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गुरुवार, 3 सितंबर 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रामकिशोर वर्मा की लघुकथा ---- स्कूल की राधा


     " अम्मी, आज कृष्ण जन्माष्टमी है न!" - रूबी ने टी वी देखते हुए अपनी अम्मी को याद दिलाने के उद्देश्य से पूंँछा ।
    " हांँ, तो !" - पूंँछते हुए रूबी की अध्यापिका अम्मी अपने काम में व्यस्त रहीं ।
    " पिछले साल स्कूल खुला था तो मुझे राधा के रूप में सजाया गया था । सभी कह रहे थे कि कहीं नज़र न लग जाये।" - बतियाते हुए रूबी की याद ताजा हो आयी और सोचने लगी कि  आजकल कोरोना के कारण सब चौपट हो गया है।
        " और पूरे स्कूल में तुम्हारी पहचान राधा के रूप में होने लगी थी ।" - रूबी की अम्मी ने हंँसते हुए उसकी खुशी को दोगुना कर दिया ।
       
✍️ राम किशोर वर्मा
रामपुर

गुरुवार, 20 अगस्त 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार राम किशोर वर्मा की लघुकथा-----वहम


    नीचे वाले फ्लैट में रह रहे चौधरी साहब और उनके पुत्र-पुत्री प्रतिदिन शाम को बिल्डिंग के नीचे आकर टहलते या उनके बच्चे ऊपर छत पर घूमने जरूर आते थे ।
    आज फ्लैट के दो-तीन परिवार  छत पर आये और सभी ने राम जन्म भूमि पूजन के पावन अवसर पर दीपक जलाये । मगर आज चौधरी साहब का परिवार छत पर दीप प्रज्जवलित करने नहीं आया ।
   दीप प्रज्जवलित करके थोड़ी देर खुशियां मनाकर सभी लोग अपने-अपने घर चले गए ।
    छत पर केवल गुप्ता जी और गहलोत जी ही रह गये थे। गुप्ताजी ने गहलोत जी से पूंँछा - "दो-तीन दिन से चौधरी साहब या उनके बच्चे दिखाई नहीं दे रहे। कुशल तो है?"
  गहलोत जी ने गुप्ता जी को बताया - "हम लोग रक्षाबंधन के पर्व पर बाजार के कई चक्कर लगा आयें हैं । इसलिए लगता है कि वह सुरक्षा की दृष्टि से कोरोना के बचाव में अपने-आप को घर में सुरक्षित रखे हुए हैं ।"
    गुप्ता जी बोले - "ऐसे तो यह भी रोज अॉफिस जा रहे हैं और इनका पब्लिक डीलिंग का काम है । तब हमने तो ऐसा नहीं सोचा।"
     गहलोत जी ने कहा - "बहम का कोई इलाज है क्या?"
     
 ✍️ राम किशोर वर्मा
 रामपुर

शुक्रवार, 14 अगस्त 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रामकिशोर वर्मा की लघुकथा ---- साड़ी में फॉल


       "मम्मी आज तीजों पर नयी साड़ी पहिनूंगी । मगर उसमें फॉल नहीं लगी है ।" - प्रमिला ने अपनी सासू मांँ से अपनी इच्छा व्यक्त करते हुए कहा - "घर में फॉल भी रखी है पर लॉकडाउन में बुटीक की दुकानें भी बंद रहने के कारण नहीं लगवा पायी ।"
   "बेटी तुमने पहले क्यों नहीं बताया ? अब तक तो मैं फॉल लगाकर तेरी साड़ी तैयार कर देती।" - सासू मांँ ने प्रमिला से बड़े प्रेम से कहा ।
    तभी सासू मांँ के मस्तिष्क में एक पुरानी स्मृति ताजा हो गयी।जब प्रमिला के विवाह को एक वर्ष ही हुआ होगा । घर में कोई विशेष काम नहीं था। पारिवारिक प्रतिदिन के कार्य सास-बहू दोनों मिलकर निबटा लेती थीं ।
    गर्मी के बड़े दिन थे। दोपहर को खाना खाने के बाद आराम करने के साथ सोना नित्य का नियम था । चार बजे सोकर उठना। चाय पीना ।
      तब सास को भी अपनी नयी-नयी बहू से बहुत प्रेम था । वह चाहती थी कि मेरी बहू जहां शिक्षित है, वहीं पारिवारिक दैनिक जीवन में होने वाले कार्यों में निपुण हो जाये ताकि उसे जीवन में कोई कठिनाई न आये।
   प्रमिला की विवाह में मिली अनेक साड़ियों में फॉल लगनी शेष थी ।
   एक दिन प्रमिला ने सासू मांँ से कहा - "मम्मी गर्मी के दिन हैं । सोने के बाद भी समय नहीं कटता।"
    सासू मांँ ने प्रमिला से कहा था - "तुम्हारी कई साड़ियांं फॉल लगाने के लिए रखी हुई हैं । फॉल भी घर में रखी हैं । फॉल लगाना मैं सिखाती हूं । तुम्हारा समय भी कट जायेगा और तुम से फॉल लगाना भी आ जायेगा। समय-असमय काम ही आयेगा।"
   तब प्रमिला ने इस बात पर बड़ा बतंगड़ खड़ा कर दिया था और अपने पति को फोन करके बताया था - " तुम्हारी मम्मी को तो पढ़ी-लिखी बहू की जरूरत नहीं थी । उनको तो फॉल लगाने वाली, कपड़े सिलने वाली बहू लानी चाहिए थी ।"
    और अगले ही दिन बाहर जॉब कर रहे बेटे ने फोन करके अपनी मम्मी से कहा था - "मम्मी फॉल लगाने के लिए साड़ियां बुटीक की दुकान पर दे देना । तुम भी अब आराम करो । अपनी आंखों पर अधिक जोर मत डालो ।"
     तभी प्रमिला ने सासू मां को कमरे से आवाज़ लगाकर बताया - " मम्मी साड़ी और फॉल मैंने निकाल ली है ।"
      इस आवाज से सासू मांँ पुरानी स्मृति से बाहर आ गयी ।और बोली - " बेटी मुझे दे दो । मैं अभी एक-दो घंटे में फॉल टांक कर तेरी साड़ी तैयार कर देती हूं ।"
   
राम किशोर वर्मा
रामपुर

बुधवार, 22 जुलाई 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रामकिशोर वर्मा की कहानी ----- पानी बचाओ


    गर्मी का मौसम चल रहा है । मैं सुबह पांच बजे उठा और ताजी हवा लेने के लिए टहलने निकल पड़ा । थोड़ी दूर ही चला था । मैं देखता हूं कि एक महिला अपने घर में लगे नल से पानी निकाल कर पूरे आंँगन को धोती हुई दरवाजे तक आ पहुंँची है ।
      जब और थोड़ा आगे पहुंँचा तो देखा कि एक महिला के घर के पास सड़क पर लगी सरकारी पानी की टंकी से पानी बाल्टी में लेकर अपने घर के दरवाजे के सामने सड़क पर खूब धुलाई कर रही है । पानी मुफ्त का है न ।
      आगे और सड़क पर मैं पहुंँचा ही था, मैं देखता हूंँ कि एक दुकानदार; जिसने दुकान अपने घर में खोल रखी है; वह नाली की सफाई पानी बहा-बहा कर कर रहा है ।
          मैं सोच रहा था कि आज मुझे सब पानी बहाने वाले ही क्यों नज़र आ रहे हैं ! सरकार समाचार -पत्रों और पोस्टरों  के माध्यम से जनता को कितना जागरूक कर रही है कि "जल है तो कल है" और "पानी की एक-एक बूंँद कीमती है, इसे व्यर्थ न बहाओ।" टी० वी० और रेडियो के माध्यम से भी समझाया जा रहा है कि विश्व में पीने के पानी की बहुत कमी हो रही है।
     मगर लोग हैं कि सोचते हैं कि मेरे अकेले के करने से क्या पानी की बचत हो जायेगी!
       मैं अपने मन-मस्तिष्क में यह सब उधेड़बुन करता हुआ आगे पहुंँचा तो देखता हूंँ कि एक युवक अपनी बाइक को पानी का पाइप लगाकर मसल-मसल कर नहला रहा है।
       मैं सोच रहा था कि क्या यह सब जीवन में जरूरी नहीं है ? हां, जरूरी तो है फिर पानी की बचत कैसै हो? यह सब प्रतिदिन न करके सप्ताह में एक बार करने पर दोनों काम बन सकते हैं । सफाई भी हो जायेगी और रोज़-रोज़ पानी भी खर्च नहीं होगा ।
     यह सब देखता-सोचता मैं चौराहे पर पहुंँच गया । जहांँ पर नगरपालिका का लगा हुआ बहुत सुंदर फब्बार सुबह को बंद मिला । मगर शाम को तो यह भी चलकर रंग-बिरंगी रोशनी में नहाता हुआ सड़क पर लोगों को आकर्षित करता है। भले ही इस सड़क पर नगरपालिका ने पीने के पानी की कोई व्यवस्था न की है ।
     मैं जब टहलने जाता हूं तो दूध लाने के लिए छोटी बाल्टी साथ ले जाता हूं । दूध की डेयरी का दूध शुद्ध लगता है क्योंकि वह हमारे सामने दूहा हुआ होता है । और उतना ही शुद्ध होता है जिसे हम हज़म कर पायें ‌। विशुद्ध चीजों को हज़म करने की आदत तो पेट को भी नहीं रही ।
     हां, घर पर देने आने वाले दूधिये से तो अच्छा ही है । उसका तो यह भी पता नहीं रहता कि दूध मिलावटी पानी वाला है या कृत्रिम दूध है?
       हां तो मैं जब डेयरी पर दूध लेने पहुंँचा तो देखा कि मालिक अभी भैंस को पानी का पाइप लगाकर स्नान करा रहे हैं । भैंसें बांँधने की जगह तो बिल्कुल चकाचक पानी से धुली हुई लग रही है ।
       मेरे दिमाग में एकदम कौंधा कि अब पोखड़-तालाब तो हैं नहीं कहीं जो गाय-भैंस जाकर वहांं नहा-धो लें । इनकी भी मजबूरी है । अगर रोजाना साफ-सफाई नहीं रखेंगे तो पशु बीमार हो सकते हैं।
      मैंने दूध लिया और घर को लौट पड़ा । मैं सोच रहा था कि पानी जीवन में कितना जरूरी है । कहांँ बचायें ?
      पिछले दिनों की बात याद आयी । अखबार में पढ़ा था कि कहीं की सड़क बिल्कुल उधड़ गयी थी । जिस पर परिवहन चलने के कारण इतनी धूल उड़ती थी कि आसपास की फसलें धूल से अट गयीं और पास के गांँव के लोगों का जीना दूभर हो गया । तब वहां पर सरकार ने रोजाना पानी के टैंकरों से छिड़काव करवा कर धूल को न उड़ने का इंतजाम तब तक किया जब तक वह सड़क नहीं बन गयी । बैठे-बिठाए पानी का अनावश्यक खर्च बढ़ा ।पानी की बचत होने से रही ।
    अब कोरोना ने पानी का खर्च और बढ़ा दिया है । पानी से हाथ धोते रहो । बाहर जाओ तो आकर नहाओ । चलो कोई बात नहीं मौसम गर्मी का है । पर घरवाली कपड़े बदलवाती है । यह अब धुलेंगे । पानी का खर्च तो बढ़ा ही साथ में बाशिंग पाउडर का खर्च भी बढ़ गया और धोने का परिश्रम अलग । अरे! साहब वाशिंग मशीन को चलाने में भी तो बिजली का खर्च बढ़ा या नहीं बढ़ा ?
   यह सब सोचते हुए मेरे पैर स्वत: अपने दरवाजे तक पहुंच गये । मेरा आज का टहलना तो जैसे पानी की भेंट चढ़ गया ।
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राम किशोर वर्मा
रामपुर



           

शुक्रवार, 10 जुलाई 2020

रामपुर के साहित्यकार राम किशोर वर्मा की कहानी ------कहानी का प्रभाव


 "शैतान सिंह आज मैंने अजीब कहानी पढ़ी ।" - मनुज ने पार्क में टहलते हुए बात करना शुरू किया ।
      "कैसी कहानी? " -शैतान सिंह ने जिज्ञासा भरे स्वर में कहा - " चल कहानी सुना।"
        मनुज ने टहलते हुए कहानी कहना शुरू की और बोला समाज को क्या परोस रहे हैं आज के लेखक - " एक वरिष्ठ नागरिक युगल घर में अकेले रह रहे थे क्योंकि उनका पुत्र अपनी पत्नी और दो बच्चों के साथ नौकरी करने के कारण बाहर बड़े शहर में रह रहा था । पुत्री का विवाह कर दिया था।
     सुबह दूध वाला आया और उसने दरवाजा खटखटाया । घंटी बजायी मगर दरवाजा नहीं खुला तो उसने पड़ौसी से पूंँछा कि आज बहुत देर तक घंटी बजाने के बाद भी दरवाजा नहीं खुल रहा है। जबकि खिड़कियांँ खुली दिख रही हैं ।
     पड़ौसी ने बताया कि मैंने तो रात नौ बजे बात की है । कहीं जाने के बारे में भी नहीं बताया था उन्होंने।
      पड़ौसी ने भी घंटी बजायी और आवाज भी लगायी । मगर कोई उत्तर नहीं मिला ।
       पड़ौसी ने अपने आसपास के कई लोगों को दरवाजा न खोलने के बारे में बताकर उन्हें भी बुला लिया । सभी ने संशयभरी आवाज़ लगाई । मगर अंदर से कोई उत्तर नहीं मिला।
     सभी ने एक राय होकर जैसे-तैसे दरवाजा खोला तो अंदर देखकर सब भौंचक्के रह गये। दोनों अलग-अलग कमरों में लहूलुहान मृत पड़े थे। घर का सामान यथावत रखा हुआ था। कुछ भी बिखरा हुआ नहीं था। सभी के मुंँह से यही निकला कि किसी ने बेरहमी से हत्या की है।
यह तो भले लोग थे । इन्होंने कभी ऊंँची आवाज़ में बात तक नहीं की किसी से । इनका कौन शत्रु हो सकता है?
      सबसे पहले पड़ौसियों ने उनके बेटे को मोबाइल से घटना की सूचना दी । फिर पुलिस को सूचना दी गई । पुलिस ने घटनास्थल का निरीक्षण करके अपना मत बताया कि यह किसी नज़दीकी या रिश्तेदार का ही काम हो सकता है क्योंकि अलमारी वगैरह का कोई ताला नहीं टूटा था और सब कुछ यथावत रखा हुआ था।
     ड्राइंगरुम में रखे चाय के खाली कप और मीठा-नमकीन से पुलिस की जांँच में यह निश्चित हो गया कि यह किसी घनिष्ठ परिचित या रिश्तेदार का ही काम है जो रात को यहां आया होगा ।
     बेटे ने भी किस से भी दुश्मनी न होना पुलिस को बताया ।
      पुलिस का शक सही निकला । जांँच -पड़ताल में सगे दो भतीजों का हत्या में लिप्त होना पाया गया । दोनों बेरोज़गार थे। पढ़े-लिखे थे। पिता की इतनी हैसियत नहीं थी कि वह कोई दुकान ही करवा देते । ताऊ मालदार और जमीन-जायदाद वाले थे । उनके बेटे ने बड़े शहर में रहकर अपना फ्लैट खरीद लिया था । यही लालच भतीजों को हत्या करने के लिए प्रेरित किया । दोनों पकड़े गए और जेल में डाल दिये गये । और कहानी यहीं खत्म हो गयी ।
   शैतान सिंह बोला -  "सही तो लिखी है कहानी। जो समाज में घटित हो रहा है वही लेखक ने लिखा है। इसमें समाज को परोसने जैसी तुम्हें क्या बात लगी?"
  मनुज बोला - "बेरोजगार भतीजों द्वारा लालच के वशीभूत होकर अपने सगे ताऊ की हत्या करने का संदेश समाज में क्या प्रभाव छोड़ेगा?" सोचो शैतान सिंह ।
 मनुज ने कहा -" मेरी राय में ऐसी कहानियांँ नवयुवकों पर अच्छा प्रभाव नहीं ड़ालतीं । हो सकता है बहुत से शातिर युवक इससे प्रेरित होकर किसी और तरीके से इसी राह पर चल पड़े तो क्या होगा?"
 शैतान सिंह बोला - "तेरी सोच ही अलग है मनुज । समाज के सामने वह भी आना चाहिए जो समाज में हो रहा है । उसका प्रभाव बाद की बात है ।"
   मनुज ने कहा इस बात को समझने के लिए एक और कहानी सुन - "हमने एक कहानी अपने कोर्स में पढ़ी थी । एक बाबा थे। उनके पास एक घोड़ा था । घोड़ा बहुत तेज दौड़ने वाला अच्छा स्वस्थ था। डांँकुओं को घोड़े की प्रसिद्धि पता थी । डांँकुओं ने बाबा से घोड़ा लूटने की योजना बनाई ।
   एक दिन बाबा घोड़े पर सवार होकर जंगल से गुज़र रहे थे। रास्ते में एक डांँकू लेटकर लोटपोट होकर कराहने लगा । बाबा ने घोड़ा रोक कर डांँकू से पूंँछा - "क्या तकलीफ़ है?" तभी डांँकू उत्तर देने की बजाय उठा और झपट कर घोड़े पर सवार होकर घोड़ा ले उड़ा । बाबा देखते रह गए ।
   जैसे-तैसे बाबा अपने आश्रम पहुंँचे । साथ में घोड़े के न होने का कारण बाबा जी ने चेलों को बताया कि डांँकू घोड़ा छीनकर ले गये । यह नहीं बताया कि मैंने उसकी तबियत खराब देखकर उसकी मदद के लिए घोड़ा रोका था । यह भी इसलिए नहीं बताया कि लोग सड़क पर पड़े किसी वास्तविक तबीयत खराब पड़े व्यक्ति की मदद करना छोड़ देंगे ।"
 मनुज ने शैतान सिंह से पूंछा -"अब भी समझा बाबाजी का उद्देश्य या नहीं?"
   इसीलिए मैं भी कहता हूं कि समाज में ऐसी घटनाएं होती तो हैं पर उनको समाज में नहीं परोसना चाहिए । इससे समाज पर अच्छा प्रभाव नहीं पड़ता ।
  शैतान सिंह बोला -" पर ऐसी घटनाओं को इस प्रकार लिखना चाहिए जिससे समाज को लगे कि ऐसा करने से भला होने वाला नहीं है।"
    मनुज शैतान सिंह की बात पर जोर से हंँसा और बोला -" बहुत टहल हो गयी । अब घर चलें।"
       
राम किशोर वर्मा
रामपुर
         

बुधवार, 1 जुलाई 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार राम किशोर वर्मा की कहानी ------पटरी का सब्जीवाला


    "नौ बज गये। कब नहाओगे ?"    मनीषा ने पति से कहा - "छोड़ो इस अखबार को । और तुम्हें काम ही क्या है ? दिनभर पड़ा है पढ़ने को ।"
    "लो भई छोड़ दिया ।" कहते हुए मयंक पत्नी से बोला -"जिंदगी भर इतना काम किया है। रिटायरमेंट के बाद भी चैन से बैठा हुआ देखना नहीं चाहतीं।"
      "वो याद आया । टमाटर आने हैं ।" मनीषा ने पति से कहा - "नहाना बाद में । अनलॉक हो गया तो क्या हुआ ? बाजार से आकर नहाना पड़ेगा । इसलिए पहले टमाटर ले आओ। दो-एक सब्जी और ले आना । नहीं तो शाम को तुम्हें बाजार जाने का फिर बहाना मिल जायेगा।"
   मयंक ने थैला उठाया और पैदल ही बाजार की ओर चल दिया ।
    आज मयंक ने एक नये व्यक्ति को पटरी पर सब्जी बेचते देखा । वह रुक गया और पटरी पर रखी सब्जियों पर निगाह मार कर पूंँछा- "आलू नहीं है?"
      सब्जी वाले ने न में सिर हिला दिया ।
       सब्जी वाले जिस स्थायी दुकानदार से मयंक सब्जी लेता था उससे उसने दो किलो आलू लिये । थोड़ी मिर्च यों ही डाल दीं उसने और वह लेकर लौट पड़ा ।
       जब मयंक आलू ले रहा था तो उसने अन्य ग्राहकों से टमाटर, भिण्डी और लौकी के भाव सुन लिये थे ।
           लौटते समय मयंक सोच रहा था कि मैं पटरी के सब्जी वाले से शेष सब्जियांँ लूंँगा । लॉक डाउन के बाद आज यह यहां अकेला कुछ उम्मीद से सब्जी बेचने बैठा होगा । उसके भी बीबी-बच्चे होंगे । दो पैसे का फायदा उसे ही सही । स्थायी दुकानदार से तो खरीदने सभी चले जाते हैैं ।
         यह सब सोचता हुआ मयंक उस पटरी के सब्जीवाले के पास पहुंँच कर रुक गया ।
           पटरी के सब्जीवाले से मयंक ने पूंँछा - "टमाटर क्या भाव हैं?"
       उसने कहा - " 15₹ किलो ।"
       फिर मयंक ने पूंँछा -"यह भिण्डी और लौकी ?"
       उसने कहा - "भिण्डी आपको 25₹ लगा दूंँगा और लौकी 15₹ किलो है । आप ले लो ।"
        मयंक मन-ही-मन स्थायी दुकानदार के भावों की तुलना कर रहा था । कितना अंतर है उसके और इसके भावों में? मयंक ने एक-एक किलो सभी सब्जियांँ थैले में ले लीं । पर इसने हरी मिर्च यों ही नहीं डालीं । मयंक भी समझ गया कि वह अधिक भाव लगाकर थोड़ी हरी मिर्च डालकर बहला देता है । यह सही भाव लगा रहा है तो हरी मिर्च यों ही कैसे देगा ?
     मयंक ने पूंँछा - "कुल कितने ₹ हुए आपके ?"
       उसने हिसाब लगाया और बोला - " 55₹"
         मयंक ने ₹ दिये और घर की ओर चल दिया ।
          घर आकर मयंक ने रोज की तरह सब सब्जियांँ धोयीं और मनीषा को बताया कि मैं आज एक पटरी के नये सब्जीवाले से सब्जी लेकर आया हूं। बेचारा यह सोचकर यहां बैठ गया होगा कि यहांँ जल्दी बिक जायेंगी ।
      मनीषा मयंक का मुंँह ताकती बोली - "तुम नये सब्जीवाले से सब्जी ले आये ! जिसे तुम जानते नहीं । जिसकी स्थायी दुकान नहीं ! कोरोना खत्म नहीं हुआ है। केवल लॉक डाउन हटा है । सामान केवल परिचित दुकान से लाओ ।"
    मयंक सोच रहा था कि  कोरोना ने कहांँ-कहांँ दूरियाँ पैदा कर दी हैं । इसे खत्म करना ही पड़ेगा ।
     मयंक मनीषा से यह कहता हुआ :- "यह सब्जियांँ तुम मत खाना। मुझे खिलाना।"  नहाने के लिए बाथरूम में घुस गया ।
 
✍️ राम किशोर वर्मा
रामपुर
      

मंगलवार, 16 जून 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी राम किशोर वर्मा की लघुकथा ------ मोबाइल


      "खाना परोस दिया है । छोड़ दो मोबाइल को" की आवाज जैसे ही अंजान जी के कानों से टकरायी वह अपनी पत्नी लता से बोले - "आ रहा हूं । बस कविता की एक पंक्ति लिखनी शेष है ।"
   लता ने कहा -"कैसी कविता हो गयी? 66 साल के हो गये पर लड़कों की तरह मोबाइल पर चिपके रहते हो ।"
    "मैं भी अब आराम करूंगी जब मन हो खा लेना । आंखें लाल हो जाती हैं देखते-देखते। फिर कहते हैं कि चश्मे का नंबर बदलवाना है ।" -लता बुदबुदाते हुए रसोई से निकल गयी ।
   "लो छोड़ दिया लिखना" अंजान ने कहकर मोबाइल को चार्जिंग पर लगा दिया । "अरे ! तुम मेरे भले की ही तो कहती हो । इससे मेरा समय कट जाता है और मेरा शौक भी पूरा हो जाता है ।"
      लता बोली - "थाली ढ़की रखी है । खाना खाकर फिर चिपक जाना मोबाइल पर  और रात को कहना - आई ड्रॉप कहां है?"
   
 ✍️ राम किशोर वर्मा
 रामपुर

शनिवार, 23 मई 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रामकिशोर वर्मा का संस्मरणात्मक आलेख ----- "मेरे अंदर दबे हुए कविता के अंकुरों को प्रस्फुटित किया था हीरालाल 'किरण' ने"



    बात उन दिनों की है जब मैं बी ए करने के बाद राजकीय औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान, रामपुर( उ०प्र०) से हिन्दी आशुलिपिक का प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद भी खाली हाथ था । हालांकि वर्ष 1974 के समय सरकारी विभागों में भी हिन्दी आशुलिपिकों के पद न के बराबर ही थे पर भविष्य में इन पदों के सृजित होने की प्रबल आशा थी ।
   मैं साक्षात्कार की तैयारी कर रहा था । जेब खर्च निकालने और स्वयं को व्यस्त रखने के लिए मैंने 'अंँग्रेजी माध्यम' के रामपुर में एकमात्र 'सेंटमैरी कान्वेंट' स्कूल के बच्चों को घर पर जाकर ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया ।
   तभी मेरे घनिष्ठ मित्र स्मृति शेष श्री दिलीप कुमार शर्मा जी ने मुझसे कहा - 'टैगोर शिशु निकेतन में विज्ञान के आचार्य की आवश्यकता है । वहां के प्रधानाचार्य मेरे परिचित हैं। उनका भी काम हो जायेगा और तुम्हें भी सहारा मिल जायेगा।'
  मैंने सोचा - 'खाली से बेगार भली' और वहां विज्ञान पढ़ाना शुरू कर दिया ।
    विद्यालय का वातावरण और युवक-युवती आचार्य सभी बहुत भले थे । वहां पर मेरा परिचय श्री हीरालाल किरण जी से प्रत्यक्ष हुआ । इससे पहले मैं उन्हें केवल समाचार-पत्रों में ही उनकी रचनाओं के साथ पढ़ता रहता था । बहुत साधारण व्यक्तित्तव , मधुर वाणी वाले ज्ञान के भंडार हिन्दी के ध्वज को रामपुर में लहरा रहे थे ।
    बचपन से मुझे कविता पढ़ने का बहुत शौक था । मन करता था कि मैं भी लिखूं । भावों को कलम से कागज पर उकेर दूं ।मन नहीं माना और स्नातक करते समय ही भावों को कागज पर चीतना शुरू कर दिया था।
   मेरे लिए श्री हीरालाल किरण जी का सानिध्य ऐसा था कि जैसे मेरी सभी समस्याओं का हल मिल गया हो । विद्यालय में ही भोजनावकाश में मैं उनसे कविता पर चर्चा करता तो वह बहुत प्रसन्न होते थे । मेरे अंदर दबे हुए कविता के अंकुरों को प्रस्फुटित करने में वह मुझे निस्वार्थभाव से प्रोत्साहित करने लगे ।
   मैं लिखकर लाता और दिखाता तो कहते - 'अभी ऐसे ही लिखो । अच्छे भाव हैं । बस तुकान्त पर ध्यान दो ।'
    मैं अपने लिखे की प्रशंसा पाकर फूला न समाता। मुझे तो यह भी पता नहीं था कि तुकांत क्या और कैसे प्रयोग करते हैं।बस अतुकान्त लिखता पर मन यही कहता कि जो बात कविता में होती है,वह नहीं आ रही है। मैं अपने मनोभाव श्री हीरालाल किरण जी से कहता तो वह यही कहकर प्रोत्साहित कर देते कि -'करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान' । पहले तुकांत मिलाना सीखो । चार-चार की पंक्तियों में रचना रचो । मगर उन्होंने कभी हतोत्साहित नहीं किया ।
   श्री हीरालाल किरण जी मेरी प्रथम पाठशाला थे । तब से मैं अतुकान्त रचनाऐं लिखने लगा ।
   इसी मध्य मेरी नियुक्ति ज़िला एवं सत्र न्यायालय, रामपुर में हो गयी मगर मैं उनसे जुड़ा रहा ।
    आर्य समाज मंदिर, रामपुर में 'विज्ञान कार्यशाला' के आयोजन में श्री हीरालाल किरण जी ने मुझे भी निमंत्रित कर विज्ञान से संबंधित बाल रचाऐं रचने के लिए सभी रचनाकारों को प्रशिक्षण दिया गया।
    न्यायालय की नौकरी में कार्य की अधिकता के कारण समय नहीं मिल पाता था कि मैं काव्य गोष्ठियों में जा पाऊंँ । मगर कलम निरन्तर चलती रही। विभाग में समस्त न्यायिक अधिकारियों और स्टाफ की उपस्थिति में मैं राष्ट्रीय पर्वों पर स्वरचित रचनाऐं प्रस्तुत करता तो वहां भी भूरि-भूरि प्रशंसा पाकर मन गदगद हो जाता । मगर मैं श्री हीरालाल किरण जी को ही मन-ही-मन धन्यवाद देता कि यदि वह मुझे उत्साहित नहीं करते और कविता के व्याकरण व मात्राओं के मकड़जाल में फंँसा कर उलझा देते तो संभवतः कलम आगे नहीं चल सकती थी ।
    श्री हीरालाल किरण जी के व्यवहार और मार्गदर्शन को मैं कभी नहीं भुला सकता ।
 
✍️  राम किशोर वर्मा
       रामपुर

गुरुवार, 14 मई 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रामकिशोर वर्मा की लघुकथा------- लॉकडाउन में छूट


     कोविड-19 के कारण लॉक डाउन में रहते-रहते अब आदत सी पड़ गयी है । सभी घरों में बंद हैं । सभी काम बन्द हैं । पर्यावरण स्वत: शुद्ध होने लगा है । समाज में अपराध थम गये हैं ।                       असामाजिक तत्व भी तो आखिर इंसान हैं । मौत से उन्हें भी डर लगता है । कोरोना के भय ने आतंकियों के भय को मात कर दिया है ।
   लॉक डाउन में छूट क्या दी ! सरकार ने तीन महीने से प्यासे लोगों के लिए सबसे पहले मदिरालय खोल दिये । मंदिर इसलिए नहीं खोले कि वह तो भगवन भजन आप घर बैठे भी कर लेते हो ।
   अरे ! टी वी पर यह क्या समाचार आ रहा है ? लॉक डाउन से पहले की तुलना में लॉकडाउन के दौरान अपराधों में बहुत कमी आयी है । मैंने सोचा - " कोरोना के भय ने चोर-डकैतों और अपराधी प्रवृत्ति के लोगों पर अंकुश लगा रखा है ।"
   मगर लॉकडाउन के दौरान "कोरोना वारियर्स अर्थात् डॉक्टर, नर्स और पुलिस" पर हमला, पत्थरबाजी और बदतमीजी के अपराध ही घटित हुए ।
   अब सरकार ने ग्रीन जोन के लोगों के लिए अपने ही शहर में आने-जाने में और काम-काज में काफी छूट दे दी है । मेरा सिर घूम गया ।
     लॉक डाउन में मैं अपने शहर व प्रदेश से काफी दूर अपने बेटे के घर दूसरे शहर व प्रदेश में फंँस जाने के कारण निश्चिन्त होकर रह रहा था । घर पर ताला लगाकर आया था । पड़ौसी से घर का ध्यान रखने को कह आया था ।
   अभी टी वी समाचार में देखा कि शराब पीकर किसी ने आत्महत्या कर ली । महिलाएं शराब के विरोध में प्रदर्शन कर रही हैं ।
     अब जब लॉक डाउन में छूट दी गयी है तो मुझे भी अपने बंद घर की चिन्ता होने लगी है । क्योंकि सरकार ने सभी को अपने कामधंधो को करने में छूट जो दे दी है ।
        भगवान मेरे घर का ताला सही सलामत रहे ।

 ✍️ राम किशोर वर्मा
 जयपुर (राजस्थान)

सोमवार, 11 मई 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रामकिशोर वर्मा की रचना ---- मां


मांँ
आता
हैं मेरे
मन जब
दुख हो कोई
देखूंँ तो लगता
ये छूमंतर होई ।

मांँ
सच
की मैंने
मनमानी
अब लगता
नहीं करनी थी
थी केवल नादानी ।

माँ
नहीं
है अब
तब लगे
कुछ ग़लत
न कदम पड़ें
सच्चे रस्ते ही चलें ।

मांँ
तेरे
अनेक
लगें रूप
जननी भी तू
जन्म-भूमि भी तू
जगजननी भी तू ।

मांँ
कोई
सी भी हो
भले ही वो
पशु-पक्षी हों
ममता सभी में
समान पायी जाती ।

मांँ
से ही
संसार
चलाती है
वो परिवार
तभी तो हुई है
उसकी जयकार ।

_राम किशोर वर्मा_
   जयपुर (राजस्थान)
दिनांक :- 10-05-2020