण की प्रेयसी तो बिल्कुल नहीं थीं। डा. साहब ने श्रीकृष्ण द्वारा विदुरजी के यहाँ केले के छिलके चाटने एवं रूखा साग खाने की घटना को भी कपोल-कल्पित बताया है और ऐसा कहने के पीछे ठोस आधार भी है। यह सर्वज्ञात तथ्य है कि विदुर जी तत्कालीन भारत के एक प्रभावशाली साम्राज्य के मंत्री पद पर आसीन थे। अतः वे निश्चित ही साधन सम्पन्न थे और उनके दीन-हीन या निर्धन होने का प्रश्न ही नहीं उठता। उक्त तथ्यों के आलोक में यह स्वीकार करना कि भगवान कृष्ण ने विदुरजी के घर केले के छिलके या रूखा साग खाया होगा, सचमुच कठिन है।

  'श्रीकृष्ण कीर्तिकथा' के षष्ठक भाग में डा. रमेश कृष्ण ने महाभारत के कालजयी पात्रों का सविस्तार उल्लेख किया है। अतिरथी अभिमन्यु, पितामह भीष्म, गुरु द्रोणाचार्य, धृतराष्ट्र, महात्मा विदुर, शकुनि, अश्वत्थामा, युधिष्ठिर, भीमसेन, दुर्योधन, दानवीर कर्ण और अर्जुन के उदात्त चरित्र और जीवन प्रसंगों का उन्होंने रोचक वर्णन किया है। पितामह भीष्म का उल्लेख करते हुए डा. रमेश कृष्ण एक रोचक तथ्य का उद्घाटन करते हैं। वे लिखते हैं कि एक बार विश्ववन्द्य स्वामी विवेकानन्द जी ने कहा था- 'अपने सारे जीवन में बुद्ध का प्रशंसक रहा हूँ, किन्तु मैं उनके चरित्र का प्रशंसक हूँ, उनके सिद्धान्तों का नहीं। यही बात श्रीकृष्ण और भीष्म पर चरितार्थ होती है। श्रीकृष्ण भीष्म पितामह के चरित्र, अथाह ज्ञान एवं महिमामय व्यक्तित्व के प्रशंसक हैं, किन्तु ये उनके सिद्धान्तों के प्रशंसक नहीं है। श्रीकृष्ण के ही शब्दों में हम भीष्म जी की आलोचना सुनें- 'कुरुकुल के सभी बड़े-बूढ़े लोगों का यह बहुत बड़ा अन्याय है कि आप लोग इस मूर्ख दुर्योधन को राजा के पद पर बैठाकर अब इसका बलपूर्वक नियंत्रण नहीं कर रहे हैं। कुछ ऐसी ही बात गुरु द्रोणाचार्य के सन्दर्भ में

कही गई है- दुर्योधन के अनुचित कार्यों का मौखिक विरोध भले ही द्रोण करते थे, किन्तु क्रियात्मक रूप से वे उसके कार्यों में सहयोग देते थे। द्रोणाचार्य पुरुष को अर्थ का दास बताते हुए अपने को दुर्योधन के अर्थ से बंधा हुआ असहाय प्राणी बताते हैं। अपने को नपुंसक कहते हैं। उस समय उनका चरित्र श्रद्धा का पात्र नहीं रह जाता। आचार्य द्रोण ने साधारण सैनिकों पर दिव्यास्त्रों का प्रयोग करके युद्ध के नियमों का उल्लंघन किया और अनैतिकता का मार्ग प्रशस्त किया। महर्षियों ने उनकी भर्त्सना की और स्पष्ट कहा कि तुमने अधर्मपूर्वक युद्ध किया है। जब हम पितामह भीष्म और आचार्य द्रोण के चरित्र के इन पहलुओं से अवगत होते हैं, तब निश्चित ही इन विभूतियों के प्रति हमारे दृष्टिकोण में परिवर्तन हो जाता है।

   जो स्त्री-विमर्श आज समकालीन साहित्य का मुख्य स्वर है, वह डा. रमेश कृष्ण के साहित्य में सर्वत्र परिलक्षित होता है। डा. रमेश कृष्ण ने प्राचीन भारत या महाभारत के प्रमुख स्त्री पात्रों को नये आयामों का स्पर्श देकर उत्कर्ष तक पहुँचाया है और उन्हें वैभव प्रदान किया है। यह डा. कृष्ण की स्वर्ण लेखनी का ही सुफल है कि शर्मिष्ठा, देवयानी, शकुन्तला, कुन्ती और द्रौपदी जैसे मिथकीय पात्र हमें वायवीय नहीं, बल्कि वास्तविक प्रतीत होते हैं। आचार्य जी ने अपनी 'कृष्ण कथा में महाभारत के स्त्री पात्रों का कुछ ऐसी कुशलता और प्रामाणिकता के साथ चित्रण किया है कि उनकी इयत्ता और ऐतिहासिकता पर तनिक भी सन्देह नहीं किया जा सकता। डा. राममनोहर लोहिया ने लिखा है- 'भारतीय साहित्य (इतिहास) में द्रोपदी जैसी तेजस्विनी नारी अन्य नहीं है। वे विदुषी हैं। धीर-गम्भीर वीर हैं। विपत्तियों का आलिंगन करने और उन्हें पराजित करने में सक्षम हैं। उनका सारा जीवन दुख-कष्ट और चुनौतियों से भरा है। डा. रमेश कृष्ण अपने स्त्री पात्रों को 'ग्लोरीफाई' अवश्य करते हैं, किन्तु कुछ इस तरह कि उनमें आम भारतीय नारी के बिम्ब भी सरलतापूर्वक रेखांकित किए जा सकते हैं।

    डा. रमेश कृष्ण आद्यगुरु शंकराचार्य, स्वामी विवेकानन्द और दयानन्द सरस्वती सरीखे भारत के प्रज्ञा पुरुषों से भी ख़ासे प्रभावित रहे हैं। इनके दर्शन चिन्तन की छाप डा. कृष्ण पर साफ परिलक्षित होती है। शिकागो की धर्मसंसद में भारत की कीर्ति पताका फहराने वाले स्वामी विवेकानन्द से डा. रमेश कृष्ण विशेष रूप से प्रभावित हैं। तभी वे अपने ग्रन्थ 'ज्ञानपयोधि स्वामी विवेकानन्द' में लिखते हैं- स्वामी दयानन्द का कार्य वेद प्रतिपादित धर्म का रक्षण एवं पोषण करना था, किन्तु स्वामी विवेकानन्द का कार्य अधिक व्यापक था। उन्हें सृष्टि से अब तक चले आने वाले सम्पूर्ण हिन्दुत्व की रक्षा करना था। विधाता ने इस कार्य को सम्पादित करने के लिए ही धरती पर नरों में 'इन्द्र' नरेन्द्र (स्वामी विवेकानन्द) को भेजा था, जिनमें इस गुरुतर भार को उठाने के लिए विवेक भी था और आनन्द (उत्साह) भी।

    डा. रमेश कृष्ण स्वयं प्रज्ञा-पुरुष हैं- घनीभूत वैचारिक ऊर्जा के जीते-जागते पुंज। भारत के महापुरुषों पर रचे गए अनकरीब दर्जनभर मौलिक ग्रन्थ उनकी विलक्षण मेघा के परिचायक हैं। इस बात पर सहसा विश्वास नहीं होता कि उनके भीतर ज्ञान का महासागर लहराता हैं। किन्तु वे इस ज्ञान को केवल अपने भीतर ही नहीं संजोये रहते, बल्कि इसे उड़ेलने को सदैव तत्पर रहते हैं। बस, पात्र के भीतर इसे समेटने की सामर्थ्य होनी चाहिए।

   डा. रमेश 'कृष्ण' का एक और रूप भी है- वह है उनका छवि भंजक रूप। डा. रमेश 'कृष्ण' ने स्वामी दयानन्द सरस्वती द्वारा हिन्दू शब्द के अपमानजनक पर्याय बताने को अनुचित कहा है। स्वामी दयानन्द ने कवि कालिदास, संत कबीर, नानक, तुलसी, सहजानन्द, आचार्य वल्लभ जैसे महापुरुषों पर अशोभनीय कटाक्ष किया है, इनके ग्रन्थों को भी पढ़ना निषिद्ध घोषित किया। यद्यपि डा. कृष्ण ने स्वामी जी की सायास निन्दा या भर्त्सना नहीं की है, तथापि कतिपय आर्यसमाजी उनसे खासे कुपित हो गये हैं, क्योंकि इससे स्वामी जी की पूर्व निर्मित छवि को संभवतया आघात पहुँचा है। डा. रमेश कृष्ण बड़े सत्यान्वेषी हैं। दरअसल, उनका समूचा साहित्य ही सत्य का अन्वेषण है। अपने अन्वेषण में वे जहाँ भी कुछ अनुचित पाते हैं, उस पर तर्जनी उठाने से नहीं चूकते। ऐसा करते हुए वे न केवल अपनी रचनाधर्मिता का, बल्कि लेखकीय दायित्व का भी निर्वाह कर रहे होते हैं। अतः शुचितावादियों को इसमें कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए।

  अपने आदर्श, आराध्य एवं उपास्य श्रीकृष्ण की चर्चा करते हुए डा. रमेश कृष्ण ने अद्भुत वाङ्मय का सृजन किया है, जिसे सहज ही 'कृष्ण पुराण' की संज्ञा दी जा सकती है। स्वयं डा. कृष्ण आधुनिक पुराणकार हैं। उनके द्वारा सृजित 'कृष्ण वाङ्मय' का अवगाहन करने पर एक अनिर्वचनीय आनन्द या आहलाद की अनुभूति होती है। कोई सुधी पाठक इसमें बार-बार उतरना पैठना चाहेगा, दरअसल, डा. कृष्ण के अंतस में प्राचीन भारतीय संस्कृति को पुनर्स्थापित करने की चिर अभिलाषा रही है। इस दृष्टि से उनका साहित्य गौरवमयी भारतीय संस्कृति का बखान ही नहीं, बल्कि शब्दों में रची गयी मानवीय उत्कर्ष की महागाथा है।


✍️ राजीव सक्सेना

 मुरादाबाद 244001

 उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद के साहित्यकार श्रीकृष्ण शुक्ल की रचना --

 


बुधवार, 12 मई 2021

मुरादाबाद मंडल के जिला अमरोहा के साहित्यकार मुजाहिद चौधरी की रचना -मां तेरी मोहब्बत सी मोहब्बत नहीं देखी


 

मुरादाबाद मंडल के जनपद सम्भल (वर्तमान में नोएडा निवासी) साहित्यकार अटल मुरादाबादी के दोहे ---


 

मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी की लघु कहानी ----- "अनोखा ताबीज"


       माँ के जाने का समय निकट आ चुका था।इसलिए बेटे को हर बला से दूर  रखने के लिए उसने एक ऐसा ताबीज तैयार किया जिसकी इबारत को केवल एक बार ही पढ़ा जा सकता था।माँ ने बेटे को वह ताबीज देते कहा बेटे जाते -जाते मेरी कुछ बात ध्यान से सुन।

       माँ बोली बेटा जब कभी तू बहुत निराश हो,तेरा दिल बहुत घबरा रहा हो,तेरे चारों ओर तुझे केवल भयभीत करने वाला सन्नाटा सता रहा हो,जीवन से स्वयं को भी डर लगने लगे,या इससे भी कठिन परिस्थितियां तेरे चारों ओर घेरा डाल रही हों।

          तब तू इस ताबीज की इबारत को पढ़ना तुझे तेरी हर परेशानी का हल मिल जाएगा।इतना कहते हुए माँ इस संसार को छोड़ कर चली गई।बेटा अकेला रोता हुआ रह गया।

          अब वह बहुत उदास, परेशान रहने लगा।किसी काम में उसका मन न लगता।हर समय खोया-खोया रहता।खाने-पीने की भी कोई सुध-बुध नहीं रह गई।कुछ हमदर्द लोगों ने भी उसे कई बार समझाया।परंतु वह तो अपने आप में ही खोया रहता।

      एक दिन अचानक उसका हाथ उस ताबीज पर पड़ा।उसने सोचा क्यों न इसकी इबारत को ही पढ़कर देखा जाए।उसका ढक्कन खोलने से पहले ही उसके शरीर में एक आनोखी शक्ति उत्पन्न हुई,उसका दिमाग बहुत हल्का सा हो गया।उसे अपने चारों ओर अजीब सा दैवीय प्रकाश नज़र आने लगा।उसने कुछ देर के लिए आँखें बंद कीं तो देखा कि उसकी माँ ताबीज से झांककर कह रही है बेटा भगवान उसी पर भरोसा करता है जो खुद पर भरोसा करना जानता है।

     बेटा उठा और उस ताबीज को प्रणाम करके माँ से कहा, माँ तू बहुत महान है।ईश्वर भी तेरे सामने नतमस्तक रहते हैं।

    अब मैं अकेला नहीं हूँ।तेरा आशीर्वाद हर समय मेरे साथ है।

✍️ वीरेन्द्र सिंह"बृजवासी"

  मुरादाबाद 244001,उत्तर प्रदेश, भारत

  मोबाइल फोन नम्बर  9719275453

                 

                       

मुरादाबाद की साहित्यकार स्वदेश सिंह की कविता--मां का प्यार से सिर पर हाथ फेरना,आज भी बहुत याद आता है


 

मुरादाबाद के साहित्यकार विवेक आहूजा की रचना ---- सबसे पहला दोस्त, सबसे पहला गुरु होती हैं मां


 

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर के साहित्यकार सन्तोष कुमार शुक्ल की रचना -स्नेह और ममता से देती सबको खुशहाली....


 

मुरादाबाद की साहित्यकार कंचन खन्ना की रचना ----- मां


 

मुरादाबाद मंडल के धामपुर (जिला बिजनौर) की साहित्यकार चंद्रकला भागीरथी की रचना ----

 


मंगलवार, 11 मई 2021

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार प्रीति चौधरी की ग़ज़ल ---चांद छत से जो मुस्कुराता है


 

मुरादाबाद के साहित्यकार (वर्तमान में दिल्ली निवासी)आमोद कुमार की ग़ज़ल-खुशियां चाहीं तो आंसू मिले हैं


 

मुरादाबाद की साहित्यकार इंदु रानी की रचना-- प्रार्थना सुन लीजिए


 

मुरादाबाद की साहित्यकार हेमा तिवारी भट्ट की रचना --- तिनका तिनका जिसे बसाया.....




 

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ अर्चना गुप्ता का गीत --- बह रहा है आंख से खारा समंदर...


 

मुरादाबाद मंडल के नजीबाबाद (जनपद बिजनौर)की साहित्यकार नीमा शर्मा हँसमुख की रचना ----


 

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की रचना ---बढ़ रहा बेशक कोरोना पर न तुम इससे डरो ....


 

सोमवार, 10 मई 2021

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश की कुण्डलिया ---कहते रवि कविराय ,बजा रघुकुल का डंका घर को लौटे राम , छोड़कर जीती लंका


 

मुरादाबाद के साहित्यकार उमाकांत गुप्ता की रचना --- अब प्रवासी हो गई मेरे आंगन की गौरेया ....


 

मुरादाबाद के साहित्यकार राजीव प्रखर की रचना --- मैं उजली आशा का पंछी , फिर चहकूँगा चिंता मत कर .....


 

मुरादाबाद की साहित्यकार (वर्तमान में नोएडा निवासी ) सपना सक्सेना दत्ता की रचना --- मेरी अभिलाषा


 

मुरादाबाद की साहित्यकार हेमा तिवारी भट्ट की कहानी- कटघरे में ममता*

 


    अपनी पहली संतान दो महीने की नवजात बेटी गुड़िया को सीने से लगाये रीना अक्सर उससे खूब बतियाती और भर भर कर अपना प्यार उड़ेलती रहती थी।उसका बचपन जैसे लौट आया था।पापा बताया करते थे,बचपन में कैसे वह प्लास्टिक की गुड़िया को गोद में लेकर पूरा दिन उसे सजाती,संँवारती,बतियाती और किसी के भी उसे छूने पर रोने लगती थी।अब वह रोती तो नहीं,पर रसोई बनाते या घर का काम समेटते हुए उसे जब कुछ समय को अपनी यह गुड़िया घर के किसी अन्य सदस्य की गोद में देनी पड़ती थी तो दसियों बार वह बीच बीच में आकर उसे बेसब्री से देखती,कसमसाती और जल्दी जल्दी काम निपटाकर पहले उसे गोद लेना चाहती।

    रोहन कहता,"अरे खाना तो खा लो पहले,फिर पकड़ लेना।" पर वह दौड़ती हुई सीधे माँ जी के पास जाती।सास टोकती,"अरे जा,पहले खाना खा ले।खाना खाते हुए बच्चे को पकड़ेगी क्या? कहीं नहीं जा रही तेरी बेटी,अपनी दादी की गोद में है और बहुत मज़े में है।क्यों बाबू,है ना।मेरा सोना बाबू....." 

    सास की बात बेमन से मानते हुए वह रसोई की ओर चल देती।रोहन चिढ़ाता,"मेरी बात तो नहीं सुन रही थी।सास का फरमान बड़ी जल्दी सुन लिया।वाह जी वाह..." वह रोहन को गुस्से में देखती पर अगले ही पल उसकी आंँखों में आँसू होते और पनीली आँखें लिए वह जल्दी जल्दी खाना खाने लगती।रोहन भी उसे देखकर भावुक हो जाता और समझाता,"रीना,ये बचपना ठीक नहीं है।हर माँ को अपने बच्चे से बहुत प्यार होता है,खासतौर पर जब वह उसकी पहली संतान हो।क्या मुझे अपने बच्चे से प्यार नहीं है?लेकिन रीना क्या केवल प्यार ही सब कुछ है।हमें अपने बच्चे को अच्छी परवरिश देनी है।उसका भविष्य भी संवारना है और ये काम हम उसे केवल हर समय गोद में लेकर नहीं कर सकते।दस दिन बाद तुम्हारी मैटरनिटी लीव पूरी होने वाली है।मैं भी अपनी ड्यूटी पर चला जाऊँगा।फिर तो हमें अपनी गुड़िया को माँ की गोद में ही देना होगा और फिर इसमें गुड़िया की भलाई ही तो छुपी है।उसे प्यार करने वाली अनुभवी दादी से ज्यादा भला और कौन उसका ख्याल रख सकता है? वैसे भी तुम ऑफिस में काम करोगी या गुड़िया का ख्याल रखोगी।तुम लकी हो कि तुम्हारे पास जॉइंट फैमिली है,केयर करने वाली सास है वरना न्यूक्लियर फैमिली वालों की ओर देखो जो बेबी सिटर्स के भरोसे अपने छोटे-छोटे बच्चे छोड़ कर नौकरी पर जाते हैं।" 

    रोहन ने रीना के आँसू पोछे और गले से लगा लिया।रीना हकीकत के सूखे रेगिस्तान की तपिश को महसूस करने लगी।इस तपिश ने उसके मन की कोमलता पर पपड़ी जमानी शुरू कर दी थी पर अपनी गुड़िया को गोद में लेते ही उसकी ममता का झरना फिर से बह निकलता था।

            आखिर वह दिन भी आ गया जब रीना को ड्यूटी जॉइन करनी थी।रीना ने सुबह जल्दी उठकर बच्ची की देखभाल में जरूरी लगभग सभी बंदोबस्त पूरे कर दिये ताकि उसकी बुजुर्ग सास को उसके आफिस से लौटने तक कोई दिक्कत न हो।सास की मदद के लिए उसने एक काम वाली बाई भी लगा दी थी।अपनी गुड़िया को गोद में लेकर उसने उसे खूब सारा प्यार किया और फिर अगले ही पल आँसू भरी आँखों और भरे मन से बेटी को अपनी सास की गोद में देकर वह आफिस को चल दी।

           वह दिन बहुत मुश्किल भरा बीता।घर पर गुड़िया के लिए गाय का दूध लगा दिया गया था ताकि बोतल से उसे गाय का पोष्टिक दूध पिलाया जा सके।पर गुड़िया के भविष्य की पुष्टता के फेर में उसके हिस्से का नैसर्गिक पोषण रीना के सीने से उतर कर उसके कपड़ों पर फिर रहा था।इधर दूध उतरता था उधर आँखों से आँसू।दोनों में होड़ लगी थी पर रीना के लिए दोनों को ही संभालना मुश्किल हो रहा था।उसकी सहेली रमा ने उसकी दशा समझी और बॉस से कहकर उसे जल्दी घर भेजने की गुजारिश की।

           "ठीक है,आज जाओ।पर ये रोज रोज नहीं चलेगा।"इस एहसान के बोझ तले दबी रीना घर आ गयी।अपनी गुड़िया को गोद में ले कर वह बहुत रोयी।पर फिर रोहन की भविष्य वाली बात और बॉस की चेतावनी को याद करके संभली,उसने गुड़िया को बोतल का दूध पिलाया और उसके हिस्से का दूध ब्रेस्ट पम्प से निचोड़कर नाली में बहा दिया। बहुत मुश्किल लम्हा था।पर मां की ममता पर हकीकत ने अपनी पहली खुष्क परत चढ़ा दी थी।हालांकि आंखों से रिसती ममता ने पूरी रात तकिये को नम रखा।

       धीरे धीरे आदतें बदलने लगीं।रीना का लौटा हुआ बचपना व्यस्क रीना से विदा लेकर फिर से बचपन में चला गया।वह रोबोट की तरह घर और आफिस के सारे काम समय से फिट रखती थी।शाम को लौटकर वह एक बार अपनी गुड़िया को गोद में लेती और फिर कुछ संभलकर वापस अपनी सास की गोद में देकर घर के कामों में लग जाती,उसे भय रहता कि कहीं गुड़िया की ममता उस पर हावी होकर उसके सुरक्षित भविष्य की राह का रोड़ा न बन जाय।

     समय बीत रहा था।रीना और रोहन ने अपनी बेटी को सुन्दर भविष्य देने का हर प्रबंध किया था।उसके लिए हर सुविधा उन्होंने जुटायी थी।अपनी बेटी की अच्छी परवरिश के लिए रीना ने अपनी सास की हर भली बुरी बात को आँख मूंद कर माना था,उनकी हर फरमाइश पूरी की थी और उनके हर ताने को नजरंदाज किया था।वह स्वयं में आश्वस्त थी कि उसने माँ होने का फर्ज ईमानदारी से निभाया है।लेकिन जैसे-जैसे गुड़िया बड़ी हो रही थी,वह अपने मम्मी पापा से अधिक समय की चाह रखने लगी थी।

        नौकरीपेशा दम्पत्ति हर सुविधा जुटा सकता था और इसकी कीमत वह नौकरी को समय देकर चुका रहा था,इसलिए अपनी बेटी को अतिरिक्त समय कहाँ से देता?

        एक दिन गुड़िया ने मम्मी से कहा,"मम्मी,कल आप दोनों को स्कूल आना है।मेरा प्रोग्राम है।आप आओगे न।" 

        "ओ वेरी नाइस बेटा! लेकिन कल मेरे आफिस में एक जरूरी मीटिंग है।इसलिए छुट्टी नहीं मिल पायेगी और तुम्हारे पापा भी लखनऊ ऑफिस के काम से जा रहे हैं,तो हम लोग नहीं आ पायेंगे।आप दादी को लेके जाना न,ठीक है।" 

        "नहीं मम्मा, आप चलना।आप हाफ डे लीव ले लेना बस।" 

        "नो बेटा !हाफ डे भी नहीं मिलेगा इस समय।आइ एम रियली सॉरी।"

     "अरे !कैसी माँ है,ये।बेटी गिड़गिड़ारही है और ये अंग्रेजी में गिटपिट कर रही है।अरे दादी तो पैदा होने से अब तक संभाल ही रही है।पर तूने क्या फर्ज निभाया है माँ का? बैग टाँगा और निकल लिये आफिस।दिन भर वहांँ कुर्सी तोड़ी और शाम को दो-दो रोटी डाल दी सबके आगे।बस हो गया सब काम।न मोह न ममता।बच्चे को अपने हाथों से पाला हो तब न उसके दर्द को,उसके दुख,उसके सुख को समझे।सचमुच इतनी पत्थर दिल औरत नहीं देखी मैंने।" सास ने तो अपनी रोज की ही टोन में बात कही थी,पर आज रीना की ममता कटघरे में थी।

         रीना को जोर का धक्का लगा,वह बेचैन हो गयी थी।वह उठकर अपने कमरे में चली गयी और खूब जोर जोर से रोने लगी।वह असहाय थी,आखिर अपनी ममता का सबूत कैसे दे।अपनी बेटी की अच्छी परवरिश के लिए उसने अपनी भावुक ममता को एक आधुनिक माँ के कर्तव्य में किस मुश्किल से ढाला था।ये दर्द,ये बलिदान कोई समझ सकता था क्या।

        वह ये सब सोच ही रही थी कि गुड़िया "मम्मी! मम्मी!" कहती हुई कमरे में दाखिल हुई।रीना ने जल्दी से अपने आंँसू पोंछे और बेड पर संभल कर बैठ गयी।गुड़िया ने पास आकर अपनी मम्मी के गालों पर प्यारा सा किस किया और गले लगकर आगे बोली,"मम्मी,आपको छुट्टी नहीं मिल रही है तो कोई बात नहीं,आप परेशान मत होओ।मैं आपको घर पर ही अपनी परफॉर्मेंस दिखा दूँगी,ओके।मैंने देखा है आपको आफिस का बहुत काम होता है।अगर आप आफिस नहीं जाओगे तो आपको सैलरी नहीं मिलेगी,सैलरी नहीं मिलेगी तो हम ये सब लाइफ कैसे इंजॉय करेंगे,है न।पापा ने मुझे सब समझाया है।आप मुझसे बहुत प्यार करते हो न,मम्मी।मैं सब जानती हूँ।आप दादी की बात का बुरा मत मानना,ठीक है।कल मदर्स डे के लिए प्रोग्राम था स्कूल में और मैं आपको सरप्राइज देना चाहती थी इसलिए जिद कर रही थी।" रीना ने अपनी गुड़िया को कस कर गले लगा लिया।खुशी के आँसू आंखों से उमड़ कर बहने लगे थे।मदर्स डे की पूर्व संध्या पर गुड़िया ने अपनी माँ की ममता को बाइज्जत कटघरे से बाहर निकाल लिया था।

✍️हेमा तिवारी भट्ट, मुरादाबाद

रविवार, 9 मई 2021

शनिवार, 8 मई 2021

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ रीता सिंह की कविता ----जीवन नगरी

मैं नहीं कहती कि 

मेरे सपनों के राजकुमार है वे

लेकिन मेरी जीवन नगरी में 

आज एक राजा सी 

अहमियत है उनकी ,

मुझे अच्छा लगता है

उनका मेरी नगरी पर राज करना 

मेरे लिये चिंतित होना ,

मीलों दूर होने पर भी

अपनी व्यस्तताओं से समय चुराकर

दिन भर में एक बार 

दूरभाष पर ही सही बात ज़रूर कर लेना 

हमारी संतान के वर्तमान व भविष्य

को सुरक्षा देने का

प्रयास करना आदि आदि ...।

मेरी छोटी सी नगरी का 

मेरा यह राजा 

निज प्रजा के प्रति 

अपने सभी दायित्व

बिना किसी दिखावे के 

कुशलतापूर्वक निभाना 

और मेरी जीवन राहों को 

आसां बनाने में मेरा साथ

कदम कदम पर देना चाहता है ।

उसका यह कर्म निर्वहन

मुझे उसकी ओर 

सदा आकर्षित करता है ।

मैं यह भी नहीं कहती कि

मैं उनके सपनों की राजकुमारी हूँ

पर उनके विशाल हृदय़ महल में

रानी बन हुकुम चलाने का हक

उन्होंने ही मुझे दिया है ।

मैं नहीं जानती कि

वह मेरा जन्म जन्मांतर का

 साथी है या नहीं 

पर इस ज़िन्दगी की राह में 

वह मेरे साथ है 

यह मेरे लिये कई जन्मों के 

उपहार के समान है 

जिसे जी भर के मैं माँग में 

सजाना चाहती हूँ ।


✍️ डॉ. रीता सिंह, आशियाना , मुरादाबाद

मुरादाबाद मंडल के चन्दौसी (जनपद सम्भल)के साहित्यकार रमेश अधीर की ग़ज़ल -- है काम नहीं मायूसी का जीवन के उत्सव में ,दिल की हर इक धड़कन में उल्लास बनाये रखिये -----


 

मुरादाबाद के साहित्यकार विवेक निर्मल का गीत ---गली-गली और शहर -शहर में घूम रहा कोरोना है , यह सब खुद का किया धरा है फिर काहे का रोना है ... क्लिक कीजिए 👇👇👇👇👇👇👇


 

गुरुवार, 6 मई 2021

मुरादाबाद मंडल के गजरौला (जनपद अमरोहा ) की साहित्यकार रेखा रानी की लघुकथा ---हवा

 


चीं- चीं करती हुई चिड़िया  अपनी चोंच में दाना लिए अपने बच्चों को खिलाते हुए बड़ी बेचैनी महसूस कर रही है। अपने भावों को व्यक्त करते हुए  चिड़े से बोली- देखो जी, मैं अभी जब दाना लेकर आ रही थी, तभी मैंने लोगों को बात करते हुए सुना कि इन लोगों में महामारी फैली हुई है ...विज्ञान भी फेल हो गया है और यह भी कह रहे हैं कि सांसें घुट रही हैं, हवा की कमी से , लोग मारे मारे घूम रहे हैं  ।"   हवा को सिलेंडर में भर कर बेच रहे हैं पर हवा इतनी आसानी से मिल भी नहीं रही है।

     ......इन लोगों ने विकास के लिए पेड़ों को काटा,  तब नहीं सोचा शायद तब तो केवल ये सोचते थे कि बस हमारे घर ही उजड़ेंगे , इन पर  तो पैसे हैं ...पैसों से सब कुछ खरीद सकते हैं ,".....   चिड़ा लगभग चिढ़ कर बोला।

चिड़िया बोली-  आप भी न, बिल्कुल मनुष्य जैसे हो गए हो, मेरा तो दिल बैठा जा रहा है क्या करूं ? " एक काम कर लोगों को समझा कर देख शायद तेरी बात मान लें। इनसे कह दे ...." अपने घरों में पांच ऑक्सीजन लेवल बढ़ाने वाले और कम से कम दस पौधे जरूर लगाएं और अब खरीद लें हवा मुंह मांगे दामों में "

हां बात तो लाख टके की कही है जी आपने,, बच्चों को खाना देकर हम दोनों ही शुरुआत करें ।

  चिड़िया दंपत्ति बडे़ उत्साह से अपने पड़ौस के घरों में नन्हें नन्हें पौधे चोंच में भर कर लाने लगे। जब  लोगों ने इन्हें देखा तो समझ गए, कि क्या संदेश देना चाहते हैं ये पंछी अपनी जुबां में ।.......

 ✍️ रेखा रानी ,  विजयनगर , गजरौला , जनपद अमरोहा।

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की कहानी ----बेसहारा हाउस..

 


 ''अरे कौन है वहां?..... कौन पड़ा हुआ है?....... यह कैसे लोग इकट्ठे हो रहे हैं?...... कैसा शोर है यह?"
     ...''कोई बुढ़िया है..... बेहोश! शायद कोविड से पीड़ित है!..... कोई रात में डाल गया अस्पताल के बाहर....!''
     "भाई जल्दी से अस्पताल के अंदर ले चलो शायद बच जाए इसकी सांसे अभी चल रही है"
 मास्क लगाए हुए लोगों ने बुढ़िया को उठाया और अंदर ले गए। ऑक्सीजन लगायी गयी। ट्रीटमेंट किया गया ।
  बहुत हल्की हल्की सांसे चल रहीं थीं.... झटके के साथ ! लगता है कोई इसका अपना ही यहां छोड़ गया और अपने आप को बचाने के लिए..... चला भी गया.... सोचा होगा मर जाएगी..... अस्पतालों में वैसे ही ऑक्सीजन की कमी है फिर ऊपर से इसका बुढ़ापा.... इसकी देखभाल कौन करेगा ?
        इंजेक्शन लगाए गए दवाइयां दी गईं अगली सुबह को बुढिया को होश आया।
      "अम्मा कहां की रहने वाली हो? "
"नंदप्रयाग! यह कौन सी जगह है?"
गोपेश्वर!
गोपेश्वर?..... मैं यहां कैसे पहुंची?....
गोपाल और सोनू कहां है मेरे बेटे? क्या मेरे साथ कोई भी नहीं आया?
नहीं!
धीरे-धीरे बूढ़ी अम्मा की हालत ठीक होने लगी उसके शरीर में ऑक्सीजन का लेवल भी ठीक होने लगा..... खाना पीना खाकर थोड़ी जान शरीर में आई फिर उसने कहा कि मेरे बेटों को बुलाओ ।
अम्मा पता नहीं तुम्हें छोड़कर कौन गया है.....?
        इस तरह लावारिस मुझे छोड़ कर चले गये ....!कोई  अपनी मां को ऐसे छोड़ता है क्या?
बूढ़ी अम्मा रोने लगती है !!!
     उसे यकीन ही नहीं होता अब उसके शरीर पर ना सोने के कंगन है 'न कानों में सोने की बाली , न गले की सोने की हसली । रोते-रोते कहने लगी ....."जब मेरे बेटो को ,मेरी बहुओं को मुझसे लगाव ही नहीं है....मेरी चिंता ही नहीं तो मैं जी कर क्या करूंगी ? इस भरी दुनिया में मेरा कौन है? जिसके लिए मैं जियूं ! 
      कहते कहते बुढ़िया बेहोश हो गयी! 
अगले दिन तक मन में निराशा ने इतना घर कर लिया था कि डॉक्टर ने लाख कोशिश की पर बुढ़िया के मुंह से एक शब्द न निकला .....
......... कुछ दिनों के बाद......... बुढ़िया का लग कर इलाज करने पर वह भली चंगी हो गयी...पर उसने घर वापस जाना स्वीकार नहीं किया.......।
..... सीनियर डाक्टर खुराना बुढ़िया के लाख मना करने पर भी अपनी कोठी पर ले गये...नौकर- चाकर सुंदर फूलों से सजा बंगला... बड़ा सा लांन बड़े-बड़े चार कमरों वाले बंगले में डॉ खुराना अकेले रहते थे अब उन्हें बात करने वाला कोई  तो  मिला....!
   ... अस्सी साल की अम्मा को पचपन साल का डॉ बेटा क्या मिला ....बुढ़िया जी उठी...।
कुछ समय और बीता और विधि की विडंबना देखिए जो डॉक्टर सबकी जान बचाता था..... उसी को कोरोना हो गया। बहुत प्रयास के बावजूद भी उसकी जान बचाई ना जा सकी अंतिम समय में वह अपनी सारी संपत्ति बूढ़ी अम्मा को सौंप कर स्वर्ग सिधार गया। बुढ़िया ने अब बंगले को दीन दुखियों के लिए ''बेसहारा हाउस" के नाम से खोल दिया जिसको कहीं शरण न मिले वह ,बेसहारा हाउस, चला जाता और उसका सारा इंतजाम बूढ़ी अम्मा करती......।
..... बुढ़िया के बेटों अब सब पता लग चुका था कि मां मरी नहीं बल्कि उस की तो और भी अधिक मौज आ गयी है परन्तु लेने किस मुंह से जाएं... सोच कर कि समय आने पर मां ही काम आयेगी .. मां से कोई सम्पर्क तक नहीं किया........!
           समय का फेर देखो......... नंदप्रयाग में बादल फटने के कारण बुढ़िया के परिवार पर बज्रपात हो गया....और एक ही दिन में दिल दहला देने वाला बर्बादी का मंजर....।
 एक लड़के का तो पूरा परिवार ही नष्ट हो गया और दूसरा  भी बेसहारा हो गया ..........
 ...... शरण लेने के लिए बुढ़िया का छोटा बेटा  अपने परिवार को लेकर  बेसहारा हाउस पहुंचा.............।
.......कहने को बुढिया बहुत बूढ़ी हो चुकी थी परंतु उसके शरीर में अभी जान बाकी थी जब उसने अपने बेटे को देखा तो मानो उसके तन बदन में आग लग गयी .......दया उसके मन से मानों मर चुकी थी उसने गेट पर ही उसके परिवार को रुकवा दिया....."
.... हम बेसहारा हाउस में................  उन गरीबों के लिए जिनका दुनिया में कोई नहीं बचा.....को ही सहारा देते हैं........ इसमें ऐसे बेटों के लिए कोई स्थान नहीं....जो अपनी मां ...को. निर्दयतापूर्वक अस्पताल में  बेसहारा छोड़ कर चले जाय.....!" "मां को तुमने बर्षो पहले मार दिया.."..! अब  जाओ यहां से ।.....
........बेटा, मां के पैरों में गिर कर गिड़गिड़ाने लगा अंततः मां का ह्रदय द्रवित हो गया, फिर अन्य लोगों की भांति ही मां ने, अपने बेसहारा हाऊस में उसे भी जगह दे दी। आखिर मां तो मां ही होती है!

✍️ अशोक विद्रोही , 412, प्रकाशनगर, मुरादाबाद मोबाइल 82 188 25 541

बुधवार, 5 मई 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार केपी सिंह सरल की रचना ----क्षमा करो संसार को, बन्द करो उत्पात! कोरोना से जगत को, अब तो देउ निजात!!

 


गली मुहल्ले सूने हैं

     सूना लगता शहर ! 

दया करो प्रभु जगत पर, 

   रोको अपना कहर!!१

क्षमा करो संसार को, 

      बन्द करो उत्पात! 

कोरोना से जगत को, 

अब तो देउ निजात!!२ 

दया आपकी चाहिए, 

         ए मेरे घनश्याम!

सुख में भी नहिं भूलते, 

   कभीआपका नाम!!३ 

नीरवता सी छा रही, 

     चहुँदिश हाहाकार! 

बहुत दुखीअब हो चुका, 

         तेरा ये संसार!! ४

'सरल'आपके द्वार पर, 

       झुका रहा है शीश! 

रोकोअब इस मृत्यु को, 

     हे करुणा के ईश!!५



✍️ केपी सिंह 'सरल'       

मिलन विहार

 मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मंगलवार, 4 मई 2021

मुरादाबाद मंडल के जनपद सम्भल (वर्तमान में नोएडा निवासी) साहित्यकार अटल मुरादाबादी का गीत ---- मिट जाये कोरोना दानव,उस पर ऐसा वार करो। दुनिया में जो दीन दुखी हैं, उनका बेड़ा पार करो।।

  


बेच रहे जो माल ब्लैक में,उनका मां संहार करो।

दुनिया में जो दीन दुखी हैं,उनका बेड़ा पार करो।।


जीवन रक्षा दवा नहीं है,जीने को अब हवा नहीं।

लाइन में सब लोग खड़े हैं, लेकिन राहत नहीं कहीं।

राह दिखाकर कोई उत्तम,हे मां तुम उपचार करो।

दुनिया में जो दीन दुखी हैं,उनका बेड़ा पार करो।।


प्राणवायु की है अब किल्लत, तड़फ रहे हैं लोग यहां।

शासन भी अंधा बहरा है,जायें भी तो लोग कहां।।

शासन की आंखें बन जाओ,कुछ तो अब उपकार करो।

दुनिया में जो दीन दुखी हैं, उनका बेड़ा पार करो।।


भरे पड़े हैं अस्पताल सब,दुनिया ही अब रोगी है ‌।

भय से ही सब आतंकित हैं,चाहें संत या योगी है।।

मिट जाये कोरोना दानव,उस पर ऐसा वार करो।

दुनिया में जो दीन दुखी हैं, उनका बेड़ा पार करो।।


✍️ अटल मुरादाबादी

बी -142 सेक्टर-52

नोएडा उ ०प्र०

मोबाइल 9650291108,

8368370723

Email: atalmoradabadi@gmail.com

& atalmbdi@gmail.com


मुरादाबाद के साहित्यकार राजीव सक्सेना की कविता --- मृत्यु का कहर

 

  यह कैसा दौर है?

   यह कैसी हवा?

   पगलाई एम्बुलेंस में सिसकतेप

   अस्पतालों में 

   बेड पर दम तोड़ते

   विवश-निरुपाय इंसान हैं,

   बीमारों को नहीं है दवा।

   लोभी मानव 

   बने हैं दानव

   महंगाई की जय-जयकार है,

   अंत्येष्टि व्यापार है।

   गरीबी बेजार है।

   तार-तार मानवता की

   हृदयहीन खबरों से भरे

   चैनल और अखबार हैं।

  निरर्थक हैं प्रार्थनाएं,

  नग्न नर्तन करता कोरोना शैतान है।

   उसका पैशाचिक अट्टहास है,

   प्रकृति उदास है।

   साँसों में घुला जहर है

   और सन्नाटे की चादर में 

  लिपटा मेरा शहर है।

   मन में  फन काढ़े

   नागफनी आशंकाएं हैं।

   रक्तिम विषदंती चिंताएं हैं

   और भय की लहर है।

   चहुँ ओर करुण नाद है

  और तक्षक -सी डसती

   मृत्यु का कहर है। 

   श्मशानों में धधकती चिताएं हैं,

   अदृश्य रक्तबीज के यज्ञ में

   समर्पित मानव समिधाएं हैं।

  कंधों पर हरदम सवार

   एक अगिया बेताल है

   और दुनिया की बिगड़ी चाल है।

   आखिर इस दौर का

   कोई अंत तो होगा?

   तिमिर घनेरा ही सही

   धरती की कोख में

   कोई उजाला तो लिखा होगा।

   

✍️ राजीव सक्सेना, डिप्टी गंज,

मुरादाबाद 244001, उत्तर प्रदेश, भारत

सोमवार, 3 मई 2021

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिन्दी साहित्य संगम की ओर से रविवार दो मई 2021 को आयोजित ऑनलाइन कवि गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों की रचनाएं----


1-- है वो जोकर

      हमें खूब हंसता
      आँसू पीकर

2--  जाप करले
       तिलक लगाकर
       पाप करले

3--  न्याय मिलेगा
       चप्पल घिस गई
       कैसे चलेगा

4--  सत्य कहेगा
       अंधो की नगरी में
        कौन सुनेगा

5--  भोले चेहरे
       नहीं सुनेगा कोई
       सभी बहरे

  ===================           
                   
         क्यों भाई------!!!

एक व्यक्ति की
स्कूटर से
हो गई टक्कर,
वह बोला
उल्लू हो क्या ?
चल नहीं सकते देखकर ।
वह बोला
जी हाँ,
मुझे दिन बहुत खलता है,
रात में ही दिखता है ।
पर
तुम तो देख रहे थे,
साइड से
क्यों नहीं चल रहे थे ।
लगता है
हम दोनों
एक ही श्रेणी में आते हैं,
तभी तो बहुत
देर से लड़े जा रहे हैं,
एक दूसरे को
उल्लू कहे जा रहे हैं ।

✍️ अशोक विश्नोई, मुरादाबाद
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भीड़ से दूरी बनाओ,
       मास्क भी मुख पर धरो!
बढ़ रहा बेशक करोना,
           पर न तुम इससे डरो!

तेरी हिम्मत-तेरी मेहनत,
             रंग इक दिन लायेगी।
जब बहारें न रहीं तो,
             यह घड़ी भी जायेगी।।
लिख इवारत आसमां पर,
              जंग का ऐलां करो !
बढ़ रहा बेशक करोना,
           पर न तुम इससे डरो!

तम  घनेरे  चीर कर ,
           फिर से उजाले आयेंगे।
तीव्र रवि की रश्मियों में,
          शत्रु सब जल जायेंगे।।
जो मिले हैं काम तुमको ,
           खत्म  सब करते चलो !
बढ़ रहा बेशक करोना,
           पर न तुम इससे डरो !

है थका हारा मुसाफिर,
             और थक कर चूर है ।
पांव में अनगिन हैं छाले,
              चलने से मज़बूर है ।।
फिर भी हिम्मत बांध! उठ चल!,
           मंजिलों  की  ज़िद  करो !!
बढ़ रहा बेशक करोना,
              पर न तुम इससे डरो!

माना मौसम है खिजां का,
                और  बहारें  दूर हैं।
पर चमन महकेगा फिर से,
                कुदरती दस्तूर है।।
वागवां हो तुम चमन के!,
              सींचना न कम करो !
बढ़ रहा बेशक करोना,
              पर न तुम इससे डरो !!

तेरी हस्ती को मिटा दे ,
           ऐसी कोई शह नहीं ।
रब की इस दुनिया में ,
           कोई तेरे जैसा है नहीं।।
बाद जाने के भी बन के,
           गीत तुम गुंजा करो !!
बढ़ रहा बेशक कोरोना,
           पर न तुम इससे डरो !!

✍️ अशोक विद्रोही
412 , प्रकाश नगर,  मुरादाबाद,  मोबाइल फोन 82 188 25 541
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मौतों का सिलसिला जारी है
व्यवस्था की कैसी लाचारी है
आप सिर्फ शोक संदेश पढ़िये
आपकी इतनी ही जिम्मेदारी है

✍️ डॉ मनोज रस्तोगी, मुरादाबाद
Sahityikmoradabad.blogspot.com
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दिलों से दूरियाँ तज कर, नये पथ पर बढ़ें मित्रो।
नया भारत बनाने को, नई गाथा गढें मित्रो।
खड़े हैं संकटों के जो, बहुत से आज भी दानव,
सजाकर शृंखला सुदृढ़, चलो उनसे लड़ें मित्रो।
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कठिन समय में भूल कर, आपस की हर रार।
आओ मिल जुल कर करें, आशा का संचार।।

चाहे गूँजे आरती, चाहे लगे अज़ान।
मिल कर बोलो प्यार से, हम हैं हिन्दुस्तान।।

राजा-पापे-सोफ़िया, और मियाँ अबरार।
चलो मनाएं प्रेम से, हम सारे त्योहार।।

मत कर इतना चाँद तू, खुद पर आज गुमान।
फिर आयेगा जीतने, तुझको हिन्दुस्तान।।

हरे-भरे वन कट रहे, सिमट रही जलधार।
मानुष सुधरो अन्यथा, प्रलय खड़ी है द्वार।।

✍️ राजीव 'प्रखर'
(मुरादाबाद)
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रुलाया है जिसने हँसायेगा वो ही
ये तक़दीर बिगड़ी बनायेगा वो ही।

भरोसा हमेशा है रहमत पे उसकी
वबा के सितम से बचायेगा वो ही।

नसीबों ने माना, है पहचान खो दी
कि तदबीर फिर भी दिखायेगा वो ही।

हो साजिश अँधेरों की पुरज़ोर कितनी
उजालों का दीपक जलायेगा वो ही।

झुका दो ये सर अपना चौखट पे उसकी
उठाकर गले से लगायेगा वो ही।

✍️ मीनाक्षी ठाकुर,  मिलन विहार, मुरादाबाद
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जहाँ चाह है वहाँ राह है
सदियों से सुनते आये हैं
बढ़ते कदमों को तूफां भी
रोक भला कहाँ पाये हैं ।

चलते जाते जिनको चलना
नहीं बहाना उनको करना,
बढ़ते जाना बढ़ते जाना
नित नित आगे बढ़ते जाना,
बाधायें जितनी भी आयीं
वे विजय सभी पर पाये हैं ।।
बढ़ते कदमों को तूफां भी.......

नहीं डिगे हैं नहीं रुके हैं
नहीं थमें हैं नहीं थके हैं,
दर्द भूलकर बढ़े चले हैं
बढ़े चले हैं बढ़े चले हैं,
कर पराजित हर अटकन को
बस गान जीत के गाये हैं ।।
बढ़ते कदमों को तूफां भी.....

नेक इरादे अच्छी चाहत
करते नहीं कभी भी आहत,
राहें आसां बनतीं उनकी
देते हैं जो सबको राहत ,
मंजिल तक हैं वही पहुँचते
जो सच्ची लगन से धाये हैं ।।
बढ़ते कदमों को तूफां भी.....

✍️ डॉ रीता सिंह
आशियाना (मुरादाबाद)
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देर तक विपदा नही टिक पाएगी।
देखना इक दिन सुबह मुस्काएगी।

तेरी हिम्मत ही तेरा हथियार है,
दम से तेरे ये खत्म हो जाएगी।

योद्धा भी डर पाए कब इस काल से,
ये कलम तलवार से टकराएगी।

हैं अमर पग चिन्ह सुन इतिहास में,
जिस्म को ही मौत बस ले जाएगी।

हो गए कुर्बा जो राहे फ़र्ज़ में,
हर सदी उस नाम को दुहराएगी।

✍️ इन्दु रानी, मुरादाबाद
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देश ये फिर से यारों सँवर जाएगा।
जल्द ही ये करोना भी मर जाएगा।।

बात शासन की मानों मिरे दोस्तों।
गर न मानें मरज़ ये निगर जाएगा।।

रौशनी हर क़दम फिर से होगी यहाँ।
तीरगी से वतन जब उभर जाएगा।।

मारना है अगर मार नफ़रत को तू।
मारकर बेगुनह को किधर जाएगा।।

ज़ुस्तजू में जो रोजी की बेघर हुआ।
लौटकर आज अपने वो घर जाएगा।।

नासमझ बनके जो जाल फैला रहा।
खुद उसी जाल में फँस के मर जाएगा।।

जंग ग़ुरबत से भी आज है देख लो।
हौसला रख ये पल भी गुजर जाएगा।।

है मुझे ये शपथ आज के हाल पर।
अब न 'आनंद' कोई भी दर जाएगा।।

✍️ अरविन्द कुमार शर्मा "आनंद"
मुरादाबाद (उ०प्र०)
8979216691