हारने के लिए किसी किस्म के प्रयास की जरूरत नहीं होती। बिना कोशिश किए आप किसी भी खेल में अपनी हार को 'हार-जीत तो लगी रहती है', जैसे तसल्ली दायक शब्दों से नवाजकर सहानुभूति प्राप्त कर सकते हैं। क्रिकेट वर्ल्ड कप को हारने के बाद जिन नेताओं ने जीतने के लिए इंडियन टीम को अग्रिम शुभकामनाएं दी थीं, वे अब अपने चुनाव- प्रचार में लग चुके हैं। नरेंद्र मोदी के नाम से बने स्टेडियम पर उनकी हार का ठीकरा फोड़ने वाले विपक्षी नेताओं के 'हमने तो पहले ही कहा था कि यह स्टेडियम इंडियन टीम के लिए शुभ नहीं है' जैसे भविष्यपरक लोकल बयान आने शुरू हो गये हैं। अगर अभी शुरू नहीं भी हुए हैं, तो उम्मीद है कि हमारा यह लेख पढ़ने के बाद आने शुरू हो जायेंगे। किरकिट में ऐसे लोग गिरगिट की भूमिका निभाते हैं। कल किसी और रंग का बयान दिया और आज जबकि इंडिया हार चुका है, कुछ अलग रंग के जो बयान हैं, वो अस्तित्व में आ रहे हैं।
गिरगिट और नेता भी इतनी जल्दी रंग नहीं बदलते, जितनी जल्दी किरकिट के महारथी बदल लेते हैं। पहले ऐसा नहीं था। या तो गिरगिटों के रंग बदलने पर पाबंदी थी या वे इसमें इंटरैस्टिड नहीं थे। जो भी था, बस, था। बुद्ध और गांधी के काल में अगर किरकिट इतना लोकप्रिय होता, तो उसकी अहिंसक गतिविधियों पर पाबंदी लगाने के लिए वे लोग अन्ना हजारे की शैली में धरने प्रदर्शन कर रहे होते। गेंदों को पीटे जाने पर उनके क्या विचार होते, यह तो भावी इतिहास ही बताता, मगर इसे बंद करवाने में उनकी भूमिका कितनी महत्वपूर्ण थी, इसे जरूर दर्ज किया जाता।
बैट और बाल के आपसी रिश्ते कैसे होते हैं, भाजपा और 'इंडिया' गठबंधन की तरह यह किसी से छिपा नहीं है। हर बाल पिटने के लिए "पहले मार लिया, अबकी से मार के देख" वाले जुमले की तर्ज पर बार-बार बैट की ओर चली जाती है। यह बहुत अच्छी पोजीशन नहीं है। कई मर्तबा ऐसा भी होता है कि बैट से पिटने के बाद गेंद किसी फील्डर के हाथ में पहुंच जाती है और अपनी पृष्ठभूमि पर अपने दोनों हाथ टिकाए रहने के बावजूद 'एंपायर' नाम का कोई प्राणी अपनी एक उंगली उठाकर उसे कैच करार दे देता है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें पिटी हुई बाल को पकड़कर सहलाया-पुचकारा जाता है। अक्सर फील्ड में खड़े कुछ लोग, जिन्हें लोग फील्डर भी कहते हैं, पिटी हुई बाल की आबरू बचाने के लिए अपने हाथ-पैरों के टूटने की चिंता न करके बॉल को बचा लेते हैं। स्टेडियम में इस पर भी पता नहीं क्यों तालियां बजाई जाती हैं। भारत की हार पर अभी तक पाकिस्तानियों की तरह किसी किरकिट प्रेमी द्वारा अपना टीवी सैट तोड़ने की सूचना नहीं मिली है। जबकि पाकिस्तान में खिलाड़ियों के सिर न तोड़कर लोग घरों में रखे अपने पुराने और खराब टीवी सैट तोड़ देते हैं। हमारे यहां ऐसा नहीं है।
हमारे यहां इसे 'जो हार गया, वह जीत गया' । ढाई हजार वर्ष पुराने चीनी दार्शनिक लाओत्से ने यह सूत्र वाक्य देकर भारतीय किरकिट प्रेमियों को भी प्रभावित किया है। हार के बाद वे अब इस सत्य को स्वीकार कर खामोश हो जाते हैं कि जिसने अपनी हार जीत से पहले ही स्वीकार ली हो, उसे हराने का कोई विकल्प नहीं रह जाता। विश्वास न हो, तो अपनी किरकिट टीम के कप्तान से पूछकर देख लें। अपने दार्शनिक में वे भी यही कहेंगे 'जो हार गया, वह जीत गया'। हमने कुछ गलत कहा हो ,तो बताएं ।
✍️अतुल मिश्र
श्री धन्वंतरि फार्मेसी
मौ. बड़ा महादेव
चन्दौसी, जनपद सम्भल
उत्तर प्रदेश, भारत
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