सोमवार, 30 जून 2025

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिंदी साहित्य संगम अध्यक्ष वरिष्ठ कवि रामदत्त द्विवेदी के 90वें जन्म दिवस की पूर्व संध्या 29 जून 2025 को काव्य संध्या का आयोजन

मुरादाबाद  की साहित्यिक संस्था हिंदी साहित्य संगम के अध्यक्ष वरिष्ठ कवि रामदत्त द्विवेदी के 90वें जन्मदिन की पूर्व संध्या रविवार 29 जून 2025 को काव्य संध्या का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ मां शारदे की प्रतिमा पर माल्यार्पण करके किया गया। इसके पश्चात मयंक शर्मा ने माॅं शारदे की वन्दना प्रस्तुत की। 

   कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए रघुराज सिंह निश्चल ने कहा...

 बड़ों का मन लुभाओगे, सदा ही मुस्कुराओगे। 

कृपा भगवान की होगी, सदा ही खिलखिलाओगे।। 

मुख्य अतिथि डॉ. महेश दिवाकर ने हिन्दी के प्रति उनके समर्पण को नमन करते हुए उनको जन्मदिन की बधाई दी ।

 विशिष्ट अतिथि डॉ. कृष्ण कुमार नाज़ का कहना था ......

 ये जो रिश्ते हैं ये लगते तो हैं जीवन की तरह,

कैफियत इनकी है लेकिन किसी बंधन की तरह। 

तुम अगर चाहो तो इक तुलसी का पौध बन जाओ, 

मेरे एहसास महक उटठेंगे आंगन की तरह।। 

विशिष्ट अतिथि डॉ प्रेमवती उपाध्याय ने सुनाया-

अब सम्बन्धों की गरमाहट, विदा हुई घर-घर से। 

सभी सुखी दिखते ऊपर से, दुखी दिखे अंदर से।। 

विशिष्ट अतिथि योगेन्द्र वर्मा व्योम ने सुनाया-

लोभ, क्रोध, मद, द्वेष, छल, 

अहम-वहम सब छोड़। 

चलों बना लें खुशनुमा, 

जीवन का हर मोड़। 

रामदत्त द्विवेदी ने सुनाया- 

इस चमकती ज़िन्दगी में प्यार छिनता जा रहा है, 

जान से प्यारा था जो, वह यार छिनता जा रहा है।  

कार्यक्रम का संचालन करते हुए मयंक शर्मा ने सुनाया -

जन्म सार्थक हो धरा पर 

स्वप्न हर साकार हो। 

हम चलें कर्तव्य पथ पर 

और जय - जयकार हो। 

  राम सिंह नि:शंक ने सुनाया-

अवलम्बन इनसे मिले, राह दिखाते नेक। 

इनको हम सम्मान दें, खुशियां मिलें अपने।। 

 नकुल त्यागी ने कहा-

मानव जीवन संघर्ष भरा और अनगिन बाधा आती हैं! 

बाधाएं हैं क्षणिक और कुछ देर में ही हट जाती हैं ! 

डॉ मनोज रस्तोगी ने गीत प्रस्तुत करते हुए कहा- 

महकी आकाश में चांदनी की गंध, 

अधरों की देहरी लांघ आए छंद, 

गंगाजल से छलके नेह के पिटारे। 

मनोज वर्मा मनु ने सुनाया-

उसने भी ऐतबार जता कर नहीं किया, 

हमने भी उसे प्यार बता कर नही किया। 

समीर तिवारी ने सुनाया-

रिश्ते नातों में पतझर है, 

तरुवर की क्या बात करुं, 

बदल रहा मौसम सारा, 

घर-घर की क्या बात करुं।

ज़िया ज़मीर ने सुनाया-

जाने वालों को मुसलसल देखता रहता हूं मैं,

किस लिए जाते हैं यह भी पूछता रहता हूं मैं। 

एक दरिया है कि जो करता नहीं मुझको क़ुबूल, 

बैठ कर साहिल पे अक्सर डूबता रहता हूं मैं।।

 दुष्यन्त बाबा ने कहा-

हम भारत के शूर समर में, 

भीषण विध्वंस मचाते हैं। 

आँख उठे भारत माता पर, 

हम अपना शौर्य दिखाते हैं। 

 डॉ प्रीति हुंकार ने सुनाया-

दादा-दादी नाना-नानी, 

ये सब हैं अनुभव की खान। 

प्यारे बच्चों नित करना है, 

जीवन में इनका सम्मान।। 

पदम सिंह बेचैन ने सुनाया-

सारे आलम की खुशियां मुबारक तुम्हें, 

मेरे मालिक जन्मदिन मुबारक तुम्हें। 

जितेन्द्र कुमार जौली ने सुनाया-

दिशाहीन थे हम अज्ञानी, 

दिया आपने हमको ज्ञान।

नमन करें सौ बार आपको, 

आप ही हो मेरे भगवान।। 

इस अवसर पर बाबा संजीव आकांक्षी, इशांत शर्मा ईशु, श्रीकृष्ण शुक्ल,केपी सिंह सरल, राजीव प्रखर, आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ सहित अनेक रचनाकार उपस्थित रहे। कार्यक्रम में उपस्थित विभिन्न समाजसेवियों एवं साहित्यकारों ने रामदेव द्विवेदी जी को सम्मानित किया एवं उपहार भी भेंट किए। संस्था के महासचिव जितेन्द्र कुमार जौली ने सभी का आभार व्यक्त किया। 











































































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