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सोमवार, 31 अगस्त 2020

मुरादाबाद लिटरेरी क्लब की ओर से प्रख्यात साहित्यकार फ़िराक़ गोरखपुरी की जयंती पर उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर ऑन लाइन साहित्यिक चर्चा


      वाट्स एप पर संचालित साहित्यिक समूह 'मुरादाबाद लिटरेरी क्लब' की ओर से शुक्रवार 28 अगस्त 2020 को " विरासत जगमगाती है" शीर्षक के तहत प्रख्यात साहित्यकार फ़िराक गोरखपुरी को उनकी जयन्ती पर याद किया गया। ग्रुप के सभी सदस्यों ने उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर ऑन लाइन चर्चा की।
सबसे पहले ग्रुप एडमिन ज़िया ज़मीर ने उन के जीवन के बारे में विस्तार से बताया कि फ़िराक़ गोरखपुरी का अस्ल नाम रघुपति सहाय था। वो 28 अगस्त 1896 ई. को गोरखपुर में पैदा हुए। उनके वालिद गोरख प्रशाद ज़मींदार थे और गोरखपुर में वकालत करते थे। उनका पैतृक स्थान गोरखपुर की तहसील बाँस गांव था। फ़िराक़ ने उर्दू और फ़ारसी की शिक्षा घर पर प्राप्त की, इसके बाद मैट्रिक का इम्तिहान गर्वनमेंट जुबली कॉलेज गोरखपुर से सेकंड डिवीज़न में पास किया। फ़िराक़ को नौजवानी में ही शायरी का शौक़ पैदा हो गया था और 1916 ई. में जब उनकी उम्र 20 साल की थी और वो बी.ए के छात्र थे, पहली ग़ज़ल कही। सियासी सरगर्मियों की वजह से 1920 ई. में  उनको गिरफ़्तार किया गया और उन्होंने 18 माह जेल में गुज़ारे। 1922 ई. में वो कांग्रेस के अंडर सेक्रेटरी मुक़र्रर किए गए। 1930 ई. में उन्होंने प्राईवेट उम्मीदवार की हैसियत से आगरा यूनीवर्सिटी से अंग्रेज़ी साहित्य में एम.ए. का इम्तिहान विशेष योग्यता के साथ पास किया और कोई दरख़ास्त या इंटरव्यू दिए बिना इलाहाबाद यूनीवर्सिटी में लेक्चरर नियुक्त हो गए। 1961 ई. में उनको साहित्य अकादेमी अवार्ड से नवाज़ा गया, 1968 ई. में उन्हें सोवियत लैंड नेहरू सम्मान दिया गया। भारत सरकार ने उनको पद्म भूषण ख़िताब से सरफ़राज़ किया। 1970 ई. में वो साहित्य अकादेमी के फ़ेलो बनाए गए। उनको काव्य संग्रह “गुल-ए-नग़्मा” के लिए अदब के सबसे बड़े सम्मान ज्ञान पीठ अवार्ड से नवाज़ा गया। 1981 ई. में उनको ग़ालिब अवार्ड भी दिया गया। उन्होंने कहा कि अगर आप रिवायत की पगडंडियों को न छोड़ते हुए जदीद रास्तों की तलाश में निकलना चाहते हैं तो फ़िराक़ इस सिलसिले का पहला पुल साबित होते हैं। इस मरहले में हमारे लिए यह लाज़िम है कि हम फ़िराक़ को पढ़ें और बार-बार पढ़ें। फ़िराक़ के यहां आलमी अदब, ख़ासतौर पर अंग्रेज़ी अदब और भारतीय दर्शन आपस में ऐसे घुल मिल गए हैं कि हमें एहसास ही नहीं होता कि हम दूसरी ज़बानों में भारतीय दर्शन पढ़ रहे हैं या भारतीय दर्शन में दूसरी ज़बानों का अदब दर आया है। फ़िराक़ मेरी नज़र में वो नाम है कि जिसे अगर हटा दिया जाए तो शायरी में रिवायत और जदीदियत का रिश्ता तो कमज़ोर होगा ही, साथ ही साथ शायरी को समझने और उस पर बात करने की तरबियत भी कहीं गुम हो जाएगी।
 विख्यात नवगीतकार माहेश्वर तिवारी ने कहा कि फ़िराक़ साहब को याद करना आधुनिक शायरी की एक किताब के वज़नी वॉल्यूम को दिल और दिमाग के दो हाथों के संतुलन से उठा कर पढ़ते-पढ़ते अदब की एक विशाल इमारत के तमाम कमरों से होकर गुज़रने जैसा है। फ़िराक़ साहब को सुनने और मजनूँ साहब से दो साल पढ़ने का सौभाग्य मिला है मुझे।
मशहूर और मक़बूल शायर मंसूर उस्मानी ने कहा कि इस पटल पर फिराक साहब की चर्चा एक बड़ी उपलब्धि है। मैं फिराक साहब को अपने रंग का इस सदी का बहुत बड़ा शायर मानता हूँ। उनके बारे में मैंने बहुत कुछ लिखा है और बेशुमार शहरों में बहुत कुछ कहा है। फिराक साहब ने गजल को परिभाषित करते हुए लिखा था "गजल ला-महदूद इंतहाओं का सिलसिला है"। इसी तरह उन के बेशुमार शेर हैं जिनकी मिसाल पूरे अदब में नहीं मिलती, यही वो खासियतें हैं जो फिराक को अदब में हमेशा जिंदा रखेंगी।
वरिष्ठ व्यंग्य कवि डॉ मक्खन मुरादाबादी ने कहा कि फ़िराक़ साहब पर होते चर्चों को सुनकर यह अवश्य महसूस किया है कि फ़िराक़ साहब ने उर्दू शायरी के बड़े गैप को भरने का काम करके एक ऐसी शख्सियत का निर्माण किया, जिसके आगे हर कोई नतमस्तक हुआ और उन्हें सराहे बिना नहीं रह सका।
मशहूर शायरा डॉ० मीना नक़वी ने कहा कि फ़िराक़ उन चुनिंदा फ़नकारों में से एक हैं जो महज़ शायरी तक महदूद नहीं रहे। वो खूब पढ़े-लिखे आदमी थे। उन्होंने मज़हबी फलसफों पर भी लिखा और राजनीति पर भी। आलोचनात्मक लेख भी लिखे।
वरिष्ठ कवि डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा कि मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं कि कल तक मैं फ़िराक़ गोरखपुरी के बारे में किस्सों के जरिये थोड़ा बहुत जानता तो था लेकिन उनकी शायरी कभी भी नहीं पढ़ी या कहिये कि उर्दू शायरी में कभी कोई खास रुचि ही नहीं रही।  क्लब से जुड़ने के बाद ही इस ओर रुचि हुई है। कल रात पहली बार मैंने नेट पर सर्च करके फिराक साहब को पढ़ा। उनकी शायरी पढ़ी उनके तमाम किस्से पढ़े।
युवा शायर मनोज वर्मा मनु ने कहा कि आदरणीय रघुपति सहाय 'फिराक़' गोरखपुरी साहब को मुख़्तसर पढ़ा भी है। उस समय के और आज तक भी अपने लहजे की जदीदयत समेटे उनके कलाम जो बहुत मक़बूल हुए। उनकी नज्में जो अपना अलग अंदाज रखती हैं ,को पढ़कर दिल यह सोचने को मजबूर हो जाता कि जब इतने वक़्त पहले ही हमारे तसव्वुर से आगे की चीजें पढ़ी जा चुकी हैं। कही जा चुकी हैं।
युवा कवि राजीव प्रखर ने कहा कि रघुपति सहाय फ़िराक़ 'गोरखपुरी', शायरी के इतिहास में हुए एक ऐसे महा-तपस्वी, जिनके अन्तस से निकल कर कागज़ तक  पहुँचा प्रत्येक शब्द, अवलोकनकर्ता से संवाद स्थापित करता है। निश्चित रूप से उनकी गणना उन महान शायरों में की जा सकती है जिन्होंने साहित्य में अपने समय के पूर्व से चले आ रहे अनेक बंधनों को सफ़लतापूर्वक तोड़ा। महान भारतीय संस्कृति को अपनी हृदयस्पर्शी शायरी में पिरो कर उन्होंने समाज को एक ऐसा साहित्यिक खजाना दिया, जो आगामी पीढ़ियों का भी निरंतर मार्गदर्शन करेगा।
युवा गीतकार मयंक शर्मा ने कहा कि हालांकि फिराक को इश्किया शायर कहा गया लेकिन उनका प्यार केवल औरत तक सीमित नहीं रह गया। उन्होंने कुदरत और इंसानियत से प्यार करना सिखाया। फिराक साहब शायरी में भारी भरकम और जटिल शब्दों को व्यर्थ मानते थे। एक चर्चा में उन्होंने कहा कि शायरी वही अच्छी हो सकती है, जिसे 10 साल के बच्चे से लेकर 80 साल तक का बुजुर्ग तक समझ सके।

::::::प्रस्तुति:::::::
ज़िया ज़मीर
ग्रुप एडमिन
मुरादाबाद लिटरेरी क्लब
मो०8755681225

मंगलवार, 25 अगस्त 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष प्रो. महेंद्र प्रताप की जयंती पर "मुरादाबाद लिटरेरी क्लब" की ओर से उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर परिचर्चा ......


       वाट्स एप पर संचालित  साहित्यिक समूह 'मुरादाबाद लिटरेरी क्लब' द्वारा "ज़मीं खा गयी आसमां कैसे कैसे" शीर्षक के तहत  मुरादाबाद के साहित्यकार एवं केजीके महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य स्मृतिशेष प्रोफेसर महेंद्र प्रताप को उनकी जयन्ती पर याद किया गया। ग्रुप के सभी सदस्यों ने उनके व्यक्तित्व एंव कृतित्व पर ऑन लाइन चर्चा की। चर्चा तीन दिन चली। सबसे पहले ग्रुप के सदस्य वरिष्ठ साहित्यकार एवं पत्रकार डॉ मनोज रस्तोगी ने उन के जीवन के बारे में विस्तार से बताया और उनकी रचनाएं प्रस्तुत कीं
चर्चा शुरू करते हुए विख्यात नवगीतकार माहेश्वर तिवारी ने कहा कि दादा के रचनाकार के विषय में मुझे पहले कुछ विशेष नहीं मालूम था। उसके विषय में कुछ तो अंतरा की गोष्ठियों में, कुछ कटघर पचपेड़ा मेरी ससुराल से और कुछ आदरणीय डॉ. शम्भुनाथ सिंह जी से चर्चा के माध्यम से जानकारी मिली। दादा के गीतों को हम उनका अन्तःगीत कह सकते हैं। उनके एक गीत, मैं तुमको अपना न सकूँगा / तुम मुझको अपना लो, को सुनकर ब्रह्मलीन स्वसुर संत संगीतज्ञ पुरुषोत्तम व्यास गदगद हो उठते थे। यह उनके लिए एक प्रार्थना गीत था। इसी गीत की एक पंक्ति है - मेरे गीत किसी के चरणों के अनुचर हैं। किसी नायिका के चरणों का अनुचर होने की गवाही नहीं देते।
मशहूर शायर मंसूर उस्मानी ने कहा कि प्रो साहब वाकई सायादार शजर थे। मुझे उनका जितना भी सानिध्य मिला मैंने उनसे कुछ न कुछ सीखा ही जिसमें इंसानियत से प्यार और उसका सम्मान बहुत बड़ी दौलत है। 1993 में उप्र उर्दू अकादमी का सदस्य मनोनीत होने पर मेरे मुहल्ले के लोगों ने एक जलसा किया था जिसमें प्रो साहब ने मेरी इज्जत अफजाई करते हुए कहा था कि यह जलसा शहर में कहीं और हुआ होता तो मुझे इतनी खुशी नहीं होती क्योंकि ये जलसा वह लोग कर रहे हैं जिन्होंने मंसूर को बचपन से देखा है और ये मंसूर की बड़ी उपलब्धि है।
वरिष्ठ कवि शचीन्द्र भटनागर ने कहा कि मैंने उन्हें गोष्ठी अथवा कवि सम्मेलन में कभी नहीं सुना पर एक बार मेरे बहुत आग्रह पर उन्होंने घर पर ही एक गीत सुनाया था। गीत पढ़ते समय वह तल्लीन हो गये थे साधक की तरह। उनके प्रणय गीतों में कहीं स्थूलता नहीं है। आत्म प्रेम है, आत्मा से संवाद है।उनकी वाणी में मिठास, होठों पर तनाव रहित मुस्कान और व्यक्तित्व में आकर्षण था। प्राचार्य के प्रशासनिक पद पर नितांत भारतीय वेशभूषा में उन्हें शांतचित्त  देखकर उनके व्यक्तित्व की विलक्षणता का आभास होता था।
वरिष्ठ व्यंग्य कवि डॉ मक्खन मुरादाबादी ने कहा कि हिन्दी साहित्य ही नहीं दादा मुरादाबाद के साहित्यिक, सांस्कृतिक, सांगीतिक और सामाजिक सरोकारों के अगुआ थे। विषय का इतना सटीक गहराई से विश्लेषण करने वाला मुझे तो अब तक मिला नहीं है। उनके मुख से निकला एक-एक शब्द अपने आप में शिलालेख होता था। वह तार्किक नहीं थे अपितु विषयों के सैद्धांतिक जानकर थे। यदि मैंने आधुनिक हिन्दी साहित्य की विशद व्याख्या की होती तो साहित्य के उस कालखंड के आशु साहित्य की खोजबीन करके उसे  'महेन्द्र प्रताप-युग' का नाम देने के सभी यत्न किए होते।
वरिष्ठ कवि डॉ अजय अनुपम ने कहा कि मुरादाबाद के महत्त्वपूर्ण विद्वानों में अग्रगण्य स्व प्रो महेंद्र प्रताप जी एक चिन्तक व्याख्याता और ललित कलाओं के ज्ञाता प्रश्रय दाता तथा उन्नायक के रूप में सामने आते हैं। दिनांक छह दिसंबर १९४८को स्थानीय के जी के महाविद्यालय में हिंदी विभाग में कार्यभार ग्रहण करने वाले दिन ही सायंकाल हिन्दू कालेज में आयोजित कवि सम्मेलन में अध्यक्षता करने से उनकी यात्रा यहां आरंभ होती है। यहीं उनकी मित्रता पंडित मदनमोहन व्यास और प्रभुदत्त भारद्वाज से हुई, यह त्रिमूर्ति आगे चलकर मुरादाबाद में सांस्कृतिक और साहित्यिक जगत का पर्याय बन गई।
मशहूर शायरा डॉ० मीना नक़वी ने कहा कि वर्ष 2004 की बात है मेरी पहला ग़ज़ल संग्रह प्रकाशित हो चुका था। डॉ.कृष्ण कुमार नाज़ के साथ मेरा स्मृति शेष आदरणीय महेन्द्र प्रताप जी के निवास-स्थान पर  पहली बार जाने का सुवसर प्राप्त हुआ। मैं सकुचाती हुई उनके घर में दाख़िल हुई। आ0 महेन्द्र प्रताप जी ने  बहुत स्नेह से मुझे बिठाया। नाज़ साहब ने मेरा परिचय कराया तो उन्होनेे मेरे डाक्टर होने के साथ हिंदी अंग्रेजी़ पर स्नातकोत्तर होने पर आश्चर्य व्यक्त किया। मैने अपनी पहली पुस्तक सायबान उन्हें भेट की। जो उन्होने सहर्ष स्वीकार की साथ ही मेरा उत्साह वर्धन भी किया। अज़ान के समय शांति से बैठ जाने की शिक्षा देने वाले सर्वधर्म के प्रति आदर व समभाव के वे जीते जागते उदाहरण थे और इसकी मैं साक्षी हूँ। ऐसे व्यक्तित्व वास्तव में युगों में पैदा होते है।
प्रख्यात रंगकर्मी डॉ प्रदीप शर्मा ने उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित करते  हुए कहा कि प्रोफेसर महेंद्र प्रताप "आदर्श कला संगम" के संस्थापक अध्यक्ष थे। उनका व्यक्तित्व बहुआयामी था। वह एक कुशल मार्गदर्शक व पथ प्रदर्शक भी थे । आदर्श कला संगम ने उनकी याद को बनाए रखने के लिए उनकी स्मृति में "प्रोफेसर महेंद्र प्रताप स्मृति सम्मान" देना भी शुरू किया।
वरिष्ठ कवियत्री डॉ प्रेमवती उपाध्याय ने कहा कि सरलता-सहजता से आच्छादित व्यक्तिव के धनी, विनम्रता की साक्षात प्रतिमूर्ति हमारे स्वर्गीय दादा प्रोफेसर महेंद्र प्रताप जी चिरकाल तक स्मृति में आज भी मार्गदर्शन करते हैं।
महाराजा अग्रसेन पब्लिक स्कूल मंडी बांस की पूर्व प्रधानाचार्य डॉ किरण गर्ग ने कहा कि दादा श्री के स्नेह और कृपा की प्राप्ति को मैं अपने जीवन की विशिष्ट उपलब्धि मानती हूं। उससे उऋण होना न मैं चाहती हूं न हो सकती हूं । दादा ज्ञान के समस्त पक्षों को आत्मसात करने के लिए सदैव आकांक्षी  रहते थे। मनीषियों व ज्ञानियों के साथ वह रात- दिन एक कर सकते थे। उनके लिए यहां तक मशहूर था कि दादा के पास जाओ तो पर्याप्त समय लेकर जाओ क्योंकि यदि किसी भी विषय पर उनसे चर्चा चल पड़े तो घंटों वह धाराप्रवाह बोले चले जाते थे, बिना अपने खाने-पीने की परवाह किए। सादा जीवन उच्च विचार की उक्ति उन पर पूर्णतया चरितार्थ होती है।
वरिष्ठ कवि शिशुपाल मधुकर ने कहा कि दादा कहते थे कि कभी भी प्रसिद्धि की स्प्राह मन में रखकर रचनाकर्म नहीं करना और कुछ भी मत लिखना, जो लिखना सार युक्त लिखना।

मशहूर शायर डॉ कृष्णकुमार 'नाज़' ने कहा कि दादा ऐसे वृक्ष थे जिनकी शीतल छांव में बैठकर मुझे ऐसे बहुत से रचनाकार अपनी अगली मंज़िलों के निशान तलाशते थे। मुरादाबाद में जितने भी साहित्यिक आयोजन होते थे, उनमें अधिकतर की अध्यक्षता दादा महेंद्र प्रताप जी ही करते थे। उनका अध्ययन इतना विषद था कि किसी भी विषय पर उनसे वार्ता की जा सकती थी और उपयुक्त उत्तर मिल जाता था। यदि किसी विषय पर पक्ष और विपक्ष दोनों पर बोलने की आवश्यकता पड़े, तो दादा प्रवीणता के साथ दोनों ही पक्षों पर सम्यक रूप से विचार रखते थे।
वरिष्ठ कवि डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा कि बीती सदी का नवां दशक जब मैंने शुरू की थी अपनी साहित्यिक यात्रा। यही नहीं एक सामाजिक, साहित्यिक और सांस्कृतिक संस्था ''तरुण शिखा'' का गठन भी कर लिया था। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि 'अंतरा' की गोष्ठियां ही मेरे साहित्यिक जीवन की प्रथम पाठशाला बनीं। इन गोष्ठियों में 'दादा', श्री अंबालाल नागर जी, श्री कैलाश चंद अग्रवाल जी, पंडित मदन मोहन व्यास जी, श्री ललित मोहन भारद्वाज जी, श्री माहेश्वर तिवारी जी ने मेरी अंगुली पकड़कर मुझे चलना सिखाया और उनके संरक्षण एवं दिशा निर्देशन में मैंने साहित्य- पत्रकारिता के मार्ग पर कदम बढ़ाए । दादा और आदरणीय श्री माहेश्वर तिवारी जी के सान्निध्य से न केवल आत्मविश्वास बढ़ा बल्कि सदैव ऐसा महसूस हुआ जैसा किसी पथिक को तेज धूप में वृक्ष की शीतल छांव में बैठकर होता है। लगभग सभी गोष्ठियों में दादा उपस्थित होते थे और मुझे प्रोत्साहित करते थे। यह मेरा सौभाग्य है कि लगभग 21- 22 साल तक मुझे दादा का आशीष प्राप्त होता रहा। दादा आज हमारे बीच में नहीं है लेकिन उनकी स्मृतियां, उनका दुलार, उनका आशीष सदैव मुझे आगे और आगे बढ़ने की प्रेरणा देता ही रहेगा ।
प्रसिद्ध नवगीतकार योगेंद्र वर्मा व्योम ने कहा कि दादा के गीतों से गुज़रते हुए भी उसी चंदन की भीनी-भीनी महक महसूस होती है जिसका ज़िक्र राजीव जी ने अपने वक्तव्य में किया है क्योंकि आध्यात्मिक भाव-व्यंजना के माध्यम से मनुष्यता के प्रति दादा की प्रबल पक्षधरता उनके लगभग सभी गीतों में प्रतिबिंबित होती है। दादा महेन्द्र प्रताप जी का रचनाकर्म मात्रा में भले ही कम रहा हो किन्तु महत्वपूर्ण बहुत अधिक है।उनकी रचनाओं में सृजन के समय का कालखण्ड पूरी तरह प्रतिबिंबित होता है, निश्चित रूप से दादा की सभी रचनाएँ साहित्य की अमूल्य धरोहर हैं।
समीक्षक डॉ मोहम्मद आसिफ हुसैन ने कहा कि मुझे यह अवसर तो प्राप्त नहीं हो सका कि मैं महेंद्र प्रताप जी को किसी साहित्यिक संस्था के निजी प्रोग्राम में शरीक होकर उन्हें सुन पाता अपितु सार्वजनिक प्रोग्रामों में उन्हें कई बार सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। विशेष रुप से जनता सेवक समाज के कार्यक्रमों में उन्हें अक्सर सुना। सच पूछिए तो उन्हें सुनने के लिए ही प्रोग्राम में जाया करता था। क्योंकि मैं उनकी बोलने की कला से बहुत प्रभावित था। उनका बोलने का अपना अलग अंदाज़ था जो मंत्रमुग्ध कर दिया करता था। वह हर विषय पर धाराप्रवाह बोलते थे। ऐसा महसूस होता था कि वह इस विषय के विशेषज्ञ है। मैंने उन्हें जिगर मेमोरियल कमेटी के मुशायरों में उन्हें जिगर की शायरी पर बोलते हुए ख़ूब सुना है। मुंह में पान की गिलोरी दबाकर मुस्कुराते हुए उनकी गुफ़्तगू का अंदाज़ आज भी याद है। उनकी वाणी से उनके मन की निर्मलता और और भावों की कोमलता साफ़ झलकती थी। हालांकि मेरा छात्र जीवन था और वह मुझसे परिचित भी नहीं थे और मैं भी उनसे इतना परिचित नहीं था जितना आज हुआ। लेकिन मैं कार्यक्रम के पश्चात उनसे मिलकर आशीर्वाद प्राप्त करने की कोशिश ज़रूर करता था।
युवा कवि राजीव प्रखर ने कहा कि निश्चित ही स्मृति शेष दादा महेंद्र प्रताप जी की गणना ऐसी महान साहित्यिक विभूतियों में की जा सकती है जिनके द्वारा प्रदत्त आलोक में बाद की पीढ़ियों का मार्ग प्रशस्त हुआ। आज पटल पर उनके गीतों का अवलोकन करने के पश्चात् मेरा मानना है कि उनकी लेखनी से साकार हुए ये अद्भुत गीत मात्र मधुर कंठ की शोभा बनने हेतु ही नहीं अपितु, उन्हें आत्मसात करते हुए मनन करने के लिए भी हैं। उनके अद्भुत गीतों का एकाग्रचित्त होकर श्रवण व मनन करने का अर्थ है पाठक/श्रोता का स्वयं को पहचानना तथा जीवन से साक्षात्कार करना।
युवा शायर फरहत अली खान ने कहा कि पटल पर तीन दिन तक प्रोफेसर साहब पर चली
चर्चा के ज़रिए ये निष्कर्ष निकलता हुआ देख रहा हूँ कि उन के साहित्य-कर्म पर एक बड़ा काम करने की ज़रूरत है।
युवा कवियत्री हेमा तिवारी भट्ट ने कहा कि मुरादाबाद के गौरवशाली साहित्यिक इतिहास के अभिन्न और अधिकतम द्युतिमान नक्षत्र स्व०प्रो०महेन्द्र प्रताप जी के बारे में जानने के बाद उन्हें साक्षात देखने व सुनने का अवसर न मिल पाने का अत्यन्त दुख है।
वरिष्ठ साहित्यकार श्री कृष्ण शुक्ल ने कहा कि आदरणीय दादा महेंद्र प्रताप जी से मेरा प्रथम परिचय वर्ष 1967 में हुआ था। उसके बाद एक बार वर्ष 1972 में रेलवे मनोरंजन सदन में रेलवे के एक आयोजन में उन्हें सुना। कविता में पूर्णतः डूबकर किये गये उनके कविता पाठ ने मुझे बहुत आकर्षित किया। इन दो अवसरों पर उनके दर्शन का मष्तिष्क पर अमिट प्रभाव आज भी है ।
ग्रुप एडमिन और संचालक शायर ज़िया ज़मीर ने कहा कि स्वर्गीय प्रोफेसर महेंद्र प्रताप साहब के गीतों को पढ़कर यह लगता है कि उनका जीवन जहां साहित्य को पढ़ते हुए गुज़रा वहीं साहित्य के बड़े लोगों के साथ बैठते हुए भी उनका जीवन गुज़रा है। मैं यह समझता हूं कि उनके अंदर साहित्य के साथ-साथ साहित्यकारों को भी सहेजने का एक बड़ा गुण था। तभी तो उन्होंने "अंतरा" जैसी संस्था की दाग़-बेल डाली। हम अपने ऊपर गर्व कर सकते हैं कि हमारे शहर में मोहब्बत करने वाली, जोड़ने वाली एक ऐसी शख्सियत भी गुज़री है।
महेन्द्र प्रताप जी के सुपुत्र सुप्रीत गोपाल ने मुरादाबाद लिटरेरी क्लब की ओर से आयोजित इस सार्थक चर्चा के लिए सभी सदस्यों का शुक्रिया अदा किया। उन्होंने कहा कि दादा आज भी हम सबके प्रेरणास्त्रोत हैं।

:::::::प्रस्तुति:::::::

-ज़िया ज़मीर
ग्रुप एडमिन
मुरादाबाद लिटरेरी क्लब
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मो०8755681225

गुरुवार, 20 अगस्त 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष ब्रजभूषण सिंह गौतम अनुराग की पुण्यतिथि पर " मुरादाबाद लिटरेरी क्लब" द्वारा उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर चर्चा ---


      वाट्स एप पर संचालित साहित्यिक समूह 'मुरादाबाद लिटरेरी क्लब' द्वारा  "ज़मीं खा गयी आसमां कैसे कैसे" शीर्षक के तहत 17 अगस्त 2020 को साहित्यकार ब्रजभूषण सिंह गौतम अनुराग की पुण्यतिथि पर उनके व्यक्तित्व व कृतित्व पर चर्चा की गई। चर्चा दो दिन चली। सबसे पहले ग्रुप के सदस्य योगेंद्र वर्मा व्योम ने ब्रजभूषण सिंह गौतम अनुराग के प्रतिनिधि गीत पटल पर रखे।

चर्चा शुरू करते हुए प्रख्यात नवगीतकार माहेश्वर तिवारी ने कहा कि गौतम जी ने पर्याप्त मात्रा में लेखन किया है और छांदस कविता के क्षेत्र में प्रचलित लगभग सभी छंद विधानों में अपनी लेखनी चलाई है। ऐसी सामर्थ्य पूर्ण प्रतिभा विरल लोगों में ही होती है ।
वरिष्ठ कवि शचीन्द्र भटनागर ने कहा कि अनुराग जी आयु में लगभग दो वर्ष बड़े थे मुझसे, पर घर हो या मंच, मुझे भाईसाहब कहकर ही संबोधित करते थे। ग़ज़ब की बेबाकी थी उनमें, पर विनम्र भी इतने कि यदि किसी से उनका मन आहत हुआ वर्णन करते समय आंखें गीली हो जाती थीं। गौतम जी ने जो लिखा वह विपुलता और गुणवत्ता दोनों ही दृष्टियों से श्रेष्ठ है। उनकी सृजन क्षमता ग़ज़ब की थी। उनके स्वयं के शब्दों में वह एक दिन में एक दर्जन से अधिक नवगीत लिख देते थे।
वरिष्ठ कवि डॉ अजय अनुपम ने कहा कि अनुराग जी की रचनाओं में जीवन का बहुआयामी चित्रण मिलता है। अपने समय में बहुत परिश्रम से समाज में अपनी पहचान बनाई थी। ग्राम्य परिवेश और नगरीय वातावरण दोनों को बारीकी से देखना उन्हें भली-भांति आता था। साहित्य में मुरादाबाद में उनका स्थान रिक्त है। रचनाकर्म के प्रति अब वैसा समर्पण अलभ्य है।
वरिष्ठ व्यंग कवि डॉ मक्खन मुरादाबादी ने कहा कि अनुराग जी एक बड़े साहित्यकार थे।उनका लेखन लोकगान भी था और लोकधाम भी।उनका सृजन अपनी मिट्टी की सौंधी गंध से पूर्णतः महका हुआ है।लोक की चिंताओं के साथ-साथ लोक कल्याण की भावना भी उनके साहित्य में भरी पड़ी है। असमानता, असंगति,विसंगति और समाज की समरसता को उन्होंने गाया है।समाज को उन्होंने गहराई से पढ़ कर  उसके लिए जो गढ़ा है वह कविता और समाज के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
मशहूर शायरा डॉ  मीना नक़वी ने कहा कि स्मृति शेष कविता के मूर्धन्य समर्थ महाकवि अनुराग 'गौतम' जी को  अनेकानेक  गोष्ठियों में सुनने का गौरव प्राप्त हो चुका है। इसमें कोई संदेह नहीं कि इनकी रचनाओं का आकाश बहुत विस्तृत है जो अपनी धरती को एक क्षण नहीं भूलता। समर्थ छाँदस रचनायें उन्हें साहित्य में विशिष्ट स्थान दिलाती हैं।
वरिष्ठ कवियत्री डॉ प्रेमवती उपाध्याय ने कहा कि गीतों के सरस अनवरत निर्झर झरने की प्रकृति के कवि गौतम जी एक कोमल ह्र्दय के कवि थे। उनके गीतों में श्रंगार रस की अभिव्यक्ति अधिक रही, चाहें संयोग हो अथवा वियोग रस। जीवन की कष्ट वेदनाओं की अपरमित गाथा उनकी गजलों, उनके गीतों में भरी पड़ी है। गौतम जी ने अपने दुख को भी बहुत संवेदनशीलता के साथ उन्मुक्त भाव से व्यक्त किया।
वरिष्ठ कवि आनंद कुमार गौरव का दर्पण मेरे गाँव का और चाँदनी जैसी अमर कृतियों के कीर्तिशेष काव्य साधक के रचनाकर्म पर टिप्पणी के रूप में कहना था कि "बना घरौंदे नम माटी के मन की गागर भर लेने दो"और "मनमुटाव से बुझे पड़े हैं मन के सभी अलाव" जैसे सहजतह स्वीकार्य अनुभावों के साथ"दादी अम्मा की खटिया पर टूटी छप्पर छाँव, कैसे आज लौटकर आऊँ फिर पुरुखों के गाँव" लिखकर विवशता और पीड़ा अभिव्यक्ति, स्वयं प्रमाणित कर देती है,कि सत्य की कडुवाहट को पीना और उसी सत्य के साथ जीना ही, सहज, सात्विक, अनुशासनप्रिय, अनुराग गौतम जी को सदा प्रिय रहा।
वरिष्ठ कवि डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा कि स्मृति शेष ब्रजभूषण सिंह गौतम 'अनुराग' जी के सम्पूर्ण साहित्य में ग्रामीण जीवन से लेकर महानगर की कोलाहल भरी जिंदगी तक के विभिन्न चित्र मिलते हैं। उनके गीतों में बहुआयामी प्रेम और विरह वेदना के स्वर है तो सामाजिक विषमताओं और विवशता की पीड़ा भी। जहां वह नायिका के रूप सौंदर्य का बखान करते हुए श्रंगार रस से परिपूर्ण गीत रचते हैं तो वहीं उनकी कलम आतंकवाद और राजनीति के छल प्रपंच के ऊपर भी चलती है। वह अपने आसपास होने वाली घटनाओं को भी अनदेखा नहीं करते। नैतिक और सांस्कृतिक मूल्यों के पतन पर भी चिंता व्यक्त करते हैं।
मशहूर नवगीतकार योगेन्द्र वर्मा व्योम ने कहा कि अनुराग जी का कृतित्व निश्चित रूप से अनूठा है, अनौखा है, विलक्षण है इसलिए उनके कृतित्व की तुलना किसी भी अन्य देशी अथवा विदेशी व्यक्तित्व के कृतित्व से करना किसी भी दृष्टि से कदापि उचित नहीं होगा। उनके समग्र सृजन का यद्यपि अभी तक उस स्तर पर मूल्यांकन भले ही न हो पाया हो जिस स्तर के मूल्यांकन का सुपात्र उनका रचनाकर्म है, किन्तु यह अकाट्य सत्य है कि ‘अनुराग’ जी का समग्र सृजन हिन्दी साहित्य के इतिहास में मील का पत्थर है और भावी पीढ़ियों के लिए पथ-प्रदर्शक भी।
समीक्षक डॉ मोहम्मद आसिफ हुसैन ने कहा कि मेरे नज़दीक अनुराग जी को सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि उनकी जो कृतियां अभी तक अप्रकाशित हैं उन्हें प्रकाशित कराया जाए ताकि एक अनमोल धरोहर हमारे सामने आ सके। एक गुज़ारिश यह भी है कि ऐसे महान स्मृतिशेष व्यक्ति के संबंध में दो चार लेख इस तरह के आने चाहिएं जिससे नई पीढ़ी उन से भली-भांति परिचित हो जाए। जैसे उस व्यक्ति के प्रारम्भिक रचना कर्म पर लिखा जाए, जिन परिस्थितियों में जीवन गुजा़रा और साहित्य सर्जन के लिए जो परिश्रम किया उस पर लिखा जाए। तत्पश्चात कृतियों और रचनाओं पर चर्चा हो ताकि नई पीढ़ी को हौसला मिल सके और उसका मार्गदर्शन हो सके और यह मालूम हो सके कि ऐसे व्यक्ति को यहां तक पहुंचने में कितनी मेहनत करनी पड़ी है।
युवा कवि राजीव प्रखर ने कहा कि श्री ब्रजभूषण सिंह गौतम 'अनुराग' अन्तस की वेदना को जीवंत कर देने वाले दुर्लभ रचनाकार थे। अपने मनमोहक गीतों के माध्यम से मुरादाबाद के साहित्यिक इतिहास में अमर 'अनुराग' जी ऐसे गीतकार हुए हैं, जिनकी रचनाऐं हृदय को भीतर तक स्पर्श करती हैं। जो वेदना उनकी रचनाओं के केन्द्र में रही, उसे उन्होंने स्वयं भी अवश्य अनुभव किया होगा, जिया होगा।
युवा कवियत्री हेमा तिवारी भट्ट ने कहा कि स्मृति शेष बृजभूषण सिंह गौतम अनुराग की विलक्षण प्रतिभा होने का ही साक्ष्य है क्योंकि प्रतिस्पर्धा में कुछ पंक्तियांँ, कुछ कविताएंं तो लिखी जा सकती हैं पर अस्वस्थता के बावजूद 190 छंद के मुकाबले 218 छंद लिखना वह भी कला और भाव पक्ष की स्तरीयता के साथ, यह कार्य किसी सामान्य लेखक के बूते का नहीं है। तभी तो वह मेरे लिए कौतूहल जगाते व्यक्तित्व ही हैं। उनका समर्पण भाव और सिद्धहस्तता ही उनके लेखन कौशल की वह विशेषता है जो आमतौर पर आज के समय के लेखकों में दुर्लभ है।
युवा कवि मयंक शर्मा ने कहा कि आदरणीय अनुराग जी के गीतों को पढ़कर सहज ही उनकी उत्कृष्ट लेखनी का अंदाज़ा लग जाता है। गीतों में प्रेम में मिलन की आस है तो विरह की वेदना भी है। सामाजिक विद्रूपताओं के विरुद्ध खड़ा होने वाला प्रतिनिधि कवि है तो प्रकृति का चितेरा, पुष्प की सुगंध और कांटों की चुभन को महसूस करने वाला कोमल ह्रदयी भी। शहरी जीवन से उकता कर गांव जाकर नीम की छाँव और मिट्टी की ख़ुशबू लेने की उत्कंठा भी है। हर रचना में सुंदर शब्दों से मनभावन वाक्य संयोजन किया गया है। इनको पढ़ना काव्य की कक्षा में अच्छा समय व्यतीत करने जैसा रहा।
युवा कवियत्री मीनाक्षी ठाकुर ने कहा कि अनुराग जी ने शायद समाज में आयी संबंधों की रिक्तता, स्वार्थपरता ,शहरीकरण, गाँवों का शहरों को पलायन, प्रकृति से दूरी का दर्द, सब कुछ तो समेट लिया है। दर्द के बावज़ूद कहीं न कहीं मानव मन में सहज भाव से उपजने वाले श्रृंगारिक भावों को भी बड़ी ही सुंदरता से जीवंत करता उनके  गीत बरबस ही प्रकृति व पुरूष के परस्पर आकर्षण को सजीव करते प्रतीत होते हैं। प्रकृति का सजीव चित्रण,दर्द की पीड़ा ,श्रृंगार की चमक ,समाज में अनुशासनहीनता व विद्ररुपता पर चलती पैनी कलम से सम्भवतः कहीं कुछ छुटा ही नहीं है।
ग्रुप एडमिन और संचालक शायर ज़िया ज़मीर ने कहा कि बृजभूषण सिंह गौतम अनुराग जी मुरादाबाद के वरिष्ठ कवि हैं। जिन्होंने बहुत लिखा है। गौतम जी के यहां प्रकृति से जुड़े शब्दों और प्रकृति से संबंधित गीत और रचनाएं अधिक देखने को मिलती हैं। जिसमें उन्होंने अपने कवि को व्यक्त किया है। इसके अलावा उनके यहां कुछ ऐसे शब्द भी हैं जो पुनरावृत हो कर आते हैं और खास तौर पर जिनका प्रयोग बाल साहित्य में अधिक होता है। इस तरह हम कह सकते हैं कि शब्दों को प्रयोग करने में उन्हें किसी तरह की झिझक नहीं थी चाहे वह साहित्यिक शब्द हो या ना हो इससे यह साबित होता है कि उनके पास शब्दों का बहुत अधिक भंडार था। यहां प्रस्तुत गीतों में बहाव भी है और भाव भी है। मुझे गौतम जी के कुछ गीत अच्छे लगे।

:::;;;:प्रस्तुति;;;;;;;;
ज़िया ज़मीर
ग्रुप एडमिन
मुरादाबाद लिटरेरी क्लब
मो०8755681225

मंगलवार, 18 अगस्त 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार मयंक शर्मा केे दस गीतों पर "मुरादाबाद लिटरेरी क्लब" द्वारा ऑनलाइन साहित्यिक चर्चा-------


वाट्स एप पर संचालित साहित्यिक समूह मुरादाबाद लिटरेरी क्लब द्वारा 'एक दिन एक साहित्यकार' की श्रृंखला के अन्तर्गत 15 व 16 अगस्त 2020 को मुरादाबाद के युवा गीतकार मयंक शर्मा  केे दस गीतों पर ऑन लाइन   साहित्यिक  चर्चा का आयोजन  किया  गया । सबसे पहले मयंक शर्मा द्वारा   निम्न दस गीत पटल पटल पर प्रस्तुत किये गए-

(1)
जन्म सार्थक हो धरा पर स्वप्न हर साकार हो,
हम चलें कर्तव्य पथ पर और जय जयकार हो।।                               
कंटकों के बीच में भी हैं सुमन रहते खिले,
हो पवन जाती सुगंधित जब कभी इनसे मिले।
अन्न उपजाती स्वयं का वक्ष धरती चीरकर,
तृप्त होता मन सदा बहती नदी के तीर पर।
काज परहित के करें अपना यही व्यवहार हो।
हम चलें कर्तव्य पथ पर........ 

दीर्घजीवन भी निरा किस काम का बिन मान के,
हम चले जाएं बिना अपनी किसी पहचान के।
कामना प्रभु से भले दो अल्प जीवन सीढ़ियां,
त्याग ऐसे कर चलें हम याद रख लें पीढ़ियां।
हों विदा संसार से तो आँसुओं की धार हो।
हम चलें कर्तव्य पथ पर........     

बेल पर संघर्ष की खिलता सदा ही फूल है,
कुछ पलों का कष्ट मानो ठोकरों की धूल है।
इस समर में सामना है द्वेष, छल, मद, स्वार्थ से,
जीतना होगा हमें यह युद्ध निज पुरुषार्थ से।
लक्ष्य का संकल्प अपनी जीत का आधार हो।
हम चलें कर्तव्य पथ पर........

(2)

राम तुम्हें आना होगा इस धरा पर अबकी बार भी,
करना होगा धर्मशस्त्र से, दुःखियों का उद्धार भी।

काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह ने सबको ऐसा घेरा है,
राह नहीं आसान जगत पर तम ने किया बसेरा है।
प्रेम, त्याग, पुरुषार्थ, शौर्य से गुण के तुम थे अवतारी,
राम नहीं कोई तुम जैसा रावण सब पर है भारी।
जीवन पथ आलोकित करके हरो घोर अंधियार भी,
करना होगा धर्मशस्त्र से....

मानव होकर हमने अपनी मानवता को मार दिया,
देव समझ बैठे थे ख़ुद को असुरों सा व्यवहार किया।
पथ में बिखरे शूल हमारे, अगणित अनचाहे डर हैं,
जीवन और मरण के जाने कैसे दोराहे पर हैं।
डोल रही जीवन नौका की थाम लो तुम पतवार भी,
करना होगा धर्मशस्त्र से....

(3)

मन ले चल अपने गाँव हमें शहर हुआ बेगाना,
दुख का क्या है दुख से अपना पहले का याराना।                                                           
इनकी पगडण्डी से लेकर हमने महल बनाये,
 पर अपने सिर के ऊपर इक छत भी डाल न पाए।। अब रातें सदियों सी लगतीं दिन सालों से  भारी, चलना है दुश्वार मगर चलने की ज़िम्मेदारी।
कुछ दिन रहना एक जगह फिर पंछी बन उड़ जाना।  मन ले चल...                                         

लगता है अब ख़ुद पर ख़ुद का ही अधिकार नहीं है, अपने मन वाले सपनों का ये संसार नहीं है।              मज़दूरी तो मजबूरी का नाम हुआ करती है,            तन से निकले खारे जल का दाम हुआ करती है।        याद रहेगा सपनों का आँसू बनकर बह जाना।        मन ले चल...                                                       

सोचा कब था इसी तरह हर दर्द छुपाना होगा!          अब तक जो पाया है उसका कर्ज़ चुकाना होगा।        ऐसे मुश्किल पल ने हमको सबक यही सिखलाया,    माटी में ही मिल जाएगा इस माटी का जाया।।          बिखर गया इस संकट में जीवन का ताना बाना,        मन ले चल...

(4)

स्वर्ग फिर स्वर्ग बनकर रहेगा
खून सड़कों पे अब न बहेगा।
रंग से हो सजी तस्वीर,
भारती अब हुआ कश्मीर।     

जो गवारा न थी एक धारा वही,
दुश्मनों के लिये वो सहारा रही।
थे उगलते ज़हर होंठ सब सिल गए,
दूर थे जो कभी अब गले मिल गए।
तोड़ डाली हरिक ज़ंजीर।
भारती अब हुआ....             

 है न आतंक में न कोई जंग में,
पत्थरों में नहीं न ये बदरंग में।
केसरी गंध में पुष्प मकरंद में,
है रचा औ बसा डोंगरी छंद में।
प्यार इसकी अजब तासीर।
भारती अब हुआ....             

दो कदम तुम चलो दो कदम हम चलें,
वादियों में वही ख़्वाब फिर से पलें।
हों अमन के निशाँ ख़ूबसूरत समाँ,
कान में घंटियाँ गूँजती हो अजाँ।
हाथ से फेंक दें शमशीर।
भारती अब हुआ...

(5)

बोल मजूरे ज़ोर लगाकर बोल मजूरे हल्ला,              मांगें हम ख़ैरात कोई न चाहें सस्ता गल्ला।               
अपनी ताक़त के दम से हैं दुनिया की तामीरें।
हम हीरे, चाँदी, सोना हैं हमसे हैं जागीरें।           
ठोकर पर क्यूँ रक्खो सर का ताज बनाकर रखना।    रूठेंगे तो टूटेगा हर एक तुम्हारा सपना।                हम सच के हामी हैं सच बोलेंगे खुल्लम खुल्ला।      बोल मजूरे ....                                                     
हम मज़दूर भले हों पर मजबूर नहीं हो सकते,      खून पसीने के हक़ से अब दूर नहीं हो सकते।          पाप तुम्हारे ज़ुल्मों का जब सर चढ़कर बोलेगा।        इंक़लाब की बोली तब बच्चा-बच्चा बोलेगा।   
अंगारे हम मत समझो तुम, पानी का बुलबुल्ला।        बोल मजूरे हल्ला बोल.....

(6)

साँझ ढले हो घना अँधेरा छत पर आ जइयो,          श्वेत चाँदनी की चादर चहुँ ओर बिछा जइयो।            चाँद आ जइयो...                     

तेरी एक झलक में परियों जैसा सम्मोहन है,              पूनम वाले दीप्त चाँद की छवि ही मनमोहन है।
धीरे-धीरे मुख से तेरा आँचल को सरकाना,              अँधियारी काली रातों का रौशन होते जाना।
तारों की बारात साथ में लेकर आ जइयो।
चाँद आ जइयो...

तेरा मादक बिम्ब नदी के जल में जब उतराता,
गोरी का यौवन भी उसके सम्मुख शरमा जाता।
नभ से आने वाली किरणें इस जग को चमकाएं,
मोहक मुखड़े को मिलती हैं तेरी ही उपमाएं।
आकर्षक ये रूप हमें हर शाम दिखा जइयो।
चाँद आ जइयो...

आज अँधेरा औ तुझमें कल चाँदी की बरसातें
ऐसे ही होते हैं दुख-सुख ईश्वर की सौगातें।
विपदाओं से डरना जैसे तेरा काम नहीं है,                चलते रहना है जीवन रुकने का नाम नहीं है।
हमको भी जीवन का तुम ये सार बता जइयो।
चाँद आ जइयो...

(7)

देखकर अपनी उड़ानें और सुख से प्रीत,                  लाँघकर भी रेख को हम थे नहीं भयभीत।

अंध मद में दौड़ते थे त्याग कर सब धीर,                   सामने था, न दिखा प्रकृति के नयन का नीर।           वेदना होती मुखर तो गूँजता है नाद,                       संकटों में हैं घिरे तब कर्म आये याद।
हार में भी मानते थे हम स्वयं की जीत।
लाँघकर भी रेख को....       

स्वच्छ नभ में हो रही अब लालिमा सी प्रात,              हैं विचरते मग्न होकर जीव औ जलजात।                पुष्प के अधरों पर खिली मंद सी मुस्कान,              और भ्रमरा छेड़ता अब प्रीत की रसतान।                स्वस्थ हो जाए धरा गूंजे मधुर संगीत।
लाँघकर भी रेख को....

(8)

लाल हुई केसर घाटी गूँजा अलगावी नारा, कायर गीदड़ ने धोखे से फिर शेरों को मारा।                    ज़ार-ज़ार रोकर कहता है भारत देश ये सारा,          अबकी व्यर्थ न जाने देंगे हम बलिदान तुम्हारा।                           
   
चूड़ी, बिछिया, ईंगुर, बिंदिया कुछ भी लौट न पाया,     हँसी-ख़ुशी जीवन का सपना, सपना ही रह पाया।     किसके सिर को छाती पर रक्खेगी माँ तुम बोलो!       बेटे की अर्थी का बोझा तोल सको तो तोलो।            बिन बेटे फीकी हैं ख़ुशियाँ सूना है जग सारा।
अबकी व्यर्थ....           

अनुबंधों में संबंधों में आग लगा दो सब में,                 हैं पिशाच वो, ढूँढ रहे नर, हम हैं किस ग़फ़लत में।     काग नहीं समझें भाषा, मीठी कोयल की बोली,         हैं दिखावटी गले मिलन वो खेलें ख़ून की होली।        ऑंखों में भर लें शोले औ दिल में हम अंगारा।
अबकी व्यर्थ....             

बरसों की ग़लती पर हम तो आज भी हैं शर्मिंदा,      नर्क बनाया स्वर्ग को जिसने वो वहशी है ज़िंदा।        छप्पन इंची सीना भी सिकुड़ा-सिकुड़ा सा जाए,        पत्थर को भी भस्म बना दे इक विधवा की हाए।        बिलख रही केसर की धरती कोई नहीं सहारा।
अबकी व्यर्थ....

(9)

रंगों के रंग में रंग जाएं खेलें मिलकर होली,
मुँह से कुछ मीठा सा बोलें भूलके कड़वी बोली।

ओढ़ बसंती चूनर फिर से इठलाई है धरती,
छोड़ पुरातन परिधानों को सजती और सँवरती
रंगों का है अर्थ हमारे जीवन में खुशहाली,
नव कोपल से पेड़ लदे हैं झूमे डाली-डाली।
प्रेम लुटाकर सब पर हम खुशियों से भर लें झोली।
मुँह से कुछ मीठा...

शिकवे और शिकायत सारी भस्म यहीं हो जाएं,
तन से तन का मेल नहीं बस मन से मन मिल जाएं।
रंगों का ये पर्व अनोखा है सबसे ही न्यारा,
ख़त्म हुआ जो हर रिश्ता जीवन लेता दोबारा।
संबंधों के फूल खिलाकर बन जाएं हमजोली।
मुँह से कुछ मीठा...

हर फागुन में सोए दिल की आग भड़क जाती है,
लाल गुलाबी चेहरे में जब सामने वो आती है।
उसके चंचल नयन सदा ही करते हैं मनमानी,
इतराती यौवन पर अपने लगती है अभिमानी।
पिचकारी से दागे है मानो वो बम की गोली।
मुँह से कुछ मीठा...

(10)

मृत्तिका की सर्जना में तेल बाती सा जलूँ,
एक दीपक तुम बनो तो एक दीपक मैं बनूँ।

एक दीपक प्रेम का हो एक हो विश्वास का,
शुष्क रेतीली धरा पर बारिशों की आस का।
एक दीपक तुम कि जो निर्मल करे अंतःकरण,
एक मैं वह दीप जिससे ज्ञान का हो जागरण।
एक दीपक में जले हर दोष बोले मिथ्य का,
एक दीपक जो जले हर द्वार पर आतिथ्य का।
दूर तुमसे हो तिमिर तब मैं भला तम क्यों जनूँ!
एक दीपक तुम बनो....

एक दीपक से प्रकाशित धर्म का हो आचरण,
आचरण की शुद्धता व्यभिचार का कर दे क्षरण।
मैं जलाकर राख कर दूँ पापियों के पाप को,
तुम हरो करुणा, दया से दीन के संताप को।
एक दीपक मैं बनूँ संघर्ष जिसकी सम्पदा,
एक तुम जो आँधियों में भी रहे जलता सदा।
हो जहाँ तक भी अँधेरा रौशनी को ले चलूँ,
एक दीपक तुम बनो....

कर गए बलिदान ख़ुद को चाँदनी की चाह में,
दीप जगमग हों सदा उन प्रहरियों की राह में।
स्वप्न स्वर्णिम रश्मियों के वे हमें देकर गए,
है समय अब आ गया निर्माण का भारत नए।
एक दीपक भारती के पुण्य वैभव गान का,
जन्म पावन इस धरा पर ईश्वरी वरदान का।
कामना है हर जनम में दीप बनकर ही जलूँ।
एक दीपक तुम बनो....

इन गीतों पर चर्चा शुरू करते हुए मशहूर शायर मंसूर उस्मानी ने कहा कि मयंक जी को मैंने जितना सुना था उससे ज्यादा लिटरेरी क्लब के पटल पर पढ़ा। मुझे कहने दिया जाये कि उनके गीतों में जिंदगी का जो हौसला अहसास की जो सच्चाई अपनी संस्कृति का जो सम्मान मौजूद है, वह उनके शानदार साहित्यिक भविष्य का अंदाजा लगाने के लिए बहुत काफी है।
वरिष्ठ कवि शचीन्द्र भटनागर ने कहा कि गेयता हो तो गीतात्मकता में माधुर्य और प्रभाव में वृद्धि हो जाती है। मयंक के प्रस्तुत गीतों में अध्यात्म है। परमार्थ पूर्ण जीवन की प्रेरणा है। मानव होकर मानवता विहीन होने का दु:ख है। श्रम जीवियों का अपना दर्द है। कश्मीर से संबंधित गीतों के माध्यम से देशभक्ति  का भाव उमड़ा है। सीमा के जांबाज प्रहरियों पर भरोसा है और विधेयात्मक भविष्य पर विश्वास है। संबंधों में आत्मीयता की प्रेरणा है दीपक बनकर सृजन की आकांक्षा है।
विख्यात व्यंग्य कवि डॉ मक्खन मुरादाबादी ने कहा कि मयंक के गीतों में यद्यपि समाज की अन्य चिंताएं भी हैं पर उनका मूल स्वर राष्ट्रीय चेतना से जन्मा राष्ट्रप्रेम है। वर्तमान में कविताएं इस धारा से कटी हुई है क्योंकि यह मुश्किल है।
वरिष्ठ कवि डॉ अजय अनुपम ने कहा कि बहती हुई धारा जैसी गति और बोलचाल के शब्दों में उमड़ते मन के भावों को गीत के रूप में पिरोने काम आसान नहीं होता, लेकिन मयंक इसमें समर्थ हैं। सामयिक घटनाओं से,जीवन के और नैसर्गिक सौंदर्य के प्रति भावनाओं की सहज अभिव्यक्ति और सामाजिक संदेश सब इन रचनाओं में उपस्थित है।
वरिष्ठ कवि आनंद कुमार गौरव ने उनके प्रस्तुत गीतों पर चर्चा करते हुए कहा कि मयंक जी से गीत काव्य को और पर्याप्त समृद्धि की बलवती सम्भावनाएँ हैं।  उन्होंने मुरादाबाद लिटरेरी
 क्लब द्वारा इस प्रकार के आयोजनों की सराहना की
मशहूर शायर डॉ कृष्ण कुमार नाज़ ने कहा कि मयंक शर्मा जी का जहां लाजवाब तरन्नुम श्रोताओं को मंत्र मुग्ध कर लेता है वहीं उनके गीतों के उत्कृष्ट भाव लोगों के दिलों में उतरते चले जाते हैं क्योंकि वहां कल्पना की अतिशयता नहीं है।
वरिष्ठ कवि डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा कि मुरादाबाद के साहित्यिक पटल पर पिछले पांच-छह साल में जो नाम तेजी से उभरे हैं उनमें एक नाम है मयंक शर्मा का। उनके गीतों की स्वर लहरियां कभी तन मन में जोश भर देती हैं तो कभी करुणा का भाव भी जगा देती हैं। उनके गीत जहां भारतीय संस्कृति और राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत हैं वहीं वह सामाजिक विकृतियों, विद्रूपताओं को भी बखूबी उजागर करते हैं। वह जहां एक ओर शिकवे शिकायतें  भुलाकर सम्बन्धों के फूल खिलाने, प्रेम और विश्वास का दीप जलाने का  आह्वान करते हैं।
प्रसिद्ध कवियत्री डॉ पूनम बंसल ने कहा कि प्रिय मयंक गीतकार के रूप में उभरता हुआ नाम हैं। उनके गीत सहज सरल और सारगर्भित हैं जिसमें सामाजिक सरोकार भी है और राष्ट्र प्रेम भी कई गीत मंच पर सुनने का अवसर मिला गीत जब वो गाते है तो मानो सबको सम्मोहित कर लेते है और वो गीत हृदय को भीतर तक झंकृत करते हैं। मयंक को स्नेहिल शुभकामनाएं उनकी वाणी, स्वर कलम पर माँ शारदे की कृपा यूँ ही बनी रहे और वो अपनी रचनाधर्मिता से नगर को गौर्वान्वित करें।   
प्रसिद्ध नवगीतकार योगेंद्र वर्मा व्योम ने कहा कि मुरादाबाद के बेहद संभावनाशील युवा कवि मयंक शर्मा के गीतों को अनेक बार सुना है विभिन्न कार्यक्रमों में, अपने मीठे स्वर में जब वह अपने गीत प्रस्तुत करते हैं तो उपस्थित सारे श्रोता मंत्रमुग्ध हो उठते हैं। माँ सरस्वती जी की उन पर विशेष कृपा है।
प्रसिद्ध समीक्षक डॉ मोहम्मद आसिफ हुसैन ने कहा कि मयंक शर्मा जी के गीत पढ़ने का अवसर प्राप्त हुआ तो उन्हें स्वत: ही गुनगुनाने लगा। मैंने यह उनके गीतों में तासीर देखी। अच्छा लगा कि उनसे मिलने से पहले उनकी अंतरात्मा की आवाज़ सुनने का सुअवसर प्राप्त हो गया। तो यक़ीन हो गया कि वह एक आदर्शवादी व्यक्तित्व के धनी हैं। एक आदर्शवादी व्यक्ति जब मर्यादाओं का हनन होते हुए और काम,क्रोध,मद लोभ और मोह का साया हर तरफ़ मंडराते हुए देखता है तो मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम को पुकारना स्वभाविक ही प्रतीत होता है। संक्षेप में कहा जा सकता है कि आने वाले समय में एक कामयाब और सशक्त गीतकार हो कर उभरेंगे उनमें सृजनशीलता खूब भरी हुई है वह अपनी जड़ों से जुड़े हुए आसमान छूने की सलाहियत रखते हैं।
युवा शायर राहुल शर्मा ने कहा कि मयंक उस सुरीली परम्परा के गीतकार हैं जिसकी शुरुआत बच्चन जी से हुई। आदरणीय भारत भूषण जी और स्मृतिशेष किशन सरोज जी ने जिसे पुष्पित पल्लवित किया और श्री कुँवर बेचैन तथा विष्णु सक्सेना आज भी जिसका परचम लहराए हुए हैं। मयंक जाग्रत चेतना के कवि हैं। उनकी रचनाओं में जागृति और आह्वान प्रचुरता से देखने को मिलता है।
समीक्षक डॉ रबाब अंजुम ने कहा कि मयंक जी का काव्य पढ़ा। उनके गीत बहुत कुछ कह गए। अपने सुरताल के साथ मयंक जी का होली के रंगों से शुरू हुआ गीत उर्दू के अवामी शायर नज़ीर की याद दिला गया।
युवा शायर मनोज मनु ने कहा कि मयंक जी के  रचना पाठ में जो रस अनुभूति होती है उसमें लगता है कि संगीत भी साथ साथ बह रहा हो। मयंक जी की रचनाओं में  संस्कृति, स्वाभिमान, सामाजिकता, देश भक्ति ,संबंधों के प्रति यथा योग्य स्नेह व सम्मान  आदि मुख्यतया पाया जाता है। शृंगारिक रचना कर्म कर्म भी शालीनता को  प्रमुखता  से लिया गया है।
युवा शायर फ़रहत अली ख़ान ने कहा कि भक्ति है, श्रृंगार है, वीरता है, करुणा है, फ़लसफ़ा है यानी इन गीतों में कवि मयंक शर्मा जी के कई रंग देखने को मिले। दी गयी कविताओं के हवाले से वीर रस का प्रतिनिधित्व हालाँकि इन सब में से ज़्यादा है। वीर रस के अच्छे कवि ढूँढने पर भी नहीं मिलते, यानी वीर रस के ऐसे कवि जिन की कविताएँ विशेष काल-खंड की दीवारों को पार कर जाएँ और हर दौर में प्रासंगिक बनी रहें। मयंक शर्मा जी इस लिहाज़ से एक रौशन मुस्तक़बिल की उम्मीद जगाते हैं।
युवा कवि राजीव प्रखर ने कहा कि मयंक जी सर्जन करते ही नहीं अपितु उसे जीते भी हैं। मानवता को अपनाने का सार्थक व प्रेरक आह्वान, पापों से त्रस्त होकर प्रभु से प्रार्थना, शहरों के बनावटी जीवन से उपजी वेदना, विभिन्न विसंगतियों से त्रस्त धरा, स्वाभिमानी श्रमिक के हृदयोउद्गार, मनोहारी प्राकृतिक वर्णन, शत्रु पर विजय का शंखनाद, सामाजिक समरसता आदि अनेक पहलुओं को कुशलता पूर्वक छूती उनकी लेखनी इसका स्पष्ट प्रमाण है।
कवि श्रीकृष्ण शुक्ल ने कहा कि मयंक शर्मा एक उभरते हुए गीतकार हैं। सरल भाषा व संवाद शैली में छंदबद्ध किये हुए अपने गीत जब वह अपने सुमधुर स्वर में गाते हैं तब श्रोताओ को मानो सम्मोहित कर लेते हैं। उनके गीतों का जादू सुनने वाले के मन पर गहरी छाप अंकित करता है।
युवा कवियत्री मीनाक्षी ठाकुर ने कहा कि मुरादाबाद के साहित्यपटल पर उर्जावान  व अपनी सुरीली आवाज़ से मंत्रमुग्ध करते हुए युवा गीतकार व गायक के रूप में  तेजी से उभरे हैं। मैं और मेरा पूरा परिवार मयंक भाई का बहुत बड़ा प्रशंसक है।मैं तो  अक्सर उनके गीतों की पंक्तियां गुनगुनाती हूँ।
ग्रुप एडमिन और संचालक शायर ज़िया ज़मीर ने कहा कि नौजवान गीतकार मयंक शर्मा के गीतों को पढ़कर मेरा पहला ता'सुर यही है कि ये गीत ख़ामोशी से पढ़ने वाले गीत नहीं है। इनको थोड़ी सी बुलंद आवाज़ में आप पढ़ेंगे तो आपको ज़्यादा मज़ा आएगा और आप इन गीतों के अधिक क़रीब पहुंचेंगे। इन गीतों में भरपूर ऊर्जा है, जो हमारे तन और मन को ऊर्जावान तो बनाती ही है, हमारे अन्दर सकारात्मकता भी भर देती है।

:::::::::प्रस्तुति::::::

ज़िया ज़मीर
ग्रुप एडमिन
"मुरादाबाद लिटरेरी क्लब"
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