शनिवार, 29 फ़रवरी 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ मक्खन मुरादाबादी की कविता -- मुझे अंधा हो जाना चाहिए..


तुम सवर्ण हो, अवर्ण हो तुम
तुम अर्जुन हो, कर्ण हो तुम
तुम ऊँच हो , नीच हो तुम
तुम आँगन हो, दहलीज हो तुम
तुम बहु, अल्पसंख्यक हो तुम
तुम धर्म हो, मज़हब हो तुम
कहने को तो,
नारों में भाई - भाई हो तुम
पर असलियत में,
हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई हो तुम।
और न जाने
क्या - क्या तुम हो,
सही मायने में
कुत्ते की दुम हो ।
तुम कहते हो कि तुम
ग़रीब, असहाय और नंगे हो,
यह अलग बात है कि तुम
सिर्फ लड़ाई, झगड़े और दंगे हो।
तुम कहते हो कि तुम
जाँत-पाँत से
ऊपर उठ कर सुलझे हुए हो ,
ये अलग बात है कि तुम
आज तक भी
मन्दिर, मस्जिद, चर्च और
गुरुद्वारे में उलझे हुए हो ।
तुम्हारी करतूतों ने
देश में
दुखड़े ही दुखड़े भर दिये हैं ,
तुम अपने आप को
दूसरों से तो जोड़ते क्या
तुमने अपनी-अपनी
आस्थाओं के भी टुकड़े कर लिए हैं ।
फिर भी कहतो हो कि
तुम हरेक पल
देश और समाज की
प्रगति की फ़रियाद में हो ,
ये अलग बात है कि तुम
सबकुछ पहले हो
बस,हिन्दुस्तानी बाद में हो ।
इसीलिए तो
तुम हो नहीं पाये
इंसान से आदमी
आदमी से इंसान ,
ईमान से धर्म
और धर्म से ईमान ।
तुम चाहते हो
इस महावृक्ष की
शाख-शाख को काटो ,
फिर मनचाहे अनुपात में
आपस में बाँटो ।
क़द्र करने लायक तुम्हारे हौसले हैं ,
काटो, बाँटो पर सोचो
महावृक्ष की इन
शाखों पर कुछ और भी घोंसले हैं ।
जिनमें
कल फिर निर्माण यात्रा पर
निकल पड़ने वाले
सुस्ता रहे होंगे, सो रहे होंगे ,
सोते हुए भी रो रहे होंगे ।
सँजोए हुए केवल यही डर ,
उनकी ज़िंदगी भी
न जाने कब
हो जाए किसी बम का सफ़र ।
क्या कहा ?
तुम्हें कोई याद नहीं
गाँधी, सुभाष
ऊधमसिंह या अब्दुल हमीद,
तुम्हारी करतूतों पर
शर्मिंदा होते
दिखाई नहीं देते, तुमको
अपने देश के
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और शहीद ।
तो सुनो, मैं कहता हूँ--
मुझे अंधा हो जाना चाहिए
यदि अपने देश में
रहने वाले सब
मुझे अपने दिखाई नहीं देते ,
बेशक,
मेरा गला काटकर
शहर के
किसी ख़ास चौराहे पर
लटका देना चाहिए
यदि मुझे
भारत में रहकर
भारत के
सपने दिखाई नहीं देते ।।

 ## डॉ मक्खन मुरादाबादी
झ-28, नवीन नगर, कांठ रोड
मुरादाबाद- 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9319086769


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