"मम्मी आज तीजों पर नयी साड़ी पहिनूंगी । मगर उसमें फॉल नहीं लगी है ।" - प्रमिला ने अपनी सासू मांँ से अपनी इच्छा व्यक्त करते हुए कहा - "घर में फॉल भी रखी है पर लॉकडाउन में बुटीक की दुकानें भी बंद रहने के कारण नहीं लगवा पायी ।"
"बेटी तुमने पहले क्यों नहीं बताया ? अब तक तो मैं फॉल लगाकर तेरी साड़ी तैयार कर देती।" - सासू मांँ ने प्रमिला से बड़े प्रेम से कहा ।
तभी सासू मांँ के मस्तिष्क में एक पुरानी स्मृति ताजा हो गयी।जब प्रमिला के विवाह को एक वर्ष ही हुआ होगा । घर में कोई विशेष काम नहीं था। पारिवारिक प्रतिदिन के कार्य सास-बहू दोनों मिलकर निबटा लेती थीं ।
गर्मी के बड़े दिन थे। दोपहर को खाना खाने के बाद आराम करने के साथ सोना नित्य का नियम था । चार बजे सोकर उठना। चाय पीना ।
तब सास को भी अपनी नयी-नयी बहू से बहुत प्रेम था । वह चाहती थी कि मेरी बहू जहां शिक्षित है, वहीं पारिवारिक दैनिक जीवन में होने वाले कार्यों में निपुण हो जाये ताकि उसे जीवन में कोई कठिनाई न आये।
प्रमिला की विवाह में मिली अनेक साड़ियों में फॉल लगनी शेष थी ।
एक दिन प्रमिला ने सासू मांँ से कहा - "मम्मी गर्मी के दिन हैं । सोने के बाद भी समय नहीं कटता।"
सासू मांँ ने प्रमिला से कहा था - "तुम्हारी कई साड़ियांं फॉल लगाने के लिए रखी हुई हैं । फॉल भी घर में रखी हैं । फॉल लगाना मैं सिखाती हूं । तुम्हारा समय भी कट जायेगा और तुम से फॉल लगाना भी आ जायेगा। समय-असमय काम ही आयेगा।"
तब प्रमिला ने इस बात पर बड़ा बतंगड़ खड़ा कर दिया था और अपने पति को फोन करके बताया था - " तुम्हारी मम्मी को तो पढ़ी-लिखी बहू की जरूरत नहीं थी । उनको तो फॉल लगाने वाली, कपड़े सिलने वाली बहू लानी चाहिए थी ।"
और अगले ही दिन बाहर जॉब कर रहे बेटे ने फोन करके अपनी मम्मी से कहा था - "मम्मी फॉल लगाने के लिए साड़ियां बुटीक की दुकान पर दे देना । तुम भी अब आराम करो । अपनी आंखों पर अधिक जोर मत डालो ।"
तभी प्रमिला ने सासू मां को कमरे से आवाज़ लगाकर बताया - " मम्मी साड़ी और फॉल मैंने निकाल ली है ।"
इस आवाज से सासू मांँ पुरानी स्मृति से बाहर आ गयी ।और बोली - " बेटी मुझे दे दो । मैं अभी एक-दो घंटे में फॉल टांक कर तेरी साड़ी तैयार कर देती हूं ।"
राम किशोर वर्मा
रामपुर
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