बुधवार, 1 जुलाई 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार राम किशोर वर्मा की कहानी ------पटरी का सब्जीवाला


    "नौ बज गये। कब नहाओगे ?"    मनीषा ने पति से कहा - "छोड़ो इस अखबार को । और तुम्हें काम ही क्या है ? दिनभर पड़ा है पढ़ने को ।"
    "लो भई छोड़ दिया ।" कहते हुए मयंक पत्नी से बोला -"जिंदगी भर इतना काम किया है। रिटायरमेंट के बाद भी चैन से बैठा हुआ देखना नहीं चाहतीं।"
      "वो याद आया । टमाटर आने हैं ।" मनीषा ने पति से कहा - "नहाना बाद में । अनलॉक हो गया तो क्या हुआ ? बाजार से आकर नहाना पड़ेगा । इसलिए पहले टमाटर ले आओ। दो-एक सब्जी और ले आना । नहीं तो शाम को तुम्हें बाजार जाने का फिर बहाना मिल जायेगा।"
   मयंक ने थैला उठाया और पैदल ही बाजार की ओर चल दिया ।
    आज मयंक ने एक नये व्यक्ति को पटरी पर सब्जी बेचते देखा । वह रुक गया और पटरी पर रखी सब्जियों पर निगाह मार कर पूंँछा- "आलू नहीं है?"
      सब्जी वाले ने न में सिर हिला दिया ।
       सब्जी वाले जिस स्थायी दुकानदार से मयंक सब्जी लेता था उससे उसने दो किलो आलू लिये । थोड़ी मिर्च यों ही डाल दीं उसने और वह लेकर लौट पड़ा ।
       जब मयंक आलू ले रहा था तो उसने अन्य ग्राहकों से टमाटर, भिण्डी और लौकी के भाव सुन लिये थे ।
           लौटते समय मयंक सोच रहा था कि मैं पटरी के सब्जी वाले से शेष सब्जियांँ लूंँगा । लॉक डाउन के बाद आज यह यहां अकेला कुछ उम्मीद से सब्जी बेचने बैठा होगा । उसके भी बीबी-बच्चे होंगे । दो पैसे का फायदा उसे ही सही । स्थायी दुकानदार से तो खरीदने सभी चले जाते हैैं ।
         यह सब सोचता हुआ मयंक उस पटरी के सब्जीवाले के पास पहुंँच कर रुक गया ।
           पटरी के सब्जीवाले से मयंक ने पूंँछा - "टमाटर क्या भाव हैं?"
       उसने कहा - " 15₹ किलो ।"
       फिर मयंक ने पूंँछा -"यह भिण्डी और लौकी ?"
       उसने कहा - "भिण्डी आपको 25₹ लगा दूंँगा और लौकी 15₹ किलो है । आप ले लो ।"
        मयंक मन-ही-मन स्थायी दुकानदार के भावों की तुलना कर रहा था । कितना अंतर है उसके और इसके भावों में? मयंक ने एक-एक किलो सभी सब्जियांँ थैले में ले लीं । पर इसने हरी मिर्च यों ही नहीं डालीं । मयंक भी समझ गया कि वह अधिक भाव लगाकर थोड़ी हरी मिर्च डालकर बहला देता है । यह सही भाव लगा रहा है तो हरी मिर्च यों ही कैसे देगा ?
     मयंक ने पूंँछा - "कुल कितने ₹ हुए आपके ?"
       उसने हिसाब लगाया और बोला - " 55₹"
         मयंक ने ₹ दिये और घर की ओर चल दिया ।
          घर आकर मयंक ने रोज की तरह सब सब्जियांँ धोयीं और मनीषा को बताया कि मैं आज एक पटरी के नये सब्जीवाले से सब्जी लेकर आया हूं। बेचारा यह सोचकर यहां बैठ गया होगा कि यहांँ जल्दी बिक जायेंगी ।
      मनीषा मयंक का मुंँह ताकती बोली - "तुम नये सब्जीवाले से सब्जी ले आये ! जिसे तुम जानते नहीं । जिसकी स्थायी दुकान नहीं ! कोरोना खत्म नहीं हुआ है। केवल लॉक डाउन हटा है । सामान केवल परिचित दुकान से लाओ ।"
    मयंक सोच रहा था कि  कोरोना ने कहांँ-कहांँ दूरियाँ पैदा कर दी हैं । इसे खत्म करना ही पड़ेगा ।
     मयंक मनीषा से यह कहता हुआ :- "यह सब्जियांँ तुम मत खाना। मुझे खिलाना।"  नहाने के लिए बाथरूम में घुस गया ।
 
✍️ राम किशोर वर्मा
रामपुर
      

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