गुरुवार, 6 मई 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की कहानी ----बेसहारा हाउस..

 


 ''अरे कौन है वहां?..... कौन पड़ा हुआ है?....... यह कैसे लोग इकट्ठे हो रहे हैं?...... कैसा शोर है यह?"
     ...''कोई बुढ़िया है..... बेहोश! शायद कोविड से पीड़ित है!..... कोई रात में डाल गया अस्पताल के बाहर....!''
     "भाई जल्दी से अस्पताल के अंदर ले चलो शायद बच जाए इसकी सांसे अभी चल रही है"
 मास्क लगाए हुए लोगों ने बुढ़िया को उठाया और अंदर ले गए। ऑक्सीजन लगायी गयी। ट्रीटमेंट किया गया ।
  बहुत हल्की हल्की सांसे चल रहीं थीं.... झटके के साथ ! लगता है कोई इसका अपना ही यहां छोड़ गया और अपने आप को बचाने के लिए..... चला भी गया.... सोचा होगा मर जाएगी..... अस्पतालों में वैसे ही ऑक्सीजन की कमी है फिर ऊपर से इसका बुढ़ापा.... इसकी देखभाल कौन करेगा ?
        इंजेक्शन लगाए गए दवाइयां दी गईं अगली सुबह को बुढिया को होश आया।
      "अम्मा कहां की रहने वाली हो? "
"नंदप्रयाग! यह कौन सी जगह है?"
गोपेश्वर!
गोपेश्वर?..... मैं यहां कैसे पहुंची?....
गोपाल और सोनू कहां है मेरे बेटे? क्या मेरे साथ कोई भी नहीं आया?
नहीं!
धीरे-धीरे बूढ़ी अम्मा की हालत ठीक होने लगी उसके शरीर में ऑक्सीजन का लेवल भी ठीक होने लगा..... खाना पीना खाकर थोड़ी जान शरीर में आई फिर उसने कहा कि मेरे बेटों को बुलाओ ।
अम्मा पता नहीं तुम्हें छोड़कर कौन गया है.....?
        इस तरह लावारिस मुझे छोड़ कर चले गये ....!कोई  अपनी मां को ऐसे छोड़ता है क्या?
बूढ़ी अम्मा रोने लगती है !!!
     उसे यकीन ही नहीं होता अब उसके शरीर पर ना सोने के कंगन है 'न कानों में सोने की बाली , न गले की सोने की हसली । रोते-रोते कहने लगी ....."जब मेरे बेटो को ,मेरी बहुओं को मुझसे लगाव ही नहीं है....मेरी चिंता ही नहीं तो मैं जी कर क्या करूंगी ? इस भरी दुनिया में मेरा कौन है? जिसके लिए मैं जियूं ! 
      कहते कहते बुढ़िया बेहोश हो गयी! 
अगले दिन तक मन में निराशा ने इतना घर कर लिया था कि डॉक्टर ने लाख कोशिश की पर बुढ़िया के मुंह से एक शब्द न निकला .....
......... कुछ दिनों के बाद......... बुढ़िया का लग कर इलाज करने पर वह भली चंगी हो गयी...पर उसने घर वापस जाना स्वीकार नहीं किया.......।
..... सीनियर डाक्टर खुराना बुढ़िया के लाख मना करने पर भी अपनी कोठी पर ले गये...नौकर- चाकर सुंदर फूलों से सजा बंगला... बड़ा सा लांन बड़े-बड़े चार कमरों वाले बंगले में डॉ खुराना अकेले रहते थे अब उन्हें बात करने वाला कोई  तो  मिला....!
   ... अस्सी साल की अम्मा को पचपन साल का डॉ बेटा क्या मिला ....बुढ़िया जी उठी...।
कुछ समय और बीता और विधि की विडंबना देखिए जो डॉक्टर सबकी जान बचाता था..... उसी को कोरोना हो गया। बहुत प्रयास के बावजूद भी उसकी जान बचाई ना जा सकी अंतिम समय में वह अपनी सारी संपत्ति बूढ़ी अम्मा को सौंप कर स्वर्ग सिधार गया। बुढ़िया ने अब बंगले को दीन दुखियों के लिए ''बेसहारा हाउस" के नाम से खोल दिया जिसको कहीं शरण न मिले वह ,बेसहारा हाउस, चला जाता और उसका सारा इंतजाम बूढ़ी अम्मा करती......।
..... बुढ़िया के बेटों अब सब पता लग चुका था कि मां मरी नहीं बल्कि उस की तो और भी अधिक मौज आ गयी है परन्तु लेने किस मुंह से जाएं... सोच कर कि समय आने पर मां ही काम आयेगी .. मां से कोई सम्पर्क तक नहीं किया........!
           समय का फेर देखो......... नंदप्रयाग में बादल फटने के कारण बुढ़िया के परिवार पर बज्रपात हो गया....और एक ही दिन में दिल दहला देने वाला बर्बादी का मंजर....।
 एक लड़के का तो पूरा परिवार ही नष्ट हो गया और दूसरा  भी बेसहारा हो गया ..........
 ...... शरण लेने के लिए बुढ़िया का छोटा बेटा  अपने परिवार को लेकर  बेसहारा हाउस पहुंचा.............।
.......कहने को बुढिया बहुत बूढ़ी हो चुकी थी परंतु उसके शरीर में अभी जान बाकी थी जब उसने अपने बेटे को देखा तो मानो उसके तन बदन में आग लग गयी .......दया उसके मन से मानों मर चुकी थी उसने गेट पर ही उसके परिवार को रुकवा दिया....."
.... हम बेसहारा हाउस में................  उन गरीबों के लिए जिनका दुनिया में कोई नहीं बचा.....को ही सहारा देते हैं........ इसमें ऐसे बेटों के लिए कोई स्थान नहीं....जो अपनी मां ...को. निर्दयतापूर्वक अस्पताल में  बेसहारा छोड़ कर चले जाय.....!" "मां को तुमने बर्षो पहले मार दिया.."..! अब  जाओ यहां से ।.....
........बेटा, मां के पैरों में गिर कर गिड़गिड़ाने लगा अंततः मां का ह्रदय द्रवित हो गया, फिर अन्य लोगों की भांति ही मां ने, अपने बेसहारा हाऊस में उसे भी जगह दे दी। आखिर मां तो मां ही होती है!

✍️ अशोक विद्रोही , 412, प्रकाशनगर, मुरादाबाद मोबाइल 82 188 25 541

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