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रविवार, 1 मार्च 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ मक्खन मुरादाबादी की काव्य कृति कड़वाहट मीठी सी की राजीव प्रखर द्वारा की गई समीक्षा ....

आम जीवन की साकार अभिव्यक्ति - 'कड़वाहट मीठी सी'
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आज के भाग-दौड़ भरे जीवन में जबकि, व्यक्ति के पास जीवन को समझने का ही क्या, स्वयं के भीतर झाँकने का भी समय नहीं है, सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार डॉ० कारेन्द्र देव त्यागी (मक्खन मुरादाबादी) जी की व्यंग्य-कृति 'कड़वाहट मीठी सी' उसे सहज ही ऐसा अवसर प्रदान करती है। सामान्यतः जीवन में जो कुछ भी व्यक्त होता है, उसमें से ही कविता को ढूंढने का प्रयास किया जाता है परन्तु, श्रद्धेय मक्खन जी की कृति 'कड़वाहट मीठी सी' जीवन के उस पक्ष से भी कविता को ढूंढ कर ले आती प्रतीत होती है जो अव्यक्त है एवं किन्हीं परिस्थितियों वश किसी बंधन में है। संभवतः यह भी एक कारण है कि प्रकाशित होने के पश्चात् अल्प समय में ही कृति लोकप्रियता की ऊंचाइयों की ओर अग्रसर है। अग्रसर हो भी क्यों न ? क्योंकि, मक्खन जी की लेखनी से निकलने के पश्चात्, रचना मात्र रचना ही नहीं रहती अपितु, आम व्यक्ति के जीवन की साकार एवं सार्थक अभिव्यक्ति भी बन जाती है।
व्यंग्य के तीखे तीर छोड़ती एवं सामाजिक विषमताओं पर सटीक प्रहार करती हुई कुल ५१ व्यंग्य-पुष्पों से सजी इस माला का प्रत्येक पुष्प, उस कड़वी परन्तु सच्ची तस्वीर को हमारे सम्मुख ले आता है जिसकी ओर से हमारे समाज का तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग प्राय: अपने नेत्र, कर्ण एवं मुख को बंद रखना ही श्रेष्ठ समझता है।
यद्यपि कृति में से सर्वश्रेष्ठ रचनाओं का चयन करना मुझ अकिंचन के लिए संभव नहीं,  फिर भी कुछ रचनाओं का उल्लेख करने से मैं स्वयं को रोक नहीं पा रहा हूँ।
इस व्यंग्य-माला का प्रारंभ वर्तमान काव्य मंचों पर कुचली  जा रही कविता की वेदना को अभिव्यक्ति देती रचना, 'चुटकुलों सावधान' से होता है। तथाकथित व्यवसायिक मंचों का चिट्ठा खोलती इस रचना की कुछ पंक्तियाँ देखें -

"चुटकुलों सावधान
हम तुम्हें
ऐसा करने नहीं देंगे,
तुम्हारे प्रकोप से
कविता को मरने नहीं देंगे।"

इसी क्रम में एक अन्य अति विलक्षण रचना 'तुम्हारा रंग छूट जाएगा' शीर्षक से दृष्टिगोचर होती है। अति विलक्षण इसलिए क्योंकि, इस रचना की आत्मा श्रृंगारिक है जिसने व्यंग्य का सुंदर आवरण ओढ़ रखा है। रचना की कुछ पंक्तियाँ देखें -

"अब तुम
मेरे सपनों में
आना-जाना बन्द कर दो
नहीं तो,
तुम्हारे प्रति
मेरा सारा
विश्वास टूट जाएगा,
जानती हो ना
मैं तुम्हें छुऊँगा, तो
तुम्हारा रंग छूट जाएगा।"

इसी क्रम में, 'ठहाके लगाइये', 'ब्लैक-आउट', पुलिस चाहिए', 'राम नाम सत्य है', 'बीमा एजेंट चिल्लाया' आदि रचनाएं सामने आती हैं जो स्वस्थ एवं सशक्त व्यंग्य के माध्यम से, किसी न किसी विद्रूपता पर न केवल प्रहार करती हैं अपितु, अप्रत्यक्ष रूप से उनके समाधान पर सोचने को भी विवश करती हैं। कृति की समस्त रचनाओं की एक अन्य विशेषता यह भी है कि वे गुदगुदाहट से आरंभ होकर गंभीरता पर विश्राम लेती हैं।
व्यंग्य के कुल ५१ सुगंधित पुष्पों से सजी इस व्यंग्य-माला का अन्तिम पुष्प 'वर्तमान सिद्ध करने में लगा है' शीर्षक रचना के रूप में हमारे सम्मुख है। इस संक्षिप्त परन्तु बहुत ही सशक्त रचना की पंक्तियाँ देखें -

"वह व्यक्ति
जिस डाल पर बैठा था
उसी को काट रहा था,
सृजक था
जाने कौन सा
सृजन छाँट रहा था।
यह सत्य हमारा
अनुपम इतिहास हो गया,
इतना बड़ा मूर्ख
संस्कृत में कालिदास हो गया।
इतिहास,
वर्तमान का
विश्वास हो जाता है,
लेकिन वर्तमान
सिद्ध करने में लगा है
मानो
हरेक मूर्ख
कालिदास हो जाता है।।"

निष्कर्षत: यह कहा जा सकता है कि, छंद-विधान के बन्धन से परे 'कड़वाहट मीठी सी' के रूप में एक ऐसी कृति समाज के सम्मुख आयी है, जो आम जीवन को स्पर्श करने में पूर्णतया सफल है। हास्य-व्यंग्य का सार्थक एवं सटीक मिश्रण करते हुए, आकर्षक सजिल्द स्वरूप में तैयार यह कृति निश्चित ही व्यंग्य साहित्य की एक अनमोल धरोहर बनेगी, इसमें कोई संदेह नहीं। इस पावन एवं पुनीत कार्य के लिए रचनाकार एवं प्रकाशन संस्थान दोनों ही हार्दिक अभिनंदन एवं साधुवाद के पात्र हैं‌।

कृति : 'कड़वाहट मीठी सी'
रचनाकार : डॉ मक्खन मुरादाबादी
प्रकाशक : अनुभव प्रकाशन
(गाज़ियाबाद, दिल्ली, देहरादून, लखनऊ)
प्रथम संस्करण : 2019





मूल्य : 250 ₹
** समीक्षक : राजीव प्रखर
डिप्टी गंज
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत


शनिवार, 29 फ़रवरी 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ मक्खन मुरादाबादी की कविता -- मुझे अंधा हो जाना चाहिए..


तुम सवर्ण हो, अवर्ण हो तुम
तुम अर्जुन हो, कर्ण हो तुम
तुम ऊँच हो , नीच हो तुम
तुम आँगन हो, दहलीज हो तुम
तुम बहु, अल्पसंख्यक हो तुम
तुम धर्म हो, मज़हब हो तुम
कहने को तो,
नारों में भाई - भाई हो तुम
पर असलियत में,
हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई हो तुम।
और न जाने
क्या - क्या तुम हो,
सही मायने में
कुत्ते की दुम हो ।
तुम कहते हो कि तुम
ग़रीब, असहाय और नंगे हो,
यह अलग बात है कि तुम
सिर्फ लड़ाई, झगड़े और दंगे हो।
तुम कहते हो कि तुम
जाँत-पाँत से
ऊपर उठ कर सुलझे हुए हो ,
ये अलग बात है कि तुम
आज तक भी
मन्दिर, मस्जिद, चर्च और
गुरुद्वारे में उलझे हुए हो ।
तुम्हारी करतूतों ने
देश में
दुखड़े ही दुखड़े भर दिये हैं ,
तुम अपने आप को
दूसरों से तो जोड़ते क्या
तुमने अपनी-अपनी
आस्थाओं के भी टुकड़े कर लिए हैं ।
फिर भी कहतो हो कि
तुम हरेक पल
देश और समाज की
प्रगति की फ़रियाद में हो ,
ये अलग बात है कि तुम
सबकुछ पहले हो
बस,हिन्दुस्तानी बाद में हो ।
इसीलिए तो
तुम हो नहीं पाये
इंसान से आदमी
आदमी से इंसान ,
ईमान से धर्म
और धर्म से ईमान ।
तुम चाहते हो
इस महावृक्ष की
शाख-शाख को काटो ,
फिर मनचाहे अनुपात में
आपस में बाँटो ।
क़द्र करने लायक तुम्हारे हौसले हैं ,
काटो, बाँटो पर सोचो
महावृक्ष की इन
शाखों पर कुछ और भी घोंसले हैं ।
जिनमें
कल फिर निर्माण यात्रा पर
निकल पड़ने वाले
सुस्ता रहे होंगे, सो रहे होंगे ,
सोते हुए भी रो रहे होंगे ।
सँजोए हुए केवल यही डर ,
उनकी ज़िंदगी भी
न जाने कब
हो जाए किसी बम का सफ़र ।
क्या कहा ?
तुम्हें कोई याद नहीं
गाँधी, सुभाष
ऊधमसिंह या अब्दुल हमीद,
तुम्हारी करतूतों पर
शर्मिंदा होते
दिखाई नहीं देते, तुमको
अपने देश के
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और शहीद ।
तो सुनो, मैं कहता हूँ--
मुझे अंधा हो जाना चाहिए
यदि अपने देश में
रहने वाले सब
मुझे अपने दिखाई नहीं देते ,
बेशक,
मेरा गला काटकर
शहर के
किसी ख़ास चौराहे पर
लटका देना चाहिए
यदि मुझे
भारत में रहकर
भारत के
सपने दिखाई नहीं देते ।।

 ## डॉ मक्खन मुरादाबादी
झ-28, नवीन नगर, कांठ रोड
मुरादाबाद- 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9319086769


रविवार, 12 जनवरी 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार डा. मक्खन मुरादाबादी की व्यंग्यकाव्य-कृति 'कड़वाहट मीठी सी' का 11 जनवरी 2020 को लोकार्पण- समारोह एवं कृति चर्चा का आयोजन .....

साहित्यिक संस्था 'अक्षरा', 'सवेरा', 'अंतरा' एवं 'हिन्दी साहित्य सदन' के संयुक्त तत्वावधान में  शनिवार 11 जनवरी 2020 को नवीन नगर मुरादाबाद स्थित डा. मक्खन मुरादाबादी के आवास पर लोकार्पण समारोह एवं कृति चर्चा का कार्यक्रम संपन्न हुआ, जिसमें हिन्दी व्यंग्यकविता के महत्वपूर्ण तथा विख्यात हस्ताक्षर डा. मक्खन मुरादाबादी की काव्य-कृति 'कड़वाहट मीठी सी' का लोकार्पण किया गया। 

कवयित्री डॉ. प्रेमवती उपाध्याय द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना से आरम्भ हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए सुप्रसिद्ध नवगीतकार  माहेश्वर तिवारी ने कहा, "मक्खन मुरादाबादी रूढ़ अर्थों में छांदस कवि नहीं हैं लेकिन वह अपनी ध्वन्यात्मकता का प्रयोग करते हुए अपनी कविता का वितान मुक्त छंद में बुनते हैं।उनकी कविताएँ सामाजिक विसंगतियों पर करारी चोट करती हैं।मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. आर. सी. शुक्ला ने अपने उद्बोधन में कहा, "पुस्तक 'कड़वाहट मीठी सी' की कविताओं में व्यंग्य को विसंगति के विरुद्ध शस्त्र की तरह इस्तेमाल नहीं किया गया है, बल्कि मक्खन जी की कविताओं में व्यंग्य स्वयं शस्त्र बन जाता है। उनकी कविताओं के कथ्य में व्यंग्य की ऐसी अंतर्धारा प्रवाहित होती है जो बाह्य प्रदर्शन से परे है।"

विशिष्ट अतिथि श्री मंसूर 'उस्मानी' ने कहा, "मक्खन जी 1970 से कवि सम्मेलन के मंचों पर अपनी कविताओं के माध्यम से लोकप्रिय हैं। 50 वर्ष की कविता साधना के बाद आई उनकी कृति हिन्दी साहित्य में निश्चित रूप से अपना अलग स्थान बनाएगी और सराही जाएगी।" कार्यक्रम का संचालन कर रहे संस्था-अक्षरा के संयोजक योगेन्द्र वर्मा 'व्योम' ने कहा, ''मक्खनजी की कविताओं में समाज और देश में व्याप्त अव्यवस्थाओं, विद्रूपताओं, विषमताओं के विरुद्ध एक तिलमिलाहट, एक कटाक्ष, एक चेतावनी दिखाई देती है, यही कारण है कि उनकी कविताओं में विषयों, संदर्भों का वैविध्य पाठक को पुस्तक के आरंभ से अंत तक जोड़े रखता है। नि:संदेह इस कृति की कविताएं संग्रहणीय हैं।" डॉ. अजय 'अनुपम' ने इस अवसर पर कहा, "मक्खन जी की कविताएँ समाज में, देश में व्याप्त विसंगतियों पर कटाक्ष करते हुए बिसंगतियों के लिए जिम्मेदार चेहरों को बेनकाब भी करती हैं और आईना भी दिखाती हैं।" श्री गगन भारती ने कहा, "मक्खन जी की कविताएं व्यंग्य की श्रेष्ठ कविताएं हैं जो उनके व्यक्तित्व की तरह सहज व सरल भाषा में कही गई हैं और पाठक के मन को छूती हैं।" इसके अतिरिक्त डॉ. आसिफ हुसैन, शायर ज़िया ज़मीर, डॉ. मनोज रस्तोगी, डॉ. महेश दिवाकर, विशाखा तिवारी, डॉ.प्रेमवती उपाध्याय, अशोक विश्नोई, डॉ. अर्चना गुप्ता, कशिश वारसी, भोलाशंकर शर्मा, फक्कड़ मुरादाबादी, अक्षिमा त्यागी, अखिलेश शर्मा, आदि ने भी कृति के संदर्भ में विस्तारपूर्वक विचार व्यक्त किए तथा सर्वश्री काव्यसौरभ रस्तोगी, मयंक शर्मा, राजीव 'प्रखर', कौशल शलभ, धन सिंह, प्रशांत मिश्र, एम. पी. बादल जायसी, शैलेश भारतीय, खुशबू त्यागी आदि उपस्थित रहे। अंत में कृति के कवि डॉ. मक्खन मुरादाबादी ने एकल कविता-पाठ भी किया।