मंगलवार, 4 मई 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार राजीव सक्सेना की कविता --- मृत्यु का कहर

 

  यह कैसा दौर है?

   यह कैसी हवा?

   पगलाई एम्बुलेंस में सिसकतेप

   अस्पतालों में 

   बेड पर दम तोड़ते

   विवश-निरुपाय इंसान हैं,

   बीमारों को नहीं है दवा।

   लोभी मानव 

   बने हैं दानव

   महंगाई की जय-जयकार है,

   अंत्येष्टि व्यापार है।

   गरीबी बेजार है।

   तार-तार मानवता की

   हृदयहीन खबरों से भरे

   चैनल और अखबार हैं।

  निरर्थक हैं प्रार्थनाएं,

  नग्न नर्तन करता कोरोना शैतान है।

   उसका पैशाचिक अट्टहास है,

   प्रकृति उदास है।

   साँसों में घुला जहर है

   और सन्नाटे की चादर में 

  लिपटा मेरा शहर है।

   मन में  फन काढ़े

   नागफनी आशंकाएं हैं।

   रक्तिम विषदंती चिंताएं हैं

   और भय की लहर है।

   चहुँ ओर करुण नाद है

  और तक्षक -सी डसती

   मृत्यु का कहर है। 

   श्मशानों में धधकती चिताएं हैं,

   अदृश्य रक्तबीज के यज्ञ में

   समर्पित मानव समिधाएं हैं।

  कंधों पर हरदम सवार

   एक अगिया बेताल है

   और दुनिया की बिगड़ी चाल है।

   आखिर इस दौर का

   कोई अंत तो होगा?

   तिमिर घनेरा ही सही

   धरती की कोख में

   कोई उजाला तो लिखा होगा।

   

✍️ राजीव सक्सेना, डिप्टी गंज,

मुरादाबाद 244001, उत्तर प्रदेश, भारत

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