बुधवार, 8 मई 2024

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृति शेष माहेश्वर तिवारी को श्रद्धा सुमन अर्पित करते डॉ ओम निश्चल के दो गीत .......


कहां खो गए तुम

मुझे छोड़ कर के 

कहां छुप के बैठे हो

मुंह मोड़ कर के।

 

चलो आओ सम्मुख

 करो मुझसे बातें

 तो बातों से निकलेंगी

 कितनी ही बातें।

वो सदियों के रिश्ते

कभी जोड़ कर के।

कहां खो गए तुम

मुझे छोड़ कर के।


 अकेले हैं कितने

 तुम्हीं जानते हो 

 विकल वेदना मेरी

 पहचानते  हो 

जो वादे किए थे 

उन्हें तोड़ कर के।

कहां खो गए हो 

मुझे छोड़ कर के।


 उदासी का आलम 

 हमेशा न  होगा 

 कहीं  धूप  होगी 

 तो साया भी होगा 

भरोसा  न  तोड़ो 

ये मुंह मोड़ कर के।

कहां खो गए तुम

मुझे छोड़ कर के।

(2)

आई फिर एक और शोक की घड़ी

टूट  गई  एक  और गीत की कड़ी।


बिंबों की मालाएं

जैसे  बनफूल सी

झरती हैं धरती पर

महुए के फूल सी

भूल नहीं पाएंगे हम उनकी बंदिशें

यादों  में  उभरेगी  गीत  की लड़ी।


कवियों के कुल से 

उनका गहरा नाता था

छंदों का साथ रहे

यही उन्हे भाता था

याद बहुत आयेंगी जिंदादिल संध्याएं

बतकहियों, गीत  औ संगीत से भरी।


सरस्वती का आंगन 

कुछ सूना सूना है

उनकी अनुपस्थिति से

मन का दुख दूना है

कौन दुलारेगा अपनी आभा से गीत को

दुख  की   चादर   ओढ़े   वेदना  खड़ी।


हरसिंगार झरता था

ज्यों मन के आंगन में

इंद्रधनुष उग आता 

था नभ के दर्पण में

गीत कौन लिखेगा नदी की उदासी की

कौन  भला  फूंकेगा  लहरों  में बांसुरी।

✍️ ओम निश्चल 

नई दिल्ली

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