शुक्रवार, 10 जुलाई 2020

रामपुर के साहित्यकार राम किशोर वर्मा की कहानी ------कहानी का प्रभाव


 "शैतान सिंह आज मैंने अजीब कहानी पढ़ी ।" - मनुज ने पार्क में टहलते हुए बात करना शुरू किया ।
      "कैसी कहानी? " -शैतान सिंह ने जिज्ञासा भरे स्वर में कहा - " चल कहानी सुना।"
        मनुज ने टहलते हुए कहानी कहना शुरू की और बोला समाज को क्या परोस रहे हैं आज के लेखक - " एक वरिष्ठ नागरिक युगल घर में अकेले रह रहे थे क्योंकि उनका पुत्र अपनी पत्नी और दो बच्चों के साथ नौकरी करने के कारण बाहर बड़े शहर में रह रहा था । पुत्री का विवाह कर दिया था।
     सुबह दूध वाला आया और उसने दरवाजा खटखटाया । घंटी बजायी मगर दरवाजा नहीं खुला तो उसने पड़ौसी से पूंँछा कि आज बहुत देर तक घंटी बजाने के बाद भी दरवाजा नहीं खुल रहा है। जबकि खिड़कियांँ खुली दिख रही हैं ।
     पड़ौसी ने बताया कि मैंने तो रात नौ बजे बात की है । कहीं जाने के बारे में भी नहीं बताया था उन्होंने।
      पड़ौसी ने भी घंटी बजायी और आवाज भी लगायी । मगर कोई उत्तर नहीं मिला ।
       पड़ौसी ने अपने आसपास के कई लोगों को दरवाजा न खोलने के बारे में बताकर उन्हें भी बुला लिया । सभी ने संशयभरी आवाज़ लगाई । मगर अंदर से कोई उत्तर नहीं मिला।
     सभी ने एक राय होकर जैसे-तैसे दरवाजा खोला तो अंदर देखकर सब भौंचक्के रह गये। दोनों अलग-अलग कमरों में लहूलुहान मृत पड़े थे। घर का सामान यथावत रखा हुआ था। कुछ भी बिखरा हुआ नहीं था। सभी के मुंँह से यही निकला कि किसी ने बेरहमी से हत्या की है।
यह तो भले लोग थे । इन्होंने कभी ऊंँची आवाज़ में बात तक नहीं की किसी से । इनका कौन शत्रु हो सकता है?
      सबसे पहले पड़ौसियों ने उनके बेटे को मोबाइल से घटना की सूचना दी । फिर पुलिस को सूचना दी गई । पुलिस ने घटनास्थल का निरीक्षण करके अपना मत बताया कि यह किसी नज़दीकी या रिश्तेदार का ही काम हो सकता है क्योंकि अलमारी वगैरह का कोई ताला नहीं टूटा था और सब कुछ यथावत रखा हुआ था।
     ड्राइंगरुम में रखे चाय के खाली कप और मीठा-नमकीन से पुलिस की जांँच में यह निश्चित हो गया कि यह किसी घनिष्ठ परिचित या रिश्तेदार का ही काम है जो रात को यहां आया होगा ।
     बेटे ने भी किस से भी दुश्मनी न होना पुलिस को बताया ।
      पुलिस का शक सही निकला । जांँच -पड़ताल में सगे दो भतीजों का हत्या में लिप्त होना पाया गया । दोनों बेरोज़गार थे। पढ़े-लिखे थे। पिता की इतनी हैसियत नहीं थी कि वह कोई दुकान ही करवा देते । ताऊ मालदार और जमीन-जायदाद वाले थे । उनके बेटे ने बड़े शहर में रहकर अपना फ्लैट खरीद लिया था । यही लालच भतीजों को हत्या करने के लिए प्रेरित किया । दोनों पकड़े गए और जेल में डाल दिये गये । और कहानी यहीं खत्म हो गयी ।
   शैतान सिंह बोला -  "सही तो लिखी है कहानी। जो समाज में घटित हो रहा है वही लेखक ने लिखा है। इसमें समाज को परोसने जैसी तुम्हें क्या बात लगी?"
  मनुज बोला - "बेरोजगार भतीजों द्वारा लालच के वशीभूत होकर अपने सगे ताऊ की हत्या करने का संदेश समाज में क्या प्रभाव छोड़ेगा?" सोचो शैतान सिंह ।
 मनुज ने कहा -" मेरी राय में ऐसी कहानियांँ नवयुवकों पर अच्छा प्रभाव नहीं ड़ालतीं । हो सकता है बहुत से शातिर युवक इससे प्रेरित होकर किसी और तरीके से इसी राह पर चल पड़े तो क्या होगा?"
 शैतान सिंह बोला - "तेरी सोच ही अलग है मनुज । समाज के सामने वह भी आना चाहिए जो समाज में हो रहा है । उसका प्रभाव बाद की बात है ।"
   मनुज ने कहा इस बात को समझने के लिए एक और कहानी सुन - "हमने एक कहानी अपने कोर्स में पढ़ी थी । एक बाबा थे। उनके पास एक घोड़ा था । घोड़ा बहुत तेज दौड़ने वाला अच्छा स्वस्थ था। डांँकुओं को घोड़े की प्रसिद्धि पता थी । डांँकुओं ने बाबा से घोड़ा लूटने की योजना बनाई ।
   एक दिन बाबा घोड़े पर सवार होकर जंगल से गुज़र रहे थे। रास्ते में एक डांँकू लेटकर लोटपोट होकर कराहने लगा । बाबा ने घोड़ा रोक कर डांँकू से पूंँछा - "क्या तकलीफ़ है?" तभी डांँकू उत्तर देने की बजाय उठा और झपट कर घोड़े पर सवार होकर घोड़ा ले उड़ा । बाबा देखते रह गए ।
   जैसे-तैसे बाबा अपने आश्रम पहुंँचे । साथ में घोड़े के न होने का कारण बाबा जी ने चेलों को बताया कि डांँकू घोड़ा छीनकर ले गये । यह नहीं बताया कि मैंने उसकी तबियत खराब देखकर उसकी मदद के लिए घोड़ा रोका था । यह भी इसलिए नहीं बताया कि लोग सड़क पर पड़े किसी वास्तविक तबीयत खराब पड़े व्यक्ति की मदद करना छोड़ देंगे ।"
 मनुज ने शैतान सिंह से पूंछा -"अब भी समझा बाबाजी का उद्देश्य या नहीं?"
   इसीलिए मैं भी कहता हूं कि समाज में ऐसी घटनाएं होती तो हैं पर उनको समाज में नहीं परोसना चाहिए । इससे समाज पर अच्छा प्रभाव नहीं पड़ता ।
  शैतान सिंह बोला -" पर ऐसी घटनाओं को इस प्रकार लिखना चाहिए जिससे समाज को लगे कि ऐसा करने से भला होने वाला नहीं है।"
    मनुज शैतान सिंह की बात पर जोर से हंँसा और बोला -" बहुत टहल हो गयी । अब घर चलें।"
       
राम किशोर वर्मा
रामपुर
         

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