रविवार, 2 अप्रैल 2023

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष विजय त्यागी की ग़ज़ल.....मेरी तस्वीरों का चेहरा अक्सर ऐसा हो जाता है, जैसे कोई भूखा बच्चा रोते-रोते सो जाता है

 


मेरी तस्वीरों का चेहरा अक्सर ऐसा हो जाता है 

जैसे कोई भूखा बच्चा रोते-रोते सो जाता है


भोले पंछी लिख जाते हैं जिन पत्तों पर पते-ठिकाने वैरी सावन उन पत्तों को सांझ सवेरे धो जाता है


बर्फीली खामोश फिज़ा में तेरी आँखों का सन्नाटा

किसी परिन्दे की आहट से गहरी झील में खो जाता है।


मिट जाती हैं सब तहरीरें, धुंधला जाते हैं सब चेहरे जब भी कोई गम का सावन दिल का महमां हो जाता है। 


ऊँचे पेड़ों की बांहों में बांहें सोच समझकर डालो

पत्थर पर गिरने से शीशा टुकड़े-टुकड़े हो जाता है


✍️ विजय त्यागी

शनिवार, 1 अप्रैल 2023

मुरादाबाद के साहित्यकार राजीव प्रखर का मुक्तक ..... मैं राही हूं लेखन पथ का ....

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मुरादाबाद के साहित्यकार माहेश्वर तिवारी के पंद्रह नवगीत

 


(1) 

हम स्वयं से

हारते पल-पल

दिग्विजय के लिए निकले हैं


खोखली-सी

विजय-यात्राएं

हर पदानिक की

नजर में है

बैरकों से

निकलकर

सैनिक टुकड़ियां

यक्ष-प्रश्नों-सी

नगर में हैं

चुप्पियों को

सौंपकर हलचल

दिग्विजय के लिए निकले हैं


हवाओं में

तैरती कुछ

घोषणाएं हैं

अपीलें हैं

आसमानों में

कबूतर हैं ना गौरैया

सिर्फ उड़ती हुई

चीलें हैं

पांँव के नीचे

लिए दलदल

दिग्विजय के लिए निकले हैं


(2) 

बदल रही है

धीरे-धीरे

भीतर बाहर की सब दुनिया


कोने-कोने

टूट-फूट

मलवा बिखरा है

कुचला हुआ

पड़ा आखिर

किसका चेहरा है

गुमसुम बैठे

सोच रहे हैं

रामू-मुनिया


है दिमाग में

खालों में भुस

भरने की पूरी तैयारी

शो पीसों में

होंगे सब तब्दील

लग रहा बारी-बारी

आम आदमी

बुत परस्त हो

या निर्गुनिया


(3) 

बहुत दिनों के बाद

लौट कर

घर में आना

लगता किसी पेड़ का

फूलों, पत्तों, चिड़ियों से भर जाना


कपड़ों, बैग,

देह से सारी

गर्द झाड़ना गए सफर की

फिर से

शामिल हो जाना

उठ करके

दिनचर्या में घर की

लगता सब

छिलके उतारकर

अपने में अपने को पाना


जिन्हें पहनकर

बाहर निकले

वे चेहरे जारी लगते हैं

थम से गए

गीत के टुकड़े

कंठों में जारी लगते हैं

बातचीत के टुकड़े

बहसों का बुनकर

कुछ ताना-बाना


(4) 

पेड़ों का गाना

सुना है क्या


पत्तियां ताली

बजाती हैं

और सुर में सुर

मिलाती हैं

यह कभी हमने

गुना है क्या


दे हवा जब

टहनियों पर थाप

राग सजने लगे

अपने आप

क्षण कभी ऐसा

बुना है क्या


कंठ में लेकर

जिसे चिड़िया

घोंसले में देर तक

जिसको जिया

गीत वह हमने

चुना है क्या


(5) 

आ गए सपने सजा कर

बेचने वाले


तितलियों के पंख

गंधों की कथा

सोनपंखी धूप का

जो आंख में प्रतिबिंब था

आ गए सब कुछ उठा कर

बेचने वाले


हो गए तब्दील सारे

घर नई दूकान में

सज गए रिश्ते करीने से

रखे सामान में

आ गए सब कुछ चुराकर

बेचने वाले


(6) 

हम विनम्रता ओढ़े

कड़ी धूप में

खड़े रह


फूलों के मोहक

पहनावे

सुख के

बड़े-बड़े सब दावे

छाती-छाती धंँसे

हुए

दलदल में पड़े रहे


बातों के

पुल टूट गए हैं

लोग तटों पर

छूट गए हैं

धाराओं के

बीच सेतु

टूटे जो बड़े रहे


(7) 

मन के भीतर बैठी

नन्हीं चिड़िया गाती है

नए-नए रिश्ते

रचती

फसलों से, दानों से

सन्नाटे को चोंच

मारती

नए बहानों से

फूलों-पत्तों से बतियाती

फिर उड़ जाती है


सपने बुनती है

उड़ान के

सपनों में आकर

जब होता उदास मन

ऐसा करती है

अक्सर

आसमान को नाप-जोख कर

फिर आ जाती है


(8) 

रंगों से भर गई उंगलियां फिर

तितली के पर छूने वाली


कल थीं जो

खुरदुरे लगावों से छिलल गई

आज वही रंगों के

झरनों से मिल गई

फूलों सा आज हमें

कर गई उंगलियां फिर

तितली के पर छूने वाली


हंँसी हुई जंगल के

फूलों की ताज़गी

हो गई हथेली सूरज

मन सूरजमुखी

सूनेपन को आकर

भर गई उंगलियां फिर

तितली के पर छूने वाली


(9) 

इस तरफ हैं आज भी

सूखे दरख़्तों की कतारें

क्या पता नदियांँ कहांँ पर

रेत को नम कर रही हैं


बंद हैं अब भी

हरेपन से सभी संवाद

हर नया दिन धूप

पतझड़ का महज अनुवाद

पड़ रही है खेत में

हर रोज कुछ लंबी दरारें

क्या पता नदियांँ कहांँ पर

रेत को नम कर रही हैं


एक-सा चेहरा हुआ

कोंपल पुराने पात का

अब उजाला मानता

कहना अंँधेरी रात का

हर तरफ तुलसी बड़ी कातर

निगाहों से निहारे

क्या पता नदियांँ कहांँ पर

रेत को नम कर रही है


(10) 

हम नदी में पड़े पत्थर से

यहां से बहकर कहांँ जाएं


थरथरी बोकर

गुजर जातीं

सभी लहरें

हम नहीं बेतट

जहांँ कुछ देर तक

ठहरें

उम्र की चादर बहुत छोटी

मिली हमको

किस तरह से पांँव फैलाएं


पास आता है कभी

बहता हुआ तिनका

नाम दे जाता

हमें कुछ

फूल पत्तों का

है पड़े इस जल महल में कैद

वर्षों से मुक्ति के क्षण किस तरह आएं


(11) 

देखती है फूलघर को

टकटकी बांँधे

यह उतरती दोपहर-सी जिंदगी


फूलघर जो

एक सपना था सुबह का

हो गया है

अक्स उसका बहुत हल्का

मिली हमको

बंधु बचपन से अभी तक

एक रेगिस्तान के

लंबे सफर-सी जिंदगी


रेत जैसे

दांँत में चिपके हुए किस्से

बन गए सब

उम्र भर के हादसे-हिस्से

हम ना निर्वासित

नहीं है कैद फिर भी

जी रहे हम भी जफर-सी जिंदगी


(12) 

एक तुम्हारा होना क्या से

क्या कर देता है

बेज़ुबान छत-दीवारों को

घर कर देता है


खाली शब्दों में आता है

ऐसा अर्थ पिरोना

गीत बन गया-सा लगता है

घर का कोना-कोना

एक तुम्हारा होना

सपनों को स्वर देता है


आरोहों अवरोहों से

समझाने लगती हैं

तुमसे जुड़कर चीज़ें भी

बतियाने लगती हैं

एक तुम्हारा होना

अपनापन भर देता है


(13) 

मन का वृन्दावन हो जाना

कितना अच्छा है

धुला-धुला दर्पन हो जाना

कितना अच्छा है


चारों तरफ धुंध की

काली चादर फैली है

पूरनमासी खिली

चाँदनी मैली-मैली है

वंशी बनकर तुम्हें बुलाना

कितना अच्छा है

तुममें ही मिलकर खो जाना

कितना अच्छा है


सांस-सांस फिर महारास की

राधा बन जाना

जैसे मन का कोई 

पूरा हो जाए सपना

चले न कोई और बहाना

कितना अच्छा है

तुमको पड़े मुझे अपनाना

कितना अच्छा है


(14) 

बहुत दिन बीते

कि आया ख़त नहीं

कोई तुम्हारा


डाकिया चुपचाप आकर

गुज़र जाता है

दोपहर की धूप

तीखी और लगती

पूछने पर जब कभी वह

मुस्कुराता है

अक्षरों की खुशबुएँ

ताज़ा गुलाबों-सी

क्यों नहीं मिलतीं भला

हमको दोबारा


तीर-सी चुभने लगें

पुरवाईयाँ भी

ऊब उकताहट भरी-सी

चुप्पियों में ठूंठ होकर

रह गईं अमराईयाँ भी

धड़कनों में

आहटें बुनता हुआ

गांधार कोमल

खो गया संगीत

जो कल था

हमारा


(15) 

मैना री

पिंजरे की भाषा मत बोल


सारा आकाश यह

तुम्हारा है

फूलों की खुशबू से तर

आवाज़ों की कोमल टहनी

धड़कन तेरी

हरियाली है तेरा घर

मैना री

अपने को भीतर से खोल


भला नहीं लगता है

कण्ठ से तुम्हारे अब

सुने हुए को बस दुहराना

स्वर के गोपन रेशे-रेशे से

परिचित हो

ठीक नहीं उसे भूल जाना

मैना री

ऐसे घट जाएगा मोल


गुरुवार, 30 मार्च 2023

मुरादाबाद मंडल के गजरौला (जनपद अमरोहा) की साहित्यकार डॉ मधु चतुर्वेदी का गीत ......चांदनी रात हो, आपका साथ हो, रोज यूं जिंदगी से मुलाकात हो ....

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✍️🎤 डॉ. मधु चतुर्वेदी

गजरौला गैस एजेंसी चौपला,गजरौला

जिला अमरोहा 244235

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नंबर 9837003888

मुरादाबाद के साहित्यकार धन सिंह धनेंद्र की लघुकथा ...…झटका

         


रजत सरकारी विभाग में सामान्य लिपिक के पद पर था। उसने अपने वेतन से कभी कुछ नहीं निकाला।  उसकी ऊपर की कमाई बे-हिसाब थी। उसी से उसका घर-बाहर का सारा खर्चा चलता था। उसके शौक महंगे थे। रजत की पत्नी कामिनी भी कहीं कम नहीं थी। अपनी पसंद के पहनावे से लेकर ज्वैलरी और मेक-अप आदि पर खुल कर खर्च करती। उसके पास एक से बढ़ कर एक ब्राडेड कंपनी का सामान रहता। वह तीन-तीन किटी पार्टिंयों की सदस्य भी थी।  

         महिला डाक्टर ने कामिनी को अगले माह के आखिर में शिशु पैदा होने की संभावित तिथि दी थी। डिलीवरी के लिए उसने शहर के सबसे बडे और मँहगे अस्पताल का चयन कर एडवांस धन जमा कर दिया और नियमित डाक्टरी सलाह ले रही थी। शिशु के जन्म पर दोनों पति-पत्नी जन्मोत्सव मनाने के अभी से ऊंचे-ऊंचे स्वप्न संजोने में लगे थे। उसको बाहर घूमने-फिरने के लिए सख्ती से मना किया गया था लेकिन आज तो अपने भाई के 'वैवाहिक सालगिरह' के समारोह में  उसको हर हाल में जाना था। उसने इसकी  पहले से सब तैयारी कर रखी थी। उसे क्या पहनना है? रजत क्या पहनेगा? इस बारे में वह बडी उत्सुक थी । भाई के लिए महंगे से महंगे उपहार भी खरीद लिये  थे। बिना मेहनत की कमाई हुई धन-दौलत से खुशियां खरीदने का जब कोई अभ्यस्त हो जाता हैं तब उसका ज्ञान व विवेक मर जाता है। कामिनी भी अपने मायके में अपनी शान-शौकत का दिखावा करने हेतु अति उत्साहित थी।

         रजत को आफिस से आने में देर होती जा रही थी। घडी़ की सुई के साथ-साथ कामिनी का पारा भी बढ़ता जा रहा था। उसके चेहरे पर  क्रोध व चिंता के लक्षण एक साथ दिखने लगे थे।  वह कितनी बार रजत को फोन कर चुकी थी लेकिन फोन मिल कर ही नहीं दे रहा था। कुछ देर बाद फोन भी बंद जाने लगा। अब तो कामिनी की परेशानी और अधिक बढ़ गई। वह कुछ समझ नहीं पा रही थी कि क्या किया जाय।

         वह बार-बार दरवाजे और खिडकिंयों में झांकती कभी बैठ कर फोन लगाने की कोशिश करती । अचानक उसके मोबाइल की घंटी बजी। उसने तेज कदमों से जाकर डाइनिंग टेबिल पर रखा अपना फोन उठाया। 

... हेलो। दूसरी तरफ से एक कड़कदार आवाज आई।

....आप रजत की पत्नी बोल रहीं है क्या? वह लडखडाती हुए बोली ... हां..आप कौन? ....देखिये मैं पुलिस आफीसर बोल रहा हूं। हमने अभी-अभी आपके पति रजत को 50000 रुपये रिश्वत लेते रंगे हाथों  गिरफ्तार किया है...... यह सुनते ही उसके हाथ से मोबाइल छूट कर गिर पडा।एक झटके में कामिनी औंधे मुंह फर्श पर आ गई-

                     

✍️ धनसिंह 'धनेन्द्र '

श्रीकृष्ण कालोनी, चन्द्र नगर,

मुरादाबाद244001

उत्तर प्रदेश, भारत

बुधवार, 29 मार्च 2023

मुरादाबाद के साहित्यकार राजीव प्रखर का मुक्तक .....बचपन

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वाट्स एप पर संचालित समूह साहित्यिक मुरादाबाद में प्रत्येक मंगलवार को बाल साहित्य गोष्ठी का आयोजन किया जाता है। प्रस्तुत हैं 28 मार्च 2023 को आयोजित गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों की बाल कविताएं ....


सुंदर झरना जल बरसाता ।

कलकल करके बहता जाता।

सूरज के रंगों से मिलकर
बन जाता रंगों का संगम,
कभी न रुकता बाधाओं से
राहें हों कितनी भी दुर्गम,
हर पत्थर को भेद-भेदकर
आगे चलता , वेग बढ़ाता ।

कोमल जल है फिर भी देखो
दूर हटाता पत्थर को भी,
मृदुता का आदर करने का
पाठ पढ़ाता भूधर को भी,
जल की मृदुतामय दृढ़ता को
भूधर भी तो शीश झुकाता ।

हे नन्हे-प्यारे मानव तुम
दृढ़ विश्वास बनाए रखना ,
कष्ट पड़ें चाहे कितने भी
मानवता से कभी न हटना ,
पक्का- नेक इरादा ही तो
हर मुश्किल को सरल बनाता ।

✍️ ओंकार सिंह 'ओंकार'
1-बी-241 बुद्धि विहार ,मझोला,
मुरादाबाद 244103
उत्तर प्रदेश, भारत

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जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
छोटे बड़े सभी कर्मों में , छिपे ज्ञान का सार बताया।
सबको बैठाकर दादा जी , समय-समय पर यज्ञ कराते।
पढ़कर मन्त्र डालते वे घी, सबसे सामग्री डलवाते।
इसका कारण जब पूछा तो, पापा ने समझाया मुझको,
यज्ञ कर्म है एक अनोखा, जिससे कई लाभ हम पाते।
हुए चिकित्सा में शोधों ने , इसे कर्म उत्तम बतलाया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
यज्ञ कर्म जब करता मानव, निकट प्रकृति के खुद को पाता।
हो जाते रोगाणु नष्ट सब, सभी वायरस मार गिराता।
जब-जब होता यज्ञ धरा पर , आक्सीजन की मात्रा बढ़ती,
घी- सामग्री के जलने से , वातावरण शुद्ध हो जाता।
वैज्ञानिक भी मान गये हैं, यज्ञ और मन्त्रों की माया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।
पावन कर्म यज्ञ का जो जन, करता है अपने जीवन में।
भाव जगाता पूर्ण विश्व की, रक्षा का वह अपने मन में।
ध्वनि तरंग को मन्त्रों की जब, बड़े-बड़े वैज्ञानिक मापे,
हुए बहुत आश्चर्यचकित वे, मिला गूँजता ओम गगन में।
सच्चे मन से यज्ञ किया जो, इसका फल वह निश्चित पाया।
जब भी मौका मिला पिता ने, एक नया तब पाठ पढ़ाया।

✍️मनोज मानव
बिजनौर
उत्तर प्रदेश, भारत

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होली पर बरसात हो , बरसें ऐसे रंग
नीले पीले बैंजनी , रह जाएँ सब दंग
रह जाएँ सब दंग ,पेड़ पर गुँझियाँ आएँ
तोड़ें बच्चे ढेर ,पेट भर – भर कर खाएँ
कहते रवि कविराय ,कन्हैया करो ठिठोली
उड़ें हवा में लोग , मनाएँ नभ में होली

✍️ रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा
रामपुर
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल 9997615451

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माँ देखो-देखो बिल्ली आईं।
दे दो इसको दूध - मलाई।।

बोर्नबीटा का दूध  पिला दो।
बिस्कुट-चाकलेट दिला दो।।

लंच-डिनर खूब खिला दो।
खिला-पिला इसे हिला लो।।

वरना ये उत्पात करेगी
खाकर चूहे पेट भरेगी

हो ना जाये यह मांसाहारी।।
बिल्ली मौसी लगती प्यारी।।

✍️ धनसिंह 'धनेन्द्र'
चन्द्र नगर, मुरादाबाद

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सबसे अच्छा  पढ़ना पढ़ाना,
सबसे बुरा आपस में लड़ाना।
घर में जो भी आये अतिथि,
इज्ज़त से ही उसे बिठाना।
पहले उसको पानी पिलाना,
फिर मम्मी पापा को बुलाना।
मृदु भाषी बनकर बच्चों,
सबके दिल में जगह बनाना।
कटु वचन न कहना किसी से,
जो रूठा है उसे मनाना।
नानी के घर भी जाना तो,
साथ में बस्ता लेकर जाना।
खेल कूद भी बुरा नहीं है,
लेकिन पहले पढ़ना पढ़ाना।

✍️कमाल ज़ैदी "वफ़ा"
सिरसी (संभल)
मोबाइल फोन 9456031926

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माना मैं नन्हीं बच्ची हूं,
किचिन है लेकिन मेरा बढ़िया
इसमें खाना शुद्ध मिलेगा,
फलाहार भी खूब मिलेगा ।

नवरात्रि के दिन है तो क्या
कूटू-मेवा खीर मिलेगी
किचिन में रखती  साफ-सफाई
खूब  मिलेगी  दूध  मलाई ।

दादी दादा ,मम्मी  डैडी
या कोई हों अंकल आंटी
माता के है दिन ये सारे
गाएं भजन सभी मिल सारे
     महिमा न्यारी जग माता की
     बोलें सब मिल जय माता की ।

✍️ उमाकान्त गुप्त
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

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मन करता है हम सब बच्चे मिलकर फौज बनाऐं!
सुबह सवेरे नगर नगर में, रोज प्रभाती गायें!
भेदभाव और ऊंच नीच का, मन  से भेद मिटायें!
एक बने और नेक बने की, घर घर अलख जगाएं!
मां बाबू के संकट में हम, उनका हाथ बटाएं !
अगर देश के काम आ सकें, तो सीमा पर हम जाएं!
घायल सैनिक जो  हों, उनकी सेवा में लग जाएं !
देश की खातिर लिए तिरंगा, आगे बढ़ते जाएं!
अवसर मिले हमें भी तो, हम हंस कर प्राण गवाएं!
लिपट तिरंगे में हम अपना, जीवन सफल बनाएं!!

✍️अशोक विद्रोही
412 प्रकाश नगर
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

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चीं चीं चीं चीं गाए चिड़िया
दाना चुग-चुग खाए चिड़िया
मुनिया उसको पकड़ न पाए
फुर -फुर है उड़ जाए चिडिय़ा ।

चुन चुन तिनका लाए चिड़िया
सुंदर नीड़ बनाए चिड़िया
उड़ती फिरती कसरत करती
हिल-मिल प्यार बढ़ाए चिड़िया ।

सुबह सवेरे आए चिड़िया
मीठा गीत सुनाए चिड़िया
राजू जगो भोर है प्यारी
सबके मन को भाए चिड़िया ।

✍️डॉ रीता सिंह
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

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जंगल में क्यों मची है धूम
हलवा पूरी बंटी है खूब
हाथी भालू चीता बंदर
नाच रहे सब मस्त कलंदर
चीं चीं चिड़िया तान लगाती
कोयल मधुर गीत सुनाती
भालू ढोलक खूब बजाता
बंदर उछल उछल मुस्काता
जैसे परीक्षाएं हो गई खत्म
नाच रहे सब मस्त मलंग

✍️ मीनाक्षी वर्मा
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

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नटखट भैया गुस्से में है,

कैसे उसे मनाए दीदी।

वैसे इतना प्यारा देखो,
जब चाहे घर पर आ जाये।
अगर समय हो तो जी भर कर,
भेजा भी सबका खा जाये।
मगर व्यस्तता भी जीवन में,
क्या उसको समझाए दीदी।
नटखट भैया गुस्से में है,
कैसे उसे मनाए दीदी।

खैर खबर लेने की सबकी,
जब-जब उसने फ़ोन घुमाया।
भागा उल्टे पैरों देखो,
मायूसी का दंभी साया।
बैठा भूखा गाल फुलाकर,
क्या अब खुद भी खाये दीदी।
नटखट भैया गुस्से में है,
कैसे उसे मनाए दीदी।

लो जी एक तरीका सुझा,
बैठक सबकी आज जमाएं।
सुनना और सुनाना भी हो,
नाचें कूदें खाएं-गाएं।
अगर न मुस्काया फिर भी वो,
सोच-सोच घबराए दीदी।
नटखट भैया गुस्से में है,
कैसे उसे मनाए दीदी।

✍️ राजीव प्रखर
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

सोमवार, 27 मार्च 2023

वाट्स एप पर संचालित समूह साहित्यिक मुरादाबाद की ओर से माह के प्रत्येक रविवार को वाट्सएप कवि सम्मेलन एवं मुशायरे का आयोजन किया जाता है । रविवार 26 मार्च 2023 को आयोजित 349 वें वाट्स एप कविसम्मेलन एवं मुशायरे में शामिल साहित्यकारों डॉ पुनीत कुमार, रवि प्रकाश, दुष्यंत बाबा,नृपेंद्र शर्मा सागर, हेमा तिवारी भट्ट, विवेक आहूजा, डॉ रीता सिंह,डॉ अनिल शर्मा अनिल, संतोष कुमार शुक्ल संत, राजीव प्रखर, मनोरमा शर्मा, कमाल जैदी वफा और सरिता लाल की रचनाएं उन्हीं की हस्तलिपि में
















रविवार, 26 मार्च 2023

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की व्यंग्य कविता .....अभिव्यक्ति की आजादी


हम जंगली जानवर हैं

हमारे जंगल में भी

अभिव्यक्ति की है आजादी 

लेकिन कोई किसी पर

अकारण नहीं चिल्लाता है

ना किसी का अपमान करता है

ना किसी की भावनाओं का

मजाक उड़ाता है

ये हमारे

जंगल की संस्कृति है

सारे जानवरों में

इसे स्वेच्छा से

अपनाने की प्रवृति है


जब कोई इंसान 

अभिव्यक्ति की आजादी

के नाम पर

दूसरे के चरित्र पर

कीचड़ मलता है

हमको हमारा

जंगली जानवर होना

बहुत अच्छा लगता है।


✍️ डॉ पुनीत कुमार

T 2/505 आकाश रेजीडेंसी

मुरादाबाद 244001

M 9837189600

मुरादाबाद मंडल के कुरकावली (जनपद संभल )निवासी साहित्यकार त्यागी अशोका कृष्णम् के नौ दोहे


माता के हर रूप में, ममता का भंडार।

कृष्णम् बच्चों को सदा, करती लाड़ दुलार।।1।।


मातृशक्ति का जो करें, जन, मन से गुणगान।

चाकर बन उनके रहें, सुख के सब सामान।।2।।


भक्तों को जगदंबिका, होती कोमल फूल।

दुष्टों को चुभती मगर, जैसे घातक शूल।।3।।


पूछ रहा माँ आपसे, मैं बालक निष्पाप।

किन कर्मों के भोगता, जन्म-जन्म अभिशाप।।4।।


दया करो माँ शारदे, फटी बिवाई पाँव।

उखड़ी-उखड़ी साँस है, दूर बहुत है गाँव।।5।।


माँ तुमने सब कुछ दिया, किए बहुत उपकार।

नमन आपको मैं लिखूँ, अगणित बारम्बार।।6।।


क्योंकर माँ के सामने, करनी ऊँची बात।

माता को सब कुछ पता, कैसी किस की जात।।7।।


आँसू मेरे कर रहे, आज मुझे बदनाम।

आँचल में देकर शरण, हर लो कष्ट तमाम।।8।।


प्राणों तक की भी कभी, माँग न पाए भीख।

कृष्णम् को दे दीजिए, माँ इतनी सी सीख।।9।। 


✍️त्यागी अशोका कृष्णम्

कुरकावली, संभल

उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद मंडल के जनपद संभल निवासी साहित्यकार अतुल कुमार शर्मा का यात्रा वृतांत.... यादगार रहा नेपाल-भारत साहित्य महोत्सव

नेपाल जाते समय अपने घर से निकलने पर मुझे ऐसे लग रहा था जैसे कोई परीक्षा देने जाना है दिमाग में यही चल रहा था कि कोई जरूरी सामान छूट न जाए। दूर जगह और दूसरा देश। अपने देश की तस्वीर दूसरे देश में प्रस्तुत जो करनी थी चाहे कविता के रूप में, चाहे पहनावे के रूप में या फिर सभ्यता के रूप में। रास्ते में ही पता चला कि हमारा मुख्य हथियार यानि 'कलम' हमसे घर पर ही छूट चुका था, हालांकि यह कोई बहुत बड़ी बात नहीं थी, कोई भी पैन पांच-दस रूपए का कहीं से भी खरीद सकता था लेकिन पता नहीं क्यों ,मन में निश्चय कर लिया कि यह पूरी यात्रा बिना कलम के ही करूंगा। 

हमें अलीगढ़ से जोगबनी तक ट्रेन से जाना था और ट्रेन जाने का समय सुबह 9:30 था ,हम कहीं लेट न हो जाएं इसलिए रामपुर के वरिष्ठ गीतकार श्रद्धेय शिवकुमार चंदन जी को अपने घर पर रात्रि में ही बुला लिया था। 16मार्च की सुबह 6:00 बजे से पहले ही,हम लोगों ने बहजोई के ख्याति प्राप्त साहित्यकार श्री दीपक गोस्वामी चिराग जी का दरवाजा खटखटाया। हो सकता है उनकी श्रीमती जी ने कहा भी हो कि यह लोग न खुद सोएंगे, न हमें सोने देंगे, क्योंकि सुबह की नींद का तो आनन्द ही कुछ और होता है।

 कुछ ही देर में साहित्य के हम तीनों सिपाही अलीगढ़ की बस में सवार हुए और समय से पहले स्टेशन पहुंच गए। 'भारतीय रेलवे लेटलतीफी व्यवस्था' का सम्मान करते हुए, ट्रेन निर्धारित समय से मात्र 20 मिनट लेट थी। रेंगती हुई ट्रेन में हम लोग सवार हो गए और ट्रेन झूंमती-झांमती जोगबनी को रवाना हुई। कहीं अंगड़ाई लेती नजर आती तो कहीं स्पीड पकड़ लेती और जहां उसे याद आ जाता कि उसका नाम एक्सप्रेस भी है तो अपने नाम का सम्मान करते हुए थोड़ा और तेज चल जाती। प्रयागराज ,पंडित दीनदयाल उपाध्याय जंक्शन , मीरजापुर आदि होती हुई ट्रेन 25 घंटे की यात्रा पूरी करके जोगबनी स्टेशन पहुंच गई ।बॉर्डर पर ऊंचा तिरंगा देखकर हमारा सीना फूलता महसूस हुआ और फिर शीघ्र ही हमने नेपाल देश की सीमा में कदम रखा, रिक्शे से विराटनगर (महानगरपालिका) शहर पहुंचे।

हमें नेपाल भारत साहित्य महोत्सव में प्रतिभाग करना था, सीधे कार्यक्रम स्थल पर पहुंचे। श्री रामजानकी मंदिर के पास होटल में कमरा नंबर 13 में, हमारे ठहरने की व्यवस्था थी। तरोताजा होने के बाद हम लोग, श्री रामजानकी मन्दिर में दर्शन करने के उपरान्त, कार्यक्रम में पहुंचे। प्रोफ़ेसर देवी पन्थी जी अपना उद्बोधन दे रहे थे, देखते ही हमारे नाम पुकारे और रुद्राक्ष माला पहना कर व तिलक लगाकर हम सबका स्वागत किया। इस उद्घाटन सत्र में "हिन्दी और नेपाली भाषा का जुड़ाव" विषय पर चर्चा चल रही थी, वक्ताओं ने अपने-अपने सारगर्भित विचार रखे। भारत के सिक्किम, मिजोरम, हरियाणा, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, असम, मध्य प्रदेश आदि राज्यों के अतिरिक्त नेपाल के दूरदराज क्षेत्रों से भी साहित्यकार इस महोत्सव में पहुंचे हुए थे। वक्ताओं में कुछ जमकर नेपाली भाषा का इस्तेमाल कर रहे थे और भारतीय वक्ता अपने-अपने क्षेत्रों के इतिहास से जोड़कर, हिन्दी भाषा में धाराप्रवाह बोल रहे थे। हाॅल में सूनापन बिल्कुल नहीं था, क्योंकि जब नेपाली बोलते तो नेपाली भाषा के चहेते चहकने लगते, और जब कोई हिन्दी भाषी बोलते तो हिन्दी प्रेमी लोग तालियां बजाते। कुछ ऐसे भी थे जो दोनों भाषाओं पर अधिकार और ज्ञान रखते, तो वे करतल ध्वनि से दोनों ही भाषाओं का सम्मान बढ़ा देते।

प्रथम दिवस में ही काफी कलमकारों ने अपनी रचनाएं पढ़ीं, अनूठा माहौल बना हुआ था, इतने में ही संचालक महोदय ने मेरे नाम को बोलते हुए, मंच पर अपना स्थान लेने की बात कही, लेकिन हमें अपने कानों पर यकीन नहीं हो रहा था क्योंकि पूरा हॉल उच्च स्तर के वरिष्ठ कलमकारों से भरा हुआ था,न जाने किस दृष्टिकोण से उन्होंने मुझे मंचस्थ करने का फैसला लिया होगा? खैर हम मंच की ओर बढ़ चले और अपनी जगह ले ली। इतने में ही काठमांडू से आए त्रिभुवन विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एवं वरिष्ठ गज़लकार डॉ घनश्याम परिश्रमी जी को मंच पर आमंत्रित किया गया, मैं उनसे पूर्व परिचित था, वे मेरे पास ही सटकर बैठ गए। अब उस सत्र में अपनी प्रस्तुति देने वालों को सम्मानित करने का जिम्मा, मंच पर मौजूद लोगों का ही था। अंत में मंच के लोगों के बोलने का क्रम शुरू हुआ, जिसमें हमने भी अपने कुछ मुक्तक और छोटी सी रचना प्रस्तुत की ,जिसमें भारतीय संस्कृति को पटल पर रखने की पूरी कोशिश की गई थी। सदन का भरपूर स्नेह मिला और फिर नेपाल-भारत साहित्य महोत्सव के आयोजक मंडल ने अंगवस्त्र ,प्रमाण पत्र व स्मृति चिन्ह भेंट किए। तमाम वरिष्ठ साहित्यकारों ने अपने गीत,गजल ,हास्य-व्यंग्य आदि पेश किए ,कुछ युवा कलमकार भी थे, ऐसे खुशनुमा माहौल में साहित्य की लहलहाती फसल देखकर, मेरा मन बहुत प्रफुल्लित था।

दूसरे दिन नाश्ते के बाद कार्यक्रम विधिवत प्रारंभ हुआ जिसमें बहजोई के वरिष्ठ साहित्यकार श्री दीपक गोस्वामी चिराग और रामपुर के जाने-माने गीतकार श्री शिवकुमार चंदन जी को पूरे मान-सम्मान से मंचस्थ किया गया था,मुझे लगा कि नेपाल में पहुंचकर मेरा भारत सिंहासन पर विराजमान है। चारु विधा के जनक प्रोफेसर देवी पन्थी जी संचालन कर रहे थे ,नेपाल और भारत के विभिन्न राज्यों से कुछ अतिथि साहित्यकारों को भी मंचित किया गया और फिर सुनने-सुनाने का क्रम चलता रहा, खूबसूरत माहौल का आनंद लेने के बाद दूसरे दिन के कार्यक्रम को संपन्न किया गया।

शाम को बाजार घूमने निकल पड़े क्योंकि मेरा एकादशी का व्रत था,ऊर्जा हेतु कुछ फल या मिठाई खरीदने थे। बाजार में हर जगह भारतीय और नेपाली मुद्रा के लिए दिमाग लगाना पड़ता और फिर वहां महंगाई सिर चढ़कर बोल रही थी, फलों के भाव सुनकर भूख अपने आप विदा हो गई फिर भी कुछ संतरे ,अंगूर और मिठाई खाकर व्रत पूर्ण किया। मैंने महसूस किया कि स्थानीय लोगों में कठोरता बिल्कुल नहीं थी और न ही कोई चालाकी। कई सरल-हृदय लोगों से संपर्क हुआ उनमें हमारे प्रति सम्मान की भावना झलकती, यानि वहां के अधिकांश लोग दिल के धनी थे। एक जगह जरूर ऐसा मौका आया,  जहां रिक्शेवाले ने हमें बाहरी समझते हुए, चार सौ की जगह एक हजार रूपये भाड़ा मांगा, वहां हमने भी स्वयं को विदेशी स्वीकार करने में देर नहीं लगाई।

हिन्दी भाषा के चलन को लेकर वाकई नेपाल देश की भूरि-भूरि प्रशंसा करनी होगी कि वहां पर आज भी मुद्रा पर हिन्दी अंकों का चलन है और वाहनों पर लगी नंबर प्लेट पर नम्बरों को, देवनागरी लिपि में ही लिखा जाता है,इस विषय पर मैं कहूंगा कि भारत सरकार को भी यह शिक्षा लेनी चाहिए ताकि हिन्दी को बढ़ावा दिया जा सके।

तीसरे दिवस नाश्ते में पतली-पतली करारी जलेबी और चने की दाल के साथ कचौड़ी का लुफ्त लेने के बाद कार्यक्रम हॉल में पहुंचे, आज समापन-सत्र था और हम "क्या खोया-क्या पाया" जैसे विषय पर , मन-मन ही मंथन कर रहे थे। देखा तो क्रान्तिकारी साहित्य अकादमी के संस्थापक व कार्यक्रम संयोजक डॉ विजय पंडित आज का संचालन कर रहे थे। सदन में, नेपाली और हिंदी भाषा में लिखी पुस्तकों का, एक-दूसरी भाषा में अनुवाद को लेकर चर्चा जारी थी। प्रश्नोत्तर चल रहे थे, समस्याओं के समाधान हेतु मंच पर डॉ घनश्याम परिश्रमी जी के साथ ही हिन्दी और नेपाली भाषा के विशेषज्ञ मौजूद थे। धीरे-धीरे कार्यक्रम समापन की ओर बढ़ता चल रहा था,अंत में सभी एक दूसरे को विदा करने और मोबाइल नंबर का आदान-प्रदान करने में व्यस्त दिखाई पड़े।

 हमने कार्यक्रम के उपरान्त शहर के निकट, राजा विराट के महल के भग्नावशेष देखने का निश्चय किया, जो उस स्थान से 8 किलोमीटर की दूरी पर, यादव जाति बाहुल्य गांव भेड़ियारी में था। गांव पहुंचने पर देखा कि चारदीवारी में खंडहरनुमा अस्त-व्यस्त टीला और पड़ोस में माता भुवनेश्वरी का मंदिर और विराटेश्वर महादेव का मंदिर बना था। इस स्थान के संरक्षक श्री कमल किशोर यादव जी से मुलाकात हुई जिन्होंने निजी स्तर पर कुछ पुराने अवशेष एकत्रित कर रखे थे, जैसे - नापतोल के बाट, प्राचीन शिलालेख, सिलौटा, मूर्तियां, हाथी दांत का पासा, तांबे व अन्य धातु के सिक्के, मूंगा रत्न आदि। सरकार की उदासीनता पर यादव जी खासे नाराज दिखे हालांकि कुछ समय पहले ही प्रशासन ने राजा विराट के नाम पर संग्रहालय और उसके सामने चौक में राजा विराट की प्रतिमा स्थापित की है।

बताया जाता है कि जोगबनी का प्राचीन नाम सुंदरवन था जिसमें ऋषियों के तपस्या करने के कारण इसका नाम बाद में योगमुनि, तत्पश्चात जोगबनी पड़ा। यहीं पर प्राचीन काल में एक शमी का वृक्ष था जिस पर पांडवों ने अपने अस्त्र-शस्त्र छुपा दिए थे और दुर्योधन से छुपते हुए, मत्स्य देश के राजा विराट के महल में नाम परिवर्तन कर, अज्ञातवास का समय व्यतीत किया था जिसमें युधिष्ठिर ने अपना नाम कंक रखा और एक ब्राह्मण सलाहकार एवं मंत्री की भूमिका में रहे, भीम ने अपना नाम बल्लभ रखकर रसोई का कार्य संभाला, अर्जुन ने बृहन्नला नाम रखकर राजा के यहां संगीत-नृत्य सिखाया, नकुल ने अपना नाम ग्रन्थीक रखते हुए अश्वसेवक के रूप में कार्य किया, सहदेव ने तंत्रिपाल नाम से चरवाहा बनकर गायों की जिम्मेदारी ली और द्रौपदी ने सैरन्द्री नाम रखकर रानी के श्रृंगार करने का काम किया।

इस तरह पांडवों ने एक वर्ष तक अपने को छुपाए रखा, वहीं के लोगों ने बताया कि भारत-नेपाल सीमा क्षेत्र पर ही कीचक वध पोखर है जो कि आज भी अस्तित्व में है, जिनके संरक्षण हेतु प्रयासों की बहुत कमी है। खैर! इतिहास सहेजे रखने के लिए, ऐसे स्थलों को सुरक्षित रखना चाहिए।

अब हमारी ट्रेन का समय हो चला था हम लोग तुरन्त होटल पहुंचे और फिर "अलविदा नेपाल" कहने का समय आ गया। जैसे ही नेपाल बॉर्डर से निकलकर भारत की सीमा पर कदम रखे, दिल में कुछ अलग-सी खुशी और हलचल होने लगी। रात्रि में लहराता ऊंचा तिरंगा देखकर सीना चौड़ा हो गया और मन में अविस्मरणीय उत्साह। गाड़ी ठीक समय पर चल पड़ी, हम लोग पूरी रात और दिनभर सफर करने के बाद रात में एक बजे, इस यात्रा के परम सहयोगी कवि दीपक गोस्वामी जी के घर पहुंचकर, रात्रि विश्राम किया और सुबह दही-पराठे खाकर अपने घर को निकल पड़े।

घर पहुंचते-पहुंचते मैं भरपूर थक चुका था, हल्की झपकीं में भी रेलगाड़ी के झोंकें पीछा नहीं छोड़ रहे थे, फिर भी इतना अवश्य चाहुंगा कि साहित्य सेवा के लिए मैं कभी थकूं नहीं, रुकूं नहीं, और सतत् मेहनत करता रहूं, ऐसे पावन मौके मेरे जीवन में बार-बार आते रहें, ईश्वर से यही प्रार्थना है‌।























✍️ अतुल कुमार शर्मा

सम्भल

उत्तर प्रदेश, भारत

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