रविवार, 2 अप्रैल 2023

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष विजय त्यागी की ग़ज़ल.....मेरी तस्वीरों का चेहरा अक्सर ऐसा हो जाता है, जैसे कोई भूखा बच्चा रोते-रोते सो जाता है

 


मेरी तस्वीरों का चेहरा अक्सर ऐसा हो जाता है 

जैसे कोई भूखा बच्चा रोते-रोते सो जाता है


भोले पंछी लिख जाते हैं जिन पत्तों पर पते-ठिकाने वैरी सावन उन पत्तों को सांझ सवेरे धो जाता है


बर्फीली खामोश फिज़ा में तेरी आँखों का सन्नाटा

किसी परिन्दे की आहट से गहरी झील में खो जाता है।


मिट जाती हैं सब तहरीरें, धुंधला जाते हैं सब चेहरे जब भी कोई गम का सावन दिल का महमां हो जाता है। 


ऊँचे पेड़ों की बांहों में बांहें सोच समझकर डालो

पत्थर पर गिरने से शीशा टुकड़े-टुकड़े हो जाता है


✍️ विजय त्यागी

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