सोमवार, 10 मई 2021

मुरादाबाद की साहित्यकार हेमा तिवारी भट्ट की कहानी- कटघरे में ममता*

 


    अपनी पहली संतान दो महीने की नवजात बेटी गुड़िया को सीने से लगाये रीना अक्सर उससे खूब बतियाती और भर भर कर अपना प्यार उड़ेलती रहती थी।उसका बचपन जैसे लौट आया था।पापा बताया करते थे,बचपन में कैसे वह प्लास्टिक की गुड़िया को गोद में लेकर पूरा दिन उसे सजाती,संँवारती,बतियाती और किसी के भी उसे छूने पर रोने लगती थी।अब वह रोती तो नहीं,पर रसोई बनाते या घर का काम समेटते हुए उसे जब कुछ समय को अपनी यह गुड़िया घर के किसी अन्य सदस्य की गोद में देनी पड़ती थी तो दसियों बार वह बीच बीच में आकर उसे बेसब्री से देखती,कसमसाती और जल्दी जल्दी काम निपटाकर पहले उसे गोद लेना चाहती।

    रोहन कहता,"अरे खाना तो खा लो पहले,फिर पकड़ लेना।" पर वह दौड़ती हुई सीधे माँ जी के पास जाती।सास टोकती,"अरे जा,पहले खाना खा ले।खाना खाते हुए बच्चे को पकड़ेगी क्या? कहीं नहीं जा रही तेरी बेटी,अपनी दादी की गोद में है और बहुत मज़े में है।क्यों बाबू,है ना।मेरा सोना बाबू....." 

    सास की बात बेमन से मानते हुए वह रसोई की ओर चल देती।रोहन चिढ़ाता,"मेरी बात तो नहीं सुन रही थी।सास का फरमान बड़ी जल्दी सुन लिया।वाह जी वाह..." वह रोहन को गुस्से में देखती पर अगले ही पल उसकी आंँखों में आँसू होते और पनीली आँखें लिए वह जल्दी जल्दी खाना खाने लगती।रोहन भी उसे देखकर भावुक हो जाता और समझाता,"रीना,ये बचपना ठीक नहीं है।हर माँ को अपने बच्चे से बहुत प्यार होता है,खासतौर पर जब वह उसकी पहली संतान हो।क्या मुझे अपने बच्चे से प्यार नहीं है?लेकिन रीना क्या केवल प्यार ही सब कुछ है।हमें अपने बच्चे को अच्छी परवरिश देनी है।उसका भविष्य भी संवारना है और ये काम हम उसे केवल हर समय गोद में लेकर नहीं कर सकते।दस दिन बाद तुम्हारी मैटरनिटी लीव पूरी होने वाली है।मैं भी अपनी ड्यूटी पर चला जाऊँगा।फिर तो हमें अपनी गुड़िया को माँ की गोद में ही देना होगा और फिर इसमें गुड़िया की भलाई ही तो छुपी है।उसे प्यार करने वाली अनुभवी दादी से ज्यादा भला और कौन उसका ख्याल रख सकता है? वैसे भी तुम ऑफिस में काम करोगी या गुड़िया का ख्याल रखोगी।तुम लकी हो कि तुम्हारे पास जॉइंट फैमिली है,केयर करने वाली सास है वरना न्यूक्लियर फैमिली वालों की ओर देखो जो बेबी सिटर्स के भरोसे अपने छोटे-छोटे बच्चे छोड़ कर नौकरी पर जाते हैं।" 

    रोहन ने रीना के आँसू पोछे और गले से लगा लिया।रीना हकीकत के सूखे रेगिस्तान की तपिश को महसूस करने लगी।इस तपिश ने उसके मन की कोमलता पर पपड़ी जमानी शुरू कर दी थी पर अपनी गुड़िया को गोद में लेते ही उसकी ममता का झरना फिर से बह निकलता था।

            आखिर वह दिन भी आ गया जब रीना को ड्यूटी जॉइन करनी थी।रीना ने सुबह जल्दी उठकर बच्ची की देखभाल में जरूरी लगभग सभी बंदोबस्त पूरे कर दिये ताकि उसकी बुजुर्ग सास को उसके आफिस से लौटने तक कोई दिक्कत न हो।सास की मदद के लिए उसने एक काम वाली बाई भी लगा दी थी।अपनी गुड़िया को गोद में लेकर उसने उसे खूब सारा प्यार किया और फिर अगले ही पल आँसू भरी आँखों और भरे मन से बेटी को अपनी सास की गोद में देकर वह आफिस को चल दी।

           वह दिन बहुत मुश्किल भरा बीता।घर पर गुड़िया के लिए गाय का दूध लगा दिया गया था ताकि बोतल से उसे गाय का पोष्टिक दूध पिलाया जा सके।पर गुड़िया के भविष्य की पुष्टता के फेर में उसके हिस्से का नैसर्गिक पोषण रीना के सीने से उतर कर उसके कपड़ों पर फिर रहा था।इधर दूध उतरता था उधर आँखों से आँसू।दोनों में होड़ लगी थी पर रीना के लिए दोनों को ही संभालना मुश्किल हो रहा था।उसकी सहेली रमा ने उसकी दशा समझी और बॉस से कहकर उसे जल्दी घर भेजने की गुजारिश की।

           "ठीक है,आज जाओ।पर ये रोज रोज नहीं चलेगा।"इस एहसान के बोझ तले दबी रीना घर आ गयी।अपनी गुड़िया को गोद में ले कर वह बहुत रोयी।पर फिर रोहन की भविष्य वाली बात और बॉस की चेतावनी को याद करके संभली,उसने गुड़िया को बोतल का दूध पिलाया और उसके हिस्से का दूध ब्रेस्ट पम्प से निचोड़कर नाली में बहा दिया। बहुत मुश्किल लम्हा था।पर मां की ममता पर हकीकत ने अपनी पहली खुष्क परत चढ़ा दी थी।हालांकि आंखों से रिसती ममता ने पूरी रात तकिये को नम रखा।

       धीरे धीरे आदतें बदलने लगीं।रीना का लौटा हुआ बचपना व्यस्क रीना से विदा लेकर फिर से बचपन में चला गया।वह रोबोट की तरह घर और आफिस के सारे काम समय से फिट रखती थी।शाम को लौटकर वह एक बार अपनी गुड़िया को गोद में लेती और फिर कुछ संभलकर वापस अपनी सास की गोद में देकर घर के कामों में लग जाती,उसे भय रहता कि कहीं गुड़िया की ममता उस पर हावी होकर उसके सुरक्षित भविष्य की राह का रोड़ा न बन जाय।

     समय बीत रहा था।रीना और रोहन ने अपनी बेटी को सुन्दर भविष्य देने का हर प्रबंध किया था।उसके लिए हर सुविधा उन्होंने जुटायी थी।अपनी बेटी की अच्छी परवरिश के लिए रीना ने अपनी सास की हर भली बुरी बात को आँख मूंद कर माना था,उनकी हर फरमाइश पूरी की थी और उनके हर ताने को नजरंदाज किया था।वह स्वयं में आश्वस्त थी कि उसने माँ होने का फर्ज ईमानदारी से निभाया है।लेकिन जैसे-जैसे गुड़िया बड़ी हो रही थी,वह अपने मम्मी पापा से अधिक समय की चाह रखने लगी थी।

        नौकरीपेशा दम्पत्ति हर सुविधा जुटा सकता था और इसकी कीमत वह नौकरी को समय देकर चुका रहा था,इसलिए अपनी बेटी को अतिरिक्त समय कहाँ से देता?

        एक दिन गुड़िया ने मम्मी से कहा,"मम्मी,कल आप दोनों को स्कूल आना है।मेरा प्रोग्राम है।आप आओगे न।" 

        "ओ वेरी नाइस बेटा! लेकिन कल मेरे आफिस में एक जरूरी मीटिंग है।इसलिए छुट्टी नहीं मिल पायेगी और तुम्हारे पापा भी लखनऊ ऑफिस के काम से जा रहे हैं,तो हम लोग नहीं आ पायेंगे।आप दादी को लेके जाना न,ठीक है।" 

        "नहीं मम्मा, आप चलना।आप हाफ डे लीव ले लेना बस।" 

        "नो बेटा !हाफ डे भी नहीं मिलेगा इस समय।आइ एम रियली सॉरी।"

     "अरे !कैसी माँ है,ये।बेटी गिड़गिड़ारही है और ये अंग्रेजी में गिटपिट कर रही है।अरे दादी तो पैदा होने से अब तक संभाल ही रही है।पर तूने क्या फर्ज निभाया है माँ का? बैग टाँगा और निकल लिये आफिस।दिन भर वहांँ कुर्सी तोड़ी और शाम को दो-दो रोटी डाल दी सबके आगे।बस हो गया सब काम।न मोह न ममता।बच्चे को अपने हाथों से पाला हो तब न उसके दर्द को,उसके दुख,उसके सुख को समझे।सचमुच इतनी पत्थर दिल औरत नहीं देखी मैंने।" सास ने तो अपनी रोज की ही टोन में बात कही थी,पर आज रीना की ममता कटघरे में थी।

         रीना को जोर का धक्का लगा,वह बेचैन हो गयी थी।वह उठकर अपने कमरे में चली गयी और खूब जोर जोर से रोने लगी।वह असहाय थी,आखिर अपनी ममता का सबूत कैसे दे।अपनी बेटी की अच्छी परवरिश के लिए उसने अपनी भावुक ममता को एक आधुनिक माँ के कर्तव्य में किस मुश्किल से ढाला था।ये दर्द,ये बलिदान कोई समझ सकता था क्या।

        वह ये सब सोच ही रही थी कि गुड़िया "मम्मी! मम्मी!" कहती हुई कमरे में दाखिल हुई।रीना ने जल्दी से अपने आंँसू पोंछे और बेड पर संभल कर बैठ गयी।गुड़िया ने पास आकर अपनी मम्मी के गालों पर प्यारा सा किस किया और गले लगकर आगे बोली,"मम्मी,आपको छुट्टी नहीं मिल रही है तो कोई बात नहीं,आप परेशान मत होओ।मैं आपको घर पर ही अपनी परफॉर्मेंस दिखा दूँगी,ओके।मैंने देखा है आपको आफिस का बहुत काम होता है।अगर आप आफिस नहीं जाओगे तो आपको सैलरी नहीं मिलेगी,सैलरी नहीं मिलेगी तो हम ये सब लाइफ कैसे इंजॉय करेंगे,है न।पापा ने मुझे सब समझाया है।आप मुझसे बहुत प्यार करते हो न,मम्मी।मैं सब जानती हूँ।आप दादी की बात का बुरा मत मानना,ठीक है।कल मदर्स डे के लिए प्रोग्राम था स्कूल में और मैं आपको सरप्राइज देना चाहती थी इसलिए जिद कर रही थी।" रीना ने अपनी गुड़िया को कस कर गले लगा लिया।खुशी के आँसू आंखों से उमड़ कर बहने लगे थे।मदर्स डे की पूर्व संध्या पर गुड़िया ने अपनी माँ की ममता को बाइज्जत कटघरे से बाहर निकाल लिया था।

✍️हेमा तिवारी भट्ट, मुरादाबाद

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