बुधवार, 8 मई 2024

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष माहेश्वर तिवारी को याद करते हुए यश मालवीय का गीत


कोई किरन अकेली करती माहेश्वर को याद


टूट गया है गीतों वाला

बरसों का संवाद

कोई किरन अकेली करती

माहेश्वर को याद


हरसिंगार के फूल से आंसू

झर झर झरते हैं 

चुप रहकर भी जाने कितनी

बातें करते हैं 


सब कुछ सूना लगे

इलाहाबाद, मुरादाबाद


स्वप्न रेत के गीली आंखों में 

भर जाते हैं 

होठों पर लेकिन मीठी

वंशी धर जाते हैं 


धीरे धीरे हो जाता है

पीड़ा का अनुवाद


पोर पोर में जलती सी

समिधाएं होती हैं 

एक नहीं कितनी ही

गीत कथाएं होती हैं 


बदला बदला सा लगता है

छंदों का आस्वाद।


✍️ यश मालवीय

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