सोमवार, 31 अगस्त 2020

मुरादाबाद लिटरेरी क्लब की ओर से प्रख्यात साहित्यकार फ़िराक़ गोरखपुरी की जयंती पर उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर ऑन लाइन साहित्यिक चर्चा


      वाट्स एप पर संचालित साहित्यिक समूह 'मुरादाबाद लिटरेरी क्लब' की ओर से शुक्रवार 28 अगस्त 2020 को " विरासत जगमगाती है" शीर्षक के तहत प्रख्यात साहित्यकार फ़िराक गोरखपुरी को उनकी जयन्ती पर याद किया गया। ग्रुप के सभी सदस्यों ने उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर ऑन लाइन चर्चा की।
सबसे पहले ग्रुप एडमिन ज़िया ज़मीर ने उन के जीवन के बारे में विस्तार से बताया कि फ़िराक़ गोरखपुरी का अस्ल नाम रघुपति सहाय था। वो 28 अगस्त 1896 ई. को गोरखपुर में पैदा हुए। उनके वालिद गोरख प्रशाद ज़मींदार थे और गोरखपुर में वकालत करते थे। उनका पैतृक स्थान गोरखपुर की तहसील बाँस गांव था। फ़िराक़ ने उर्दू और फ़ारसी की शिक्षा घर पर प्राप्त की, इसके बाद मैट्रिक का इम्तिहान गर्वनमेंट जुबली कॉलेज गोरखपुर से सेकंड डिवीज़न में पास किया। फ़िराक़ को नौजवानी में ही शायरी का शौक़ पैदा हो गया था और 1916 ई. में जब उनकी उम्र 20 साल की थी और वो बी.ए के छात्र थे, पहली ग़ज़ल कही। सियासी सरगर्मियों की वजह से 1920 ई. में  उनको गिरफ़्तार किया गया और उन्होंने 18 माह जेल में गुज़ारे। 1922 ई. में वो कांग्रेस के अंडर सेक्रेटरी मुक़र्रर किए गए। 1930 ई. में उन्होंने प्राईवेट उम्मीदवार की हैसियत से आगरा यूनीवर्सिटी से अंग्रेज़ी साहित्य में एम.ए. का इम्तिहान विशेष योग्यता के साथ पास किया और कोई दरख़ास्त या इंटरव्यू दिए बिना इलाहाबाद यूनीवर्सिटी में लेक्चरर नियुक्त हो गए। 1961 ई. में उनको साहित्य अकादेमी अवार्ड से नवाज़ा गया, 1968 ई. में उन्हें सोवियत लैंड नेहरू सम्मान दिया गया। भारत सरकार ने उनको पद्म भूषण ख़िताब से सरफ़राज़ किया। 1970 ई. में वो साहित्य अकादेमी के फ़ेलो बनाए गए। उनको काव्य संग्रह “गुल-ए-नग़्मा” के लिए अदब के सबसे बड़े सम्मान ज्ञान पीठ अवार्ड से नवाज़ा गया। 1981 ई. में उनको ग़ालिब अवार्ड भी दिया गया। उन्होंने कहा कि अगर आप रिवायत की पगडंडियों को न छोड़ते हुए जदीद रास्तों की तलाश में निकलना चाहते हैं तो फ़िराक़ इस सिलसिले का पहला पुल साबित होते हैं। इस मरहले में हमारे लिए यह लाज़िम है कि हम फ़िराक़ को पढ़ें और बार-बार पढ़ें। फ़िराक़ के यहां आलमी अदब, ख़ासतौर पर अंग्रेज़ी अदब और भारतीय दर्शन आपस में ऐसे घुल मिल गए हैं कि हमें एहसास ही नहीं होता कि हम दूसरी ज़बानों में भारतीय दर्शन पढ़ रहे हैं या भारतीय दर्शन में दूसरी ज़बानों का अदब दर आया है। फ़िराक़ मेरी नज़र में वो नाम है कि जिसे अगर हटा दिया जाए तो शायरी में रिवायत और जदीदियत का रिश्ता तो कमज़ोर होगा ही, साथ ही साथ शायरी को समझने और उस पर बात करने की तरबियत भी कहीं गुम हो जाएगी।
 विख्यात नवगीतकार माहेश्वर तिवारी ने कहा कि फ़िराक़ साहब को याद करना आधुनिक शायरी की एक किताब के वज़नी वॉल्यूम को दिल और दिमाग के दो हाथों के संतुलन से उठा कर पढ़ते-पढ़ते अदब की एक विशाल इमारत के तमाम कमरों से होकर गुज़रने जैसा है। फ़िराक़ साहब को सुनने और मजनूँ साहब से दो साल पढ़ने का सौभाग्य मिला है मुझे।
मशहूर और मक़बूल शायर मंसूर उस्मानी ने कहा कि इस पटल पर फिराक साहब की चर्चा एक बड़ी उपलब्धि है। मैं फिराक साहब को अपने रंग का इस सदी का बहुत बड़ा शायर मानता हूँ। उनके बारे में मैंने बहुत कुछ लिखा है और बेशुमार शहरों में बहुत कुछ कहा है। फिराक साहब ने गजल को परिभाषित करते हुए लिखा था "गजल ला-महदूद इंतहाओं का सिलसिला है"। इसी तरह उन के बेशुमार शेर हैं जिनकी मिसाल पूरे अदब में नहीं मिलती, यही वो खासियतें हैं जो फिराक को अदब में हमेशा जिंदा रखेंगी।
वरिष्ठ व्यंग्य कवि डॉ मक्खन मुरादाबादी ने कहा कि फ़िराक़ साहब पर होते चर्चों को सुनकर यह अवश्य महसूस किया है कि फ़िराक़ साहब ने उर्दू शायरी के बड़े गैप को भरने का काम करके एक ऐसी शख्सियत का निर्माण किया, जिसके आगे हर कोई नतमस्तक हुआ और उन्हें सराहे बिना नहीं रह सका।
मशहूर शायरा डॉ० मीना नक़वी ने कहा कि फ़िराक़ उन चुनिंदा फ़नकारों में से एक हैं जो महज़ शायरी तक महदूद नहीं रहे। वो खूब पढ़े-लिखे आदमी थे। उन्होंने मज़हबी फलसफों पर भी लिखा और राजनीति पर भी। आलोचनात्मक लेख भी लिखे।
वरिष्ठ कवि डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा कि मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं कि कल तक मैं फ़िराक़ गोरखपुरी के बारे में किस्सों के जरिये थोड़ा बहुत जानता तो था लेकिन उनकी शायरी कभी भी नहीं पढ़ी या कहिये कि उर्दू शायरी में कभी कोई खास रुचि ही नहीं रही।  क्लब से जुड़ने के बाद ही इस ओर रुचि हुई है। कल रात पहली बार मैंने नेट पर सर्च करके फिराक साहब को पढ़ा। उनकी शायरी पढ़ी उनके तमाम किस्से पढ़े।
युवा शायर मनोज वर्मा मनु ने कहा कि आदरणीय रघुपति सहाय 'फिराक़' गोरखपुरी साहब को मुख़्तसर पढ़ा भी है। उस समय के और आज तक भी अपने लहजे की जदीदयत समेटे उनके कलाम जो बहुत मक़बूल हुए। उनकी नज्में जो अपना अलग अंदाज रखती हैं ,को पढ़कर दिल यह सोचने को मजबूर हो जाता कि जब इतने वक़्त पहले ही हमारे तसव्वुर से आगे की चीजें पढ़ी जा चुकी हैं। कही जा चुकी हैं।
युवा कवि राजीव प्रखर ने कहा कि रघुपति सहाय फ़िराक़ 'गोरखपुरी', शायरी के इतिहास में हुए एक ऐसे महा-तपस्वी, जिनके अन्तस से निकल कर कागज़ तक  पहुँचा प्रत्येक शब्द, अवलोकनकर्ता से संवाद स्थापित करता है। निश्चित रूप से उनकी गणना उन महान शायरों में की जा सकती है जिन्होंने साहित्य में अपने समय के पूर्व से चले आ रहे अनेक बंधनों को सफ़लतापूर्वक तोड़ा। महान भारतीय संस्कृति को अपनी हृदयस्पर्शी शायरी में पिरो कर उन्होंने समाज को एक ऐसा साहित्यिक खजाना दिया, जो आगामी पीढ़ियों का भी निरंतर मार्गदर्शन करेगा।
युवा गीतकार मयंक शर्मा ने कहा कि हालांकि फिराक को इश्किया शायर कहा गया लेकिन उनका प्यार केवल औरत तक सीमित नहीं रह गया। उन्होंने कुदरत और इंसानियत से प्यार करना सिखाया। फिराक साहब शायरी में भारी भरकम और जटिल शब्दों को व्यर्थ मानते थे। एक चर्चा में उन्होंने कहा कि शायरी वही अच्छी हो सकती है, जिसे 10 साल के बच्चे से लेकर 80 साल तक का बुजुर्ग तक समझ सके।

::::::प्रस्तुति:::::::
ज़िया ज़मीर
ग्रुप एडमिन
मुरादाबाद लिटरेरी क्लब
मो०8755681225

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